City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2427 | 163 | 2590 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
एक किसी भी विशिष्ट महाराष्ट्रीयन मराठी घराने में, ‘शिवाजी’ नाम, “राजा” शब्द का ही एक पर्याय है। दरअसल, यह संदर्भ छत्रपति शिवाजी महाराज से लिया जाता है। वह साहस, चरित्र, नेतृत्व, प्रबंधन तथा मराठा-साम्राज्य के निर्माण का जीवंत प्रतीक है, जिन्होंने बाद में हिंदू राष्ट्र के मानचित्र के 75% हिस्से पर कब्जा कर लिया था। उनकी कहानियां, उनके किस्से, उनका इतिहास, उनकी साहस-लोककथाएं, बहादुरी की कविताएं महाराष्ट्र के इतिहास और संस्कृति में कसकर बुनी गई हैं।
जबकि, हमारे देश के अन्य क्षेत्रों के अपने राज्य तथा राजपूत, राजा, बादशाह, नवाब, सुल्तान आदि शासक थे, महाराष्ट्र और दक्कन के पठार के पास, छत्रपति शिवाजी महाराज एक हिंदू नेता तथा लोगों के सच्चे राजा थे। ऐसे वीर राजा को याद करने एवं उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु, आज 19 फरवरी को उनकी जयंती मनाई जाती है।
शिवाजी महाराज अपनी उत्कृष्ट सैन्य और ‘गनिमी कावा’ यानी गुरिल्ला युद्ध पद्धति के लिए जाने जाते हैं। उन्हें अक्सर ही, महाराष्ट्र के गौरव के रूप में उद्धृत किया जाता है। जबकि, हमारे शहर रामपुर के करीब स्थित, आगरा का किला मुगल और मराठा साम्राज्य के इतिहास में विशेष महत्व रखता है। तो आइए आज, शिवाजी जयंती पर उस घटना के बारे में जानते हैं, जब शिवाजी महाराज 1666 में औरंगजेब के निमंत्रण पर आगरा आए थे।
शिवाजी एक वीर एवं कुशल राजा थे। उन्होंने बीजापुर राज्य द्वारा लड़ी गई, कई सफल लड़ाइयों के प्रतिष्ठित सेनापति– अफ़ज़ल खान को मार डाला था; मुगल बादशाह औरंगजेब द्वारा भेजे गए, एक प्रसिद्ध सेनापति व गवर्नर शाइस्ता खान को हराया था; और, औरंगजेब की हिरासत से भागकर उसे अपमानित किया था। स्वयं औरंगजेब ने एक बार कहा था कि, “मेरी सेनाएं उन्नीस वर्षों से उसके विरुद्ध कार्यरत हैं, और फिर भी शिवाजी का राज्य हमेशा बढ़ता रहा है।” इस कथन से आप शिवाजी महाराज की वीरता का पता लगा सकते हैं।
औरंगजेब शिवाजी की बढ़ती शक्ति और अफ़ज़ल खान पर उनकी जीत से बहुत चिंतित था। वह साम्राज्यवादी था, और अपनी सत्ता पर आने वाली कोई भी चुनौती बर्दाश्त नहीं कर सकता था। इसके अलावा, वह एक कट्टर सुन्नी था और दूसरी ओर शिवाजी हिंदू धर्म की रक्षा करना चाहते थे, और अपनी शक्ति बढ़ाना चाहते थे।
शिवाजी साम्राज्यों पर कब्ज़ा करके ‘स्वराज्य’ स्थापन करने की होड़ में थे, और उन्होंने भारत के अधिकांश हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था। दूसरी ओर, इससे मुगलों को खतरा हो गया था, क्योंकि शिवाजी महाराज अजेय साबित हो रहे थे। अतः औरंगजेब उन्हें हराने और पकड़ने के लिए लगातार तरीके ईजाद कर रहे थे। ऐसे ही, एक बार वर्ष 1666 में, शिवाजी को सम्राट औरंगजेब से एक पत्र मिला, जिसमें उन्हें आगरा के शाही दरबार में आने के लिए आमंत्रित किया गया था। शिवाजी को सम्राट के इरादों के बारे में अंदाज़ा था, लेकिन, उन्होंने निमंत्रण स्वीकार कर लिया। क्योंकि, वह नहीं चाहते थे कि, यह प्रकट हो कि, वह औरंगजेब से डरते थे।
12 मई को औरंगजेब के 50वें जन्मदिन पर शिवाजी अपने बड़े बेटे छत्रपति संभाजी और कुछ सैनिकों की एक छोटी टुकड़ी के साथ आगरा पहुंचे। जैसे ही, शिवाजी महाराज ने सभा कक्ष में प्रवेश किया, उन्होंने औरंगजेब के सामने अपनी पेशकश रखी। तब सम्राट ने उनसे स्वागत का एक शब्द भी नहीं कहा। बाद में, शिवाजी को कक्ष के पीछे ले जाया गया। तब तक, यह स्पष्ट हो गया था कि, यह एक जाल था और शिवाजी और उनके पुत्र बंदी थे।
वे कई महीनों तक औरंगजेब की कैद में रहे। औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य की उत्तर-पश्चिमी सीमा को मजबूत करने के लिए, शिवाजी को कंधार(अफगानिस्तान) भेजने की योजना बनाई और उसी समय शिवाजी महाराज ने आगरा से भाग जाने की योजना बनाई।
कैद में रहते हुए, शिवाजी ने अपने समय का उपयोग विभिन्न प्रकार की जानकारी इकट्ठा करने में किया। उन्होंने डाक प्रबंधक और औरंगजेब सम्राट के कुछ अधीनस्थों से मित्रता की, और राज्य के चारों ओर होने वाली घटनाओं के बारे में जानकारी एकत्र की।
फिर, शिवाजी ने बीमारी का बहाना बनाया और सम्राट से अनुरोध किया कि, उनके लोगों को रिहा कर दिया जाए, ताकि, वे घर वापस जा सकें। औरंगजेब ने यह इच्छा पूरी की। तब शिवाजी के लोग आगरा के आस पास के कुछ शहरों में वेश बदलकर गए और वहां बस गए। इसके बाद शिवाजी महाराज, अपनी योजना को अंजाम देने के लिए तैयार थे।
जब औरंगजेब उत्तर पश्चिम में विद्रोह को दबाने की व्यवस्था करने में व्यस्त था, तब, शिवाजी ने मौके का फायदा उठाया। शिवाजी, उनसे मिलने आए, पंडित कविंद्र परमानंद के सम्मान में एक समारोह आयोजित किया। यह घोषणा करने के बाद, उन्होंने पंडित बनने का फैसला किया है, उन्होंने अपने हाथी और घोड़े भी सम्राट को दे दिये। फिर शिवाजी ने पंडित का वेश धारण कर लिया। जबकि, उनके करीबी सहयोगी, निराजी रावजी ने शिवाजी के रूप में वेश धारण किया। इस प्रकार, वे अन्य पंडितों के साथ घुलमिल गए, और फिर आगरा से भाग गए। यह औरंगजेब की एक बड़ी हार थी।
हालांकि, इस घटना के कारण, पहले ‘मुगल संग्रहालय’ के नाम से जाना जाने वाला आगरा का संग्रहालय, अब ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ संग्रहालय बन गया है। इस संग्रहालय की घोषणा 2015 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने की थी, और, इसका निर्माण 2017 में शुरू हुआ। हालांकि, यह आज भी निर्माणाधीन है। सितंबर 2020 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री– योगी आदित्यनाथ ने, मुगल संग्रहालय का नाम बदलकर मराठा राजा शिवाजी के नाम पर रखा था। हम, इस संग्रहालय की अगले वर्ष आने वाली शिवाजी महाराज जयंती पर पूर्ण होने की उम्मीद कर सकते हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/365szxn9
http://tinyurl.com/yc66amc6
http://tinyurl.com/5dnr64sp
http://tinyurl.com/3739jyaz
चित्र संदर्भ
1. लाल क़िले के पास घोड़े पर बैठे छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. योद्धाओं में उत्साह भरते छत्रपति शिवाजी महाराज को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. भागने की कोशिश करते हुए शाइस्ताखां को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
4. औरंगजेब और शिवाजी महाराज की भेंट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. ‘छत्रपति शिवाजी महाराज’ संग्रहालय को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.