भारत में, मध्यपाषाण युग (Mesolithic Age) को 9000-4000 ई.पू. के बीच माना जाता है। इस युग में शुरुआत में लोग शिकार, मछली पकड़ने और खाद्य संग्रहण पर निर्भर थे। बाद में, मध्यपाषाण काल के मनुष्यों ने जानवरों को पालतू बनाना और पौधों की खेती करना शुरू किया। हालाँकि रामपुर में मध्यपाषाणकालीन स्थल का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है, लेकिन उस युग में उत्तर प्रदेश में सराय नाहर राय, मोरखाना, चोपानी मंडो, महादहा आदि जैसे कई स्थल मौजूद थे।
तो आज, हम भारत में मध्यपाषाण युग की विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इसके बाद, हम भारत में खोजे गए कुछ महत्वपूर्ण मध्यपाषाण स्थल की चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम गुजरात के लंघनाज नामक एक मध्यपाषाण स्थल के बारे में जानेंगे। इस संदर्भ में हम वहाँ के लोगों और उनकी संस्कृति के बारे में भी चर्चा करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि हम यहाँ, भारतीय गैंडे (Indian Rhinoceros) के अस्तित्व के प्रमाण के बारे में भी जानेंगे। अंत में, हम यह भी समझेंगे कि कैसे लंघनाज के शिकारी-संग्राहक (hunter-gatherers) लोग, हड़प्पा सभ्यता के शुरुआती खाद्य उत्पादकों के साथ सह-अस्तित्व में रहते थे।
भारत में मध्यपाषाण युग की विशेषताएँ
इस युग की सबसे प्रमुख विशेषता थी “माइक्रोलिथ्स” – बहुत छोटे पत्थर के औज़ार, जो पत्थर की छीलन से बनाए जाते थे। इनका उपयोग चाकू की धार, बाण के सिर और छेद करने के उपकरण के रूप में किया जाता था।
शिकार और खाद्य संग्रहण, इस समय का मुख्य जीने का तरीका था। लोग हिरण और सूअर जैसे जानवरों का शिकार करते थे और नदियों व झीलों में मछली पकड़ते थे। वे जंगली पौधों को भी भोजन के रूप में इकट्ठा करते थे।
निवास स्थलों का स्वरूप अस्थायी और मौसमी था। लोग अक्सर भोजन और पानी की तलाश में घूमते रहते थे। वे संभवतः अस्थायी झोपड़ियों या चट्टान की गुफ़ाओं में रहते थे।
मृतकों का दफ़नाना पाया गया है, जिससे धार्मिक और रीतिरिवाजों का संकेत मिलता है। इस समय से शिला चित्रकला और खुदाई के रूप में कला भी पाई गई है।
इस युग में उन्नत चाकू और माइक्रोलिथ बनाने की तकनीकों का विकास हुआ था, जो उपकरण बनाने में निपुणता का संकेत देता है। हड्डियाँ और सींग भी उपकरण बनाने के लिए इस्तेमाल होते थे।
इस युग में जलवायु ठंडी और गीली थी, जो ऊपरी पाषाण काल (Upper Paleolithic) की तुलना में अलग थी। इसके कारण पौधों और जानवरों में बदलाव आया, जिसे मध्यपाषाण काल के लोग अपनी जीवनशैली में अनुकूलित करते थे।
स्थल |
राज्य |
विशेषताएँ |
बागोर |
राजस्थान |
बागोर, कोठारी नदी के किनारे स्थित, भारत के सबसे बड़े और सबसे अच्छे से दस्तावेजीकृत हुए मध्यपाषाण युग स्थलों में से एक है। यहाँ के निवासी शिकार, पशुपालन और माइक्रोलिथ उद्योग में संलग्न थे। हड्डी के औज़ार, बाण के सिर और जड़ी-बूटियों के प्रमाण मिले हैं। |
आदमगढ़ |
मध्य प्रदेश |
आदमगढ़ स्थल, पशुपालन के प्रमाण प्रदान करता है, जिसमें गाय, बकरियाँ और भेड़ शामिल हैं। यहाँ के लोग शिकार के साथ-साथ कृषि और पशुपालन में भी लगे थे। इस स्थल पर औज़ारों, मानव कंकाल और प्राचीन कलाकृतियाँ पाई गई हैं। |
भीमबेटका |
मध्य प्रदेश |
यह स्थल, यूनेस्को (UNESCO) विश्व खनिज स्थल के रूप में स्वीकृत है। यहां 500 से अधिक चित्रित शिला आश्रय पाए गए हैं, जिनमें शिकार, धार्मिक अनुष्ठान और मानव आश्रम के चित्र शामिल हैं। यह स्थल प्राचीन कला एवं संस्कृति का अनोखा उदाहरण है। |
राखी गढ़ी |
हरियाणा |
राखी गढ़ी, मध्यपाषाण युग से नवपाषाण युग में संक्रमण का प्रतीक है। यहाँ कृषि के प्रारंभिक प्रमाण मिले हैं, जैसे पालतू जानवरों और कृषि उपकरणों के संकेत। इसके अलावा, प्राचीन बर्तन और मूर्तियाँ भी इस स्थल से मिली हैं। |
लंघनाज |
गुजरात |
लंघनाज में मृतकों के दफ़नाने का सबसे पुराना प्रमाण पाया गया है। यहाँ मिट्टी के बर्तन, पत्थर के औज़ार और प्राचीन चित्र मिले हैं, जो इस समय की सांस्कृतिक और धार्मिक गतिविधियों को दर्शाते हैं। यह स्थल मध्यपाषाण युग के सामाजिक जीवन को समझने में महत्वपूर्ण है। |
कैमूर क्षेत्र, मिर्जापुर |
उत्तर प्रदेश |
कैमूर क्षेत्र में कई मध्यपाषाण युग स्थल स्थित हैं। यहाँ से मिट्टी के बर्तन, शिल्प कृतियाँ और शिकार के चित्र पाए गए हैं, जो इस समय के जीवन की झलक देते हैं। इस क्षेत्र में कृषि, शिकार और कारीगरी में कुशलता की झलक मिलती है। |
मोहराना पहाड़ा |
उत्तर प्रदेश |
मोहराना पहाड़ा पर हड्डी के औज़ार, बाण के सिर और आभूषण पाए गए हैं। यहाँ की शिला चित्रकारी और कला, इस समय के समाज की सांस्कृतिक गतिविधियों को दर्शाती है। यह स्थल शिकारियों और खाद्य संग्राहकों के जीवन को उजागर करता है। |
महादहा |
उत्तर प्रदेश |
महादहा स्थल पर हड्डी के औज़ार, बाण के सिर और आभूषण मिले हैं, जो उस समय के मानव जीवन की झलकियाँ प्रस्तुत करते हैं। यहाँ के प्रमाण शिकार, कारीगरी और सांस्कृतिक जीवन को बेहतर ढंग से समझने में मदद करते हैं। |
लंघनाज के शिकार-संग्राहक
लंघनाज, गुजरात के मेहसाणा जिले में साबरमती नदी के किनारे स्थित एक पुरातात्विक स्थल है, जहाँ से माइक्रोलिथ्स (microliths (छोटे पत्थर के औज़ार)) मिले हैं। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, माइक्रोलिथ्स छोटे पत्थर के औज़ार होते हैं, जो सामान्यतः मेसोलिथिक (मध्य पाषाण) काल से जुड़े होते हैं। यहाँ से मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े, अनगिनत पशु हड्डियाँ और सात मानव कंकाल भी मिले। दिलचस्प बात यह है कि संकलिया द्वारा की गई प्रारंभिक खोज में यह पता चला कि यह स्थल एक ठंडी रेत की ढलान पर स्थित है।
ऊपरी प्लाइस्टोसीन काल (Upper Pleistocene Period) में तेज़ हवाओं ने यहाँ विशाल मात्रा में जीवाश्म और रेत के टीले छोड़े थे। बाद में, जब वातावरण में नमी आई, तो इस क्षेत्र में रहने की परिस्थितियाँ बनीं, और पहले से बने हुए गड्ढे तालाबों में बदल गए। जर्मन भूगर्भिक पुरातत्वविद् फ़्रेडरिक ज़्यूनर ने लिखा, “माइक्रोलिथ बनाने वाले लोग रेत के टीले पर बैठे थे, जैसा कि दुनिया भर के कई माइक्रोलिथ स्थलों पर देखा गया है।” इसने शिकार-संग्राहकों को एक ऐसा माहौल प्रदान किया, जिसमें पानी उपलब्ध था, और जिससे वहाँ शिकार के लिए जानवर आकर्षित हो सकते थे, जिससे शिकार करना आसान हो गया।
गैंडे का प्रमाण
भारतीय गैंडे का प्रमाण एक महत्वपूर्ण खोज है। खुदाई के दौरान गैंडे की कंधे की हड्डी के टुकड़े पाए गए, जो निश्चित रूप से प्राचीन काल की धारा से संबंधित हैं। बाएं कंधे की हड्डी की लंबाई लगभग 43 सेंटीमीटर थी। हड्डी पर कट के निशान ज़्यादातर रेडियल होते हैं, और कुछ निशान केंद्र से होकर गुजरते हैं। ये निशान तेज धार वाले औज़ारों के बार-बार प्रयोग के कारण बने थे। सबसे लंबा कट 12 मिलीमीटर का था।
हालाँकि गैंडा (राइनोसेरस यूनिकॉर्निस) अब पश्चिमी भारत में नहीं पाया जाता, लेकिन यहाँ पाए गए उसके अवशेष—साथ ही अन्य विलुप्त
प्रजातियों के अवशेष—यह सुझाव देते हैं कि उस समय उत्तर गुजरात में निरंतर पानी की उपलब्धता थी।
गुजरात के शिकार-संग्रहण करने वाले लोग और हड़प्पा सभ्यता के समयरेखा का संबंध समझना
मेसोलिथिक काल की गतिविधियाँ: लंघनज स्थल मेसोलिथिक काल (लगभग 10,000-8,000 ई.पू.) का है, जो मानव जीवनशैली और सामाजिक संगठन में महत्वपूर्ण बदलावों का समय था। इस काल में शिकार और संग्रहण की जीवनशैली से कृषि आधारित जीवनशैली की ओर बदलाव हुआ था।
विविध वन्य जीवों के प्रमाण: लंघनाज में खुदाई के दौरान विभिन्न जंगली बंदरों की हड्डियाँ मिलीं, जैसे कैनेड्स (संभवत: भेड़िये), मोंगूस, गैंडे, जंगली सुअर, चीतल, जंगली मच्छर, नीलगाय और काले भालू। जंगली के अवशेष भी मिले हैं, जो मेसोलिथिक काल में विविध नक्षत्र तंत्र का संकेत देते हैं।
कृषि समुदायों के साथ संपर्क: लंघनाज में शिकार-संग्रहण करने वाले समुदायों और बड़े कृषि बस्तियों के बीच संपर्क का प्रमाण मिला है। लंघनज हड़प्पा सभ्यता के क्षेत्र में स्थित है, जिससे यह प्रतीत होता है कि शिकार-संग्रहण करने वाले लोग उस समय के कृषि आधारित उत्पादों तक पहुँच रखते थे, जो इस क्षेत्र में मेसोलिथिक काल के अंतिम चरण में उभरने लगे थे।
स्थान और भूवैज्ञानिक विशेषताएँ: लंघनाज पश्चिमी भारत में स्थित है और यह एक जीवाश्मीकृत रेत के टीले पर स्थित है। यह भूगोलिक विशेषता उन प्राचीन समुदायों के पर्यावरणीय स्थिति और पारिस्थितिकी का महत्वपूर्ण संकेत देती है, जिसमें वे रहते थे।
स्वास्थ्य और आहार की आदतें: इस काल के मानव कंकाल अवशेषों पर अध्ययन से यह पता चलता है कि कृषि के अंगीकार के साथ स्वास्थ्य और आहार की आदतों में कैसे बदलाव आया। शिकार और संग्रहण से कृषि की ओर बदलाव ने मानव स्वास्थ्य और जीवनशैली पर गहरा प्रभाव डाला, जो लंघनाज जैसे स्थलों में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/y89res95
https://tinyurl.com/47e49vww
https://tinyurl.com/yck25mve
https://tinyurl.com/2s9a3uch
चित्र संदर्भ
1. आदिमानवों के झुंड को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. आयरिश राष्ट्रीय विरासत पार्क (Irish National Heritage Park) आयरलैंड, में एक शिकारी-संग्राहक झोपड़ी के मॉडल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. छोटे पत्थर के औज़ारों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. गेंडे की खोपड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)