भारत सरकार ने अपनी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं के तहत ‘स्मार्ट शहरों’ के लिए आवास, कम भीड़ और बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ समावेशी महानगरों की कल्पना की है। लेकिन लाखों अनौपचारिक श्रमिकों के लिए यह एक सपने की तरह है, जो भारत के अतिसंवेदनशील और खतरनाक बड़े शहरों में अपनी जिन्दगी बनाने के लिए संघर्ष करते हैं।
भारत में आर्थिक पिरामिड के तल पर शहरी अनौपचारिक मजदूरों को चार वर्गों में बांटा जा सकता है। उदाहरण के लिएः घरेलू श्रमिक, गृह आधारित श्रमिक, सड़क विक्रेता श्रमिक और अपशिष्ट चुनने वाले श्रमिक। भारत में यह श्रमिक समूह, शहरी श्रमिकों का एक चौथाई हिस्सा और शहरी अनौपचारिक कार्यबल का एक तिहाई हिस्सा दर्शाते हैं।
राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण आधार पर 1900-2000, 2004-05 और 2011-12 में जनगणना अनुमानों के समायोजन के बाद आंकड़े प्रस्तुत किये गये। यह आंकडे़ महत्त्वपूर्ण अस्थिरता को दर्शाते हैं। 2000-2005 के बीच स्व-रोजगार में बढ़ोतरी के बाद, अगले पांच वर्षों में स्व-रोजगार में कमी आई है। हालांकि 2004-05 और 2011-12 के बीच, चार अनौपचारिक समूहों के लिए रोजगार का संयुक्त हिस्सा शहरी अनौपचारिक रोजगार के 41% का प्रतिनिधित्व करने के लिए 12% तक बढ़ गया। आंकड़े बताते हैं कि आधुनिक औपचारिक मजदूरी रोजगार में तेजी से अवशोषित होने के बजाए, भारत का शहरी कार्यबल तेजी से अनौपचारिक हो रहा है।
2011-12 तक शहरी श्रमिकों का 42% हिस्सा स्व-नियोजित था, जबकि मजदूरी का रोजगार अधिक अनौपचारिक हो गया था। इन आंकड़ों के अनुसार, भारत में शहरी कार्यबल में एक छोटा औपचारिक वेनतभोगी कार्यबल (लगभग 18.4%) शामिल है। जिसमें से औपचारिक कार्यालयों और कारखानों में लगभग 96% कर्मचारी काम करते हैं। लगभग 39% एक बड़ा अनौपचारिक मजदूर कार्यबल, जिसमें से 38% कार्यबल औपचारिक कार्यालयों और कारखानों में काम करते हैं और अभी भी एक बड़े अनौपचारिक स्व-नियोजित कार्यबल (लगभग 42%) में से 53% घर पर या खुली सार्वजनिक जगहों पर काम करते हैं।
जैसा कि शहरी जनसंख्या वृद्धि, रोजगार वृद्धि से अधिक है। संघर्षशील और उभरते शहरों के लिए अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को शहरी अर्थव्यवस्था के एक अभिन्न योगदान घटक के रूप में पहचानने और मूल्यवान करने की आवश्यकता है। अनौपचारिक अर्थव्यवस्था औपचारिक अर्थव्यवस्था की तुलना में अधिक नौकरियां बनाती है। खासकर निम्न और मध्यम आय वाले समूहों के लिए और आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है।
भारत में रोजगार का संकट है और अनौपचारिक अर्थव्यवस्था लंबे समय से लाखों लोगों के लिए एकमात्र विकल्प रहा है। कई शहरों में जहां अमीर और गरीब के बीच खाई केवल बढ़ती जा रही है, वहां पर अनौपचारिक श्रमिक कुल रोजगार का एक बड़ा हिस्सा है।
शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था के लिए एक समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है और भारत में शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को रोजगार और गरीबी के मुद्दों के समाधान के रूप में माना जाना चाहिए।
संदर्भ:
1.https://scroll.in/article/882476/indias-informal-workers-are-key-to-developing-real-smart-cities-says-a-new-paper
2.http://wrirosscities.org/research/publication/including-excluded
3.http://www.wiego.org/sites/default/files/publications/files/Chen-Urban-Employment-India-WIEGO-WP7.pdf
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