City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2615 | 96 | 2711 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
हमारे जौनपुर शहर का क्षेत्रफल भले ही तुलनात्मक रूप से छोटा रहा हो, लेकिन हमारे शहर में मौजूद ऐतिहासिक धरोहरें, सांस्कृतिक समृद्धि के संदर्भ में बड़े-बड़े शहरों को बौना साबित कर देती हैं। इन्हीं में से एक अटाला मस्जिद भी हमारी ऐतिहासिक धरोहरों की संपन्नता का उत्कृष्ट उदाहरण है।
अटाला मस्जिद हमारे जौनपुर में स्थित एक भव्य मस्जिद है, जिसका निर्माण 14वीं शताब्दी में कराया गया था। यह मस्जिद शाही किले से मात्र 300 मीटर, जामा मस्जिद से 1 किमी और जौनपुर के केंद्र से 2.2 किमी उत्तर-उत्तर पूर्व में स्थित है। इस मस्जिद का निर्माण 1408 ईसवी में शम्स-उद-दीन इब्राहिम द्वारा कराया गया था। लेकिन वास्तव में इसकी नींव इससे भी 30 साल पहले फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा 1378 ईसवी में रखी गई थी। अटाला मस्जिद इसलिए भी अद्वितीय मानी जाती है, क्योंकि भले ही यह मुस्लिम शासकों द्वारा बनाई गई है, लेकिन इसमें बहुत सारे तत्व हिंदू वास्तुशिल्प के भी नज़र आते हैं।
अटाला मस्जिद का उल्लेख एक अंग्रेजी चित्रकार विलियम होजेस (William Hodges) की पुस्तक "सेलेक्ट व्यूज़ इन इंडिया (Select Views in India)" में भी मिलता है। मस्जिद के केंद्रीय प्रांगण में मदरसा दीन दुनिया नामक एक स्कूल भी स्थित है। मस्जिद को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण और उत्तर प्रदेश पुरातत्व निदेशालय द्वारा एक स्मारक स्थल के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
अटाला मस्जिद का निर्माण वास्तुकला की ‘शर्की शैली’ में किया गया है। शर्की शैली मुख्य रूप से सुल्तान शम्स-उद-दीन इब्राहिम (1402-36) के शासनकाल के दौरान विकसित हुई। दरअसल 1394 ईस्वी में तुगलक सल्तनत के पतन और तैमूर के आक्रमण के बाद, एक नए स्वतंत्र संप्रभु राज्य का उदय हुआ, जिसे शर्की साम्राज्य के रूप में जाना जाने लगा। शर्की साम्राज्य, पश्चिम में कोइल (आधुनिक अलीगढ़) से पूर्व में बंगाल की सीमा तक और हिमालय की तलहटी से लेकर, दक्षिण में मालवा की सीमाओं तक फैला हुआ था। शर्की साम्राज्य के सभी शासक कला और वास्तुकला के महान संरक्षक माने जाते थे, और उन्हें अपने क्षेत्र में कई धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष इमारतों का निर्माण करने का श्रेय दिया जाता है। शर्की मस्जिदों की मुख्य विशेषता मेहराब के साथ विशाल आयताकार तोरण (प्रवेश द्वार) है। इन मेहराबों के माध्यम से ही जौनपुर में तीन मुख्य मस्जिदों, अटाला मस्जिद, जामा मस्जिद और लाल दरवाजा मस्जिद में प्रवेश किया जाता है। इन सभी मस्जिदों को पत्थर से बनाया गया है और उन पर नक्काशी तथा जाली का काम बारीकी से किया गया है। अटाला मस्जिद के अलावा जौनपुर में शर्की शैली की वास्तुकला के सबसे उल्लेखनीय उदाहरणों में लाल दरवाज़ा मस्जिद और जामा मस्जिद भी शामिल हैं।
इस शैली की मुख्य विशेषताएं निम्नवत दी गई हैं:
- प्रवेश द्वारों आदि को उभारने के लिए अग्रभाग पर बनाए गए तोरण शर्की शैली की एक सामान्य विशेषता हैं।
- कभी कभी बड़े मेहराबों के घुमावों और आकृतियों में अनिश्चितता होती है।
- इस शैली में स्तंभ, बीम और कोष्ठक वाली निर्माण प्रणाली का उपयोग किया जाता था।
- स्तंभों में बीच में पट्टियों वाले वर्गाकार विशालकाय शाफ्ट होते हैं।
शर्की शैली में निर्मित जौनपुर की अटाला मस्जिद 100 फीट से अधिक ऊंची है और इसमें तीन बड़े प्रवेश द्वार हैं। वास्तुकला की दृष्टि से मस्जिद का केंद्रीय गुंबद ज़मीन से लगभग 17 मीटर ऊँचा है। हालाँकि, 23 मीटर ऊंचे टॉवर के कारण इसे सामने से नहीं देखा जा सकता है। ऐसा माना जाता है कि अटाला मस्जिद के निर्माण को दिल्ली की बागमपुर मस्जिद ने भी काफी हद तक प्रभावित किया है। इसकी ताखें, तिरछी दीवारों और बीम तथा स्तंभों की डिज़ाइन जैसी विशेषताएं दिल्ली में तुगलक राजवंश के सुल्तान मुहम्मद शाह और फिरोज शाह तुगलक द्वारा निर्मित इमारतों के समान हैं। हालांकि भविष्य की सभी मस्जिदें अटाला मस्जिद की वास्तुकला से प्रेरणा लेकर बनाई गई।
अटाला मस्जिद में 177 फ़ुट भुजा का एक वर्गाकार प्रांगण है। इसमें 42 फ़ुट चौड़े विशाल नमाज़ कक्ष हैं, जो 5 गलियारों में विभाजित हैं। ये नमाज़ कक्ष 2 मंजिल तक ऊंचे हैं। यहां 3 प्रवेश द्वार हैं, जिनमे से एक नमाज़ कक्ष के केंद्र में तथा शेष दो उत्तरी और दक्षिणी गुंबदों के ऊपर हैं। मस्जिद के सभी प्रवेश द्वारों के लिए धनुषाकार तोरण संरचना निर्माण शैली का प्रयोग किया गया है। पुण्यस्थान के आंतरिक भाग में 35X30 फ़ुट का एक केंद्रीय मध्य भाग है, जिसके दोनों ओर स्तंभ युक्त अनुप्रस्थ भाग हैं। मध्य भाग की छत एक अर्ध गोलाकार गुंबद से बनी हुई है। गुंबद अंदर से 57 फ़ुट ऊंचा है और इसे गोलाकार वक्र देने के लिए बाहरी हिस्से को सीमेंट की परत से ढक दिया गया है। अटाला की बाहरी दीवारों में स्मारकीय प्रवेश द्वार हैं, जो शर्की डिजाइन का बारीकी से पालन करते हैं। मस्जिद का प्रांगण 78.7 मीटर, तीन तरफ मठों से घिरा हुआ है। मस्जिद के केंद्रीय प्रवेश द्वार पर एक भव्य मेहराब है। अंदर, प्रार्थना के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला एक बड़ा हॉल है। मस्जिद में अलग-अलग आकार के तीन गुंबद भी हैं। मस्जिद की अन्य उल्लेखनीय विशेषताओं में 'मिहराब' (मस्जिद की दीवार में एक जगह जो मक्का की दिशा दिखाती है), नमाज़ कक्ष में बेहतरीन सजावट और दो-स्तरीय गलियारे भी शामिल हैं। जौनपुर की यह अटाला मस्जिद सुबह 7:30 बजे से रात 8:00 बजे तक नमाज़ियों के लिए खुली रहती है और यहां हर शुक्रवार को विशेष प्रार्थना आयोजित की जाती हैं।
नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करके आप शर्की वास्तुकला और जौनपुर की अन्य प्रमुख मस्जिदों के बारे में विस्तार से जान सकते हैं:
https://prarang.in/jaunpur/posts/9853/Atala-and-other-mosques-of-Jaunpur-built-in-Sharqi-architectural-style
https://prarang.in/jaunpur/posts/7562/Atala-and-other-beautiful-mosques-of-Jaunpur-testify-to-the-magnificent-Sharqi-architecture
संदर्भ
https://shorturl.at/jTW25
https://shorturl.at/klnIU
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर की अटाला मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. शम्स-उद-दीन इब्राहिम क़ालीन सिक्कों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सामने से देखने पर अटाला मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. दूर से देखने पर अटाला मस्जिद को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अटाला मस्जिद में बने एक सुंदर पैटर्न को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. अटाला मस्जिद में नमाज़ अदायगी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.