खेती भारत के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आज भी हमारे देश की अधिकांश जनसंख्या खेती पर ही निर्भर है। तकनीकी और प्रौद्योगिकी के विकास ने आज खेती के स्वरूप को बदल दिया है जिसके परिणामस्वरूप सरकार द्वारा खेती को मशीनीकृत करने का लक्ष्य रखा गया है। वैसे तो खेती को आमतौर पर बैल, अन्य जानवरों या मानव श्रम द्वारा किया जाता रहा है किन्तु मशीनीकरण कृषि भूमि पर मशीन शक्ति के अनुप्रयोग को दर्शाता है। मशीनीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें मनुष्य अथवा पशुओं की सहायता से किया जाने वाला कार्य मशीनों द्वारा किया जा सकता है।
खेतों या कृषि के मशीनीकरण का प्रयोग किसानों को खेती में बहुत ही अधिक सहायता प्रदान करता है जिससे किसानों की आय में जहां वृद्धि होती है वहीं फसल उत्पादकता भी बढ़ती है। खेतों के मशीनीकरण से होने वाले कुछ लाभ निम्नलिखित हैं:
• मशीनीकरण भूमि की उत्पादकता बढ़ाता है।
• यह क्षमता और प्रति व्यक्ति उत्पादकता बढ़ाता है।
• मशीनीकरण के परिणामस्वरूप कृषि श्रम की लागत में कमी आती है।
• यह खेती में उपयोग आने वाले जानवरों की ज़रूरत कम करता है।
• यह ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक संरचना को संशोधित करता है।
• मशीनीकरण से कृषि आय में वृद्धि होती है।
• कम भूमि में भी फसल उत्पादन अच्छा होता है।
• मशीनीकरण से खेती में लगने वाले समय की भी बचत होती है।
भारत में मशीनीकरण का महत्वपूर्ण उदाहरण ट्रैक्टर (Tractor) है। 1961 में भारत में इनकी संख्या 31,000 थी जो 1966 में बढ़कर 2,52,000 हो गई थी। इसके बाद भी इनकी संख्या ने अभूतपूर्व वृद्धि की। भारत सरकार भी खेती के मशीनीकरण को बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। परंपरागत और अकुशल औज़ारों के स्थान पर नए और विकसित कृषि यंत्रों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा कई नीतियां और कार्यक्रम बनाए गए हैं। जिनकी सहायता से किसान ट्रैक्टर, बिजली से चलने वाले जुताई यंत्र, हारवेस्टर्स (Harvesters) जैसी नई मशीनों का उपयोग खेती में कर पा रहे हैं। इन यंत्रों को खरीदने में किसानों को सक्षम बनाने, मशीनों को किराये पर उपलब्ध कराने तथा मशीनों के परीक्षण, मूल्यांकन और विकास सेवाओं के लिए आवश्यक मानव संसाधन का विकास करने के लिए सरकार द्वारा विभिन्न प्रयास किए जा रहे हैं।
कृषि मशीनों के निर्माण के लिए सरकार द्वारा एक बड़ा औद्योगिक आधार भी विकसित किया गया है। सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न योजनाओं में कृषि का मेक्रो (Macro) प्रबंधन, तिलहन, दलहन और मक्के के लिये तकनीकी अभियान, बागवानी के लिये प्रौद्योगिकी अभियान, और राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान आदि शामिल हैं। इसके अंतर्गत किसानों को कृषि के उपकरण और मशीनों को खरीदने के लिये वित्तीय सहायता भी प्रदान की जाती है। इसके अतिरिक्त सरकार द्वारा कृषि मशीनरी प्रशिक्षण एवं परीक्षण संस्थान भी कई स्थानों पर स्थापित किए गए हैं। इन संस्थानों के पास सालाना कई कर्मियों को कृषि यंत्रीकरण के विभिन्न पहलुओं का प्रशिक्षण देने की क्षमता है। ये संस्थान कृषि मशीनों सहित ट्रैक्टर का भी परीक्षण और उनके प्रदर्शन का मूल्यांकन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार करते हैं।
कृषि उत्पादन प्रणाली में उन्नत और नवीन प्रौद्योगिकी को शामिल करने के लिए नए विकसित किए गए कृषि उपकरणों को सरकार द्वारा प्रदर्शित करने का काम भी शुरू किया गया। इसके अंतर्गत नए बागवानी उपकरणों को प्रदर्शित किया जाता है। इन उपकरणों का प्रदर्शन किसानों के खेतों पर किया जाता है तथा उपकरणों को इस्तेमाल करने के तरीकों और विभिन्न फसलों के उत्पादन में इनकी भूमिका से अवगत कराया जाता है। सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों में पोस्ट हार्वेस्ट (Post harvest) प्रौद्योगिकी और प्रबंधन को भी शामिल किया गया है। यह योजना 2008 से चलाई जा रही है। इस योजना के तहत आईसीएआर (ICAR), सीएसआईआर (CSIR) द्वारा विकसित की गई तकनीकों और देश में तथा देश के बाहर पहचानी गई तकनीकों के प्रयोग पर जोर दिया जाता है। इसके अंतर्गत प्राथमिक प्रसंस्करण विधि, खाद्यान्न की गुणवत्ता बढ़ाने, अनाज के लिए कम लागत वाली वैज्ञानिक भंडारण या परिवहन तकनीक, दालों, तिलहनों, गन्ने, सब्जियों और फलों तथा उनके उत्पादों के प्रबंधन की तकनीकों पर विशेष बल दिया जाता है। इस योजना के अंतर्गत उपकरणों के वितरण के लिए सब्सिडी भी उपलब्ध करवायी जाती है।
मशीनीकरण कृषि की गुणवत्ता, उपज, फसल संरक्षण आदि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसलिए इसे अपनाना या बढ़ावा देना कृषि को एक उन्नत दिशा प्रदान कर सकता है।
सन्दर्भ:
1. https://farmech.dac.gov.in/FarmerGuide/UP/11u.htm
2. https://bit.ly/2XAjCxF
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://bit.ly/2koDEg3
2. https://bit.ly/2k2q3KY
3. https://bit.ly/2kztSYe
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