बरगद भारत का राष्ट्रीय वृक्ष है। इसे बर, बट या वट भी कहते हैं। बरगद मोरेसी या शहतूत कुल का पेड़ है। यह एक विशाल, ऊँचा और बहुत बड़े क्षेत्र में फैलने वाला वृक्ष है। इसकी ऊँचाई 20 मीटर से 30 मीटर तक हो सकती है। इसका वैज्ञानिक नाम फ़ाइकस वेनगैलेंसिस और अंग्रेज़ी नाम बनियन ट्री है। अगर इसके अंग्रेज़ी नाम की रचना को देखा जाये तो इसका नाम बनिया जाति के ऊपर रखा गया है। पुराने समय में बनिया जाति के लोग व्यापारी हुआ करते थे और वे अपना काम बरगद के पेड़ के नीचे बैठ कर करते थे। इसका कारण था की बरगद के पेड़ के नीचे काफी छाया रहती थी तथा धूप से अच्छा बचाव होता था। इस चीज़ का ज़िक्र अंग्रेजों ने आपस में ऐसे किया कि इस एक तरह के पेड़ के नीचे बनिए व्यापर किया करते हैं। और समय के साथ बरगद के पेड़ का नाम बनियन पड़ गया। बरगद का मूल स्थान भारतीय उपमहाद्वीप है तथा भारत में विशाल बरगद के पेड़ आसानी से देखे जा सकते हैं। रामपुर में भी बरगद के पेड़ अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध हैं। बरगद का भगवद गीता से भी गहरा नाता है जिसमें श्री कृष्ण बरगद के पेड़ का उदहारण देकर जीवन से सम्बंधित कई महत्व्पूर्ण सन्देश देते हैं। बरगद के पत्ते को हिन्दुओं द्वारा श्री कृष्ण के विश्राम करने का स्थान बताया गया है तथा इसे पूजनीय माना जाता है। बरगद की सबसे बड़ी विशेषताएं यह हैं कि इसकी जड़ें ज़मीन के ऊपर शाखाओं पर रहती हैं और ये पूरे दिन जीवनदायी ऑक्सीजन प्रदान करता है। बरगद की शारीरिक रचना की बात की जाये तो यह अपने जीवन की शुरुआत ज़्यादातर किसी दूसरे पेड़ की शाखाओं से करता है। दूसरे पेड़ों की शाखाओं में मौजूद दरारों में इसके बीज अंकुरित होते हैं तथा बरगद धीरे धीरे इस पेड़ को जकड़ने लगता है और अंत में वह इस दूसरे पेड़ को ख़त्म कर देता है। इस कारण जब बरगद बड़ा हो जाता है तो इसके तने के भीतर एक खोखला स्थान बन जाता है जो कि जंगलों में कई जानवरों के लिए आश्रय का कार्य करता है। बरगद की शाखाओं से जटाएँ निकलती हैं। आरम्भ में ये पतली होती हैं और नीचे की ओर झूलती रहती हैं। कुछ समय के बाद ये ज़मीन तक पहुँच जाती हैं और ज़मीन के भीतर से खाद्य रस लेने लगती हैं। धीरे धीरे इनका विकास होता है और एक लम्बे समय के बाद ये तने के समान मोटी, कठोर और मजबूत हो जाती हैं तथा वृक्ष का बोझ उठाने के लायक हो जाती हैं। बहुत पुराने बरगद के वृक्ष जटाओं से अपनी काया का बहुत अधिक विस्तार कर लेते हैं और एक लम्बे चौड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं। बरगद की पतली डालियों पर सभी तरफ बड़े और गोलाई लिए हुए अंडाकार पत्तियाँ निकलती हैं। बरगद हजारों सालों तक जी सकता है। तथा अगर इसे मारने की कोशिश की जाये तो यह सबसे पहले तो अपने आस पास के पेड़ पौधों के सहारे जीवन ढूंढने की कोशिश करता है। और अगर यह संभव ना हुआ तो यह बहुत जल्द नष्ट हो जाता है जिसका कोई फायदा नहीं उठाया जा सकता। अर्थात बरगद का असली मूल्य उसके जीवन में है ना की उसकी मृत्यु में। 1.- https://goo.gl/Abocs8 2.- https://goo.gl/LsjDxw
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