Post Viewership from Post Date to 13-Oct-2024 (5th) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2833 80 2913

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

ऐतिहासिक स्मारकों का संरक्षण करता है 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण'

मेरठ

 08-10-2024 09:25 AM
वास्तुकला 1 वाह्य भवन
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India (ASI), एक भारतीय सरकारी एजेंसी है, जो पुरातात्विक अनुसंधान और देश में सांस्कृतिक ऐतिहासिक स्मारकों के संरक्षण का कार्य करती है। तो आइए, आज 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' के इतिहास के बारे में जानते हैं और देखते हैं, कि एएसआई अपने विरासत स्थलों की सुरक्षा कैसे करता है। अंत में हम एएसआई द्वारा संरक्षित स्मारकों और इनके संरक्षण से जुड़ी चुनौतियों के बारे में चर्चा करेंगे।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का इतिहास: 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' की स्थापना 1861 में अलेक्ज़ैंडर कनिंघम (Alexander Cunningham) द्वारा की गई थी, जो इसके पहले महानिदेशक भी थे। देश के इतिहास में पहला व्यवस्थित शोध एशियाटिक सोसाइटी (Asiatic Society) द्वारा किया गया था, जिसकी स्थापना 15 जनवरी 1784 को ब्रिटिश भारतविद विलियम जोन्स (William Jones) ने कलकत्ता में की थी।
इस सोसायटी द्वारा प्राचीन संस्कृत और फ़ारसी ग्रंथों के अध्ययन को बढ़ावा दिया गया और 'एशियाटिक रिसर्च' (Asiatic Researches) नामक एक वार्षिक पत्रिका प्रकाशित की गई थी। इसके शुरुआती सदस्य चार्ल्स विल्किंस ने 1785 में बंगाल के तत्कालीन गवर्नर-जनरल वॉरेन हेस्टिंग्स के संरक्षण में भगवद गीता का पहला अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित किया गया था। हालाँकि, 1837 में जेम्स प्रिंसेप द्वारा ब्राह्मी लिपि का अर्थ समझना इस सोसायटी की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जाता है।
ब्राह्मी के ज्ञान के साथ, जेम्स प्रिंसेप के शिष्य अलेक्ज़ैंडर कनिंघम ने बौद्ध स्मारकों का विस्तृत सर्वेक्षण किया, जो आधी सदी से अधिक समय तक चला। इतालवी सैन्य अधिकारी, जीन-बैप्टिस्ट वेंचुरा (Jean-Baptiste Ventura) जैसे शुरुआती पुरातत्वविदों से प्रेरित होकर, कनिंघम ने भारत में स्तूपों की खुदाई की थी । जबकि कनिंघम ने अपनी कई शुरुआती खुदाई के लिए स्वयं धन दिया था, लेकिन लंबे समय में, उन्हें पुरातात्विक खुदाई और भारतीय स्मारकों के संरक्षण की निगरानी के लिए एक स्थायी निकाय की आवश्यकता का एहसास हुआ और उन्होंने पुरातात्विक सर्वेक्षण की पैरवी करने के लिए, भारत में अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल किया था। जबकि 1848 में उनका प्रयास सफ़ल नहीं हुआ, अंततः 1861 में लॉर्ड कैनिंग द्वारा कानून पारित करके 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' का गठन किया गया, जिसमें कनिंघम पहले पुरातत्व सर्वेक्षक थे। हालाँकि, धन की कमी के कारण 1865 और 1871 के बीच सर्वेक्षण को कुछ समय के लिए निलंबित कर दिया गया था, लेकिन भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लॉरेंस द्वारा इसे पुनः बहाल कर दिया गया। 1871 में, सर्वेक्षण को एक अलग विभाग के रूप में पुनर्जीवित किया गया और कनिंघम को इसका पहला महानिदेशक नियुक्त किया गया।
वर्तमान में, 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' संस्कृति विभाग, संस्कृति मंत्रालय के तहत एक संलग्न कार्यालय के रूप में, देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिए प्रमुख संगठन है। एएसआई का प्रमुख कार्य प्राचीन स्मारकों, पुरातात्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्व के अवशेषों का रखरखाव करना है। इसके अलावा यह 'प्राचीन स्मारक और पुरातात्विक स्थल और अवशेष अधिनियम', (Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act, 1958) के प्रावधानों के अनुसार देश में सभी पुरातात्विक गतिविधियों को विनियमित करता है। यह 'पुरावशेष और कला खजाना अधिनियम', (Antiquities and Art Treasure Act, 1972) को भी नियंत्रित करता है।
राष्ट्रीय महत्व के प्राचीन स्मारकों एवं पुरातात्विक स्थलों एवं अवशेषों के रख-रखाव के लिए पूरे देश को 24 सर्किलों में बांटा गया है। संगठन के पास अपनी उत्खनन शाखाओं, प्रागैतिहासिक शाखा, पुरालेख शाखाओं, विज्ञान शाखा, बागवानी शाखा, भवन सर्वेक्षण परियोजना, मंदिर सर्वेक्षण परियोजनाओं और पानी के नीचे पुरातत्व के माध्यम से पुरातात्विक अनुसंधान परियोजनाओं के संचालन के लिए प्रशिक्षित पुरातत्वविदों, संरक्षकों, पुरालेखविदों, वास्तुकारों और वैज्ञानिकों की एक बड़ी कार्य शक्ति है।
'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' विरासत स्थल संरक्षण से तात्पर्य: हालाँकि, प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में संरचनाओं के संरक्षण के संदर्भ मिलते रहे हैं, जैसा कि जूनागढ़, गुजरात में प्रमाणित है, यह संरक्षण कार्य उन संरचनाओं पर किया गया था, जो समकालीन समाज के लिए फ़ायदेमंद थीं। यहां तक कि स्मारकों को, एक स्मारक के रूप में संरक्षित करने की आवश्यकता, जिसका श्रेय मुख्य रूप से अंग्रेज़ों को दिया जाता है, इसका दृष्टिकोण भी पहले के समय में कम अव्यवस्थित नहीं था। इनके संरक्षण के लिए, पहले दो कानून बनाए गए थे, जिसमे 1810 का बंगाल विनियमन और 1817 का मद्रास विनियमन शामिल था।
19वीं सदी में कुछ स्मारकों और इमारतों पर नाममात्र का धन और ध्यान दिया गया, उनमें ताज़ महल, सिकंदरा का मकबरा, कुतुब मीनार, सांची और मथुरा शामिल थे। 1898 में प्रस्तुत प्रस्ताव के आधार पर भारत में पुरातत्व कार्य करने के लिए, 5 मंडलों का गठन किया गया था। बाद में 'प्राचीन स्मारक और संरक्षण अधिनियम, 1904' को मुख्य उद्देश्य के साथ पारित किया गया था, ताकि धार्मिक उद्देश्यों के लिए उपयोग की जाने वाली इमारतों को छोड़कर निजी स्वामित्व वाली प्राचीन इमारतों का उचित रखरखाव और मरम्मत सुनिश्चित की जा सके। सबसे अग्रणी संरक्षकों में से एक, जे. मार्शल, जिन्होंने संरक्षण के सिद्धांत निर्धारित किए, उन्होंने कई स्मारकों को संरक्षित करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिनमें से कुछ अब विश्व विरासत सूची के अंतर्गत हैं। साँची में पहले खंडहरों के स्तूपों के संरक्षण कार्य ने इस स्थल को प्राचीन स्वरूप प्रदान किया। इस प्रकार, आज़ादी से पहले ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने महत्वपूर्ण विशेषज्ञता विकसित कर ली थी, यहाँ तक कि, इसे अन्य देशों में संरक्षण कार्य के लिए भी आमंत्रित किया जाने लगा था। अफ़ग़ानिस्तान में बामियान और बाद में कंबोडिया के अंगकोर वाट में किए गए, इसके कार्य के कुछ उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' संरक्षित स्मारकों के रासायनिक संरक्षण के लिए भी ज़िम्मेदार है। वास्तविक चुनौती, इन निर्मित सांस्कृतिक विरासत के अस्तित्व को सुनिश्चित करने की दृष्टि से संरक्षण के आवश्यक उपायों की योजना बनाना है, जितना संभव हो, उतने कम हस्तक्षेप के साथ और साथ ही, उनके मूल चरित्र की प्रामाणिकता में किसी भी तरह से बदलाव या संशोधन किए बिना। संरक्षण गतिविधियों के इन दोनों चरणों में वैज्ञानिक अनुशासन की भूमिका महत्वपूर्ण है। इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए, त्रिशूर सर्कल का विज्ञान विंग वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियों का एक विशिष्ट उद्देश्य पूरा कर रहा है। इसके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
- सामग्री के खराब होने की प्रक्रिया का अध्ययन करना।
- हस्तक्षेप प्रौद्योगिकियों का बुनियादी अध्ययन करना।
- सामग्री पर बुनियादी अध्ययन करना।
- निदान प्रौद्योगिकियों का अध्ययन करना।
इसकी मुख्य गतिविधियाँ हैं:
- केंद्रीय संरक्षित स्मारकों, विशेष रूप से भित्तिचित्रों और उत्खनन से प्राप्त वस्तुओं का रासायनिक उपचार और संरक्षण करना।
- वैज्ञानिक और तकनीकी अध्ययन के साथ-साथ हमारी निर्मित सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण की स्थिति में सुधार करने के लिए, उचित संरक्षण उपायों को विकसित करने की दृष्टि से गिरावट के कारणों का अध्ययन करना और विभिन्न निर्माण सामग्री की भौतिक विरासत पर शोध करना।
- वैज्ञानिक संरक्षण कार्यों के संबंध में जागरूकता कार्यक्रम एवं कार्यशाला/सेमिनार आयोजित करना।
- ऐतिहासिक इमारतों/स्मारकों का संरक्षण एवं रखरखाव करना।
'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित स्मारक और संरक्षण से जुड़ी चुनौतियाँ
वर्ष 1861 में स्थापित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को 'प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम' (Ancient Monuments Preservation Act, 1904) , 'प्राचीन स्मारक, पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम' (Ancient Monument and Archaeological Sites and Remains Act, 1958) के प्रासंगिक प्रावधानों के तहत राष्ट्रीय महत्व के घोषित 3679 स्मारकों व पुरातात्विक स्थलों की सुरक्षा तथा रखरखाव की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गई हैं ।
'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' द्वारा संरक्षित निर्मित विरासत की समृद्ध श्रृंखला में प्रागैतिहासिक रॉक-आश्रय, नवपाषाण स्थल, मेगालिथिक दफ़न, रॉक-कट गुफाएं, स्तूप, मंदिर, चर्च, सभास्थल, मस्ज़िदें, मकबरे, महल, किले, स्नान घाट, टैंक, जलाशय, पुल, स्तंभ, शिलालेख, कोस मीनार, उत्खनन स्थल आदि शामिल हैं। 3679 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों/स्थलों का रखरखाव, संरक्षण और पर्यावरण विकास भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की प्रमुख गतिविधियों में से एक है, जो हर साल संरक्षण कार्यक्रम की तैयारी के बाद किया जाता है।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण मुख्य रूप से राज्य की राजधानियों में स्थित अपने 37 सर्कल कार्यालयों और 1 मिनी सर्कल कार्यालय के माध्यम से अपने संरक्षित स्मारकों का उचित तरीके से रखरखाव करता है। इन स्मारकों के निर्माण की प्रकृति और तकनीक, सामग्री के उपयोग, अंतर्निहित निर्माण दोषों के अलावा, स्थान के खतरों के आधार पर इनके संरक्षण से संबंधित कई समस्याएं निर्भर करती हैं। इनके क्षय के मुख्य कारण हो सकते हैं (i) जलवायु कारक (ii) जैविक और वानस्पतिक कारक (iii) प्राकृतिक आपदाएँ, (iv) मानव निर्मित कारण। सीमित संसाधनों के साथ 3679 स्मारकों, परिसरों, स्थलों की सुरक्षा और रखरखाव के लिए एक स्तर की योजना की आवश्यकता होती है। हर साल क्षेत्रीय कार्यालयों द्वारा किए गए मूल्यांकन के आधार पर विशेष प्रकृति की संरचनात्मक मरम्मत के लिए 800 से अधिक स्मारकों की पहचान की जाती है। कार्यों की वस्तुओं की उचित पहचान और निर्दिष्ट कार्यों को पूरा करने के लिए पर्याप्त धनराशि उपलब्ध कराने के बाद एक संरक्षण कार्यक्रम तैयार किया जाता है। यह एक वार्षिक प्रक्रिया है, इसमें नियमित रखरखाव के साथ-साथ चयनित स्मारकों की विशेष मरम्मत का भी ख्याल रखा जाता है। इसी प्रकार, विभिन्न स्थलों की आवश्यकताओं के अनुसार स्मारकों, चित्रों, मूर्तियों आदि के रासायनिक संरक्षण का कार्य किया जाता है। स्मारक परिसरों में ऐतिहासिक उद्यान भी शामिल हैं, जिनका रखरखाव एएसआई की बागवानी शाखा द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, बड़ी संख्या में आगंतुकों द्वारा देखे जाने वाले चिन्हित स्थलों पर उद्यानों/परिदृश्यों के विकास का कार्य भी किया जाता है।
संरक्षण चुनौतियाँ:
राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों/स्थलों के संरक्षण से संबंधित चुनौतियाँ निम्नलिखित बिंदुओं पर नि
र्भर करती हैं:-
1. निवारक रखरखाव
2. इनके निर्माण की प्रकृति एवं तकनीक
3. प्रयुक्त सामग्री
4. संरचनात्मक स्थिरता
5. जलवायु संबंधी कारक
6. जैविक एवं वानस्पतिक कारक
7. मानव निर्मित कारक: अतिक्रमण, प्रदूषण, उत्खनन आदि।
8. प्राकृतिक आपदाएँ जैसे बाढ़ भूकंप आदि
उपरोक्त चुनौतियों के आधार पर न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम प्रतिधारण के मूल उद्देश्य के साथ उचित संरक्षण कार्यक्रम तैयार और कार्यान्वित किया जाता है और निर्मित विरासत को भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित किया जाता है।

संदर्भ

https://tinyurl.com/3kevtypr
https://tinyurl.com/56m22wdf
https://tinyurl.com/2t2ucd6n

चित्र संदर्भ
1. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा जारी भारत के विरासत स्मारकों के लिए एक पुराने टिकट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. अलेक्ज़ैंडर कनिंघम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के कार्यालय को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. धरहरा मस्जिद के संरक्षण हेतु पुरातत्व सर्वेक्षण के प्रमाणन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कांचीपुरम, तमिल नाडु के जुराहरेश्वर मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कर्ण मंदिर, हस्तिनापुर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • राजस्थान के बाड़मेर शहर का एप्लिक कार्य, आप को भी अपनी सुंदरता से करेगा आकर्षित
    स्पर्शः रचना व कपड़े

     18-10-2024 09:22 AM


  • मानवता के विकास में सहायक रहे शानदार ऑरॉक्स को मनुष्यों ने ही कर दिया समाप्त
    स्तनधारी

     17-10-2024 09:24 AM


  • वर्गीकरण प्रणाली के तीन साम्राज्यों में वर्गीकृत हैं बहुकोशिकीय जीव
    कोशिका के आधार पर

     16-10-2024 09:27 AM


  • फ़िल्मों से भी अधिक फ़िल्मी है, असली के जी एफ़ की कहानी
    खदान

     15-10-2024 09:22 AM


  • मिरमेकोफ़ाइट पौधे व चींटियां, आपस में सहजीवी संबंध से, एक–दूसरे की करते हैं सहायता
    व्यवहारिक

     14-10-2024 09:28 AM


  • आइए देखें, कैसे बनाया जाता है टूथपेस्ट
    वास्तुकला 2 कार्यालय व कार्यप्रणाली

     13-10-2024 09:16 AM


  • द लॉर्ड ऑफ़ द रिंग्स: रामायण की भांति,अंगूठी पर केंद्रित, प्रकाश की जीत का कालजयी महाकाव्य
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     12-10-2024 09:25 AM


  • आइए जानें, स्टॉक एक्सचेंज और इसके महत्त्वों के बारे में
    सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)

     11-10-2024 09:18 AM


  • नागर और द्रविड़ शैली का मिश्रण है मंदिर वास्तुकला की वेसर शैली
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     10-10-2024 09:17 AM


  • पोस्टक्रॉसिंग से आप, मेरठ के दुर्लभ चित्रों को दर्शाते पोस्टकार्ड, दुनिया से साझा करें !
    संचार एवं संचार यन्त्र

     09-10-2024 09:13 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id