इस्लाम धर्म में ईद का विशेष महत्व है, चाहे वह मीठी ईद हो या बकरा ईद। दोनों ही अपनी-अपनी विशेषता रखते हैं, आज हम बकरा ईद के अवसर पर इसके ऐतिहासिक पहलू पर एक नज़र डालेंगे, जो कि मुख्यतः इब्राहिम और इस्माइल के बलिदान का स्मरण करने के लिए मनाया जाता है। यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों के अनुसार इस्माइल इब्राहिम के पहले बेटे थे। साथ ही उत्पत्ति पुस्तक के विवरण के अनुसार, 137 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। उत्पत्ति और इस्लामिक परंपराओं की पुस्तक में इस्माईल को इस्माईलियों/अरबियों का पूर्वज और क़ायदार का पितामह माना गया है।
मुस्लिम परंपरा के अनुसार, इस्माइल: द पैट्रिआर्क(The Patriarch) और उनकी मां हाजरा(Hajra) को मक्का में काबा के बगल में दफनाया गया था। वहीं “बाइन्डिंग ऑफ इसहाक(Binding of Isaac)” उत्पत्ति 22 में पाए गए हिब्रू बाइबिल की एक कहानी है। बाइबिल की कथा में, इब्राहिम द्वारा परमेश्वर की आज्ञा का पालन करते हुए अपने बेटे इस्माइल का बलिदान करने की तत्परता को प्रावीण्य करने के लिए मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि जब इब्राहिम अपने बेटे की बलि देने जा रहे थे, तो परमेश्वर ने इस्माइल के बदले वहाँ एक मेमना(भेड़) रख दिया था।
इब्राहिम और उनकी पत्नी सारा के विवाह को कई वर्ष हो गए थे, किंतु उनकी कोई संतान न थी। इसलिए सारा के आग्रह पर इब्राहिम और हाजरा (इनकी दासी) का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम इस्माइल रखा गया। 75 वर्ष की अवस्था में सारा का भी एक पुत्र हुआ जिसका नाम आइसेक(Isaac) रखा गया, जिसकी घोषणा परमेश्वर द्वारा पूर्व में ही कर दी गयी थी। जब इस्माइल और आइसेक बड़े होने लगे तो इस्माइल ने आइसेक का मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया।
यह बात सारा को पसंद न आयी। उसने इब्राहिम से इस्माइल और उसकी मां को घर से निकालने को कहा। इब्राहिम इस बात से बहुत दुखी हुए। ईश्वर ने उनसे कहा कि आइसेक को तुम्हारा ही अंश कहा जाएगा तथा वे आइसेक के साथ ही अपनी वाचा स्थापित करेंगे क्योंकि इस्माइल भी इब्राहिम का वंशज था तो उसके लिए एक विशाल राष्ट्र का निर्माण किया जाएगा। हीब्रू बाइबिल (Hebrew Bible) के अनुसार इब्राहिम ईश्वर की आज्ञा का पालन करने हेतु आइसेक की बलि देने को तैयार हो जाते हैं किंतु ईश्वर का दूत उन्हें ऐसा करने से रोक देता है और वे आइसेक की जगह एक भेड़ की बलि दे देते हैं।
इस्लामिक स्रोतों के अनुसार इब्राहिम ने एक भयानक सपना देखा जिसमें उसने अपने बेटे की बलि दे दी है। वह यही सपना बार-बार देखने लगता है, तो वह ईश्वर की आज्ञा समझकर अपने सबसे प्रिय बेटे की बलि देने को तैयार हो जाता है। वह इस्माइल को लेकर आराफात की पहाडि़यों में जाता है तथा वहां जाकर उसे ईश्वर की इच्छा बताता है। इस्माइल ईश्वर की आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हो जाता है।
पुत्र के दर्द को महसूस न करने के लिए इब्राहिम अपनी आंख पर भी पट्टी बांध लेता है और ईश्वर की आज्ञा के अनुसार इस्माइल पर चाकू चला देता है, जब वह अपनी आंखे खोलता है तो देखता है कि उसके मृत बेटे की जगह वहां पर एक मृत भेड़ पड़ी है। यह देखकर इब्राहिम विचलित हो जाता है, वह सोचता है कि मैंने इश्वर की आज्ञा की अवहेलना की है। तभी उसे आवाज़ आती है कि ईश्वर सदैव अपने अनुयायियों की देखरेख करता है। इब्राहिम और इस्माइल दोनों अपनी कठिन परीक्षा में सफल हुए। प्रत्येक वर्ष हज यात्रा के दौरान इब्राहिम और इस्माइल के इस बलिदान को याद करने के लिए हजारों लोग मीना और आराफात का दौरा करते हैं तथा पशु बलि देते हैं।
बलिदान की कथाएं हिन्दू धर्म में भी मौजूद है। शुनाशेपा भारतीय महाकाव्यों और पौराणिक कथाओं में उल्लिखित एक पौराणिक ऋषि है। ऋग्वेद के अनुसार उन्हें ऋषि विश्वामित्र ने गोद लिया था और उन्हें नया नाम 'देवरत' दिया था। एक पौराणिक कथा के अनुसार, शुनाशेपा को एक अनुष्ठान में बलि देने के लिए चुना गया था, लेकिन ऋग्वैदिक देवताओं की प्रार्थना के बाद उसे बचा लिया गया था। इस किंवदंती का उल्लेख करने के लिए सबसे पुराना प्रचलित पाठ 'ऐतरेय ब्राह्मण' है।
वहीं हिंदू पशु बलि की आधुनिक प्रथा ज्यादातर शक्तिवाद से जुड़ी है और स्थानीय लोकप्रिय या जनजातीय परंपराओं की दृढ़ता से निहित है। पशु बलि भारत में प्राचीन वैदिक धर्म का हिस्सा रहा था और यजुर्वेद जैसे धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख मिलता है। हालाँकि हिंदू धर्म के गठन के दौरान वे काफी हद तक समाप्त हो गए थे और बहुत से हिंदू अब उन्हें दृढ़ता से अस्वीकार करते हैं। कुछ पुराणों में पशु बलि की मनाही है। हालांकि, कुछ स्थानीय संदर्भों में जानवरों की बलि देने की प्रथा चल रही है।
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