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असम की मिकिर जनजाति के अध्ययन से समझें, आदिवासी मानवविज्ञान का सिद्धांत

लखनऊ

 13-05-2024 09:32 AM
सिद्धान्त 2 व्यक्ति की पहचान

‘मानवविज्ञान’ मानवता का अध्ययन होता है, जिसमें मानव की विकासवादी उत्पत्ति से लेकर हमारी वर्तमान सांस्कृतिक विविधता तक सब कुछ शामिल है। यह एक व्यापक क्षेत्र है, जो सामाजिक संरचनाओं, सांस्कृतिक प्रथाओं, जैविक अनुकूलन, भाषाई विविधता और ऐतिहासिक विकास सहित मानव अस्तित्व के विभिन्न पहलुओं की जांच करता है। दूसरी ओर, ‘आदिवासी मानवविज्ञान’, मानवविज्ञान की एक शाखा है, जो विशेष रूप से स्वदेशी या आदिवासी समाजों के अध्ययन पर केंद्रित है। इसमें जनजातीय समुदायों की संस्कृतियों, भाषाओं, सामाजिक संरचनाओं, विश्वास प्रणालियों और दैनिक प्रथाओं पर शोध और विश्लेषण शामिल है। आइए, आज मिकिर जनजाति के बारे में जानकर, आदिवासी मानवविज्ञान के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हैं। मानवविज्ञान दुनिया भर के लोगों का अध्ययन होता है। उनका विकासवादी इतिहास, उनके व्यवहार का स्वरूप, विभिन्न वातावरणों में अनुकूलन, संवाद और मेलजोल आदि विषयों के बारे में अध्ययन, इसमें शामिल है।
मानवविज्ञान का अध्ययन जैविक विशेषताओं (शरीर विज्ञान, आनुवंशिक संरचना, पोषण इतिहास और विकास) और सामाजिक पहलुओं (भाषा, संस्कृति, राजनीति, परिवार और धर्म) दोनों से संबंधित है। लोगों के जीवन का विस्तार से अध्ययन करते हुए, मानवविज्ञानी यह पता लगाते हैं कि, क्या लक्षण हमें विशिष्ट रूप से मानव बनाती है। छोटे सामाजिक समूहों से लेकर जटिल आधुनिक समाजों तक मानवता के विकास को समझने हेतू “जनजाति” की अवधारणा को समझना अभिन्न है। जनजातियां वह आधार हैं, जिस पर समाज और संस्कृतियां विकसित हुई हैं। किसी जनजाति को, लोगों के एक समूह के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो अक्सर रक्त संबंधों के माध्यम से संबंधित होते हैं। ये लोग समान संस्कृति, भाषा और क्षेत्र साझा करते हैं, और एक निश्चित स्तर के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संगठन का प्रदर्शन करते हैं।
किसी जनजाति की विशेषताएं निम्नलिखित हैं–
सामाजिक संस्था: जनजातियों में एक सुस्पष्ट सामाजिक संगठन होता है। इनमें अक्सर परिवार या कुल जैसे छोटे समूह शामिल होते हैं, जो मिलकर एक बड़ा, एकजुट समूह बनाते हैं। किसी जनजाति में यदि सामाजिक पदानुक्रम मौजूद है, तो यह उम्र, लिंग, रिश्तेदारी और समुदाय के भीतर व्यक्तिगत भूमिकाओं जैसे विभिन्न कारकों पर आधारित हो सकता है। इसके अलावा, रिश्तेदारी संबंध, विशेष रूप से, जनजातीय समाजों में सर्वोपरि हैं, जो सामाजिक एवं वैवाहिक संबंधों से लेकर विरासत के अधिकारों और संघर्ष समाधान तक के पहलुओं को प्रभावित करते हैं। तथा, वंश और आत्मीयता पर आधारित रिश्तेदारी प्रणाली, जनजातीय सदस्यों के बीच सामाजिक एकजुटता और आपसी समर्थन के लिए एक मजबूत ढांचा प्रदान करती है।
सांस्कृतिक मानदंड: किसी जनजाति के सांस्कृतिक मानदंड उसकी साझा मान्यताओं, मूल्यों, रीति-रिवाजों और परंपराओं की अनूठी अभिव्यक्ति हैं। वे भाषा, धर्म, रीति-रिवाजों, कला, संगीत, लोककथाओं और अन्य सांस्कृतिक प्रथाओं के माध्यम से प्रकट होते हैं।
आर्थिक संरचना: जनजातियों की अर्थव्यवस्था आमतौर पर निर्वाह-आधारित होती है, जो जीवित रहने के लिए कृषि, शिकार, संग्रहण, मछली पकड़ने या देहाती गतिविधियों पर निर्भर होती है। कुछ जनजातियों के बीच व्यापार के लिए वस्तु विनिमय प्रणाली का भी प्रचलन हैं। इन सभी विशेषताओं को मिकिर जनजाति में पाया जा सकता है। मिकिर जनजातियां असम के कई हिस्सों और सिबसागर जिले के गोलाघाट उपखंड, खासी पहाड़ियों, कामरूप, उत्तरी कछार पहाड़ियों और नौगोंग के हिस्सों में वितरित हैं। इन्हें मिकिरी, मंचाटी, अर्लेंग और कार्बी भी कहा जाता हैं। भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार, मिकिर आदिवासी समुदाय भारतीय क्षेत्र की अनुसूचित जनजाति में से एक है।
मिकिर आदिवासी समुदाय असम के विभिन्न स्थानों में रहने के अलावा, भारत के अन्य स्थानों जैसे मेघालय, नागालैंड आदि में भी पाया जाता है। मिकिर जनजाति के लोगों की त्वचा का रंग आमतौर पर पीला भूरा होता है। मिकिर जनजाति में बहुत कम लोगों का रंग गोरा होता है। मिकिर जनजाति के अधिकतम पुरुषों का कद लंबा होता है। मिकिर पुरुष एक लंबा धारीदार कोट पहनते हैं, जिसे ‘चोई’ के नाम से जाना जाता है। चोई में आम तौर पर कोई आस्तीन नहीं होती है, और यह झब्बेदार किनारों से भरी होती है, जो आदमी के शरीर के निचले हिस्से को ढकती है और उसके घुटनों तक जाती है। मिकिर जनजातियों की वेशभूषा काफी विशिष्ट होती है। मिकिर पुरुष एक छोटी धोती भी पहनते हैं, जिसे ‘रिकोंग’ के नाम से जाना जाता है। आमतौर पर ये रेशम से बने होते हैं। सिर पर वे ‘पगरी’ या ‘पोहू’ पहनते हैं। सर्दियों में ठंड से बचने के लिए मिकिर पुरुषों के लिए कपड़ों के विशेष सेट मौजूद हैं। सर्दियों में मिकिर जनजाति के लोग खुद को ‘एरी-रेशम’ के आवरण या ‘बोर-कपोर’ से लपेट लेते हैं। इसके अलावा, मिकिर महिलाएं पेटीकोट पहनती है। इसे ‘पिनी’ कहा जाता है, जिसे कमर के चारों ओर एक सुंदर सजावटी बेल्ट से बांधा जाता है, जिसे ‘वांकोक’ के नाम से जाना जाता है। उनके शरीर का ऊपरी भाग ‘जिस्सो’ से घिरा होता है। यह एक आवरण होता है, जो बांहों के नीचे से गुजरता है और सीने के ऊपर खींचा जाता है। मिकिर पुरुष और महिलाएं अपने बाल पीछे रखते हैं, जो गर्दन के पिछले हिस्से के ऊपर एक गांठ में जुड़े होते हैं।
आभूषणों को मिकिर लोगों की वेशभूषा और पहनावे का एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। आभूषण बनाने में सोने और चांदी का उपयोग किया जाता है। मिकिर महिलाएं अपने कानों में चांदी की बाली लगाती हैं। वे कानों के ऊपरी हिस्से में सोने और चांदी के कुंडल पहनते हैं। सोने और चांदी के हार, अंगूठियां, कंगन अक्सर मिकिर महिलाओं द्वारा पहने जाते हैं। विशेष रूप से त्योहारों के दौरान, हॉर्नबिल(Hornbill) पक्षी के पंख मिकिर लोगों के मस्तक को सुशोभित करते हैं। मिकिर जनजातियों के आवास भी विशिष्ट होते हैं। यह जनजाति अपने घर जमीन से कुछ फीट ऊपर बनाते हैं। इनका विशिष्ट घर छलनी और बांस से बनाया जाता है। साथ ही मिकिर घर की छत पर घास लगी हुई होती है। इसके अलावा, मिकिर समुदाय की भाषा को ‘मिकिर भाषा’ के नाम से जाना जाता है। कुछ मिकिर लोग मिकिर भाषा की एक सुंदर बोली में भी पारंगत हो जाते हैं, जिसे ‘आमरी’ के नाम से जाना जाता है। इनके अलावा, केवल कुछ मिकिर समुदाय ही असमिया भाषा बोलते हैं। मिकिर समुदाय खेती और खेती से संबंधित विभिन्न गतिविधियों में संलग्न हैं। मिकिर जनजातियों को भी धर्म के साथ-साथ आध्यात्मिक मान्यताओं की ओर रुझान मिला है। मिकिर आदिवासी समुदाय जिन लोकप्रिय धर्मों का बड़े उत्साह से पालन करता है, उनमें हिंदू, ईसाई आदि धर्म शामिल हैं। इसके अलावा, मिकिर जनजातियों ने स्वदेशी मान्यताओं और रीति-रिवाजों को भी अपनाया है।
जबकि, आज आधुनिक समाज के आगमन और वैश्वीकरण की ताकतों का दुनिया भर के आदिवासी समाजों पर गहरा प्रभाव पड़ा है। भूमि अतिक्रमण, सांस्कृतिक आत्मसात्करण, सामाजिक-आर्थिक हाशिए पर जाने और पर्यावरणीय गिरावट उन चुनौतियों में से हैं, जिनका वे सामना आज कर रहे हैं। कुछ जनजातियां इन दबावों के आगे कमजोर साबित हुईं हैं। इस कारण, उन्होंने अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान खो दीं और मुख्यधारा की जीवनशैली में परिवर्तित हो गए। जबकि, कुछ जनजातियों ने पारंपरिक और आधुनिक तरीकों का मिश्रण करते हुए, मिश्रित मॉडल अपनाए हैं। और, कुछ लोग ऐसे परिवर्तन का विरोध करना आज भी जारी रखते हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc5fks7z
https://tinyurl.com/krm32y8f
https://tinyurl.com/nba5ac3d

चित्र संदर्भ
1. मिकिर जनजाति के पारंपरिक नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. इंसानी सभ्यता के आरंभिक दिनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय आदिवासियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मिकिर जनजाति के एक पुरुष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. मिकिर महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)



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