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कछुए और मेंढक: विश्व भर की मिथकों, लोककथाओं और संस्कृतियों का हिस्सा

लखनऊ

 15-07-2024 10:23 AM
मछलियाँ व उभयचर

लखनऊ, क्या आप जानते हैं कि टोड और मेंढक कई शताब्दियों से हमारी मिथकों, लोककथाओं, कहावतों और परी कथाओं में संस्कृतियों का हिस्सा रहे हैं? इन उभयचरों को बच्चों की कहानियों, कई संस्कृतियों के अनुष्ठानों और दुनिया भर के मिथकों में देखा जा सकता है। इस लेख में, हम उनसे संबंधित कुछ भारतीय और विश्वव्यापी मिथकों के बारे में जानेंगे, कि वे कैसे अस्तित्व में आए और उन्हें समाज द्वारा सांस्कृतिक रूप  में कैसे माना जाता है, खासकर भारत में।

मेंढकों के बारे में विश्वव्यापी मिथक

आइए हम शुरूआत करते हैं ग्रिम्स ( Grimms) के  "द फ्रॉग किंग, या आयरन हेनरिक" (The Frog King, or Iron Heinrich) की कहानी से जिसे अक्सर "द फ्रॉग प्रिंस" (The Frog Prince) के रूप में भी संदर्भित किया जाता है। लोकप्रिय लेखक, जैक ज़िप्स ( Jack Zips)के अनुसार, "द फ्रॉग प्रिंस" "कई रूपों में दुनिया भर में जाना जाता है और लोगों के बीच लोकप्रिय है।"

"द फ्रॉग किंग, या आयरन हेनरिक"


एक समय की बात है, एक राजा की सबसे छोटी बेटी थी जिसे हर कोई प्यार करता था। एक दिन, जब वह बोर हो रही थी, तो  वह अपनी सुनहरी गेंद से खेलने के लिए जंगल के किनारे एक कुएँ पर चली गई। खेलते-खेलते अचानक उसकी सुनहरी गेंद कुएँ के पानी में गिर गई। वह बहुत दुखी हो गई और ज़ोर-ज़ोर से रोने लगी।

उसके रोने की आवाज़ सुनकर, पास ही कुएँ में रहने वाला एक मेंढक जाग गया। उसने पूछा, "राजकुमारी, क्यों रो रही हो?" राजकुमारी ने दुखी होकर बताया, "मेरी प्यारी सुनहरी गेंद कुएँ में गिर गई है।"

मेंढक ने कहा, "मैं तुम्हारी गेंद वापस ला सकता हूँ, लेकिन बदले में तुम्हें मुझसे प्यार करना होगा, मेरे साथ खेलना होगा और जीवन भर मेरी देखभाल करनी होगी।" राजकुमारी ने सोचा कि यह एक आसान वादा है, इसलिए उसने हाँ कह दिया।

मेंढक कुएँ में कूद गया और कुछ ही देर में गेंद को वापस ले आया। राजकुमारी ने खुशी-खुशी अपनी गेंद ली और बिना कुछ सोचे महल की ओर दौड़ पड़ी, बिना मेंढक की ओर देखे।

उस शाम, महल के दरवाज़े पर मेंढ़क की दस्तक हुई। राजकुमारी ने दरवाज़ा खोला और देखा कि मेंढक वहाँ खड़ा है। उसने राजा को सब कुछ बताया, और राजा ने अपनी बेटी से कहा कि उसे अपना वादा पूरा करना होगा।

वह अनमने मन से मेंढक को अंदर ले आई और उसे अपने कमरे के एक कोने में रख दिया। जब वह बिस्तर पर लेटी हुई थी, तो मेंढक रेंगता हुआ आया और बोला, "मैं थक गया हूँ और मैं तुम्‍हारी तरह सोना चाहता हूँ। मुझे अपने बिस्तर पर उठा लो, नहीं तो मैं तुम्हारे पिता को बता दूँगा।"

राजकुमारी बहुत नाराज़ हो गई। उसने मेंढक को उठाया और पूरी ताकत से उसे दीवार पर पटक दिया। "अब तुम्हें आराम मिलेगा, घिनौने मेंढक!" उसने गुस्से में कहा।

जैसे ही मेंढक दीवार से टकराया, अचानक एक जादू हुआ। मेंढक की जगह एक सुंदर राजकुमार खड़ा हो गया। उसने कहा, "धन्यवाद, राजकुमारी। तुमने मुझे इस  श्राप  से मुक्त कर दिया। एक दुष्ट जादूगरनी ने मुझे मेंढक बना दिया था और केवल एक राजकुमारी के प्यार और गुस्से से ही मैं मुक्त हो सकता था।"

राजकुमारी हैरान रह गई और फिर मुस्कुराई। राजकुमार ने उससे विवाह का प्रस्ताव रखा और वह खुशी-खुशी मान गई। उन्होंने महल में भव्य समारोह के साथ विवाह किया और सदा के लिए  सुखी रहने लगे।


ग्रीक पौराणिक कथाएं

ग्रीक (Greek) पौराणिक कथाओं में मेंढकों की उत्पत्ति के बारे में एक कहानी है। रात और अंधेरे की देवी लैटोना, जिसे लेटो भी कहा जाता है, को एक बार शक्तिशाली ग्रीक देवता ज़ीउस की पत्नी हेरा ने  श्राप दिया। हेरा ने लैटोना को धरती पर भेज दिया, और चेतावनी दी कि कोई भी उनकी मदद नहीं  करेगा। नतीजतन, लैटोना को धरती पर सभी ने त्याग दिया और वह अपने  जुड़वा शिशुओं को लेकर एक जगह से दूसरी जगह भटकती रही। लैटोना अपने  जुड़वा शिशुओं के साथ लाइसिया (Licia) की एक हरी-भरी घाटी में पहुंची। प्यास से बेहाल, उसने एक ठंडे और साफ पानी वाले तालाब के किनारे जाकर पानी पीने की कोशिश की। तालाब के पास कुछ किसान विलो के पेड़ काट रहे थे। जब लैटोना ने पानी पीना चाहा, तो किसानों ने उसे अशिष्टता से मना कर दिया। लैटोना ने विनम्रता से उनसे पानी पीने  की विनती की, लेकिन किसानों ने उसे झिड़क दिया और तालाब में कीचड़ उछाल दिया। गुस्से में, लैटोना ने किसानों को श्राप दिया कि वे तालाब में ही रहें और उनका रूप बदलकर मेंढकों में परिवर्तित हो गया।

प्राचीन मिस्र में मेंढक

प्राचीन मिस्र में, मेंढक को अक्‍सर उर्वरता, जल और नवीनीकरण के प्रतीक के रूप में देखा जाता था। जल की देवी  हेकिट ( Heqet) के सिर को मेढ़क के समान चित्रित किया जाता है। मेंढक दाई देवी हेकिट का   प्रतीक थे, जो गर्भाधान और जन्म की देवी भीमानी जाती थी |  मिस्र की महिलाएं अक्सर उनकी कृपा पाने के लिए मेंढक के रूप में धातु के ताबीज पहनती थीं।


अन्य संस्कृतियों में मेंढकों की मान्यताएं

कोलम्बियाई मेसोअमेरिका (Pre-Colombian Mesoamerica)

पूर्व कोलम्बियाई मेसोअमेरिका में, सेनेओटल (Cenotal) देवी को मेंढक या टोड के रूप में पूजा जाता था। पेरू (Peru) और बोलीविया (Bolivia) की आयमारा जनजाति बारिश के लिए मेंढक की मूर्तियाँ बनाती थीं। एज़्टेक (Aztec ) में, टोड पृथ्वी की देवी ट्लाल्टेकुहती (Tlaltecuhtli) का प्रतीक था, जो मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र का प्रतीक थी।

प्राचीन चीन (Ancient China)

प्राचीन  चीन  में, टोड स्त्री शक्ति और चंद्रमा का प्रतीक थे। मेंढक और टोड मानव संस्कृति में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनके आवास के नष्ट होने के कारण उनकी संख्या घट रही है। अगर ये जीव चले जाएंगे, तो हमारी पौराणिक कथाओं में केवल नुकसान की कहानी रह जाएगी।

भारतीय संदर्भ में मेंढक

हिंदू धर्म

हिंदू धर्म में, मेढ़क परिवर्तन और पुनर्जन्म का प्रतीक हैं। एक मेंढक के जीवन चक्र को देखें; वे एक अंडे से जन्‍म लेते हैं, फिर गलफड़ों और पूंछ वाले टैडपोल के रूप में बदल जाते हैं, फिर वे फेफड़ों और पैरों वाले वयस्कों में विकसित होते हैं तथा उनकी पूंछ विलुप्‍त हो जाती है। इसमें कोई आश्चर्य की  बात नहीं कि उन्हें परिवर्तन के संरक्षक के रूप में माना जाता है।

मेंढक की शादियां

सबसे लोकप्रिय भारतीय ग्रामीण मेंढक मान्यताओं में से एक यह है कि दो मेंढकों की शादी से भगवान इंद्र प्रसन्न होते हैं और वे सूखी भूमि पर वर्षा कर देते हैं। असम, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भीषण गर्मी के दौरान ऐसी शादियाँ नियमित रूप से आयोजित की जाती हैं। भारत में कृषि बहुत महत्वपूर्ण है, और किसान अभी भी अच्छी फसलों के लिए काफी हद तक बारिश पर निर्भर हैं।


वैदिक संस्कृत ग्रंथों में मेंढक

हमारे प्राचीन वैदिक संस्कृत ग्रंथों में भी मेंढकों का उल्लेख है। मेंढक के लिए संस्कृत शब्द मंडुका का प्रयोग किया गया है। उपनिषद मांडूक्य का शीर्षक इसी से लिया गया है। प्राचीन ग्रंथ हमें ॐ का उच्चारण करके मेंढक की तरह हमारी चेतना के पहले स्‍तर से चौथे स्तर तक छलांग लगाने की शिक्षा देते हैं।

मंडूक मंदिर

भारत में उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी के  ओयल कस्बे में एक मेंढक मंदिर है, जिसे मंडूक मंदिर के नाम से जाना जाता है। इसमें एक मेंढक की सबसे आकर्षक और भयावह मूर्ति है, जो देखने में ऐसा लगता है जैसे वह पूरे मंदिर को अपनी पीठ पर उठाए हुए है। कहानी यह है कि स्थानीय ज़मींदार राजा बख्त सिंह को एक बेटे की चाहत थी। उन्हें एक तांत्रिक पुजारी ने शिव का मंदिर बनाने की सलाह दी। लेकिन पहले उन्हें एक मेंढक की बलि देनी थी, मेंढक प्रजनन क्षमता का प्रतीक भी  माना जाता है। मंदिर बलि के स्थान पर बनाया गया था।

पर्यावरणीय महत्व

मेंढक हमारी भौतिक   और हमारी सांस्कृतिक दुनिया दोनों में महत्वपूर्ण महत्व रखते हैं। दुर्भाग्य से, आज सभी उभयचर प्रजातियों में से लगभग एक तिहाई जलवायु परिवर्तन, आवास की कमी, अत्यधिक कटाई, आक्रामक प्रजातियों और प्रदूषण के कारण विलुप्त होने के खतरे में हैं। वास्तव में, वे ग्रह पर सबसे अधिक खतरे में पड़े कशेरुकी वर्ग हैं। यह एक निराशाजनक विचार है।

संदर्भ :

https://rb.gy/7ag1ka

https://rb.gy/pke9xf

https://shorturl.at/zW9Gv

https://shorturl.at/o40dX


चित्र संदर्भ

1. द फ्रॉग प्रिंस को दर्शाता चित्रण (wikimedia)

2. द फ्रॉग प्रिंस को दर्शाता चित्रण (PICRYL)

3. अपने बच्चों के साथ लेटो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

4. मदकू द्वीप में मांडूक्य ऋषि स्मारक, छत्तीसगढ़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

5. लखीमपुर खीरी के ओयल कस्बे में एक मेंढक मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)




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