लखनऊ में मछलियों की अपनी एक अलग ही दुनिया है। यहाँ के ध्वज पर मछली का अंकन देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है। लखनऊ में कुल 83 नस्ल की मछलियाँ पायी जाती हैं जो 58 पीढ़ियों से ताल्लुक रखे हैं। यह मछलियाँ 21 विभिन्न परिवार व 8 विभिन्न क्रमों से सम्बन्धित हैं। सिपरिनीफॉर्म्स (Cypriniformes) परिवार की मछलियाँ लखनऊ में सबसे अधिक मात्रा में पाई जाती हैं। इस परिवार की करीब 56 नस्लें यहाँ उपलब्ध हैं। यह प्रश्न अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण है कि आखिर अवध के झंडे पर मछली क्यूँ है तथा ये मछलियाँ कैसे यहाँ पर आई? इन मछलियों की उत्पत्ति निश्चित रूप से 'माही-मरातिब' है, जो मुगल सैन्य की सम्मानित थी तथा जिसकी जड़ें फारस से जुड़ी थी।
यह मछली का चिन्ह मुगलों द्वारा सैन्य कमांडरों को दिया गया था। विभिन्न इतिहासकारों के इस विषय पर अलग-अलग मत हैं। माही-मरातिब, एकलौती मछली थी पर वर्तमान में यहाँ के चिह्न पर दो मछलियाँ दिखाई देती हैं। यह संभवतः नवाब सआदत खान बुरहान-उल-मुल्क की एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार हुयी थी। ऐसा कहा जाता है कि अवध के गवर्नर के रूप में नियुक्त किए जाने के बाद सआदत अली खान फरुखाबाद से लखनऊ जाने के रास्ते में गंगा नदी पार कर रहे थे और वहीँ दो मछलीयों ने उनकी गोद में छलांग लगाई। यह एक शकुन के रूप में देखा गया था। अच्छे किस्मत की यह बात नवाब सआदत खान के साथ लखनऊ आई और इस प्रकार अवध के इतिहास का स्वर्ण युग शुरू हुआ।
सन 1819 ईस्वी में इन दो मछलियों को और अधिक महत्व दिया गया जब न्यायालयी कलाकार रॉबर्ट होम ने नवाब गज़ीउद्दीन हैदर के राज्याभिषेक के लिए अवध के पहले राजा के रूप में शाही प्रतीक चिन्ह बनाया और इन दोनों मछलीयों को मुख्य तत्वों में से एक के रूप में इस्तेमाल किया। यह मछली नवाब वाजिद अली शाह के शासनकाल के दौरान 'जल परी' में बदल गई। लखनऊ की इमारतों से नाजुक चिकन के कपड़ों तक इस मछली की अपनी एक अलग पहचान हो गयी। इनको हुक्का, शराब दानी, पान के बक्से, पीकदान, फलों के कटोरे और लखनऊ की प्रसिद्ध गिल्ट चांदी के कामों पर सजाया गया। यहां तक कि हथियारों को भी मछली की आकृति से सजाया गया था। मछली अच्छी किस्मत, समृद्धि, उर्वरता और स्त्रीत्व का सार्वभौमिक प्रतीक है। हालांकि ये लखनऊ के चिह्न पर स्त्री और साथ ही मर्दाना दोनों पक्षों को प्रकट करती हैं। लखनऊ की इन मछलियों में समय के साथ साथ कई बदलाव आते गये और इनकी महत्ता में भी वृद्धि हुयी। वर्तमान काल में इस चिन्ह को उत्तर प्रदेश के राज्य चिन्ह के रूप में मान लिया गया है तथा तमाम सरकारी कामों में इनका प्रयोग होते आ रहा है।
1. शाम-ए-अवध: राइटिंग ओं लखनऊ, एडिटेड बाय वीणा तलवार ओल्डनबर्ग
2. http://lucknowobserver.com/lucknow-ki-machhliyan/
3. https://nativeplacetravels.wordpress.com/2015/07/07/languid-lucknow-following-the-fish/
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