कोरोना का प्रकोप अभी गया नहीं है और विश्व भर में इसकी बढ़ती लेहेर को देखते हुए
समय समय पर सरकारें लोगों की सुरक्षा के लिए तालाबंदी का निर्णय ले रही है। बीच-बीच
में शहरी व्यापार केंद्र और उपनगरीय मॉल (suburban shopping mall) लंबे समय के लिए
बंद पड़े हैं जिस कारण जीवंतता से भरे यह शहर विराने पड़ गए हैं। आधुनिक शहरों को
इतने लंबे समय तक बंद नहीं रखा जा सकता है। आर्थिक लागत का हमारे समाज और
हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर विशेष प्रभाव ही नहीं पड़ता वरन् यह बहुत विनाशकारी होता है।
कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन (lockdown) का पहला प्रभाव हमारे परिवहन क्षेत्र पर पड़ा
है। मूविट (Moovit) (परिवहन सुविधा प्रदाता ऐप (app), जिसके 750 मिलियन से अधिक
उपयोगकर्ता, प्रमुखत: संयुक्त राज्य अमेरिका (United States) और यूरोपीय (European)
शहरों से हैं, के अनुसार पिछले वर्ष 15 जनवरी से लगभग अप्रैल माह के अंत तक
सार्वजनिक परिवहन के उपयोग में 80% तक की गिरावट आयी। भारत में पिछले वर्ष
लगभग तीन से चार माह तक लॉकडाउन रहा। जिसके चलते भारतीय रेलवे की 13,500
यात्री ट्रेनों को रोक दिया गया, यह केवल 9,000 मालगाड़ियों का संचालन कर रहा था।दिल्ली
में मेट्रो (Metro) और इंटर (inter) और इंट्रा सिटी (intra-city) बसों का संचालन ठप हो
गया। देश में कुछ आवश्यक सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी परिवहन साधन भी निलंबित कर
दिए गए। वर्तमान में भी लगभग समान स्थिति बनी हुयी हालांकि इसका अनुपात पिछले वर्ष
की तुलना में थोड़ा भिन्न है।चूंकि भारत के प्रमुख शहर महामारी के प्रमुख केन्द्र बने हुए
हैं, ऐसे में यहां सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों को लॉकडाउन के बाद की स्थिति से निपटने
के लिए विशेष रूप से तैयार करना होगा।
इस वर्ष बेंगलुरू मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (बीएमटीसी) (Bengaluru Metropolitan
Transport Corporation (BMTC)), यकीनन भारत में सबसे अच्छा सार्वजनिक परिवहन
उपक्रम को लॉकडाउन और ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण लगभग 400 करोड़ रुपये
का नुकसान हुआ। राज्य परिवहन उपक्रम (एसटीयू) (state transport undertakings
(STU)) भी इसी प्रकार की स्थिति का सामना कर रहे हैं। लॉकडाउन के दौरान एसटीयू को
अपनी परिचालन लागत का लगभग 70 प्रतिशत वहन करना पड़ा, जब उनमें से अधिकांश ने
एक भी बस नहीं चलाई। 2020-21 में मुंबई के बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई एंड ट्रांसपोर्ट
(Brihanmumbai Electric Supply and Transport (BEST)) का अनुमानित बजट घाटा
1,887 करोड़ रुपये था।कई परिवहन संचालकों को अपनी सेवाओं को प्रतिबंधित करने और
किराए में वृद्धि करने के लिए मजबूर किया गया। बीएमटीसी ने किराए में 20 फीसदी की
बढ़ोतरी का अनुरोध किया।
बस क्षेत्र को केंद्र द्वारा प्रदान किए गए आर्थिक सुधार पैकेज की तत्काल आवश्यकता है।
यह क्षेत्र न केवल शहरी क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन सेवाओं की रीढ़ है, बल्कि यह देश की
स्वच्छ वायु को बनाए रखने का एक प्रमुख माध्यम भी है।नौकरी छूटने और जीवन यापन
की लागत में वृद्धि के कारण महामारी ने पहले ही अत्यधिक आर्थिक कठिनाई पैदा कर दी
है। बस का किराया बढ़ने से सार्वजनिक परिवहन भी आम जनता की पहुंच से बाहर हो
जाएगा।
निजी खिलाड़ियों के लिए स्थिति बहुत खराब बनी हुयी है। सार्वजनिक परिवहन उपक्रमों को
कम से कम सरकार से कुछ समर्थन और आश्वासन मिलता है। लेकिन यह निजी संचालकों
को धीमी गति से मार रहा है।इसके साथ ही यह आने वाले समय में व्यापार और लाखों
नौकरियों के नुकसान का कारण भी बन सकता है। उपलब्ध अनुमानों के अनुसार, भारत में
लगभग 3 करोड़ लोग बस सेवाओं से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं और उनमें से 90 प्रतिशत
निजी क्षेत्र से हैं।इस बस सेक्टर का अस्तित्व न केवल लाखों नौकरियों और कमाई को बचाने
के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि जनता की आने-जाने की मांग को पूरा करने के लिए
और विशेष रूप से कार्यस्थल तक पहुंचने के लिए भी महत्वपूर्ण है। लगभग 85-90 प्रतिशत
शहरी यात्री शहरों में घूमने के लिए बसों पर निर्भर हैं।
कई देश पहले से ही सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को पुनर्जीवित करने के लिए बेलआउट
पैकेज (bailout packages) की घोषणा कर चुके हैं। इंग्लैंड (England), संयुक्त राज्य
अमेरिका (United States), जर्मनी (Germany), हांगकांग (Hong Kong) और न्यूजीलैंड
(New Zealand) प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्रदान कर रहे हैं, जबकि सिंगापुर (Singapore),
चीन (China), कजाकिस्तान (Kazakhstan) और तुर्की (Turkey) अप्रत्यक्ष वित्तीय सहायता
जैसे कर में छूट दे रहे हैं।
भारत में गूगल मोबिलिटी डेटा (Google mobility data) ने सार्वजनिक परिवहन क्षेत्र में
45% तक कि गिरावट की ओर संकेत किया है।इसलिए, परिवहन संचालकों के लिए बेलआउट
पैकेज (Bailout packages) अपरिहार्य हो गए हैं। हमें यह ध्यान रखना होगा कि भले ही
इस क्षेत्र को अभी कोई रिकवरी पैकेज (recovery package) मिले, फिर भी यह एक
अल्पकालिक समाधान होगा। इसके अलावा, सरकार को कर सुधार जैसे लंबे समय से चले
आ रहे मुद्दों को संबोधित करना होगा और परिचालन व्यय को सुरक्षित करने के लिए
समर्पित धन की व्यवस्था करनी होगी। अन्यथा, सतत गतिशीलता (sustainable
mobility) का भारत का एजेंडा एक गैर-शुरुआत ही रहेगा।
कोरोना की वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह कहना कठिन है कि हम पूर्ववत अवस्था में
कब तक लौटेंगे। किंतु दूसरी लहर में आयी गिरावट के बाद धीरे धीरे स्थिति को सामान्य
करने का प्रयास किया जा रहा है।जहां तक रही परिवहन की बात यह पिछले वर्ष की ही
भांति पहले स्थानीय स्तर पर फिर राज्य स्तर पर ओर अंत में अंतराष्ट्रीय स्तर पर
खोला जाएगा। अंतराष्ट्रीय यात्रा के लिए विभिन्न देशों ने अलग अलग मानक रखे हैं। जैसे
कोविड-19 वैक्सीन (COVID-19 vaccine) के बाद ही देश में प्रवेश कर सकते हैं।परिवहन
अवसंरचना अर्थव्यवस्था की संचार प्रणाली और जीवन दायिनी है। हवाई अड्डे न केवल शहरों
को जोड़ते हैं वरन् दुनिया भर में लोगों और सामानों के प्रवाह को सक्षम बनाते हैं; वे शहरी
अर्थव्यवस्थाओं के प्रमुख चालक हैं। इन्हें अनिश्चित काल तक निष्क्रिय नहीं किया जा
सकता है।
अब धीरे धीरे सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को शुरू किया जा रहा है। लेकिन सार्वजनिक
परिवहनों में शारीरिक दूरी बनाना मुश्किल है। हमें यातायात के विभिन्न माध्यमों पर विचार
करना होगा और उसमें बदलाव करने होंगे। उपनगरीय ट्रेनों, सार्वजनिक बसों और मेट्रो में
अधिक भीड़भाड़ को इस तरह व्यवस्थित करना होगा कि लोग एक दूसरे से दूरी बना कर
आरामदायक तरीके से बैठ सकें या खड़े हो सकें। हालाँकि यातायात का प्रबंधन करना एक
चुनौतीपूर्ण कार्य होगा क्योंकि आपूर्ति पहले ही मांग से बहुत कम है। सीमित साधनो के
कारण सार्वजनिक परिवहनों की व्यवस्था करना निश्चित रूप से परिवहन संचालकों के लिए
एक कठिन काम होगा।
संदर्भ:
https://bit.ly/2TLPuCF
https://bit.ly/3k6t9dx
https://bit.ly/2TXUGTL
https://bit.ly/3AW7ye3
https://bit.ly/3yF10OO
चित्र संदर्भ
1. सार्वजानिक रेल में केवल एक यात्री का चित्रण (Brink)
2. दिल्ली मेट्रों की सफाई करते कर्मचारियों का एक चित्रण (editioncn)
3. एयरपोर्ट पर सीमित यात्रियों का एक चित्रण (politico)
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