City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2375 | 944 | 0 | 0 | 3319 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
मुर्गियां सबसे आम और व्यापक रूप से पायी जाने वाले घरेलू जीवों में से एक है, 2018 तक इनकी आबादी 23.7 बिलियन तक हो गयी थी जो कि 2011 में 19 बिलियन थी। दुनिया में किसी भी अन्य पक्षी की तुलना में मुर्गियां सबसे अधिक उपलब्ध हैं। मुर्गीपालन की परंपरा कब से शुरू हुयी इसके प्रत्यक्ष प्रमाण तो किसी के पास उपलब्ध नहीं हैं. 2020 में प्रकाशित एक पूर्ण-जीनोम अध्ययन (whole-genome study) से प्राप्त हाल के आणविक साक्ष्यों से पता चलता है कि मुर्गे 8,000 साल पहले पालतू बनाए गए थे। हालाँकि, जीवाश्म मान्यताओं के आधार पर पहले यह माना जाता था कि 6000 ईसा पूर्व में दक्षिणी चीन से इसका घरेलूकरण किया गया था।दुनिया की अधिकांश घरेलू मुर्गियों का पता सिंधु घाटी की हड़प्पा संस्कृति से लगाया जा सकता है। आगे चलकर यह मध्य एशिया के तारिम बेसिन (Basin) में पहुंचे। यह लगभग 3000 ईसा पूर्व में यूरोप (Europe)(वर्तमान रोमानिया (Romania), तुर्की (Turkey), ग्रीस (Greece), यूक्रेन (Ukraine)) तक पहुंचा। प्रथम सहस्राब्दी ईसा पूर्व में यह पश्चिमी यूरोप पहुंचा। फोनेशियन (Phoenician)भूमध्यसागरीय तटों पर इबेरिया (Iberia)तक मुर्गियों को फैलाते हैं। रोमन साम्राज्य के काल में इनकी नस्लों में वृद्धि हुई, किंतु मध्य युग में कम हो गयी। थाईलैंड (Thailand), रूस (Russia), भारतीय उपमहाद्वीप (Indian Subcontinent), दक्षिण पूर्व एशिया (Southeast Asia)और उप-सहारा अफ्रीका (Sub-Saharan Africa)के आंकड़ों की कमी से इन क्षेत्रों में मुर्गियों के प्रसार का एक स्पष्ट नक्शा बनाना मुश्किल हो जाता है; विलुप्ति के कगार पर खड़ी स्थानीय नस्लों का बेहतर विवरण और आनुवांशिक विश्लेषण भी इस क्षेत्र में शोध में मदद कर सकता है।
वर्तमान समय में भारत में मुर्गों की केवल चार शुद्ध भारतीय नस्लें उपलब्ध हैं बाकि उपनस्लें या संकरी नस्लें हैं:
1.असील (Aseel):
* यह अपने बृहद्काय, उच्च सहनशक्ति, राजसी ठाठ और कुत्तों से लड़ने वाले गुणों के लिए जाना जाता है।
* असील की लोकप्रिय किस्में हैं, पीला (गोल्डन रेड) (Peela (Golden red)), याकूब (ब्लैक एंड रेड) (Yakub (Black and red)), नूरी (व्हाइट) (Noori (White)), कगार (ब्लैक) (Kagar (Black)) आदि।
* यह रंग में काला, नीला, श्वेत, काला लाल मिश्रित और चित्तीदार होता है।
2. चित्तगोंग (Chittagong):
* इसे मलय के नाम से भी जाना जाता है।
* दोहरे उद्देश्य वाला जीव है।
* लोकप्रिय किस्में बफ, सफेद, काले, गहरे भूरे और भूरे रंग की हैं।
* पी कलगी (Pea comb), लाल कान, लटकती हुई भौंहें, पैरों पर कम बाल
3.कड़कनाथ (Kadaknath):
* इसके शरीर का प्रत्येक हिस्सा काला और जीभ बैंगनी हाती है।
* इसका काला रंग मेलेनिन (melanin) के जमाव के कारण होता है।
4.बसरा (Busra)
* मध्यम आकार के पक्षी, गहरे शरीर वाले, हल्के पंख वाले और प्रकृति में सतर्क।
* शरीर के रंग में व्यापक बदलाव
अन्य कुछ संकरी नस्लें:
1.झारसीम: झारखंड के लिए एक विशिष्ट ग्रामीण कुक्कुट किस्म
यह बिरसाकृषि विश्वविद्यालय के रांची वेटनरी कॉलेज द्वारा विकसित झारखंडी मुर्गी की नई प्रजाति है।झारसिम नाम झारखंड से लिया गया है और आदिवासी बोली में सिम का अर्थ मुर्गी होता है। इन मुर्गियों में आकर्षक बहु-रंगों की परत होती है, जो निम्न स्तर के पोषण, तेजी से विकास, इष्टतम अंडा उत्पादन और झारखंड की जलवायु परिस्थितियों को बेहतर अनुकूलनशीलता दर्शाती हैं। इनका वजन 6 सप्ताह में 400-500 ग्राम और पिछवाड़े प्रणाली (backyard system)के तहत परिपक्वता के बाद यह 1600-1800 ग्राम होते हैं। 175-180 दिन के भीतर यह अण्डे देना प्रारंभ कर देती हैं और 40 सप्ताह की उम्र में अण्डों का वजन 52-55 ग्राम तक हो जाता है। यह किस्म राज्य की ग्रामीण / जनजातीय आबादी को अंडा और मांस दोनों के माध्यम से उच्च पूरक आय और पोषण प्रदान कर सकती है।
2.कामरूप: यह बहुआयामी चिकन नस्ल है जिसे असम में कुक्कुट प्रजनन को बढ़ाने के लिए अखिल भारतीय समन्वय अनुसंधान परियोजना द्वारा विकसित किया गया है। यह नस्ल तीन अलग-अलग चिकन नस्लों का क्रॉस नस्ल है, असम स्थानीय(25%), रंगीन ब्रोइलर(25%) और ढेलम लाल(50%)।।इसके नर चिकन का वज़न 40 हफ़्तों में 1.8 – 2.2 किलोग्राम होता है। इस नस्ल की प्रतिवर्ष अण्डे देने की क्षमता लगभग 118-130 होती है जिसका वज़न लगभग 52 ग्राम होता है।
3.प्रतापधन: राजस्थान के लिए दोहरे उद्देश्य वाला पक्षी
राजस्थान के ग्रामीण मुर्गीपालकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतापधन एक दोहरे उद्देश्य वाली चिकन किस्म है। प्रतापधन MPUAT, उदयपुर द्वारा पोल्ट्री ब्रीडिंग (Poultry Breeding) पर AICRP के भाग के रूप में विकसित किया गया था। यह राजस्थान के स्थानीय पक्षियों से मिलती जुलती है। आकर्षक बहुरंगी पंख पैटर्न, ग्रामीण लोग सौंदर्य की दृष्टि से इनरंगीन मुर्गीयों को पसंद करते हैं। रंग की वजह से यह शिकारियों से छल कर सकते हैं। यह कम पोषण और कठोर जलवायु परिस्थितियों में जीवित रहने की क्षमता रखती हैं। यह लगभग 50 ग्राम वजन वाले भूरे रंग के अंडे देती हैं। एक वयस्क नर का वजन 1478 से 3020 ग्राम और मादाओं का 1283 से 2736 ग्राम तक होता है। यौन परिपक्वता की आयु 170 दिन होती है। प्रतापधन सालाना 161 अंडे देती हैं,जो स्थानीय मूल (43 अंडे) से 274% अधिक है।
सेंट्रल एवियन रिसर्च इंस्टीट्यूट (CARI), इज़तनगर (Central Avian Research Institute (CARI), Izatnagar) द्वारा इजात की गयी कुछ अन्य नस्लें:
1. ब्रायलर (broilers)
2. बटेर (Quails)
3. गिनी मुर्गा (Guinea fowl)
4. टर्की (Turkey)
भारत में भोजन के रूप में व्यापक रूप से प्रयोग किए जाने वाले मुर्गों को चिकित्सा के लिए मजबूत एंटीबायोटिक
(antibiotic) दवाएं दी जाती हैं, इस प्रक्रिया को विश्वभर में देखा जा सकता है।"अंतिम उपाय के एंटीबायोटिक" के सैकड़ों टन जिन्हें बीमारी की सबसे चरम स्थिति में प्रयोग किया जाता है, को हर साल भारत में चिकित्सा पर्यवेक्षण के बिना जानवरों पर उपयोग के लिए भेज दिया जाता है। इनमें से कई जानवरों को दवाओं की आवश्यकता नहीं होती है लेकिन उन्हें दवा दे दी जाती है, जिसका उद्देश्य उनके स्वास्थ्य को बढ़ावा देना होता है।डॉक्टरों के अनुसार सबसे मजबूत एंटीबायोटिक दवाओं में से कुछ का नियमित उपयोग सबसे चरम स्थितियों के लिए संरक्षित किया जाना चाहिए, अन्यथ: इनके लिए प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाएगी। परिणामस्वरूप वे कीटाणु जो इन जीवों को मनुष्यों के लिए खतरनाक बना सकते हैं, यदि अनुपचारित या गलत तरीके से उपचारित किए जाते हैं, तो अधिक शक्तिशाली रोगजनकों में उत्परिवर्तित हो सकते हैं जो उपचार के लिए प्रतिरोधी होते हैं।
एक नवीनतम शोध से ज्ञात हुआ है कि मुर्गे के पंखों का प्रयोग प्लास्टिक रूप में किया जा सकता है।हमारे बालों और नाखूनों के विपरीत, मुर्गे के पंख ज्यादातर केराटिन (keratin) नामक एक मजबूत प्रोटीन (strong protein) नहीं होते हैं। पंख को गर्म किया जा सकता है, अन्य सामग्रियों के साथ मिश्रित किया जा सकता है, और प्लास्टिक में ढाला जा सकता है। जैसा आज 21 वीं सदी में प्लास्टिक से जूतों से लेकर सर्किट बोर्ड (circuit board), फर्नीचर(furniture) आदि में दिखाई दे रहा है। लेकिन मुर्गे के पंख कुछ और अप्रत्याशित स्थानों में भी दिखाई दे सकते हैं।सौदर्य प्रसाधन में भी इनके उपयोग की बात की जा रही है।
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.