लखनऊ में ऐसे कई युवा होंगे जो इस वर्ष अपनी पहली नौकरी का सफर प्रारंभ करने जा रहे होंगे, और इस प्रकार के नये नौकरीपेशा व्यक्तियों को ईपीएफ (EPF) यानी कि कर्मचारी भविष्य निधि जानकारी होनी चाहिए। ईपीएफ सरकारी और गैर सरकारी सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य है और सरकारी या निजी हर कंपनी में अनिवार्य रुप से लागू होता है। ईपीएफ एक ऐसी योजना है जो आपको एक राशि तो देती ही है साथ ही रिटायर होने पर पेंशन का लाभ देती है। ईपीएफ योजना के तहत, एक कर्मचारी को इस योजना के लिए एक निश्चित योगदान देना होता है और कंपनी के नियुक्तिकर्ता द्वारा भी समान योगदान दिया जाता है।
यह योजना कर्मचारी भविष्य निधि और विविध प्रावधान अधिनियम, 1952 के तहत मुख्य योजना है और इसका प्रबंधन “कर्मचारी भविष्य निधि संगठन” (ईपीएफओ) द्वारा किया जाता है। यह संगठन भारत का अनिवार्य अंशदायी पेंशन और बीमा योजना प्रदान करने वाला शासकीय संगठन है और इसका मुख्य कार्यालय दिल्ली में है। इनका लक्ष्य सार्वजनिक प्रबंधन की गुणवत्ता के जरिये वृद्धावस्था में आय सुरक्षा तथा लाभ प्रदान करना है। इसकी स्थापना 1952 में कर्मचारी भविष्य निधि और प्रावधान अधिनियम 1952 के अंतर्गत हुई थी। नियमों के अनुसार यदि कंपनी में 20 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं उसका पंजीकरण कर्मचारी भविष्य निधि संगठन में होना अनिवार्य है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन सभी ईपीएफ खातधारकों के अंशदान का रखरखाव करता है। जिनका मूल वेतन 6500 रु. तक है, उनका ईपीएफ में योगदान अनिवार्य होता है। यह योगदान उन लोगों के लिए स्वैच्छिक है जिनका मूल वेतन 6,500 रुपये से अधिक हो। आपका यह योगदान ईपीएफ अधिनियम, 1952 के अनुसार निम्नलिखित तीन योजनाओं में जाएगा: ईपीएफ, 1952; कर्मचारी जमा बीमा योजना, 1976 और कर्मचारी पेंशन योजना, 1995। आइये जानते है इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बाते:
ईपीएफ अंशदान में नियोक्ता और कर्मचारी द्वारा योगदान:
ईपीएफ अंशदान में हर महीने किसी भी कर्मचारी के मूल वेतन से 12 प्रतिशत की राशि अंशदान कटता है और इतना ही यानी 12 प्रतिशत कंपनी की तरफ से अंशदान दिया जाता है। मान लीजिए यदि आपका मासिक मूल वेतन 30,000 रुपये है, तो कर्मचारी का ईपीएफ के लिए योगदान 3,600 रु. प्रति माह (मूल वेतन का 12 प्रतिशत) होगा और नियोक्ता द्वारा भी हर महीने समान राशि का योगदान किया जाता है। परंतु कुछ मामलों में यदि नियोक्ता द्वारा 20 से कम कर्मचारियों को रोजगार दिया गया है या उसे कुछ अन्य परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है तो ईपीएफओ के नियमों के अनुसार, कर्मचारी और नियोक्ता दोनों के लिए योगदान दर 10 प्रतिशत तक सीमित है। कर्मचारी चाहे तो 12 प्रतिशत वैधानिक दर से अधिक योगदान भी दे सकता है। इसे स्वैच्छिक भविष्य निधि (वीपीएफ) कहा जाता है, जिसका अलग से हिसाब होता है। वीपीएफ से आप कर-मुक्त ब्याज भी अर्जित कर सकते है। और ईपीएफ में ब्याज की गणना मासिक रनिंग बैलेंस के आधार पर की जाती है।
ईपीएफ का पैसा कब निकाल सकते है:
ईपीएफ अधिनियम के मुताबिक, अंतिम पीएफ समझौते का दावा करने के लिए, 55 साल की उम्र के बाद किसी को सेवा से रिटायर करना होगा। कुल ईपीएफ शेष में कर्मचारी के अंशदान और नियोक्ता की राशि, उपार्जित ब्याज के साथ भी शामिल है। 54 वर्ष से अधिक कोई भी व्यक्ति ब्याज के साथ संचित शेष के 90 प्रतिशत तक वापस ले सकता है।
लेकिन यदि कोई 55 वर्ष तक पहुंचने से पहले अपनी नौकरी छोड़ने का फैसला करता है? मौजूदा नियम के तहत, कर्मचारी ऐसे मामलों में, पूर्ण पीएफ बैलेंस वापस ले सकते हैं यदि वह 60 दिन या उससे अधिक दिनों के लिए रोजगार से बाहर है। और यदि आप चाहे तो निर्धारित शर्तों के अधीन अपने निजी परिजनों के लिये या कुछ परिस्थितियों में भी पैसा निकाल सकते हैं। हम आपको बता दें कि आप कब-कब ऐसा कर सकते हैं:
यूनिवर्सल अकाउंट नंबर(Universal Account Number):
यूएएन का अर्थ है यूनिवर्सल अकाउंट नंबर जिसे ईपीएफओ द्वारा आवंटित किया जाता है। विभिन्न प्रतिष्ठानों द्वारा एक व्यक्ति को आवंटित एकाधिक सदस्य आईडी के लिए यूएएन एक बहुउद्देश्य पूर्तिकर्ता के रूप में कार्य करता है। यूएएन सदस्यों को इससे संबंधित सभी सदस्य पहचान संख्या (सदस्य आईडी) का विवरण देखने में मदद करेगा और यहां तक कि पीएफ हस्तांतरण और निकासी को बहुत आसान बना देगा। यूएएन सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य कर दिया गया है। आपके भविष्य निधि खाते यानी PF में कितनी रकम जमा है, इसकी जानकारी के लिए ईपीएफओ द्वारा दिया गया UAN यानी यूनिवर्सल अकाउंट नंबर होना जरूरी है।
पांच साल निरंतर सेवा का महत्व:
आमतौर पर करियर के शुरुआती और मध्य वर्ष में, युवा कर्मचारी नौकरी बदलते रहते हैं। छोड़ने के बाद, उनके पास उनके ईपीएफ के संबंध में दो विकल्प हैं, या तो वे 60 दिन (यदि बेरोजगार हैं) का इंतजार करने के बाद इसे वापस ले सकते हैं या नए नियोक्ता को शेष राशि का हस्तांतरण कर सकते हैं। यदि कम से कम पांच वर्ष की निरंतर सेवा पूरी कर ली है तो ईपीएफ निकासी पर कर लगाया नहीं जाता है। अगर किसी ने पांच साल से कम समय में नौकरियां बदल दी हैं लेकिन ईपीएफ को नए नियोक्ता को स्थानांतरित कर दिया है, तो इसे निरंतर सेवा के रूप में गिना जाएगा।
यदि पांच वर्षों की सेवा को पूरा किए बिना पीएफ निकालने पर कर लगेगा। अर्जित ब्याज के साथ कुल नियोक्ता की अंशदान राशि वापसी के वर्ष में टैक्स योग्य हो जाएगी। इसके अलावा, किसी के स्वयं के अंशदान पर धारा 80 सी के तहत दावा किए गए कटौती की राशि को वापसी के वर्ष में उसकी आय में जोड़ दिया जाएगा। इसके अलावा, अपने स्वयं के योगदान पर अर्जित ब्याज भी कर के अधीन होगा। यदि कर्मचारी पांच साल बाद पीएफ वापस ले लेते हैं तो उसमें से कोई कर नहीं काटा जाता है।
कर्मचारी भविष्य निधि प्रस्ताव:
कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के प्रति योगदान एक सेवानिवृत्ति के बाद की आवश्यकताओं का ध्यान रखने के लिए है। लेकिन इसका लाभ उठाने लिए आपको सेवानिवृति का इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा। ईपीएफओ आपको नौकरी के दौरान एक बार ईपीएफ निकलने की अनुमति देता है। ऐसे निकासी को 'एडवांस' (advance) के रूप में माना जाता ना कि ऋण के रूप में। ऐसे एडवांस को देने की केवल विशिष्ट परिस्थितियों में ही अनुमति दी जाती है। केंद्र सरकार ईपीएफओ द्वारा पिछले वर्षों की जमा राशि पर किए गए राजस्व के आधार पर हर साल ईपीएफ ब्याज दरों में संशोधन करती है। वित्त वर्ष 2013 से ईपीएफ ब्याज दर 8.50 प्रतिशत है।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2q2QKhI
2.https://bit.ly/2TFzv38
3.https://cleartax.in/s/epf-withdrawal-online
4.https://bit.ly/2VHuuJd
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.