>हमारे घरों में प्रायः पीतल के बने बर्तन, मूर्तियां और अन्य उत्पाद दिख जाते हैं जिनमे से कई हमारे पूर्वजों द्वारा खरीदे गए थे और आज भी ज्यों के त्यों है। आगे हम पीतल की ऐसी ही कुछ खासियतों और इतिहास को संक्षेप में समझेंगे। पीतल एक मिश्र धातु होती हैं, जो मुख्य रूप से तांबे और जस्ता से बनती है। तांबा मुख्य घटक है, और पीतल को आमतौर पर तांबे के मिश्र धातु के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। जस्ते की मात्रा के आधार पर पीतल का रंग गहरे लाल भूरे से लेकर हल्के चांदी के पीले रंग हो सकता है। पीतल तांबे की तुलना में मजबूत और सख्त होता है, लेकिन स्टील जितना मजबूत या कठोर नहीं होता। इसे विभिन्न आकृतियों में ढाल लेना आसान होता है। पीतल गर्मी का एक अच्छा संवाहक होता है, आमतौर पर इसमें जंग भी नहीं लगता।
भारत पूरे विश्व में पीतल के बर्तन बनाने वाला सबसे बड़ा उत्पादक देश है। पीतल से विभिन्न वस्तुओं के निर्माण की यह कला भारत में हजारों वर्षों से प्रचलित है। पुरातत्व अभिलेखों के अनुसार, भारत में पीतल तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से अत्यधिक लोकप्रिय था। साथ ही अनेक देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी इसी धातु से बनाई जाती थी। भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित मुरादाबाद पीतल के उद्योग के संदर्भ में प्रसिद्ध है, जिसने दुनिया भर में फैले हस्तशिल्प उद्योग में अपना एक विशेष स्थान बनाया है। मुरादाबाद की स्थापना 1600 में मुगल सम्राट शाहजहां के पुत्र मुराद के द्वारा की गयी थी । इसे 'ब्रास सिटी' अर्थात 'पीतल नगरी' के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ के विभिन्न समूहों में लगभग 850 निर्यात इकाइयों और 25000 धातु शिल्प औद्योगिक इकाइयां हैं। शहर की संकरी गलियों में, कारीगर सबसे उत्तम पीतल के उत्पादों को बनाते हैं। जिसे बाद में दुनिया भर में निर्यात किया जाता है। ये कारीगर इनकी बनावट कार्य में पूरा दिन लगे रहते हैं। मुरादाबाद में पीतल का काम एक लघु उद्योग है, जो की आज भी काफी कम तकनीक की सहायता से किया जाता है। कई कारीगरों की अपने घरों में ही निर्माण इकाइयाँ और कार्यशालाएँ चल रही हैं। इन कारीगरों में अधिकांशतः मुस्लिम समुदाय से हैं, जिन्हे अपने काम पर गर्व है, और जो अपने द्वारा सीखी गयी पीतल निर्माण की कला को अगली पीड़ी में भी हस्तांतरित कर रहे हैं। मुरादाबाद से पीतल के उत्पादों की विस्तृत श्रंखला में पूजा के लिए मूर्तियां, फूलदान और प्लांटर्स, सुराही (गोल बर्तन), टेबलवेयर (प्लेट, कटोरे, बक्से आदि), ऐश ट्रे, दीया, मोमबत्ती स्टैंड, यंत्र, ताले और फिटिंग, हुक्का आदि तैयार किये जाते हैं ।साथ ही प्राचीन आभूषण, फर्नीचर और ट्राफियां भी कुशल कारीगरों द्वारा तैयार की जाती हैं।
यहाँ हर कारीगर अपने स्तर की कला में निपुण है, और बेहद कुशलता से अपने काम को पूरा करता हैं। पीतल का कोई भी आकार बनाने से पहले उस आकार के सांचे तैयार किए जाते हैं, फिर पीतल को पिघलाकर उन सांचों में भर दिया जाता है, इसके बाद प्राप्त आकार में नक्काशी की जाती है, और पॉलिश की जाती है, और अंत में पीतल के एक सुन्दर आकृति अथवा बर्तन बाजार में बिकने के लिए तैयार होता है। पीतल से निर्मित बर्तनों और आकृतियों का निर्यात संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और मध्य पूर्व और एशिया में किया जाता है। 19वीं सदी की शुरुआत के साथ ही मुरादाबाद में पीतल के बर्तन उद्योग का विकास होने लगा, अंग्रेज़ो द्वारा इस कला को विदेशी बाज़ारों में भी प्रसारित किया गया। बनारस, लखनऊ, आगरा और कई अन्य स्थानों के अन्य अप्रवासी कारीगरों ने मुरादाबाद में पीतल के बर्तन उद्योग को स्थापित किया जैसा की यह हमें आज दिखाई देता है। इलेक्ट्रोप्लेटिंग, लैक्क्वेरिंग, पाउडर कोटिंग (Electroplating, lacquering, powder coating )आदि जैसी नई तकनीकों को भी इस उद्योग में शामिल किया गया। अंतराष्ट्रीय बाज़ारों को हर साल 2,200 करोड़ रुपये के सामान का निर्यात होता है, जो की स्वयं में सराहनीय है।
प्रायः ऐसा अनुमान लगाया जाता है, कि अन्य शिल्प उद्योगों की भांति है पीतल उद्योग भविष्य में भी फलेगा-फूलेगा हालांकि कोरोना महामारी ने इन कुशल कारीगरों को थोड़ी चिंता में ज़रूर डाल दिया था। परन्तु विभिन्न सरकारी योजनाओं के अंतर्गत उनकी आजीविका को स्थिर रखने के कई प्रयास किये जा रहे हैं। सरकार द्वारा चलाई गयी ODOP (One District One Product) योजना इसी का साक्ष्य है।
जनवरी 2018 में शुरू की गई ओडीओपी योजना, यूपी सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। जिसका उद्देश्य उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में फैले समुदायों के स्थानीय कला, शिल्प और पारंपरिक कौशल को सुरक्षित, विकसित और बढ़ावा देना है। योजना के अंतर्गत छोटे, स्थानीय व्यवसायों की पहचान की जाती है, और उन्हें प्रशिक्षित किया जाता है। ताकि वे अपने उत्पाद की गुणवत्ता में सुधार कर सकें और अपनी दक्षता बढ़ा सके। इसके अतिरिक्त, कार्यक्रम का उद्देश्य लोगो की आय और स्थानीय रोजगार में वृद्धि करना भी है। साथ ही इससे बड़े पैमाने पर प्रवासी मज़दूरी की समस्या को भी हल किया जा सकता है। कार्यक्रम का उद्देश्य पारंपरिक शिल्प कला को पुनर्जीवित करना भी है। ओडीओपी योजना के अंतर्गत अपने व्यवसाय को ऑनलाइन करने के लिए कारीगरों / इकाइयों को 10,000 रुपये की सहायता प्रदान की जा रही है। इससे कारीगरों को उत्पाद की बिक्री ऑनलाइन करने के लिए भारी प्रोत्साहन भी मिलता है। उत्तर प्रदेश के 60 जिलों में अब तक कम से कम 60 जागरूकता कार्यशालाएं भी आयोजित की जा चुकी हैं। जिनमे amazon.in, flipkart जैसी दिग्गज कंपनियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। महामारी के बुरे दौर में उद्पाद बिक्री के नज़रिये से यह योजना मील का पत्थर साबित हो रही है, लोग अपने उद्पादों को बड़ी बढ़ चढ़ कर ऑनलाइन बाजार में बेच रहे हैं, और बेहद बुरे दौर में भी लाभ कमा रहे हैं।
संदर्भ
https://bit.ly/3bt8jzN
https://bit.ly/3yfk0UE
https://bit.ly/3frDrks
https://bit.ly/2S33PsP
https://bit.ly/3w9dM6W
चित्र संदर्भ
1. कांस्य हस्तशिल्पवस्तुओं का एक चित्रण (WIkimedia)
2. आफताब, मुरादाबाद की प्रमुख कांस्य हस्तशिल्प वस्तुओं में से एक का चित्रण (wikimedia)
3. ODOP योजना का एक चित्रण (youtube)
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