यदि पुरातात्विक खोजों के साक्ष्यों को देखा जाए तो प्राचीन भारत के विश्व के विभिन्न हिस्सों से ऐतिहासिक संबंध मिलते हैं। तो पड़ोसी राष्ट्र होने के नाते चीन का भारत से कोई ऐतिहासिक संबंध ना रहा हो ऐसा संभव नहीं है। इन संबंधों में कुछ आज भी लोगों के मन-मस्तिष्क में कहीं जीवित हैं किंतु कुछ इतिहास के पन्नों में कहीं दब गये हैं। आज हम बात करेंगे ऐसे ही कुछ भारत और चीन के ऐतिहासिक संबंधों के विषय में।
भारत के सबसे प्राचीन महाकाव्य रामायण में चीन को सोने के एक अच्छे भण्डार के रूप में इंगित किया गया है। तो वहीं महाभारत में भी कई स्थानों पर इसका आंशिक संबंध देखने को मिलता है। महाभारत के सभा पर्व में अर्जुन ने प्रागज्योतिषपुर (असम का प्राचीन नाम) में विजय प्राप्त करने के लिए चढ़ाई की जिसमें यहां के राजा भागदत्त ने किरात और चीनी सैनिकों (पहाड़ी के पीछे के भाग में रहने वाले) के साथ मिलकर अर्जुन के विरूद्ध युद्ध लड़ा। हिन्दू धर्म के प्राचीन धर्मशास्त्र मनुस्मृति में भी चीन का उल्लेख देखने को मिलता है। इतिहासकार रेने ग्रौसे (Rene Grousset) के अनुसार चीन शब्द की उत्पत्ती संस्कृत शब्द ‘चीन’ से हुयी है, जिसे पूर्वी क्षेत्र के लिए प्रयोग किया जाता था।
भारत के श्रेष्ठ राजवंशों में से एक मौर्य साम्राज्य के अभिन्न अंग कौटिल्य (चाणक्य) द्वारा चीनी वस्त्रों का उल्लेख किया गया है। कौटिल्य के सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ अर्थशास्त्र में मौर्यों की नौसेना तथा इनके विदेशी व्यापार का वर्णन देखने को मिलता है। राजा दुष्यंत और शकुंतला प्रकरण में शकुन्तला के निवास स्थान कण्वाश्रम में चीनी रेशम (चीनांशुक) से निर्मित शाही झण्डा लगाया गया था। इसका अर्थ है कि चांग ज्यांग (चीनी राजदूत) के बैक्ट्रिया (मध्य एशिया का भाग) आने से पूर्व ही चीनी रेशम भारत में प्रसिद्ध हो गया था। भारत और चीन के मध्य प्राचीन समय से ही व्यपारिक संबंध रहे हैं, जिसमें दोनों के मध्य वस्तु तथा विचारों का आदान प्रदान होता था।
दूसरी शताब्दी ईसा. पूर्व में भारत के वंगा साम्राज्य में भारतीय मोती और चीनी रेशम वस्तु विनिमय का माध्यम थे। 122 ई.सा. पूर्व हान सम्राट ने भारत के दक्षिण पश्चिम के व्यापार मार्ग का पता लगाने के लिए चार अभियान चलाऐ किंतु स्थानीय कलह के कारण वे कभी भारत नहीं पहुंच पाये। हान सम्राट मिंग ने यूनान पर विजय के पश्चात भारतीयों तथा मेघालय के गारो (जनजाति) आदि को खोज निकाला।
चौथी शताब्दी के प्रारंभ में चीन के बौद्ध भिक्षुओं ने बौद्ध धर्म के मूल का पता लगाने के लिए भारत की यात्रा प्रारंभ कर दी, फ़ाहियान पहले चीनी बौद्ध भिक्षु बने जो रेशम मार्ग से भारत आये तथा समुद्री मार्ग से वापस लौट गये। दूसरी शताब्दी ईसा. पूर्व में रेशम मार्ग के खुलने के साथ ही चीन का मध्य एशिया से संपर्क जुड़ गया, इसके बाद के चीनी अभिलेखों में सेंधु (भारत) नामक देश का उल्लेख किया गया है। दक्षिण भारत के चोल शासकों (राजाराज, राजेन्द्र चोल आदि) के चीन के साथ अच्छे व्यापारिक संबंध थे तथा चोल साम्राज्य की नौसेना ने इण्डोनेशिया और मलेशिया के विजया साम्राज्य पर विजय प्राप्त कर चीन के लिए समुद्री व्यापार मार्ग संरक्षित किया। भारतीय गणितज्ञ और खगोलविद् आर्यभट्ट की ज्या तालिका का आठवीं शताब्दी में चीनी पुस्तक में अनुवाद किया गया।
खगोलविद् तथा ज्योतिष गौतम सिद्ध, जिनका जन्म चीन के चांग’आन में हुआ था और जिनका परिवार मूलतः भारत से था, ने कैयुआन झांजिंग की रचना की और साथ ही उन्होंने नवग्रह कलैण्डर (Calendar) का चीनी में अनुवाद किया। चीन के मींग राजवंश के नौसेना अध्यक्ष ने 1405-33 के मध्य सात नौसेना अभियान चलाये जिसमें इन्होंने भारत सहित बंगाल, फारस की खाड़ी, सीलोन (श्रीलंका का प्राचीन नाम), अरब आदि की यात्रा की। इनके द्वारा सीलोन में हिन्दू, बौद्ध तथा मुस्लिम धर्म के सम्मान में एक स्मारक बनवाई गयी। प्रसिद्ध लेखक इब्न-बतूता ने भारत और चीन के संबंधों पर अपनी अभिव्यक्ति की।
18वीं से 19वीं सदी के मध्य सिख सेना ने कश्मीर होते हुए तिब्बत पर कब्जा कर लिया, लेकिन चीनी सेना ने उन्हें यहां से भगा दिया तथा स्वयं लद्दाख पर कब्जा कर लिया, जो यहां सिख सेना द्वारा पराजित हुए। ब्रिटिशों द्वारा भारत का अफीम चीन निर्यात किया गया तथा ब्रिटिशों ने चीन के साथ होने वाले संघर्षों के विरूद्ध तथा चीन में अपनी रियायतों को सुरक्षित रखने के लिए ब्रिटिश भारतीय सेना का उपयोग किया।
भारत चीन के संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए 1954 में पंचशील समझौता हुआ, जिसके पश्चात् दोनों देशों के मध्य हिन्दी चीनी भाई-भाई का नारा प्रसिद्ध होने लगा। चीन के अक्साई चिन वाले क्षेत्र में सड़क निर्माण करने के कारण भारत द्वारा 1954 में एक नक्शा प्रकाशित किया गया, जिसमें अक्साई चिन भारत का हिस्सा दर्शाया गया। तत्पश्चात् दोनों राष्ट्रों के मध्य सीमा विवाद प्रारंभ हो गया। 1959 चीनी जनवादी गणराज्य के प्रमुख ज्होउ एनलाई ने स्पष्ट किया कि 1914 में शिमला समझौते के दौरान निर्धारित की गयी मैकमोहन लाइन (भारत-तिब्बत सीमा रेखा) को चीन की सरकार ने कभी स्वीकार नहीं किया था।
भारत द्वारा 1959 में दलाई लामा तथा हजारों तिब्बतियों को शरण देने पर चीन ने भारत का कड़ा विरोध किया तथा भारत में विस्तारवाद और साम्राज्यवाद का आरोप लगाते हुऐ भारत के 1,04,000 वर्ग कि.मी. क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। यही सीमा विवाद भारत और चीन के मध्य युद्ध कारण बना जिसमें भारत को पराजय का सामना करना पड़ा। 1967 में दोनों के मध्य पुनः संघर्ष हुआ जब चीनी सेना ने सिक्किम के नाथूला वाले क्षेत्र में घुसपैठ कर दी। जिसमें दोनों पक्षों को जनधन की हानि का सामना करना पड़ा। अंततः यहां पर भी चीन की विजय हुयी किंतु इनके द्वारा अपनी सेना सिक्किम से हटा दी गयी।
1981 में दोनों के मध्य रिश्तों को एक नया मोड़ मिला जब चीन के विदेश मंत्री हुआंग हुआ ने भारत की यात्रा की। 2006 में दोनों राष्ट्रों के मध्य व्यापार हेतु नाथुला द्वार पुनः खोला गया। 2009 में एशियाई विकास बैंक ने अरूणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा मानते हुए यहां के विकास के लिए ऋण मंजूर कर दिया, जो चीन द्वारा रोका गया था तथा इसके मंजूर होने के बाद एशियाई विकास बैंक के प्रति चीन ने अपनी नाराजगी व्यक्त की। 2012 में हुए ब्रिक्स (BRICS) सम्मेलन में चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ ने भारत और चीन के संबंधों को मजबूत करने के ऊपर बातचीत की। विगत वर्ष (2017) में दोनों राष्ट्रों के मध्य एक छोटा सा विवाद (डोकलाम विवाद) देखने को मिला जिसमें दोनों राष्ट्रों की सेना एक दूसरे के आमने-सामने खड़ी हो गयी, अंततः दोनों ने अपने कदम पीछे ले लिए। आज चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना हुआ है।
संदर्भ:
1.https://archive.org/details/in.gov.ignca.48324/page/n319
2.नक्शे का स्रोत- सर्वे ऑफ़ इंडिया (http://www.surveyofindia.gov.in/pages/display/240-world-map)
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