जीवाणुओं को पहली बार डच वैज्ञानिक एण्टनी वाँन ल्यूवोनहूक ने अपने एकल लेंस सूक्ष्मदर्शी यंत्र से देखा लेकिन उन्होंने इसे सिर्फ किसी प्रकार का जंतुक समझा था। 18वीं शताब्दी में लुइ पाश्चर एवं कोख (जीवाणुअध्ययन क्षेत्र के युगपुरुष) इन वैज्ञानिकों के मुताबिक जीवाणु रोग फैलाते हैं यह अनुमान निकला गया, जैसे टीबी, त्वचारोग आदि लेकिन बैक्टिरियोलोजी (Bacteriology), जीवाणुओं की अध्ययन शाखा के अनुसार सभी जीवाणु रोगकारक नहीं होते इस अनुमान को पुष्टि मिली। रोगकारक जीवाणुओं के लिए प्रतिजैविक का प्रथम आविष्कार पॉल एह्रलीच ने सिफिलिस (syphilis) रोग की चिकित्सा के लिए किया था जिसके लिए उन्हें नोबेल पुरस्कार भी मिला।
जैसा कि हमने ऊपर बताया कि जीवाणु सिर्फ रोग कारक नहीं होते बल्कि वे सहाय्यकारक भी होते हैं। किण्वन प्रक्रिया से ऐसे बहुत से जीवाणु हैं जिनके बिना मनुष्य का शरीर ठीक से काम ही नहीं कर पायेगा। मनुष्य शरीर में मानव कोशिकाओं के मुकाबले 30% ज्यादा जीवाणु कोष होते हैं जो ज्यादातर त्वचा एवं आहार-नाल में पायें जाते हैं। इ. कोलाय (E. Coli) यह आहार-नाल में पाए जाने वाला जीवाणु ‘विटामिन के’ (Vitamin K) का एकमात्र स्त्रोत है जो मनुष्य को और कहीं से नहीं मिलता। ‘विटामिन के’ पाचन में मदद करने के साथ-साथ चोट लगने से होने वाले रक्तस्राव को रोकने में भी मदद करता है।
ज्यादा मात्रा में जीवाणु बढ़ने से ये रोगकारक तो होते हैं लेकिन इनके वजह से होने वाले रोगों के विविध लक्षण के जरिये रोग सूचक का भी काम करते हैं। इस बात से साफ़ जाहिर है कि जीवाणु रोगकारक भी हैं और रोग से मुक्त करने वाले भी।
1. रिफ्रेशर कोर्स इन बॉटनी: सी एल सॉवह्ने
2. जीवजगत का वर्गीकरण, एनसीईआरटी https://biologyaipmt.files.wordpress.com/2016/06/ch-23.pdf
3. जनरल साइंस: डॉ. लाल एंड जैन
4. https://hi.wikipedia.org/wiki/जीवाणु
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