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सोने के आभूषण खरीदने से पहले, बी आई एस हॉलमार्क से सुनिश्चित करें अपने सोने की शुद्धता

लखनऊ

 04-09-2024 09:13 AM
म्रिदभाण्ड से काँच व आभूषण
हमारे देश भारत में प्राचीन काल से ही आभूषण बनाने के लिए सोने का उपयोग किया जाता रहा है, और आज भी सोने को आभूषणों के लिए सबसे लोकप्रिय सामग्रियों में से एक के रूप में प्राथमिकता दी जाती है है। सोने के आभूषण बनाने की प्रक्रिया में कौशल, धैर्य और रचनात्मकता के संयोजन की आवश्यकता होती है| सुनार, सुंदर और जटिल आभूषण बनाने के लिए, विभिन्न तकनीकों का उपयोग करते हैं। सोने के आभूषण खरीदते समय सोने की शुद्धता की जांच करना अत्यंत आवश्यक है। आभूषण खरीदने से पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सोने के आभूषण, 'भारतीय मानक ब्यूरो' (Bureau of Indian Standards (BIS) द्वारा हॉलमार्क किए गए हों । वर्ष 2021 से, केंद्र सरकार द्वारा सोने की हॉलमार्किंग अनिवार्य कर दी गई है। इसका अर्थ यह है कि भारत में किसी जौहरी द्वारा बेचे जाने वाले किसी भी सोने के आभूषण में उत्पाद की शुद्धता प्रमाणित करने के लिए बी आई एस हॉलमार्किंग होनी चाहिए । 1 जुलाई 2021 से, सरकार द्वारा सोने के आभूषणों पर हॉलमार्किंग संकेतों को संशोधित भी किया गया है। सोने के आभूषणों पर हॉलमार्किंग चिन्ह के माध्यम से, ग्राहक सोने की शुद्धता निश्चित कर सकते हैं। तो आइए, आज के इस लेख में, जानते हैं कि भारत में सोने की शुद्धता कैसे मापी जाती है। इसके साथ ही, भारत में बी आई एस हॉलमार्क वाले आभूषणों की सोने की शुद्धता की जांच करने के तीन संकेतों के बारे में समझते हैं। इसके बाद, हम सोने के आभूषण बनाने में उपयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकों के बारे में चर्चा करेंगे। साथ ही, हम भारत में सोने के आभूषण व्यवसाय की वर्तमान स्थिति के बारे में बात करेंगे और देखेंगे कि भारत में इस उद्योग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
सोने की शुद्धता का स्तर कैरेट के आधार पर मापा जाता है। कैरेट प्रणाली के माध्यम से सोने के सिक्के या आभूषणों में शुद्ध सोने और अन्य मिश्र धातुओं के अनुपात को मापा जाता है। यदि किसी विशेष आभूषण में सोने की मात्रा अन्य मिश्र धातुओं की तुलना में अधिक है, तो इसकी शुद्धता का स्तर उतना ही अधिक होता है। सोने के आभूषणों के विभिन्न कैरेट स्तर निम्न प्रकार हैं:
24 कैरेट सोना: 24k, सोना सोने का सबसे शुद्ध रूप है क्योंकि इसमें अन्य धातुओं का मिश्रण नहीं होता है। इसका रंग, चमकीला सुनहरा होता है और यह अन्य प्रकार के सोने की तुलना में अधिक महंगा होता है। चूँकि इस सोने का घनत्व कम होता है, अतः यह बेहद नरम होता है और नियमित आभूषणों के लिए उपयुक्त नहीं होता है।
22 कैरेट सोना: 22k सोने का उपयोग, व्यापक रूप से नियमित आभूषण और गहने बनाने के लिए किया जाता है। इसमें अन्य मिश्र धातुओं के दो भागों को सोने के 22 भागों के साथ मिलाया जाता है जिससे सोने की बनावट सख्त हो जाती है और जिससे आभूषण टिकाऊ और नियमित रूप से पहनने योग्य हो जाते हैं। 22k सोने में, 91.67% शुद्ध सोना होता है और बाकी 8.33%, अन्य धातुओं जैसे निकल, जस्ता, चांदी और अन्य धातुओं का मिश्रण होता है।
18 कैरेट सोना: 18k सोने में 75% सोना और 25% अन्य धातुओं का मिश्रण होता है। इस प्रकार के सोने का उपयोग, ज़्यादातर घड़ियाँ, अंगूठियाँ और अन्य पहनने योग्य सामान बनाने में किया जाता है और यह 22k और 24k सोने की तुलना में कम महंगा होता है। 18k सोने का उपयोग, मुख्य रूप से, हीरे या अन्य रत्नों के आभूषण बनाने के लिए किया जाता है।
14 कैरेट सोना: 14k सोने में 41.7% मिश्र धातु और 58.3% सोना होता है। चूँकि इसमें केवल 14 भाग शुद्ध सोना होता है, इसलिए यह 18k, 22k और 24k सोने की तुलना में काफ़ी किफ़ायती होता है। निकल, चांदी, जस्ता और तांबे जैसे अन्य धातुओं की अधिक मात्रा की उपस्थिति के कारण इसके बने आभूषणों में टूट-फूट की संभावना भी काम हो जाती है, क्योंकि यह अधिक सख्त होने के कारण टिकाऊ बन जाता है।
10 कैरेट सोना: 10k सोने में 41.7% सोना और शेष अन्य मिश्रधातुओं का मिश्रण होता है। इस प्रकार के सोने में शुद्ध सोने की मात्रा कम होती है जिससे यह साधारण हो जाता है और इसके खराब या बेरंग होने का खतरा रहता है। हालाँकि, यह मज़बूत होता है और इससे खरोंच लगने का खतरा नहीं होता है। चूँकि यह सबसे सस्ते प्रकार का सोना है, इसका रंग हल्का पीला होता है।
सोने के आभूषणों को खरीदते समय, सोने की शुद्धता की जांच करने के लिए, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि सोने के आभूषण, 'भारतीय मानक ब्यूरो' (Bureau of Indian Standards (BIS)) द्वारा हॉलमार्क किए गए हों। सोने के आभूषणों पर हॉलमार्किंग चिन्ह, ग्राहक को सोने की शुद्धता के बारे में सुनिश्चित करने में मदद करते हैं। सोने के आभूषणों की हॉलमार्किंग, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा एक प्रमाणीकरण है जिससे यह पुष्टि होती है कि सोना एक विशेष शुद्धता का है।
बी आई एस हॉलमार्क वाले सोने के आभूषणों पर निम्नलिखित तीन चिन्ह होते हैं:
a) बी आई एस मानक चिह्न: सोने के आभूषणों पर हॉलमार्क का पहला चिन्ह, बी आई एस (BIS) लोगो होता है, जो त्रिकोण के आकार में होता है। सोने के आभूषणों पर इस लोगो की मुहर से पता चलता है कि सोने के आभूषणों की शुद्धता की जांच, बी आई एस प्रमाणित केंद्र पर की गई है।
b) शुद्धता/सुंदरता ग्रेड: सोने के आभूषणों पर हॉलमार्क का दूसरा चिन्ह, शुद्धता का प्रतीक है। यह चिन्ह, आपको किसी विशेष सोने के आभूषण में सोने की शुद्धता की मात्रा बताता है। इस प्रकार निर्धारित सोने की शुद्धता के आधार पर उक्त आभूषण की कीमत निर्धारित की जाती है। बी आई एस वेबसाइट के अनुसार, सोने के आभूषणों की छह श्रेणियों में हॉलमार्किंग की अनुमति है: 14K, 18K, 20K, 22K, 23K और 24K । सोने के आभूषणों पर हॉलमार्क 22K916, 18K750, 14K585 आदि द्वारा दर्शाया जाता है।
c) छह अंकों का अक्षरांकीय कोड: हॉलमार्क वाले सोने के आभूषणों पर तीसरा चिन्ह, उत्पाद पर उभरा या खुदा हुआ छह अंकों का अक्षरांकीय कोड होता है। यह कोड, जिसे 'हॉलमार्क विशिष्ट पहचान' (Hallmark Unique Identification (HUID)) नंबर भी कहा जाता है, प्रत्येक आभूषण के लिए अद्वितीय है। ग्राहक इस अक्षरांकीय कोड को बी आई एस केयर ऐप पर सत्यापित कर सकते हैं।
सोने के आभूषण बनाने की विभिन्न तकनीकें:
ढलाई: ढलाई एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक विशिष्ट आकार बनाने के लिए, पिघला हुआ सोना, एक सांचे में डाला जाता है। इस तकनीक का उपयोग अक्सर अधिक जटिल और विस्तृत डिज़ाइनों के लिए किया जाता है जिन्हें हाथ से बनाना अत्यंत कठिन हो सकता है। डिज़ाइन की जटिलता के आधार पर, साँचे को मोम, मिट्टी या सिलिकॉन सहित विभिन्न सामग्रियों से बनाया जाता है। एक बार सांचा तैयार हो जाने के बाद, सोने को उसके पिघलने के बिंदु तक गर्म किया जाता है और सांचे में डाला जाता है। एक बार जब सोना ठंडा होकर जम जाता है, तो आभूषण से सांचे को हटा दिया जाता है।
गढ़ाई: गढ़ाई एक ऐसी तकनीक है, जिसमें पहले सोने को गर्म किया जाता है और उसे वांछित आकार देने के लिए हथौड़े से पीटा जाता है। इस तकनीक का उपयोग, अक्सर सरल और अधिक सुंदर डिज़ाइनों के लिए किया जाता है। सोने को उसकी लचीली अवस्था तक गर्म किया जाता है, जिससे सुनार को हथौड़े और निहाई का उपयोग करके धातु को आकार देने और मोड़ने की अनुमति मिलती है। जब वांछित आकार प्राप्त हो जाता है, तो चिकनी और चमकदार फ़िनिश बनाने के लिए, सोने को पॉलिश किया जाता है।
टांकने की क्रिया: टांकने की क्रिया या सोल्डरिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें सोने के दो या दो से अधिक टुकड़ों को एक विशेष प्रकार की धातु का उपयोग करके एक साथ जोड़ा जाता है। इस विशिष्ट धातु को सोल्डर कहते हैं। इस तकनीक का उपयोग, अक्सर आभूषण के विभिन्न हिस्सों को जोड़ने के लिए किया जाता है।
उत्कीर्णन: उत्कीर्णन, एक ऐसी तकनीक है जिसमें एक तेज़ उपकरण या लेज़र का उपयोग करके सोने की सतह पर एक डिज़ाइन उकेरा जाता है। इस तकनीक का उपयोग, अक्सर जटिल पैटर्न बनाने या आभूषण पर नाम या संदेश लिखने के लिए किया जाता है।
धातुतंतु अलंकरण: यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें सोने के पतले तारों को मोड़कर एक साथ बुना जाता है ताकि एक नाज़ुक और लेसदार पैटर्न बनाया जा सके। इस तकनीक का उपयोग, अक्सर अंगूठियों या पेंडेंट पर जटिल डिज़ाइन बनाने के लिए किया जाता है।
कणिकायन: कणिकायन एक ऐसी तकनीक है जिसमें सजावटी पैटर्न बनाने के लिए, छोटे सोने के मोतियों को एक साथ जोड़ा जाता है। इस तकनीक का उपयोग, अक्सर आभूषण पर बनावट वाली सतह बनाने या छोटे, चमकदार हीरे जैसा पैटर्न बनाने के लिए किया जाता है।
भारत में स्वर्ण उद्योग, भारतीय अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है, जो भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product (GDP)) में 1.3% का योगदान देता है। लेकिन आज भी, सोने का बाज़ार, परंपरागत बना हुआ है और अभी भी अत्यधिक खंडित है। पिछले कुछ वर्षों में उद्योग अधिक संगठित और विनियमित हो गया है। हालाँकि, छोटे स्वतंत्र खुदरा विक्रेता अभी भी परिदृश्य पर हावी हैं, पिछले दशक के दौरान राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर श्रंखलाबद्ध स्टोर्स की बाज़ार हिस्सेदारी में लगातार वृद्धि हुई है। इस तरह के तेज़ी से विस्तार से उत्पन्न प्रतिस्पर्धा ने नवाचार को भी प्रोत्साहन मिला है | ज्वेलर्स, अब उन उत्पाद पेशकशों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं जो भारत के व्यापक सांस्कृतिक और जनसांख्यिकीय ग्राहक आधार को मूल्य और विविधता दोनों प्रदान करते हैं। राष्ट्रीय परिचालन वाले चेन स्टोर द्वारा, मुख्य रूप से, दैनिक पहनने और तेज़ी से बिकने वाले आभूषणों जैसे चेन और अंगूठियां पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाता है और ये आभूषण उनके व्यवसाय का 50-60% हिस्सा बनाते हैं। हालांकि, स्वर्ण उद्योग के लिए, वित्तपोषण एक महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है | भारतीय रत्न और आभूषण उद्योग के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक बैंक ऋण हासिल करना है। विशेष रूप से, छोटे स्वतंत्र जौहरियों के लिए, बैंक वित्त सुरक्षित करना चुनौतीपूर्ण है, जो या तो वित्त पोषण के लिए मासिक स्वर्ण योजना पर निर्भर रहते हैं या जो वित्तपोषण के लिए उस पैसे का उपयोग करते हुए साहूकार के रूप में कार्य करते हैं। छोटे जौहरियों की पूंजी तक पहुंच को रोकने वाले प्रमुख कारकों में से एक कारक यह है कि वे अधिकांश लेनदेन नकद में करते हैं और इसलिए वे अपने खातों में अपने कारोबार की पूरी सीमा की रिपोर्ट नहीं करते हैं। हालांकि, सरकार द्वारा पारदर्शिता के लिए, कई नियम एवं उपाय बनाए गए हैं, लेकिन कई लोग हाल ही में लागू किए गए पारदर्शिता उपायों और विनियमों के साथ तालमेल बिठाने में असमर्थ रहे हैं और परिणामस्वरूप, उनका व्यवसाय विफल हो गया है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4xbdknyj
https://tinyurl.com/2sj2zt6t
https://tinyurl.com/2svxke4y
https://tinyurl.com/59azs6ha

चित्र संदर्भ
1. सोने के आभूषणों को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
2. बी आई एस मानक प्रमाणन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 22 कैरेट की सोने की अंगूठी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सोने के आभूषण बनाने की प्रक्रिया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. सोने के आभूषण पहनी एक भारतीय महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)


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