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हमारे देश भारत में अति प्राचीन काल से ही खेलों का एक विस्तृत इतिहास रहा है। और आज भी हमारा देश भारत कई खेलों में शीर्ष पर विराजमान है। जहाँ एक तरफ देश का विश्व क्रिकेट में दबदबा कायम है वहीं शतरंज के खेल में भी भारत शीर्ष पर है। यदि हाल के वर्षों पर नजर डालें तो विश्व शतरंज में भारत अपने स्वर्णिम काल से गुजर रहा है। क्या आप जानते हैं कि दिमाग का यह खेल हमारे देश में ही विकसित हुआ है और सबसे पुराना प्राचीन भारतीय बोर्ड गेम माना जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि यह खेल भारत में वेदों के लिखे जाने के समय से ही लगभग 4000 वर्षों से खेला जाता रहा है। तो आइए आज इस लेख में शतरंज के खेल और इसकी उत्पत्ति के विषय में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही यह भी समझने का प्रयास करते हैं कि भारत को शतरंज में विश्व गुरु क्यों कहा जाता है?
शतरंज का एक लंबा और विस्तृत इतिहास रहा है। शतरंज के जिस रूप को आज हम जानते हैं, उसकी उत्पत्ति मूल रूप से 600 ईसवी से पहले गुप्त वंश के दौरान भारतीय खेल चतुरंग से हुई थी। जिसके बाद यह खेल धीरे धीरे पूरे एशिया और यूरोप में फैल गया और अंततः 16वीं शताब्दी के आसपास आधुनिक रूप में विकसित हुआ जिसे हम शतरंज के नाम से जानते हैं। शतरंज विश्व संस्कृति को दिए गए भारत के अमूल्य योगदानों में से एक है, जो राजाओं के दरबार में खेले जाने वाले खेल से लेकर गाँवों में खेले जाने वाले खेल तक और अब, यह एक पेशेवर खेल है। मूल रूप से शतरंज के मोहरों को युद्ध में सेना की तरह चतुरंग में व्यवस्थित किया गया था: पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी और रथ। चतुरंग खेलने का उद्देश्य मनोरंजन के साथ साथ युवा राजकुमारों को सैन्य रणनीति सिखाना भी था। पौराणिक कहानियों में शिव-पार्वती एवं राधा-कृष्ण को चतुरंग खेल का आनंद लेते हुए दिखाया गया है। इस खेल का उल्लेख भारत के भक्ति साहित्य में भी मिलता है। मध्यकाल में मुगल सम्राट अकबर ने फ़तेहपुर सीकरी किले के बाहरी हिस्से में पचीसी बोर्ड कराया था। यह खेल भारत से फारस तक पहुँचा जहां से अरबों की माध्यम से यह इस्लामी दुनिया में पहुँच गया। जिसके बाद यह खेल अरबी में 'शतरंज' बन गया। 800 ईसवी के आसपास यह यूरोप में फैल गया और रूस (Russia) सहित पूरे यूरोप में लोकप्रिय हो गया। 1300 ईसवी में इस खेल का उल्लेख कहानियों में किया जाने लगा। कुलीन वर्ग द्वारा संरक्षित इस खेल को ''शाही खेल'' कहा जाता था। शतरंज के मोहरों को दुनिया भर में घूमते हुए अलग-अलग नाम प्राप्त हुए। यह खेल रेशम मार्ग और बौद्ध तीर्थयात्रियों के माध्यम से सुदूर पूर्व तक पहुंच गया। 15वीं शताब्दी में चालों में बदलाव के साथ मूल इंडो-अरबी खेल कुछ मायनों में बदल गया और यही वह समय है जब इसका आधुनिक संस्करण विकसित हुआ।
रुय लोपेज़ (Ruy Lopez) नामक एक स्पेनिश पुजारी को इस खेल के पहले उस्तादों में से एक माना जाता है। उन्होंने 1561 में प्रकाशित अपनी एक पुस्तक में इसका विश्लेषण किया था। आज यह खेल भारत में अपने शुरुआती स्वरूप से काफी बदल गया है। आज हम इसके जिस रूप को देखते हैं, वह 16वीं शताब्दी तक ज्ञात नहीं था। 19वीं शताब्दी तक इसके लिए कोई समयसीमा भी निर्धारित नहीं थी।
18वीं सदी के मध्य तक शतरंज बहुत कम लोकप्रिय था। 1749 में, फ्रांसीसी मास्टर फ्रेंकोइस-आंद्रे फिलिडोर (Francois-Andre Philidor) ने ‘एनालाइज़ डु ज्यू डेस एचेक्स’ (Analyse du jeu des Échecs) नामक अपनी पुस्तक के प्रसिद्ध कथन कि "प्यादे शतरंज की आत्मा हैं" के साथ शतरंज को दुनिया के सामने पेश किया और इसे लोकप्रिय बना दिया। 19वीं सदी के मध्य में शतरंज के नियमों का मानकीकरण किया गया।1850 के दशक से पहले, शतरंज के सेट भिन्न भिन्न प्रकार के होते थे। 1849 में, लंदन के खेल और खिलौनों के निर्माता जैक्स (Jaques of London) ने नाथनियल कुक (Nathaniel Cooke) द्वारा निर्मित प्यादों की एक नई शैली पेश की। अपने समय के सबसे मजबूत खिलाड़ी हावर्ड स्टॉन्टन (Howard Staunton) ने भी इनका समर्थन किया। बाद में यह शैली स्टॉन्टन पैटर्न (Staunton pattern) के नाम से लोकप्रिय हो गई और दुनिया भर के टर्नामेंटों और क्लबों में इसका उपयोग किया जाने लगा। स्टॉन्टन मोहरे आज भी टूर्नामेंट शतरंज सेट के लिए मानक माने जाते हैं। 19वीं शताब्दी में प्रतिस्पर्धी खेल में शतरंज में समय सीमा की शुरूआत भी हुई। इससे पहले यह खेल 14 घंटे तक चल सकता था। शतरंज सेटों के मानकीकरण और शतरंज घड़ियों की शुरूआत के साथ, आधुनिक मैचों और टूर्नामेंटों के लिए आवश्यक उपकरण स्थापित किए गए। शतरंज के इसी चरण के दौरान अमेरिकी खिलाड़ी पॉल मोर्फी (Paul Morphy) ने इस खेल में प्रवेश किया। मॉर्फी ने यूरोप के अपने दौरे के दौरान, हावर्ड स्टॉन्टन को छोड़कर दुनिया के हर प्रमुख खिलाड़ी को बुरी तरह हराया। 1858 में, प्रसिद्ध "ओपेरा हाउस" (Opera House) खेल में मॉर्फी बनाम 'ड्यूक ऑफ ब्रंसविक' और एक फ्रेंच काउंट (Duke of Brunswick and a French Count) के गठबंधन द्वारा खेले गए खेल को सभी समय के सर्वश्रेष्ठ खेलों में से एक माना जाता है। इसके बाद आगमन होता है विल्हेम स्टीनिट्ज़ (Wilhelm Steinitz) का, जिन्होंने मॉर्फ़ी के आक्रामक खेल का तिरस्कार किया। पोजिशनल खेल में स्टीनिट्ज़ का कोई सानी नहीं था और अपने इसी तरह के खेल के कारण वह 1886 में पहले आधिकारिक विश्व चैंपियन बने। खेल के बारे में स्टीनिट्ज़ के सिद्धांतों को आज भी व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। पोसिशनल (Positional) शतरंज, जैसा कि स्टीनिट्ज़ और लास्कर ने प्रदर्शित किया, अब अधिक से अधिक लोकप्रिय हो गया है। आधुनिक टूर्नामेंट खेल 19वीं सदी के उत्तरार्ध में शुरू हुए। और तब से यह एक वैश्विक खेल बन गया है, जिसका पहला अंतर्राष्ट्रीय टूर्नामेंट 1851 में आयोजित हुआ था। पहली विश्व शतरंज चैम्पियनशिप वर्ष 1886 में आयोजित की गई थी। 20वीं शताब्दी के दौरान, विश्व शतरंज महासंघ की स्थापना की गई थी। आज, 1500 से अधिक वर्षों के बाद, यह 172 देशों में खेला जाता है।
विश्व को शतरंज की अपनी देन के साथ भारत इस खेल में सदैव दिग्गज रहा है। ‘अखिल भारतीय शतरंज महासंघ’ (All India Chess Federation (AICF) के अनुसार, भारतीय शतरंज "स्वर्ण युग" में प्रवेश कर चुका है और दो साल के भीतर देश में सौ से अधिक खेल के ग्रैंडमास्टर होंगे।“ वर्षों तक, पांच बार के विश्व चैंपियन रहे विश्वनाथन आनंद को कौन नहीं जानता। हालाँकि, पिछले दशक में आर. प्रग्गनानंद, डी. गुकेश और अर्जुन एरिगैसी जैसे युवाओं ने भी अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में तेजी से प्रगति की है। जुलाई 2023 में 83वें ग्रैंडमास्टर - आदित्य सामंत - के साथ ही शीघ्र ही यह संख्या भारत में 100 तक पहुंचने वाली है। इसके अलावा युवा जीएम प्रगनानंद ने देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया जब उन्होंने FIDE विश्व कप में दुनिया के नंबर दो खिलाड़ी हिकारू नाकामुरा (Hikaru Nakamura) और नंबर तीन खिलाड़ी फैबियानो कारुना (Fabiano Caruna) को हराकर रजत पदक प्राप्त किया। वह फाइनल में खेलने वाले दुनिया के सबसे कम उम्र के खिलाड़ी और कैंडिडेट्स टूर्नामेंट (Candidates Tournament) के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले तीसरे सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए। यह पहली बार था जब चार भारतीयों - प्रगनानंद, गुकेश, एरिगैसी और विदित गुजराती ने टूर्नामेंट के क्वार्टर फाइनल में प्रवेश किया। वर्ष 2022 में, भारत ने ओलंपियाड की सफलतापूर्वक मेजबानी की थी और पुरुष और महिला दोनों वर्गों में कांस्य पदक जीता था। अखिल भारतीय शतरंज संघ द्वारा शतरंज को और बढ़ावा देने के लिए देश के प्रत्येक कोने में शिविर और कैंप आयोजित किए जा रहे हैं। इसके अलावा संघ द्वारा 'महासंघ इंडियन शतरंज लीग' के आयोजन पर भी कार्य किया जा रहा है।
संदर्भ
https://shorturl.at/rvCEV
https://shorturl.at/jCEH3
https://shorturl.at/ioVY4
चित्र संदर्भ
1. रमेशबाबू प्रज्ञाननंद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. श्री कृष्ण और राधा 8×8 अष्टपद पर चतुरंग खेल रहे हैं! को संदर्भित करता एक चित्रण (needpix)
3. शतरंज के पासों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. शतरंज खेलते लोगों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. विश्व शतरंज चैम्पियनशिप को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. रमेशबाबू प्रज्ञाननंद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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