रज़ा पुस्तकालय में अकबर का पसंदीदा तिलिस्म

लखनऊ

 10-10-2018 03:48 PM
मध्यकाल 1450 ईस्वी से 1780 ईस्वी तक

रामपुर का रज़ा पुस्तकालय भारतीय इस्लामी शिक्षा का अनमोल खज़ाना है। इसमें दुर्लभ पांडुलिपियों, ऐतिहासिक दस्तावेजों, खत्ताती के नमूनों, लघुचित्रों तथा अनेक पुस्तकों को संगृहित किया गया है। आज के समय में रज़ा पुस्तकालय कला, काव्य कैलीग्राफी (Calligraphy) तथा विद्या का प्रमुख केंद्र बन गया है। रामपुर रज़ा पुस्तकालय मंगोल, फारसी, मुगल दक्कानी, राजपूत, पहाड़ी, अवधी और पेंटिंग के ब्रिटिश स्कूलों का प्रतिनिधित्व करने वाली दुर्लभ लघु चित्रों और सचित्र पांडुलिपियों को संग्रहित करने का एकमात्र समृद्ध स्थान है।

पुस्तकालय में व्यक्तियों के चित्रों और लघु चित्रों की 35 एल्बम (Album) हैं जिनमें ऐतिहासिक महत्व के लगभग पाँच हज़ार चित्र शामिल हैं। अकबर के शासन काल के प्रारंभिक वर्षों की एक अद्वितीय एल्बम 'तिलस्म' (हमज़ानामा) नाम से है जिसमें विभिन्न तबके के जीवन के 157 लघुचित्र चित्रित है।

'हमज़ानामा' मुग़ल चित्रकला की प्रथम महत्त्वपूर्ण कृती है, इसे 'दास्ताने-अमीर-हम्ज़ा' भी कहा जाता है। दरअसल हमज़ानामा हजरत मोहम्मद के एक चाचा अमीर हमज़ा (उन्होंने इस्लाम के लक्ष्यों के लिए कई लडाइयां लड़ीं और दुनिया-जहान की यात्राएं कीं।) का वर्णन करती है। यह वीरगाथाओं और रासलीलाओं, तिलिस्म और चालबाज़ी की आश्चर्यचकित कर देने वाली दंतकथा से बनी है। इन दास्तानों के संग्रह को हमज़ानामा कहा जाता है।


हमज़ानामा के अधिकांश पात्र काल्पनिक हैं। इसमें 46 खंड हैं और लगभग 48,000 पृष्ठ हैं। ऐसा कहा जाता है कि दास्ताने-अमीर-हम्ज़ा गजनी के महमूद के युग में लिखी गयी थी और 1562 में बादशाह अकबर ने इन्हें चित्रबद्ध भी करवाया और यहीं से लघु चित्रकारी के क्षेत्र में भारत में एक नये युग का सूत्रपात हुआ। अकबर, जिन्होंने चौदह वर्ष की उम्र में सिंहासन को संभाल लिया था, ने अपने शासनकाल की शुरुआत में हमज़ानामा की सचित्र पांडुलिपि बनवाने का कार्य शुरू करवाया जिसे पूरा करने के लिए लगभग 14 वर्ष (1562 से 1577) लगे। इसमें असामान्य रूप से बड़े आकार के 1400 पूर्ण मुगल लघुचित्र पृष्ठ शामिल थे।

1883–1893 सदी के मध्य में इसी हमज़ानामा से 'तिलिस्म-ए-होशरुबा' ने जन्म लिया। आठ हजार पृष्ठ में फैली तिलिस्म-ए-होशरुबा की कहानियों को 19वीं सदी के आखिरी दशकों में मुहम्मद हुसैन और अहमद हुसैन नाम के दो दास्तान कहने वालों ने लिखा। तिलिस्मे होशरूबा का कथानक इतना दिलचस्प है कि सुनने वाले इस तिलिस्म का हिस्सा बन जाते हैं। इसमें अमीर हमज़ा का मुकाबला जादूगरों के शहंशाह अफरासियाब से है।


हमज़ानामा के अलावा रज़ा पुस्तकालय में ज्योतिष और जादुई अवधारणाओं को दर्शाती कई एल्बम हैं। एक शाही झंडों में क़ुरान की पंक्तियां हैं और इस प्रतीकात्मक तिमुरिद झंडे में शेर और सूरज भी चित्रित हैं। एल्बम में अवध नवाबों की मुहरें भी हैं जो कि उनके स्वामित्व का सकेंत देती हैं। पुस्तकालय संग्रह में रागमाला (एक बहुत ही मूल्यवान एल्बम है) तथा साधु और सूफीयों के चित्रों वाली भी एक एल्बम है।

इनमें से कुछ शाही चित्रकार, जिनके कार्य पुस्तकालय में संरक्षित हैं, वे- अबुल हसन नादिर-उज़-ज़मन, असी क़हार, बिछित्र, भवानी दास, छित्रमैन, डाल चन्द, रामदास, सौला, फारूख चेला, फतेह चन्द,कान्हा, गोवर्धन, लाल चन्द, लेख राज, मनोहर, मोहम्मद आबिद, नरसिंह, ठाकुर दास, मोहम्मद अफ़ज़ल, मोहम्मद हुसैन, मोहम्मद युसुफ, गुलाम मुर्तज़ा हैं।

संदर्भ:
1.http://razalibrary.gov.in/MiniaturePaintings.html
2.https://en.wikipedia.org/wiki/Hamzanama
3.https://www.tor.com/2015/04/08/hoshruba-introduction/
4.https://www.livemint.com/Leisure/5H6y0jHdjrq8IGuHwQO8aO/Very-queer-qissas.html



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