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गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामायण “रामचरितमानस” को महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित मूल रामायण का पुनर्कथन माना जाता है। इसे भारतीय संत कवि “गोस्वामी तुलसीदास” द्वारा 16वीं शताब्दी ईस्वी में लिखा गया था। क्या आप जानते हैं कि जहां मूल रूप से "रामचरितमानस' और 'हनुमान चालीसा' की रचना की गई थी, वह स्थान अभी भी मौजूद है। लेकिन इस स्थान के बारे में जानने से पहले हम गोस्वामी तुलसीदास और उनके द्वारा रचित रामचरितमानस की कुछ अद्वितीय विशेषताओं के बारे में जानते हैं।
गोस्वामी तुलसीदास एक मध्यकालीन संत कवि थे, जिन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा लिखित रामायण को “संस्कृत से अवधी” में रूपांतरित किया। हालांकि उन्होंने यह रूपांतरण हुबहू नहीं किया। रामायण को मूल रूप से महर्षि वाल्मीकि द्वारा संस्कृत में लिखा गया था। इसमें प्रभु श्री राम के जीवन दर्शन का वर्णन किया गया है, जो महर्षि वाल्मीकि के समकालीन ही थे। दूसरी ओर, रामचरितमानस को गोस्वामी तुलसीदास द्वारा बहुत बाद में (15वीं या 16वीं शताब्दी ई. में) मूल रामायण के पुनर्कथन के रूप में अवधी भाषा में लिखा गया था। "रामायण" का शाब्दिक अनुवाद "राम की यात्रा" होता है, जबकि "रामचरितमानस" का अर्थ ""राम के कर्मों की झील"" होता है। मूल रामायण को “संस्कृत के श्लोकों” में लिखा गया है, जबकि रामचरितमानस को 'चौपाई' (चौपाई छंद) में लिखा गया है।
दोनों पुस्तकें सात भागों में विभाजित हैं, जिन्हें 'काण्ड' के नाम से जाना जाता है। जिसमे सात में से छह भागों का नाम एक ही है। अंतिम कांड को रामायण में 'युद्ध कांड' और रामचरितमानस में 'लंका कांड' के नाम से जाना जाता है।
इन भिन्नताओं के अलावा रामचरितमानस और महर्षि वाल्मीकि रचित रामायण की कहानी में भी कुछ मूलभूत अंतर हैं:
1. रामचरितमानस के अनुसार राजा दशरथ की 3 पत्नियाँ थीं, जबकि मूल रामायण के अनुसार उनकी 350 पत्नियाँ थीं, जिनमें से 3 उनकी प्रमुख पत्नियाँ थीं।
2. रामायण में हनुमान जी को 'वानर' नामक जनजाति से संबंधित एक मानव के रूप में वर्णित किया गया है। वहीँ रामचरितमानस में हनुमान जी को एक बंदर के रूप में वर्णित किया गया है। 'वानर' का उपयोग उनकी बंदरों की प्रजाति को संदर्भित करने के लिए किया जाता है।
3. रामायण में रावण को मारने और लंका पर विजय हासिल करने के बाद भगवान राम, माता सीता से अग्नि परीक्षा देकर दुनिया के सामने अपनी पवित्रता साबित करने के लिए कहते हैं। हालाँकि, उन्होंने स्वयं माता सीता की पवित्रता पर कभी संदेह नहीं किया था। वहीँ रामचरितमानस के अनुसार, रावण वास्तविक सीता के बजाय भ्रम से बनाई गई सीता की प्रति का अपहरण कर लेता है। क्योंकि भगवान राम को इसका पूर्वानुमान था और वह असली माता सीता को अग्नि देव के पास भेज देते हैं, और अग्नि परीक्षा वास्तव में माता सीता को अग्नि देव से वापस मांगने के लिए आयोजित की जाती है।
4. मूल रामायण में रावण दो बार युद्ध के मैदान में उतरता है। जबकि रामचरितमानस के अनुसार वह केवल अंत में एक ही बार आता है।
5. मूल रामायण की कहानी में लक्ष्मण और माता सीता की मृत्यु से दुखी होने के बाद भगवान राम के पानी में स्व-समाधि से अपने नश्वर अवतार को समाप्त करने के साथ समाप्त होती है। दूसरी ओर, रामचरितमानस में सीता के निर्वासन या लक्ष्मण की मृत्यु का कोई भी उल्लेख नहीं मिलता है। रामचरितमानस राम और सीता के जुड़वां बच्चों लव और कुश के जन्म के साथ समाप्त होती है।
हालाँकि श्री रामचरितमानस को मुख्य रूप से अवधी भाषा में लिखा गया है, लेकिन इसमें संस्कृत में श्लोकों और प्रार्थनाओं की कोई कमी नहीं है। कई स्थानों पर गोस्वामी तुलसीदास अवधी से संस्कृत और संस्कृत से अवधी में वापस आते हैं। यह हिंदी और संस्कृत के बीच एक जैविक निरंतरता को दर्शाता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि गोस्वामी तुलसीदास श्री रामचरितमानस को संस्कृत में लिख सकते थे, लेकिन इसे अवधी में लिखकर उन्होंने रामायण, वेद, भगवद गीता और उपनिषदों में निहित हिंदू धर्मग्रंथों के बहुमूल्य ज्ञान को आम जनता के लिए उपलब्ध कराया है।
भारत में एक ब्रिटिश पर्यवेक्षक और विद्वान, सर जी.ए. ग्रियर्सन (Sir G.A. Grierson) ने लगभग एक शताब्दी पहले भारत में भाषाई सर्वेक्षण (linguistic survey) में गोस्वामी तुलसीदास के बारे में कुछ ऐसा लिखा था: “वह बनारस में विनम्रतापूर्वक रहते थे, प्रसिद्धि के मंदिर में अपने स्थान पर अकेले रहते थे। तब भी उनके शिष्य बहुतायत में थे, और आज वे लाखों में हैं। सदियों के परिप्रेक्ष्य में पीछे मुड़कर देखने पर हम उनकी महान छवि को हिंदुस्तान के मार्गदर्शक और उद्धारकर्ता के रूप में अपनी शुद्ध रोशनी में खड़ा देखते हैं। उनका प्रभाव कभी ख़त्म नहीं हुआ, बल्कि बढ़ता ही गया है।”
गोस्वामी तुलसीदास को उत्तर भारत में रामायण को लोकप्रिय बनाने का श्रेय दिया जाता है। वह जिस आश्रम में रहते थे वह आज भी मौजूद है और काफी साधारण है, जहां केवल कुछ ही भक्त पूजा-अर्चना करते हैं। तुलसीदासजी लगभग 400 साल पहले इसी आश्रम में रहते थे। हालाँकि उनके कई निवास स्थल थे, लेकिन यहां वह सबसे लंबे समय तक रहे थे। तुलसीदास ने रामचरितमानस के अंतिम चार कांड (सर्ग) यहीं पर लिखे थे। उनका अधिकांश दिन राम का नाम जपने में व्यतीत होता था। विशंभर नाथ मिश्र जी, जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग (Electronics Engineering) के प्रोफेसर भी हैं, के अनुसार, वह तुलसीदास ही थे जिन्होंने उत्तर भारत में हनुमान जी की पूजा को लोकप्रिय बनाया और बनारस में संकटमोचन मंदिर की स्थापना की।
संदर्भ
http://tinyurl.com/m2h6h6wt
http://tinyurl.com/mty5sz82
http://tinyurl.com/5n6theu8
चित्र संदर्भ
1. तुलसीदास और रामचरितमानस को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon,
Store norske leksikon)
2. गोस्वामी तुलसीदास की छवि को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस को संदर्भित करता एक चित्रण (amazon)
4. श्री राम अपने पैर से पत्थर को छूते हैं, जो अहिल्या में परिवर्तित हो जाता है, को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. जानकी मंदिर ऐतिहासिक संग्रहालय (जनकपुर) में गोस्वामी तुलसीदास की मूर्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गोस्वामी तुलसीदास के जन्मस्थान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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