रामपुर में प्राप्त पारंपरिक इस्लामी वास्तु का नमूना, इवान

लखनऊ

 18-02-2020 01:30 PM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन

रामपुर शहर को यदि सिर्फ दो शब्दों में ज़ाहिर करना पड़े तो ये शब्द होंगे मस्जिदों और महलों का शहर। यह दो शब्द इस शहर से इस लिए इतने सटीक बैठते हैं क्यूंकि इस शहर को बनाया ही इस प्रकार से गया है। यहाँ के नवाबों ने रामपुर शहर की स्थापना के साथ ही यहाँ पर अनेकों इमारतों का निर्माण कराना शुरू कर दिया था और इसी तल्लीनी का सबूत हैं यहाँ पर बनी ये गगनचुम्बी इमारतें। रामपुर में जो वास्तु के नमूने दिखाई दे जाते हैं उन्ही में से एक है ‘इवान वास्तुकला’। इवान वास्तुकला एक ऐसी कला को कहा जाता है जिसमें एक आयताकार आँगन होता है जो कि आमतौर पर तीन तरफ दीवारों से घिरा हुआ रहता है और एक सिरे से पूरी तरह से खुला हुआ रहता है। इस प्रकार के वास्तु में जो प्रवेश द्वार पाया जाता है उसे ‘पिश्ताक’ नाम से जाना जाता है। इन द्वारों पर ज्यामितीय आकृतियाँ आदि बनायी जाती हैं।

वर्तमान काल या मध्यकाल की ओर यदि ध्यान दिया जाए तो यह वास्तु इस्लाम की वास्तुकला से सम्बंधित है परन्तु यह एक अत्यंत ही पेचीदा विषय है कि आखिर इस प्रकार की वास्तुकला का सम्बन्ध कहाँ से है? जैसा कि ऐतिहासिक रूप से यदि हम देखते हैं तो हमें पता चलता है कि यह वास्तुकला मूल रूप से इरान में विकसित हुयी थी। यह वास्तुकला पार्थियन (Parthian) साम्राज्य का एक अत्यंत ही महत्वपूर्ण हिस्सा था, तथा बाद में इस कला ने फारस की ससनीद (Sassanid) वास्तुकला में एक स्थान प्राप्त किया और वहीं से यह पूरे अरब देशों में विस्तारित हुईं। इस्लामी वास्तुकला में यह वास्तु 7 शताब्दी ईस्वी में विकसित होना शुरू हो गयी और सेल्जुकी युग (Seljuki Era) में यह कला अपने चरम पर पहुंची।

भारत में इस कला का विकास मुग़ल काल में एक बड़े स्तर पर हुआ। मुगलों से पहले सल्तनत काल में भी इस कला के विभिन्न आयाम देखने को मिलते हैं। इवान वास्तुकला धार्मिक और रिहायशी दोनों प्रकार के भवनों में पाई जाती है। इस वास्तुकला में कई अलग-अलग विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। कुछ विद्वान् इसे मेसोपोटामिया (Mesopotamia) में विकसित मानते हैं तो कुछ इरान में। इवान वास्तु में मेहराबदार छतें आदि मौजूद होती हैं जिनको हम विभिन्न इमारतों में देख सकते हैं। वर्तमान समय में भी मेसोपोटामिया के बाहर प्राचीन मिस्र, रोम (Rome) आदि स्थानों पर मेहराबदार ढाँचे हमें देखने को मिल जाते हैं। इस प्रकार के ढाँचे का इतिहास करीब 2600 ईसा पूर्व तक जाता है। रामपुर का रज़ा पुस्तकालय, यहाँ की बड़ी मस्जिद आदि में हमें इस कला का अनुपम उदाहरण देखने को मिलता है। रज़ा पुस्तकालय के प्रवेश द्वार को देखें तो यह एक अत्यंत ही ऊँचा मेहराबों वाला द्वार है जिसके ऊपर भी ज्यामितीय अंकन हमें देखने को मिल जाता है। पुस्तकालय के बाहर की चाहरदीवारी को भी देखें तो वहां पर इसी प्रकार के द्वारों का निर्माण किया गया है जो कि इवान वास्तु के बारे में बताते हैं।

सन्दर्भ:
1.
https://en.wikipedia.org/wiki/Iwan
2. https://bit.ly/325XQ7S
3. https://bit.ly/2V2L2xo



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