सरकार द्वारा हाल ही में नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 को पारित किया गया, जिसके बाद से ही देशभर में लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन शुरू किया जा चुका है। भारत ने पूर्वोत्तर राज्य असम के गोलपारा जिले में अवैध प्रवासियों के लिए एक बड़े निरोध केंद्र का निर्माण शुरू कर दिया है। अक्टूबर, 2019 में सरकार ने असम के वैध निवासियों को भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की सूची में डाल दिया था। लगभग 33 मिलियन लोगों ने राज्य के समक्ष के दस्तावेज प्रस्तुत किए थे, जिसकी अंतिम सूची में केवल 31.1 मिलियन नाम ही शामिल हुए थे।
भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) का उपयोग भारत में नागरिकता को सत्यापित करने के लिए किया जाता है और सरकार द्वारा 25 मार्च, 1971 के बाद पड़ोसी बांग्लादेश से आने वाले किसी भी व्यक्ति की पहचान करने के लिए उपयोग किया जाता है। निवासियों को यह दिखाते हुए अपनी नागरिकता साबित करने की आवश्यकता है कि या तो वे या उनके पूर्वजों का जन्म बांग्लादेश युद्ध की शुरुआत से पहले या उस समय असम में हुआ था। भारतीय राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर किए गए लोगों को उनकी नागरिकता साबित करने के लिए 120 दिन दिए गए थे। असम सरकार के मुताबिक रजिस्टर में शामिल लोगों को तब तक हिरासत में नहीं लिया जाएगा, जब तक कि उन्हें एक विशेष न्यायाधिकरण द्वारा विदेशी घोषित नहीं किया जाता है। लेकिन हाल ही में पारित किया गया नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 तीन देशों (हिंदू, ईसाई, बौद्ध, जैन, सिख और पारसी) के शरणार्थियों को शामिल करता है, जिस वजह से असम के स्वदेशी लोगों को डर है कि यह मुख्य रूप से बांग्लादेश से अवैध बंगाली हिंदू प्रवासियों को लाभान्वित करेगा जो राज्य भर में बड़ी संख्या में बसे हुए हैं। असमियों को डर है कि अगर बांग्लादेश के बंगलाभाषी हिंदू प्रवासियों को नागरिकता प्रदान कर दी जाती है, तो वे राज्य में असमिया भाषी लोगों को पछाड़ देंगे। उन्होंने त्रिपुरा का उदाहरण दिया, जहां बांग्लादेश से बंगाली भाषी हिंदू प्रवासी अब राजनीति पर हावी हैं। शेष भारत के विपरीत, जहां लोग मुसलमानों के बहिष्कार पर सवाल उठा रहे हैं, असमिया किसी भी धर्म के अप्रवासी नहीं चाहते हैं, चाहे वह हिंदू हो या मुस्लिम।
असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर किए गए 1.9 मिलियन लोगों में से, 1.3 मिलियन हिंदू हैं और स्वदेशी जनजातियों से हैं। एक राष्ट्रव्यापी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के लिए 2003 के दिशानिर्देशों की जांच से पता चलता है कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के कानूनी मुस्लिम नागरिक को बाहर कर सकता है। लेकिन इन सारे अप्रवासी लोगों को हालांकि असम में प्रदर्शनकारी तीन पड़ोसी देशों के अवैध प्रवासियों को नागरिकता देने के लिए निर्धारित तारीख को बदलने पर नाराज हैं। क्योंकि उनका माना है कि यह 1985 के असम समझौते का उल्लंघन है। असम समझौते पर केंद्र की राजीव गांधी सरकार और ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन के नेतृत्व में प्रदर्शनकारियों के बीच किया गया एक समझौता था। असम समझौते के तहत, निर्धारित तिथि 25 मार्च, 1971 को तय की गई थी। इस तरह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से भार किये गए लोगों में अधिकांश लोग हिन्दू हैं, जिन्हें नागरिकता (संशोधन) अधिनियम के तहत नागरिकता प्रदान कर दी जाएगी।
जहां असम में सरकार द्वारा निरोध केंद्र का निर्माण शुरू कर दिया गया है, लेकिन हम में से बहुत ही कम लोगों को यह पता होगा कि निरोध केंद्र क्या है? निरोध केंद्र वे स्थान होते हैं जो अवैध प्रवासियों (आवश्यक दस्तावेजों के बिना किसी देश में प्रवेश करने वाले लोगों) को रखने के लिए निर्दिष्ट किए जाते हैं, एक बार अधिकारियों द्वारा उनकी राष्ट्रीयता की पुष्टि होने तक उनको वहीं रखा जाता है और पुष्टि होने करने के बाद उन्हें उनके मूल देश में भेज दिया जाता है। भारत में निरोध केंद्र असम में स्थित हैं, जिन्हें असम की कांग्रेस सरकार द्वारा 2012 में गोलपारा, कोकराझार और सिलचर में जिला जेलों में स्थापित किए गए थे।
संदर्भ :-
1. https://bit.ly/371pnZ9
2. https://bit.ly/34Sxm9D
3. https://bit.ly/2MmXxPn
4. https://bit.ly/2Mvtnt0
5. https://bit.ly/2tRBSbz
6. https://bit.ly/2sYY0jU
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