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हवाई यात्रा को परिवहन के सबसे सुरक्षित और तेज़ साधनों में से एक माना जाता है, लेकिन हवाई उड़ानों में अत्यधिक वृद्धि के कारण आज हमारे और हमारी जलवायु के लिए प्रदूषण का खतरा उत्पन्न हो गया है। प्रदूषण के लिए उत्तरदायी ग्रीन हाउस गैसों के उत्पादन में विमानन क्षेत्र का अत्यधिक योगदान है। आइए वैश्विक स्तर पर प्रदूषण को बढ़ाने में विमानन क्षेत्र की भूमिका और इससे निपटने की दिशा में भारत द्वारा उठाए गए कदमों के विषय में जानें।
कुल वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में सालाना लगभग 2% योगदान के साथ विमानन उद्योग बढ़ते प्रदूषण के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारकों में से एक है। विशेषज्ञों का मानना है कि एक लंबी दूरी की उड़ान जितना कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर सकती है उतना कई लोग पूरे वर्ष में उत्सर्जित करते हैं। विमानों के इंजन में जीवाश्म ईंधन(fossil fuel) के दहन से हानिकारक गैसें, शोर और प्रदूषक कण उत्पन्न होते हैं, जिसके कारण स्थानीय वायु गुणवत्ता पर दुष्प्रभाव पड़ता है। जेट विमान सबसे प्रमुख ग्रीन हाउस गैस मानी जाने वाली कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon dioxide (CO2) के साथ, नाइट्रोजन ऑक्साइड (Nitrogen oxides), वाष्प पुंज और अन्य कणों का उत्सर्जन करके जलवायु परिवर्तन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिनका अकेले कार्बन डाइऑक्साइड का विकिरण बल 1.3 से 1.4 के बीच होने का अनुमान है। आंकड़ों के अनुसार 2018 में, वैश्विक वाणिज्यिक परिचालन द्वारा कुल 2.4% ऑक्साइड का उत्सर्जन किया गया। यद्यपि 1967 से 2007 के बीच जेट विमानों की ईंधन कुशलता 70% तक सुधर गई है, और 2018 में प्रति राजस्व टन-किलोमीटर (per revenue ton-kilometer (RTK) कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 1990 के मुकाबले केवल 47% ही बढ़कर औसतन 88 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति यात्री प्रति किलोमीटर हो गया है, लेकिन हवाई यात्रा की मात्रा बढ़ने के कारण कुल उत्सर्जन में वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार 2020 तक, बढ़ती मांग के चलते विमानन उत्सर्जन 2005 की तुलना में 70% अधिक था और 2050 तक इसके 300% तक बढ़ने की आशंका है।
विमानों के इंजन से उत्पन्न होने वाली ध्वनि इतनी तीव्र होती है कि इससे रात के समय लोगों की नींद बाधित हो जाती है, पढ़ने वाले बच्चों की शिक्षा में विघ्न पड़ता है और हृदय के स्वास्थ्य से संबंधित जोखिम बढ़ जाते हैं। इसके अलावा हवाई अड्डों पर जेट ईंधन और रसायनों के व्यापक प्रबंधन के कारण जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। और यदि इसकी रोकथाम शीघ्र ही नहीं की जाती है तो इससे आसपास के जल निकाय भी दूषित हो जाते हैं। विमानन गतिविधियों के कारण ओजोन (ozone)और अति सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन होता है, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक खतरनाक होते हैं। सामान्य विमानन में उपयोग किए जाने वाले पिस्टन इंजन में एवगैस (Avgas) के दहन से जहरीला सीसा निकलता है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यधिक हानिकारक होता है।
हालांकि विमानों द्वारा उत्पन्न प्रदूषण के प्रभावों को कम करने के लिए, विमानों में बेहतर ईंधन अर्थव्यवस्था द्वारा विमानन के कार्बन पदचिह्न (footprints) को कम किया जा सकता है, या हवाई यातायात नियंत्रण और उड़ान मार्गों को जलवायु पर प्रभावों को कम करने के लिए अनुकूलित किया जा सकता है। इसके साथ ही विमानन में जैव ईंधन के कम उपयोग से कार्बन उत्सर्जन को कम किया जा सकता है। इसके अलावा छोटी दूरी की उड़ानों की कटौती से विमानन उपयोग को कम किया जा सकता है। केवल जैव ईंधन से चलने वाले विमानों के स्थान पर हाइब्रिड विद्युतीय विमान और हाइड्रोजन से चलने वाले विमानों के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सकता है। इन सभी उपायों को क्रियान्वित करने के लिए 2021 से ही,अंतर्राष्ट्रीय वायु परिवहन संघ (International Air Transport Association (IATA) द्वारा 2050 तक शुद्ध-शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य के साथ, जो कि ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) को सीमित करने के पेरिस समझौते (Paris Agreement) के उद्देश्य के अनुरूप है, कई योजनाएं बनाई जा रही है।
हमारे देश भारत में भी विमानों द्वारा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए ईंधन दक्षता (fuel efficiency) में सुधार योजनाओं पर कार्य किया जा रहा है। ‘भारतीय प्रबंधन संस्थान’ (Indian Institute of Management (IIM), लखनऊ और ‘लिवरपूल विश्वविद्यालय’ (University of Liverpool) द्वारा किये गए एक साझा अध्ययन में पाया गया है कि हवाई अड्डों और विमान कंपनियों द्वारा राजस्व साझा करने से उन्हें पर्यावरण-अनुकूल बनने में मदद मिल सकती है और विमानन क्षेत्र के विकास को स्थायी रूप से बढ़ावा मिल सकता है। IIM लखनऊ के नेतृत्व में किया गया एक अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि कैसे विमानन कंपनियां और हवाई अड्डे विभिन्न समझौतों के माध्यम से सहयोगात्मक रूप से सतत विकास हासिल कर सकते हैं।अध्ययन में यह भी बताया गया है कि ईंधन-कुशल विमानों (fuel efficient aircraft) के उपयोग को बढ़ाकर ईंधन की खपत को कम किया जा सकता है, उड़ान मार्गों को अनुकूलित करके लैंडिंग अनुमति में देरी के दौरान अनावश्यक ईंधन जलने को कम करने के लिए प्रक्रियाओं को लागू किया जा सकता है और परिचालन प्रथाओं को लागू करके टैक्सी के समय को कम करके सड़क परिवहन से उत्पन्न होने वाले प्रदूषण को रोका जा सकता है। यह अध्ययन हवाई अड्डों और विमान कंपनियों के समन्वय में पारस्परिकता, निष्पक्षता और यात्रियों की पर्यावरण जागरूकता की भूमिकाओं पर प्रकाश डालता है। अध्ययन के अनुसार, विमानन उद्योग में, एक विमान कंपनी का प्रदर्शन हवाई अड्डे की मांग को निर्धारित करता है, जबकि हवाई अड्डे विमान कंपनियों को आवश्यक बुनियादी ढांचा प्रदान करने का कार्य करते हैं। अतः इस अंतर-निर्भरता को अच्छी तरह से समन्वित करने पर महत्वपूर्ण आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक विकास संभव है।
अध्ययन में बताया गया है कि सतत विकास को बढ़ावा देने के लिए सरकार भी विभिन्न प्रकार के करों का उपयोग पर्यावरण को स्वच्छ बनाने में कर सकती है। हवाई अड्डे दो स्रोतों से राजस्व उत्पन्न करते हैं - वैमानिक गतिविधियाँ और वाणिज्यिक गतिविधियाँ। वैमानिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाला राजस्व उड़ान आवृत्ति और यात्री यातायात के आनुपातिक होता है, जबकि वाणिज्यिक गतिविधियों से उत्पन्न होने वाला राजस्व केवल यात्री यातायात पर निर्भर करता है। इसलिए, हवाई यातायात बढ़ने से हवाई अड्डे के व्यवसाय में दो गुना वृद्धि होती है, क्योंकि दोनों ही स्रोतों से इसका राजस्व बढ़ता है। हालांकि, बढ़ती मांग के बावजूद, विमान कंपनियां बढ़ती लागत और बाजार प्रतिस्पर्धा के साथ अपने लाभ मार्जिन को बनाए रखने के लिए संघर्ष करती हैं। इसके अलावा विमान कंपनियों को उत्सर्जन को कम करने के लिए ईंधन कुशल और हरित प्रौद्योगिकी से युक्त विमानों में निवेश करना पड़ता है। इस प्रकार के निवेशों से विमानन कंपनियों की लागत संरचना पर बोझ पड़ता है, जिससे उनके लाभ पर असर पड़ता है। अध्ययन में नॉर्वे (Norway ) का उदाहरण देते हुए बताया गया है कि ओस्लो हवाई अड्डे (Oslo Airport ) और इसकी संबंधित विमान कंपनियों के बीच समझौते द्वारा विमानन क्षेत्र में जैव ईंधन के उपयोग को बढ़ाने में मदद मिली है, और इस तरह उत्सर्जन स्तर को कम किया गया है। इसी प्रकार 2006 से, फ्लोरिडा (Florida) में टाम्पा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (Tampa International Airport) अपने शुद्ध राजस्व का 20 प्रतिशत विमान कंपनियों के साथ साझा करता है जिसका उपयोग विमान कंपनी द्वारा हरित निवेश के लिए किया जाता है। अब भारत में भी इस तरह के समझौतों की उम्मीद की जा रही है क्योंकि अधिक से अधिक निजी हवाई अड्डे बनाए जा रहे हैं।
संदर्भ
https://shorturl.at/luSVY
https://shorturl.at/euxR6
https://shorturl.at/alyXY
चित्र संदर्भ
1. आसमान में उड़ते एकलौते विमान को संदर्भित करता एक चित्रण (Wallpaper Flare)
2. कलाबाजियां करते विमान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. विमानन के CO2 उत्सर्जन अंश (%)को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. विमानन ईंधन उपयोग के वैश्विक वितरण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. हवा में उड़ते वाणिज्यिक विमान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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