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नौ में से केवल छह उप प्रजातियां ही शेष बची हैं बाघों की, जिनका संरक्षण है आवश्यक

लखनऊ

 29-07-2024 09:20 AM
स्तनधारी

बाघों को सबसे विस्मयकारी, साहसी जंगली जानवरों में से एक माना जाता है। ये दुनिया की सबसे बड़ी बिल्ली प्रजाति से संबंधित होते हैं जो सुदूर पूर्व रूस (East Russia), उत्तर कोरिया (North Korea) के कुछ हिस्सों, चीन (China), भारत, दक्षिण पश्चिम एशिया (Asia) और इंडोनेशिया (Indonesia) के सुमात्रा द्वीप में पाए जाते है। हालाँकि, बढ़ती मानवीय जनसंख्या के परिणाम स्वरूप, निवास स्थान के नुकसान, अवैध हत्या और घटती खाद्य आपूर्ति के दबाव के कारण बाघों की सभी प्रजातियाँ लुप्तप्राय सूची में आ गई हैं। इसीलिए बाघों के संरक्षण एवं 2022 तक वैश्विक बाघ आबादी को दोगुना करने के लक्ष्य के साथ, 13 बाघ रेंज वाले देशों द्वारा 2010 में 'अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस' (International Tiger Day) की स्थापना की गई, जिसे प्रत्येक वर्ष 29 जुलाई को मनाया जाता है। हमारे लखनऊ शहर से लगभग 200 किलोमीटर दूर लखीमपुर ज़िले में 'दुधवा टाइगर रिज़र्व' ने पिछले दशक में बाघों के विकास और संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। तो आइए इस लेख में, बाघ, उनके प्रकार, आवास और दुनिया भर में उनके विकास और वितरण के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही भारत में उनकी जनसंख्या की वर्तमान स्थिति के बारे में भी समझते हुए, भारत सरकार द्वारा शुरू की गई सबसे बड़ी बाघ संरक्षण पहल 'प्रोजेक्ट टाइगर' की सफलता और पर्यावरण पर प्रभाव के बारे में भी बात करेंगे।
जबकि बाघों को उनकी विशिष्ट धारियों और शक्तिशाली कद से पहचाना जा सकता है, ये सभी बड़ी बिल्लियाँ एक जैसी नहीं होती हैं। वास्तव में, बाघ की धारियों के पैटर्न मानव फिंगरप्रिंट की तरह अद्वितीय होते हैं। कई जानवरों की तरह, बाघों की भी उप-प्रजातियाँ होती हैं और शुरुआत में, इनकी न उप-प्रजातियाँ पहचानी गई थीं। इनमें से वर्तमान में छह उप-प्रजातियाँ अर्थात् रॉयल बंगाल टाइगर, साइबेरियन टाइगर, द साउथ चाइना टाइगर, सुमात्रा टाइगर, इंडो-चाइनीज़ टाइगर और मलयन टाइगर जंगलों में जीवित हैं, जबकि तीन उप-प्रजातियाँ - बाली टाइगर, कैस्पियन टाइगर और जावन टाइगर विलुप्त हो चुके हैं। आइए, बाघों की जीवित विभिन्न प्रजातियों के विषय में जानते हैं: 1. बंगाल टाइगर (Bengal Tiger): बंगाल टाइगर, जिसे भारतीय बाघ या रॉयल बंगाल टाइगर भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है। हालाँकि, एक समय यह बहुत बड़े क्षेत्र में घूमता था, लेकिन वर्तमान में यह भारत में बंगाल, बांग्लादेश, नेपाल और भूटान में पाया जाता है। बंगाल टाइगर लुप्तप्राय सूची में है। यह बाघ की सबसे प्रसिद्ध नस्ल है और जंगल में पाया जाने वाला सबसे बड़ा बाघ है। एक नर बंगाल टाइगर का वजन 397 से 569 पाउंड के बीच होता है। जबकि मादा का वज़न 220 से 350 पाउंड के बीच होता है। बंगाल टाइगर की एक उपप्रजाति सफ़ेद बाघ भी होती है। काली धारियों वाले सफ़ेद बाघ की आंखें नीली होती हैं, बाघ का यह सफ़ेद रंग ल्यूसिज्म नामक आनुवंशिक उत्परिवर्तन के कारण होता है और यह बंगाल टाइगर के लिए विशिष्ट है। सफ़ेद शावक के जन्म के लिए माता-पिता दोनों के पास जीन होने चाहिए। हालाँकि, यह अत्यंत दुर्लभ होता है, जिसके परिणामस्वरूप 10,000 बाघों में से केवल एक ही ऐसा होता है। 2. साइबेरियन बाघ (Siberian Tiger): साइबेरियाई बाघ, जिसे मंचूरियन बाघ, कोरियाई बाघ, अमूर बाघ (Amur tiger) या उस्सुरियन बाघ (Ussurian tiger) के नाम से भी जाना जाता है, एक लुप्तप्राय प्रजाति है जो उत्तरी एशिया (चीन, रूस और कोरिया) में पाई जाती है। हालाँकि सबसे भारी साइबेरियाई बाघ का वजन 660 पाउंड होने का रिकॉर्ड है, यह आम तौर पर बंगाल बाघ से छोटा होता है। नर साइबेरियाई बाघों का वज़न आमतौर पर 389 से 475 पाउंड के बीच होता है। मादाओं का वज़न आमतौर पर 260 से 303 पाउंड के बीच होता है। साइबेरियन बाघ की छाती चौड़ी और खोपड़ी बड़ी होती है। इसका मोटा फर, जो इसे उत्तरी एशिया की कठोर सर्दियों से बचाता है, अन्य बाघ उप-प्रजातियों की तुलना में नारंगी रंग का कम जीवंत रंग होता है। 3. सुमात्रन बाघ (Sumatran Tiger): सुमात्रन बाघ, बाघों की सबसे छोटी उप-प्रजाति है और इंडोनेशिया के सुमात्रा द्वीप पर पाया जाता है। सुमात्रन बाघ एक गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजाति है। इस बाघ की दो अन्य उप-प्रजातियाँ, बाली बाघ और जावन बाघ, एक समय इसी क्षेत्र में रहते थे लेकिन अब वे विलुप्त हो गए हैं। सुमात्रन बाघ का वजन बंगाल या साइबेरियन बाघ से लगभग आधा होता है। एक नर सुमात्रन बाघ का वजन 220 से 310 पाउंड के बीच होता है, जबकि एक मादा का वजन 165 से 243 पाउंड के बीच होता है। इसकी धारियाँ बहुत गहरी और सुस्पष्ट होती हैं, जो बाघ के अगले पैरों सहित उसके पूरे शरीर को ढक देती हैं। जबकि अन्य सभी बाघों के अगले पैरों पर धारियाँ नहीं होतीं। 4. इंडोचाइनीज़ बाघ (Indochinese Tiger): इंडोचाइनीज़ बाघ, जिसे कॉर्बेट बाघ (Corbett’s tiger) के नाम से भी जाना जाता है, लगभग गंभीर रूप से लुप्तप्राय है और दक्षिण पूर्व एशिया (चीन, थाईलैंड, लाओस, बर्मा और वियतनाम) का मूल निवासी है। इस बाघ के अंगों का अवैध व्यापार इनकी तेज़ी से घटती आबादी का मुख्य कारण है। आज दुनिया में केवल लगभग 300-400 इंडोचाइनीज़ बाघ बचे हैं। इंडोचाइनीज़ बाघ में संकीर्ण, एकल धारियाँ होती हैं। नर इंडोचाइनीज़ का वजन आमतौर पर 331 से 430 पाउंड के बीच होता है, जबकि मादा का वजन 220 से 290 पाउंड के बीच होता है। 5. मलयन बाघ (Malayan Tiger): मलयन बाघ को दक्षिणी इंडोचाइनीज़ बाघ के रूप में भी जाना जाता है। यह मूल रूप से दक्षिणपूर्वी एशिया (बर्मा, थाईलैंड और मलेशिया) में पाया जाता है। मलयन टाइगर दिखने में इंडोचाइनीज़ टाइगर से काफ़ी मिलता-जुलता है, सिवाय इसके कि यह थोड़ा छोटा होता है। नर मलयन बाघ का वज़न 220 से 308 पाउंड के बीच और मादा का वजन 165 से 245 पाउंड के बीच होता है। पूरे विश्व में मलयन बाघों की संख्या बेहद कम है। दुनिया में 200 से भी कम प्रजनन करने वाले वयस्क हैं, और उनकी संख्या अभी भी घट रही है! निवास स्थान के नुकसान और अवैध शिकार के कारण मलयन बाघ गंभीर रूप से संकटग्रस्त हैं। 6. साउथ चाइना बाघ (South China Tiger): साउथ चाइना बाघ को चीनी बाघ, ज़ियामेन बाघ (Xiamen tiger) और अमोय बाघ (Amoy tiger) के नाम से भी जाना जाता है। यह पूर्व और मध्य चीन का मूल निवासी है; हालाँकि, दशकों से इसे जंगल में नहीं देखा गया है। हालाँकि, दक्षिण चीन बाघ सुमात्रन इंडोचाइनीज़ और मलायन बाघों जितना छोटा नहीं होता, लेकिन यह छोटी बाघ उप-प्रजातियों में से एक है। एक नर दक्षिण चीनी बाघ का वज़न 287 से 386 पाउंड के बीच होता है। मादा का वज़न 220 से 254 पाउंड के बीच होता है। दक्षिण चीनी बाघ गंभीर रूप से संकटग्रस्त है और संभावित विलुप्ति का सामना कर रहा है। दुनिया में इस प्रजाति के केवल 30 से 40 बाघ ही अस्तित्व में हैं, और वे सभी कैद में रह रहे हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 1970 के दशक में, जंगल में 4000 से अधिक दक्षिण चीनी बाघ थे। लेकिन अब, कोई भी अस्तित्व में नहीं है। इसका कारण तो हम सभी जानते ही हैं कि आवास के नुकसान एवं अवैध शिकार के चलते यह प्रजाति पूरी तरह से लुप्त होने की कगार पर आ गई है। बाघ पैंथेरा (Panthera) प्रजाति से संबंधित हैं, जो लगभग पाँच मिलियन वर्ष पहले अन्य फेलिडे (Felidae) प्रजाति से अलग हो गए थे। शेर, तेंदुओं और जैगुआर से पहले, बाघ लगभग दो मिलियन वर्ष पहले इस जीन से एक अलग प्रजाति के रूप में अलग हो गए थे। बाघ का सबसे पुराना जीवाश्म, जो दक्षिण एशिया में पाए जाने वाले बाघों से छोटा है लेकिन सुमात्रा बाघों से बड़ा है, चीन के हेनान (Henan in China) में पाया गया है। सबूतों से पता चला कि 2 मिलियन वर्ष पहले प्रारंभिक प्लेइस्टोसिन (Pleistocene) तक बाघ चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में व्यापक रूप से वितरित थे। 1 मिलियन वर्ष पूर्व प्लेइस्टोसीन के अंत तक, वे दक्षिण की ओर भारतीय उपमहाद्वीप, कैस्पियन क्षेत्र में और उत्तर की ओर रूस, जापान और बेरेंजिया (Berengia)में फैल गए थे। जबकि 10,000 साल पूर्व होलोसीन (Holocene) की शुरुआत तक बाघ जावा और संभवतः बोर्नियो (Borneo) में भी वितरित हो गए। यह भी संभावना है कि बाघ भारत के माध्यम से ही कैस्पियन क्षेत्र में वितरित हो गए। आणविक आनुवंशिक अध्ययनों के अनुसार, बाघ के सबसे हालिया पूर्वज केवल 72,000 - 108,000 वर्ष पुराने हैं। साक्ष्यों के अनुसार, बाघ भारत से अफ़ग़ानिस्तान के रास्ते पश्चिम एशियाई क्षेत्र में भी प्रवेश कर गए। हालांकि, समुद्र के बढ़ते स्तर के कारण वे श्रीलंका और बोर्नियो के जंगलों में प्रवेश करने में विफल रहे। उत्तर पश्चिमी भारत के कुछ हिस्सों को छोड़कर बाघ भारत के अधिकांश हिस्सों में व्याप्त थे, लेकिन वर्तमान में उनका वितरण काफी हद तक प्रतिबंधित हो चुका है। 2000 में सैंडरसन के एक अध्ययन के अनुसार, दक्षिण एशिया में बाघों की वितरण सीमा 350,000 वर्ग किलोमीटर से भी कम क्षेत्र में है। वर्तमान में उनके मूल वितरण का 90 प्रतिशत हिस्सा सिकुड़कर सीमित हो गया है। यहां तक कि बाघों की स्वस्थ प्रजनन आबादी भी एक प्रतिशत से भी कम है। यद्यपि संरक्षण प्रयासों के कारण, पिछले कुछ वर्षों के दौरान बाघों की आबादी में वृद्धि हुई है, फिर भी बाघों का सिकुड़ता निवास स्थान चिंता का विषय है।
हमारा देश भारत रॉयल बंगाल टाइगर के लिए दुनिया का सबसे बड़ा घर है। विश्व के कुल बाघों में से 70% से अधिक बाघ भारत में पाए जाते हैं। हालांकि, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि हमारे ये शानदार बाघ शिकारियों के निशाने पर भी रहते हैं। इस खतरे पर काबू पाने के लिए भारत में 1973 में "प्रोजेक्ट टाइगर" लॉन्च किया गया था। चूँकि, हमारे देश की शान, इन खूबसूरत बड़ी बिल्लियों की आबादी, भारत के कई राज्यों में फैली हुई है, इसलिए उनकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सरकार की होती है। प्रोजेक्ट टाइगर कर्तव्य की इस पुकार के प्रति सरकार की प्रतिक्रिया है।
19वीं सदी की शुरुआत में, भारत में लगभग 40,000 रॉयल बंगाल टाइगर थे। लेकिन सात दशकों के भीतर ही, रॉयल बंगाल टाइगर की आबादी घटकर मात्र 1800 रह गई। यह न केवल चौंकाने वाला और चिंताजनक तथ्य था, बल्कि भारत में राष्ट्रीय पशु की उपेक्षा का भी प्रतिबिंब था। इन आँकड़ों की तीखी आलोचना के आलोक में, सरकार ने इस मुद्दे पर ध्यान दिया और देश में बाघों की आबादी को पुनर्जीवित करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। भारत में प्रोजेक्ट टाइगर 1 अप्रैल 1973 को भारत में एक प्रमुख वन्यजीव संरक्षण परियोजना के रूप में उत्तराखंड के 'जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क' से शुरू किया गया था। भारत में बाघों की आबादी को बनाए रखने और उन्हें अवैध शिकार और अन्य खतरों से बचाने के लिए यह भारत में अपनी तरह की पहली परियोजना है, जो भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित है और पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (Ministry of Environment, Forests and Climate Change) के तहत प्रशासित है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (National Tiger Conservation Authority (NTCA)), तत्काल पर्यवेक्षण एजेंसी है। इस परियोजना के तहत 'प्रोजेक्ट टाइगर' के निम्नलिखित उद्देश्य घोषित किए गए थे:
बाघों के आवास में कमी लाने वाले कारकों की पहचान करना और उपयुक्त प्रबंधन प्रथाओं के माध्यम से उन्हें कम करना।
पहले ही हो चुके आवास नुकसान को ठीक किया जाना ताकि प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र को यथासंभव हद तक ठीक किया जा सके।
आर्थिक, पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और सौंदर्य संबंधी महत्व के लिए बाघों की व्यवहार्य आबादी बनाए रखना।
2006 में देश में प्रौद्योगिकी आधारित पहली बाघ जनगणना की गई जिसमें अनुमान लगाया गया, कि देश में बाघों की कुल आबादी 1,411 है। 2006 की जनगणना ने बाघ संरक्षण को लेकर हलचल और बहस का दूसरा दौर पैदा किया। तब से सुरक्षा प्रयास कई गुना बढ़ गए हैं। बाघ संरक्षण के प्रति नई गंभीरता के कारण, अगले दशक में बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई। 2014 बाघ जनगणना के अनुसार, अनुमानित रूप से भारत में 2,226 बंगाल बाघ थे और 2018 बाघ जनगणना के अनुसार, यह संख्या बढ़कर अनुमानित 2,967 हो गई। 2014 में कर्नाटक सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला राज्य था। 2014 की बाघ जनगणना के अनुसार राज्य में बाघों की दर्ज संख्या 408 थी। लेकिन, 2018 की बाघ गणना में, भारत के बाघ राज्य का ताज 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश को प्राप्त हुआ, जबकि कर्नाटक और उत्तराखंड क्रमशः 524 और 442 बाघों के साथ दूसरे और तीसरे स्थान पर थे। जबकि 2022 की बाघ गणना में मध्य प्रदेश में बाघों की आबादी 785 आंकी गई। बाघ जनगणना 2022 के अनुसार, देश में बाघों की कुल आबादी 3,682 बाघ है, जो 2018 की जनगणना से 24% अधिक थी। आज, प्रोजेक्ट टाइगर के तहत, 78,735.59 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले 55 बाघ अभ्यारण्यों की देखभाल की जाती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/4xkw6ubw
https://tinyurl.com/mrxd8b6u
https://tinyurl.com/3vdw9956

चित्र संदर्भ
1. अपने बच्चे के साथ एक मादा बाघ को दर्शाता चित्रण (goodfon)
2. गुफा में बैठे हुए बाघों को दर्शाता चित्रण (StockVault)
3. बंगाल टाइगर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. साइबेरियन बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (Needpix)
5. सुमात्रन बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. इंडोचाइनीज़ बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. मलयन बाघ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. साउथ चाइना बाघ को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
9. बाघों के समूह को दर्शाता चित्रण (goodfon)
10. पैंथेरा जीनस की फ़ाइलोजेनी को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
11. 2022 में भारत में राज्यवार स्तर पर बाघों के अवैध शिकार को दर्शाता चित्रण (wikimedia)



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