मुगल शासकों का रामपुर की वास्तुकला पर जादुई प्रभाव पड़ा है। यहां की इमारत हो या स्मारक, सभी मुगल इस्लामी वास्तुकला की उपस्थिति को दर्शातें हैं। यहां की इमारतों में से कुछ इमारतें बहुत पुरानी हैं जैसे कि रजा लाइब्रेरी, हामिद मंज़िल, शासकों के महल, इमामबाड़ा, आदि। इन सब के साथ-साथ जामा मस्जिद भी इस्लामी वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है। इसका इंटीरियर बेहद सुंदर है, यहाँ अध्यन के लिए एक अनूठा मुगल स्पर्श देखने को मिलता है। इमामबाड़ा और जामा मस्जिद की एक बेहद पुरानी तस्वीर में आप इस्लामी वास्तुकला की एक झलक देख सकते हैं, यह तस्वीर एक अज्ञात फोटोग्राफर द्वारा ली गई और इसे नवंबर 1911 में व्यूज़ ऑफ़ रामपुर (Views of Rampur) एल्बम में से फेस्टिवल ऑफ़ एम्पायर (Festival of Empire) द्वारा इंडिया ऑफिस (India Office) में प्रस्तुत किया गया था। उस समय रामपुर के नवाब, हामिद अली खान (1896-1930), क्रिस्टल पैलेस में जॉर्ज पंचम (George V) के राज्याभिषेक के लिए आयोजित फेस्टिवल ऑफ़ एम्पायर (Festival of Empire) प्रदर्शनी में प्रदर्शकों में से एक थे।
वैसे तो रामपुर में मुगल शासकों द्वारा निर्मित सभी इमारतों की वास्तुकला में कई प्रकार के ज्यामिति पैटर्न शामिल हैं, परंतु इन सभी में से सबसे महत्वपूर्ण और प्राभावशाली शैली है मुकर्नस (Muqarnas)। मुकर्नस स्थापत्य अलंकरण की एक शैली है, जो 10वीं शताब्दी के मध्य में ईरान और उत्तरी अफ्रीका के साथ-साथ मेसोपोटामिया क्षेत्र में उत्पन्न हुई थी और 12वीं शताब्दी में व्यापक रूप से विश्व में फैल गयी, परन्तु इसकी सटीक उत्पत्ति अज्ञात है। यह शैली उत्तरी अफ्रीका में फातिमी वंश के दौरान और मध्य पूर्व के कुछ हिस्सों में काफी लोकप्रिय रही। यह मुख्य रूप से इस्लामी वास्तुकला है और इस्लामिक इमारतों का अभिन्न अंग है। इसे ईरानी वास्तुकला में अहूपै (Ahoopāy) और इबेरियन वास्तुकला में मोकेरबे (Mocárabe) के रूप में जाना जाता है। इन संरचनाओं की उत्पत्ति एक प्रकार की मेहराब (स्क्विन्च (Squinch)) से हुई थी। कभी-कभी इसे "हनीकॉम्ब वॉल्टिंग" (Honeycomb Vaulting) या स्टैलेक्टाइट वॉल्टिंग (Stalactite Vaulting) भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से गुंबदों, अर्ध-गुंबद प्रवेश द्वार, इवान, अप्स और मेहराबों में बनाई जाती है। ये जादुई संरचनाऐं ईंट, पत्थर, प्लास्टर, या लकड़ी से बनी होती हैं। सीरिया, मिस्र और तुर्की में, मुकर्नस पत्थर से बनाए गए हैं। उत्तरी अफ्रीका में, ये आमतौर पर प्लास्टर और लकड़ी से निर्मित हैं, तथा ईरान और इराक में, इनका निर्माण प्लास्टर या सिरेमिक (Ceramic) मिट्टी के साथ किया जाता है। यह शैली अर्मेनियाई (Armenian) वास्तुकला में भी पायी जाती है।
समय के साथ देखते ही देखते मुकर्नस इस्लामी वास्तुकला में एक शक्तिशाली शैली बन गई, जिसमें खूबसूरती से जटिल रचनाओं का निर्माण किया जाता था। प्राचीन और मध्ययुगीन शिल्पकारों ने जब ये तीन-आयामी ज्यामितीय पैटर्न गुंबदों, अर्ध-गुंबदों और मेहराबों में बनाना शुरू किया होगा तो शायद इसकी प्रेरणा उन्होनें स्टैलाटाइट्स (Stalactites) (पत्थर का अवरोही निक्षेप) गुफाओं, क्रिस्टल संरचनाओं या मधुमक्खियों के छत्ते से ली होगी। मुकर्नस रचनाएँ दो-आयामी इस्लामिक ज्यामितीय डिजाइनों की तीन-आयामी अभिव्यक्तियाँ हैं, अर्थात इन तीन आयामी पैटर्न को बनाने के लिये उसी सरल ज्यामिति का उपयोग किया जो द्वि-आयामी चौखानों की रचना बनाने में की जाती है। इन आश्चर्यजनक संरचनाओं को बनाने के लिये गणितीय सटीकता के साथ सभी पैटर्न को ठीक से एक-दूसरे से मिलाने की योजना बनाई जाती है। धीरे-धीरे इस शैली की लोकप्रियता बढ़ी और साथ बढ़ी इन संरचनाओं की जटिलता, जिस कारण इन तीन-आयामी मुकर्नस को अनंत प्रकार के पैटर्न में व्यवस्थित किया जाने लगा। इन्हें अक्सर और भी विस्मयकारी बनाने के लिए नक्काशीदार या पैटर्न वाले टाइलों से सजाया जाने लगा।
प्रत्येक मुकर्नस रचना में चार सामान्य गुण होते हैं: 1. यह तीन आयामी होते हैं, जिससे निर्मित संरचनाओं में विस्तार-क्षेत्र बढ़ जाता है। 2. डिजाइन की गहराई परिवर्तनीय होती है और निर्माता द्वारा पूरी तरह से निर्धारित की जाती है। 3. कोई आंतरिक तार्किक या गणितीय सीमा नहीं होती है, जो एक मुकर्नस की रचना के पैमाने को सीमित करते हैं। 4. तीन-आयामी आकार को आसानी से दो-आयामी आकृति में परिवर्तित किया जा सकता है।
अक्सर पश्चिमी लोग यह गलत धारणा रखते हैं कि इस्लामी कला दो-आयामों तक सीमित है, इस्लामी कला में दो-आयामी के पैटर्न दोहराया जाता है, जिससे इसे अंतर-संयोजन के माध्यम से तीन-आयामी में बदला जाता है और ये डिज़ाइन विभिन्न आयामों का भ्रम पैदा करते हैं। परंतु वास्तव में, इस्लामी शिल्पकार जो ज्यामितीय पैटर्न बनाते हैं, वे त्रि-आयामी प्रकाशीय प्रभाव पैदा करने के लिए दो-आयामी पैटर्न में हेरफेर करते हैं।
ये संरचनाएं देखने में अत्याधिक विशाल, जटिल और आश्चर्यजनक होती हैं, इन संरचनाओं में आप गणित, कला और इंजीनियरिंग का एक अविश्वसनीय रूप देख सकते हैं। मुकर्नस इस्लामी वास्तुकला में महत्वपूर्ण है और अपना एक अलग स्थान रखते हैं, क्योंकि यह एक सजावटी रूप का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो इस्लामी विचारधारा की विशालता और जटिलता को दर्शाता है। गुंबदों में लटके हुये ये मुकर्नस स्वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह माना जाता था कि गुंबद में उपस्थित प्रत्येक मुकर्नस ईश्वर से जुड़ा होता है और नीचे की लटकती ये संरचनाएं भौतिक दुनिया में भगवान की उपस्थिति का प्रतिनिधित्व करती हैं, तथा इसकी जटिलता ब्रह्मांड के रहस्यमय अस्तित्व का प्रतीक है।
इसके कुछ 10वीं शताब्दी के प्रारंभिक उदाहरण इरान के निशापुर में, उज़्बेकिस्तान के समरक़न्द के पास टिम के गांव में देखने को मिलते हैं। 1090 में इराक में कुब्बा इमाम अल-दावर (Qubba Imam al-Dawr) पहला ऐसा उदाहरण है, जिसके गुंबद में मुकर्नस को देखा गया था, परंतु अक्टूबर 2014 में आईएसआईएस (ISIS) द्वारा इस पवित्र स्थान को नष्ट कर दिया गया था। माना जाता है कि यह शैली और तकनीक सीरिया के माध्यम से मिस्र तक फैली होगी, क्योंकि आज भी उस समय के कुछ सीरियाई स्मारक देखे जा सकते हैं जो इस बात की पुष्टि करते हैं। मिस्र में, आस्वान मक़बरा इस शैली के उत्तम विकास का एक महत्वपूर्ण उदाहरण है। 11वीं शताब्दी के मध्य में जब लाल सागर के किनारों से तीर्थ मार्ग और काहिरा में शुरू हुये व्यापार मार्ग तेजी से फलने-फूलने लगे और पूरे इस्लामी साम्राज्य में फैल गए, तब विभिन्न वास्तुकलाओं का आदान-प्रदान भी शुरू हुआ और तेजी से फैला। इस समय विभिन्न वास्तु परियोजनाओं को वित्तपोषित किया गया था। मुकर्नस शैली के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरण इराक और पूर्वी सीरिया के जज़ीरा क्षेत्र में पाये जाते हैं, जहां गुंबदों और मेहराबों में आश्चर्य कर देने वाले मुकर्नस शैली के ज्यामितीय डिजाइन देखने को मिलते हैं। इसके कुछ अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण स्पेन के ग्रेनाडा (Grenada) में अल्हाम्ब्रा (Alhambra), इराक़ के बगदाद में अब्बासिद पैलेस, मिस्र के काहिरा में सुल्तान क़ैतबे (Sultan Qaitbay) का मकबरा, और इस्फ़हान (Isfahan) की जमी मस्जिद (1088) आदि हैं। इतना ही नहीं, धीरे- धीरे ये शैली दुनिया में फैल गई, अटलांटिक से चीन तक के शहरों के निर्मित मुकर्नस का प्रभाव राजनीतिक रूप से इस बात का प्रमाण है कि इस्लामी जगत की वास्तुकला मध्ययुगीन दुनिया पर हावी थी।
मुकर्नस, इस्लामी ज्यामिति और डिजाइन की एक विश्वव्यापी शैली है, और यह इस्लामी दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पायी जाती है। इस अविश्वसनीय तत्व ने वास्तुशिल्प सजावट की एक उत्कृष्ट कृति बनाने के लिए सबसे अधिक परिष्कृत गणित और इंजीनियरिंग का पूरा उपयोग किया, जो आज तक दर्शकों को चकित और प्रेरित करता है।
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