19 वीं और 20 वीं सदी की शुरुआत में रामपुर के सैन्य बल राज्य के नवाब के नियंत्रण में हुआ करते थे। रामपुर की इंपीरियल सर्विस लैंसर्स भारत में उच्च प्रशिक्षित और सबसे पुरानी इंपीरियल सर्विस रेजिमेंटों (Imperial Service Regiment) में से एक थी। इसमें ज्यादातर घुड़सवार सेना, तोपखाना और पैदल सेना मौजूद थी, जिसमें से घुड़सवार सेना की एक रेजिमेंट थी, जो छह सैन्य दल से मिलकर बनती थी।
इन छह सैन्य दल में से चार सैन्य दल को इंपीरियल सर्विस लैंसर्स कहा जाता था। और अन्य दो दल तीसरे या राज्य के दस्ते के नाम से जाने जाते थें। इंपीरियल सर्विस लैंसर्स (Imperial Service Lancer) के दो दस्तें बंदूक और पिस्तौल और दूसरे तलवार और भाला से सशस्त्रित होते थें, जो इन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा प्रदान किया गया था। 1840 में नवाब मोहम्मद सैय्यद खान बहादुर ने शाही रक्षा के उद्देश्य से रोहिला घोड़े के नाम से प्रसिद्ध 300 सैन्यदल को स्थापित किया। ऐसा काहा जा सकता है कि रामपुर की इंपीरियल सर्विस लैंसर्स भारत की सभी इंपीरियल सर्विस रेजिमेंटों में से सबसे पुरानी है।
1892 को इंपीरियल सर्विस के दस्ते को शिक्षण के लिए मेरठ शिविर में भेजा गया था, जहां उन्होंने काफी सराहनीय प्रदर्शन दिखाया और उनके शिविर की स्वच्छता की प्रशंसा भी की गई थी। 1905 में इन्हीं दस्ते को अपने राजा और रानी के अंगरक्षक के रूप में अच्छा प्रदर्शन दिखाने के लिए सम्मानित किया गया था। वहीं इन दस्तों की तीव्रता और साहस उस समय व्याख्या का विषय था और जब 1908 में लॉर्ड किचनर ने रेजिमेंट का निरीक्षण किया तो उन्होंने वहां के अनुशासन और पुरुषों की बलिष्ठ निपुणता को देख अपनी संतुष्टि व्यक्त की।
वहीं तीसरा या राज्य दस्ते में मुस्लिम और हिंदुओं का एक दल शामिल किया गया, इनमें 40 ज़म्बुरचिस (जो तोप चलाने में विशिष्ट हो) थें, जो ज़ंबूरक्स और तलवारों से सशस्त्र हैं। ये ज़म्बुरचिस राज्य दस्ते के साथ संलग्न रहते थें। साथ ही तोपखाने में 28 बंदूकें थें, जिनमें से एक 18-पाउंडर (pounder), तीन 12-पाउंडर, दस 9-पाउंडर, तेरह 6-पाउंडर और एक 3-पाउंडर की शामिल था। इनमें से दस को ब्रिटिश सरकार द्वारा पेश किया गया था, वहीं 1840 में नवाब मुहम्मद सईद खान बहादुर को चार 6-पाउंडर दिए गए थे।
नवंबर 1910 में रामपुर की यात्रा के दौरान लॉर्ड मिन्टो द्वारा नवाब द्वारा पेश की गई शाही रक्षा के लिए छह कंपनियों (Companies) से मिलकर पैदल सेना की एक बटालियन के निर्माण को स्वीकृति दी गई थी। इसने राज्य के पैदल सेना दल और अनियमित दलों की पुनः स्थापना की जरूरतों को पूर्ण किया। पहली बटालियन शाही सेवा की पैदल सेना दलों में 672 पुरुषों को 6 कंपनियों में विभाजित किया गया, जिनमें पांच मुस्लिम और एक हिंदू शामिल थे। पुरुषों को सरकार के द्वारा मैटिनी राइफल्स और संगीनों से सशस्त्र किया गया था। वहीं दूसरी बटालियन शाही सेवा की पैदल सेना दलों में 528 पुरुष शामिल थें, जो स्मुथ बोर टॉवर (Smooth bore tower) बन्दूक और संगीनों से सशस्त्र थी। इस बटालियन से जुड़े 100 पुरुषों की एक गोरखा कंपनी भी थी, जो ब्रीच-लोडिंग बन्दूक, संगीन और कुक्रिस से सशस्त्र थी।
संदर्भ :-
1. https://ia601609.us.archive.org/32/items/in.ernet.dli.2015.281434/2015.281434.Gazetteer-
Of.pdf
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