हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में कीड़ों की महत्त्वपूर्ण भूमिका से हम सभी अवगत हैं। ये छोटे से दिखाई
पड़ने वाले जीव हमारी फसलों और फूलों इत्यादि का परागण करते हैं, मृत जीवों को अपघटित
करते हैं, साथ ही ये कई प्रकार के पक्षियों का भोजन भी होते हैं। परंतु इन सभी दुर्लभ विशेषताओं में
से एक, इनका चिकत्सकीय सेवाओं में प्रयोग करना मनुष्य प्रजाति के लिए प्रकर्ति के एक तोहफे के
सामान है। इस तथ्य से काफ़ी कम लोग अवगत हैं कि, पूरी दुनियाँ में कीड़ों का औषधि के तौर पर
भी प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक और आधुनिक दोनों तरह की उपचार प्रक्रिया में कीड़ों का
प्राचीन काल से उपयोग किया जाता रहा है।
विभिन्न रोगों और चोटों के इलाज़ के लिए कीड़ों (और मकड़ियों) का उपयोग लंबे समय से
परंपरागत तौर पर किया जाता है। जानकार औषधीय कीटों के लाभाकरी गुणों को देखते हुए
भविष्य में इनसे होने वाले लाभ को भी स्पष्ट तौर पर देख पा रहे हैं। इलाज़ की यह प्रक्रिया हमेशा
से समय की कसौटी पर खरी उतरी है, जिसने सकारात्मक रूप से प्रभावशाली परिणाम दिए हैं।
हालाँकि कुछ दवाइयों का उपचार लोक औषधीय तर्क आधारित था, वही कुछ अन्य इलाज़
मनोवैज्ञानिक आधार पर किये जाते रहे हैं। जैसे कब्ज़ के इलाज़ हेतु गोबर भृंग (Dung beetle)
का प्रयोग किया जाता था, तथा लंबे बालों वाले टारेंटयुला (Tarantula) को झड़ते बालों की रोकथाम
के लिए प्रयोग किया जाता था।
प्रायः ऐसा माना जाता था कि, मानव शरीर के किसी भी अंग से मिलता जुलता जीव उस अंग से
सम्बंधित रोग को ठीक कर सकता है। उदाहरण के लिए मेक्सिको के निवासियों द्वारा मानव
जिगर (Livers) से मिलते जुलते जीव, मादा टिड्डी (locust females) का प्रयोग जिगर से जुड़े
रोगों को ठीक करने के लिए किया जाता था। पारंपरिक चीनी चिकित्सा में हर्बल दवा को
एक्यूपंक्चर, मालिश, व्यायाम और आहार चिकित्सा हेतु उपयोग किया जाता रहा है, इन हर्बल
दवाओं अपघटन में कीड़ों की महत्त्वपूर्ण होती है। साथ चीन में चीनी ब्लैक माउंटेन चींटी,
पॉलीराचिस विसिना (Chinese Black Mountain Ant, Polyrhachis vicina) के संदर्भ में यह
माना जाता है कि, इनमे बुढ़ापा रोधी गुण होते हैं, जिससे व्यक्ति लंबा जीवन जी सकता है, साथ ही
यह पौरुष और प्रजनन क्षमता में भी वृद्धि करता है। ब्रिटिश शोधकर्ता चींटियों के औषधीय गुणों
पर अध्ययन भी कर रहे हैं, साथ ही चीनी ब्लैक माउंटेन चींटी का अर्क आमतौर पर मादक तरल
(शराब) के साथ मिलाया जाता है।
भारत के आयुर्वेद विज्ञानं में भी कीटों का विशेष स्थान है, यहाँ दीमक (Termites) को खुले तथा
बंद घावों के इलाज़ हेतु प्रयोग किया जाता है। जिसके लिए दीमक के पेस्ट को शरीर के प्रभावित
हिस्से में लगाया जाता है। साथ ही इन्हे कभी-कभी पानी के साथ भी सेवित किया जाता है, जिसे
अल्सर, एनीमिया के साथ ही सामान्य दर्द निवारक और स्वास्थ्य सुधारक के तौर पर भी लिया
जाता है। एक अन्य कीड़े जेट्रोफा लीफ माइनर (Jatropha leaf miner) लार्वा के मसले हुए पेस्ट
को बुखार को कम करने और जठरांत्र सम्बंधी मार्ग को शांत करने हेतु प्रयोग किया जाता है।
भारत और चीन की भांति अफ्रीका में कीटों जैसे, टिड्डे को आमतौर पर एक स्वादिष्ट व्यंजन और
प्रोटीन के उत्कृष्ट स्रोत के रूप में खाया जाता है, और औषधीय प्रयोजनों के लिए इसका सेवन किया
जाता है। साथ ही दीमक का उपयोग अफ्रीका के कुछ हिस्सों में भी भारत की तरह ही किया जाता
है। यदि कोई "चिकित्सक" चमड़े के नीचे दवा डालना चाहता है, तो वे अक्सर उस दवा को रोगी की
त्वचा पर फैलता और फिर एक दीमक को उत्तेजित किया जाता है, जब दीमक काटता है, तो उसके
जबड़े प्रभावी रूप से एक इंजेक्शन के रूप में काम करते हैं।
अमेरिका में वर्तमान में, कीट चिकित्सा
चीन, भारत या अफ्रीका की तुलना में बहुत कम प्रचलित है। मेक्सिको के कुछ हिस्सों में आमतौर
पर चापुलिन या टिड्डे का सेवन गुर्दे की बीमारियों के इलाज़ के लिए, सूजन को कम करने के लिए
और आंतों के विकारों के दर्द को दूर करने के लिए किया जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर कीड़ों के औषधीय
रूप में प्रयोग के लाभ, 1699 में प्रकशित पुस्तक इंसेक्टोथोलॉजी (Insect Ethology) में वर्णित हैं।
हालांकि, औषधीय कीड़ों के उपयोग के संदर्भ में और भी पुराने प्रमाण मिले हैं, सोलहवीं सताब्दी की
एक मिस्र चिकित्सा ग्रंथ में कीड़ों और मकड़ियों से प्राप्त दवाओं के कई उल्लेख हैं। वही पडोसी देश
चीन में रेशमकीट का उपयोग चीनी पारंपरिक चिकित्सा में कम से कम तीन हज़ार वर्षों से किया
जाता रहा है। हाइमनोप्टेरा (Hymenoptera) में, ततैया, डंकरहित मधुमक्खियाँ और औषधि के
रूप में इस्तेमाल की जाती रही हैं, इन मधुमक्खियों को लोक चिकित्सा में भी बड़े पैमाने पर
उपयोग किया गया है। नेपाल में, मधुमक्खी पराग बुजुर्गों के लिए टॉनिक के रूप में इस्तेमाल किया
जाता है। प्रोपोलिस (प्रोपोलिस (Propolis) एक रालयुक्त पदार्थ है जो मधुमक्खियाँ पौधे के
एक्सयूडेट से एकत्र करती हैं।) , मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित एक पौधे का राल का प्रयोग घावों और
जलन के उपचार में एंटीसेप्टिक के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। पूर्वोत्तर भारत अरुणाचल प्रदेश
के दो आदिवासी समाजों, (पूर्वी कामेंग के न्याशी "Nyashi" और पश्चिम सियांग के गालो (Gallo
of West Siang) विभिन्न द्वारा कीड़ों का चिकित्सीय उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है,
इनके द्वारा स्थानीय कीड़ों की कम से कम 81 प्रजातियाँ प्रयोग में ली जाती हैं। जिनका इन दोनों
आदिवासी समाजों के सदस्यों के बीच भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, गालो
लोगों की तुलना में न्याशी भोजन के रूप में कीटों की अधिक प्रजातियों का उपयोग करते हैं, जिनमे
से अधिकांशतः कोलोप्टेरा और हेमिप्टेरा (Coleoptera and Hemiptera) का उपभोग किया
जाता है। वहीँ दूसरी ओर, गैलो के बीच, ओडोनाटा और ऑर्थोप्टेरा (Odonata and Orthoptera)
प्रमुखता से प्रयोग किये जाते हैं। इन समाजों में कीड़ों की बारह प्रजातियों को स्थानीय लोगों द्वारा
चिकित्सीय रूप से मूल्यवान माना जाता है, और इनका उपयोग जनजातियों द्वारा मनुष्यों और
घरेलू पशुओं में विभिन्न प्रकार के विकारों के इलाज़ के लिए किया जा रहा है। Nyishi और Galo में
चींटियों का उपयोग भी महत्त्वपूर्ण है, इन फार्मिक एसिड युक्त कीड़ों का उपयोग मनुष्यों में खुजली,
मलेरिया, दांतों में दर्द, पेट के विकार, रक्तचाप की विसंगतियों आदि और पैर और मुंह की बीमारी
के साथ-साथ मवेशियों में कृमि संक्रमण के सम्बंध में किया जा रहा है।
संदर्भ
https://bit.ly/35XZawa
https://bit.ly/3gxvKc7
https://bit.ly/3hcv2SU
https://bit.ly/3y39cYM
https://bit.ly/3A18oWl
चित्र संदर्भ
1. प्रोटीन से भरपूर झींगुर का एक चित्रण (flickr)
2. दीमक से घाव पर कटवाने का एक चित्रण (youtube)
3. मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित एक पौधे का राल का एक चित्रण (flickr)
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