रंग बिरंगी टोपियाँ सभी के मन को भाती टोपियाँ धूप से सभी को बचाती टोपियाँ, सर के ताज के रूप में निखर कर आती टोपियाँ। रामपुर और टोपियों का अपना एक अलग ही रिश्ता है। यहाँ पर टोपी का इतिहास सन 1891 तक जाता है जब सर्वप्रथम शौकत अली ने नवाब हामिद अली को अपने हाथ से सिलकर एक टोपी नज़राने के रूप में दी था और यह टोपी नवाब को अत्यंत लुभावनी लगी थी। परिणाम यह हुआ कि नवाब ने शौकत अली को इनामों से नवाजा। फिर क्या था, शौकत अली ने टोपी बनाना अपना व्यवसाय बना लिया और उनकी बनायी टोपियाँ हामिद कैप के नाम से मशहूर हो गयीं।
रामपुर की टोपी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान तब प्रकाश में आई जब महात्मा गाँधी सन 1931 में मौलाना मोहम्मद अली जौहर के यहाँ पर मेहमान थे। जौहर की सलाह पर गाँधी जी ने रामपुर के नवाब हामिद अली खान से मिलने की सोची लेकिन तब यह रिवायत थी कि कोई भी शख्स नवाब के सामने नंगे सिर नहीं जा सकता था। ऐसे में जौहर की माँ ने खादी का थैला बना कर इस तरह से तह कर दिया की वो टोपी की शक्ल की हो गयी। गाँधी जी उसे पहन कर नवाब से मिले और उस टोपी को उनसे मिलने के उपरांत भी नहीं उतारा और उसे कौमी टोपी करार दिया। यह टोपी पूरे विश्व भर में मशहूर हुयी। रामपुर की बनी टोपी को गाँधी जी ही नहीं बल्कि जिन्ना, वी.पी. सिंह, फारुख अब्दुल्लाह, आदि ने पहना है।
रामपुर में टोपी एक महत्वपूर्ण व्यवसाय के रूप में देखी जाती थी परन्तु अब यहाँ का टोपी उद्योग अपनी आखिरी साँसे गिन रहा है। रामपुर के अब्दुल्लाह गंज सड़क पर टोपियों की दुकानें हुआ करती थी। एक समय इनकी संख्या करीब 20-25 की थी परन्तु अब यह घट कर मात्र 4-5 ही रह गयी हैं। चीन व अन्य स्थानों से आई टोपियाँ अब भारतीय बाजारों में पैठ बना चुकी हैं जिस कारण यहाँ पर टोपी का व्यवसाय मरणासन्न है।
1. रामपुर रजा पुस्तकालय
2. http://twocircles.net/2017feb04/404060.html
3. https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/rampur/71506885443-rampur-news
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