पर्यावास विखंडन (habitat fragmentation) क्या है? और प्रकृति तथा मानव विकास इसे कैसे प्रभावित करता है?

मेरठ

 17-04-2021 02:10 PM
नगरीकरण- शहर व शक्ति

आज से कई सदियों पूर्व जब मानवता विकसित हो रही थी, तथा पहिये के आविष्कार के बाद बड़ी ही तेज़ी के साथ सड़कों का विकास हुआ, दुनिया भर में सड़कों का जाल सा बिछ गया। जिससे किसी शहर का कई भु-भाग पूरी दुनिया से एकदम अलग-थलग पड़ गए। जब कोई भी जमीनी क्षेत्र सड़कों अथवा शहरों के निर्माण के कारण अलग थलग पड़ जाता है, तो इस प्रक्रिया को पर्यावास विखंडन (habitat fragmentation) कहते हैं। इस तरह के स्थानों का बाहर की दुनिया खास तौर पर जंगलों से संपर्क पूरी तरह टूट जाता है। चूंकि यह क्षेत्र अन्य भू-क्षेत्रों से अलग थलग-पड़ जाता है, इस कारण कोई भी जीव जंतु यहाँ से न तो बाहर जा सकता हैं और न की कोई दूसरा वन्य जीव इस क्षेत्र में दाखिल हो सकता है। साथ ही कोई खास वनस्पति अथवा पेड़ पोंधों की नयी नस्ल भी प्राकर्तिक रूप से इस क्षेत्र में पानी अथवा हवा आदि के माध्यमों से नहीं आ सकती है।

पर्यावास विखंडन के कारण अलग पड़े हुए क्षेत्र का कोई भी जीव अपने निश्चित सीमा क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता। और अपनी प्रजाति के जीव-जंतु से प्रजनन भी नहीं कर सकता। जिससे उस खास प्रजाति के विलुप्त होने की गंभीर समस्या उत्पन्न हो रही है। यह तब और अधिक गंभीर हो जाती है,जब कोई दुर्लभ प्रजाति का जीव किसी खास भू-क्षेत्र के अंदर फस गया हो। इस तरह के जीव जंतुओं में बेहद छोटे कीटों से लेकर विशालकाय जानवर तक शामिल हो सकते हैं। के पर्यावास विखंडन कारण अनेक प्रकार की परेशानियां नज़र आ रही हैं, तथा भविष्य में इन परेशानियों में अधिक इजाफा हो सकता है।
● इससे किसी विशिष्ट जीव की आबादी के विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
● पर्याप्त भोजन के अभाव में जानवरों की मृत्यु दर बढ़ सकती है।
● निश्चित क्षेत्र में रहने के कारण जीव-जंतु तनाव के शिकार हो सकते हैं और विभिन्न प्रकार के नए रोग हो सकते हैं।

● सीमित वातावरण के कारण जंतुओं में प्रतिकूल आनुवंशिक प्रभाव; यानी इनब्रीडिंग डिप्रेशन (अवसादग्रस्त प्रजनन क्षमता) की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
● जानवरों के भागने-छुपाने के लिए पर्याप्त क्षेत्र का अभाव होता है जिससे अवैध शिकार की संभावना बढ़ जाती है।

● तूफ़ान, जंगल की आग, और बाढ़ जैसी भयंकर आपदाओं में जंगली जानवर पूर्णतया विलुप्त हो सकते हैं।साथ ही विशिष्ट पोंधे-पेड़ आदि की प्रजाति भी विलुप्त हो सकती है।
● स्थानीय आबादी के विलुप्त होने की संभावना बढ़ जाती है।
पर्यावास विखंडन के कई कारण हो सकते हैं। जिनमे से कुछ प्राकृतिक हैं,तथा कुछ मानवीय।
प्राकृतिक कारण
प्राकृतिक प्रक्रियाओं जैसे ज्वालामुखी, अग्नि और जलवायु परिवर्तन के माध्यम से भी आवास का विघटन संभव है। 300 मिलियन साल पहले, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों में गड़बड़ी के कारण, प्रजातियों की आनुवंशिकता में एक बड़ा परिवर्तन देखा गया था।
मानवीय कारण
निरंतर बढ़ते शहरीकरण ने पर्यावास विखंडन को बेहिसाब बढ़ा दिया है। जंगलों को काट कर वहI पर नए गाँव बनाए जा रहे है। कुछ इलाकों में पेड़ों को काटकर खेती की जा रही है। जिससे बड़े भू भाग चारो तरफ से आबादी से घिर चुके, तथा बीच के भु-भाग बाहर की दुनिया से अलग-थलग पड़ गए हैं। बड़े कृत्रिम जलाशय बनाए जा रहे हैं, जो भूमि को विभाजित कर रहे हैं। जिसके कारण जैव विविधता में बड़ा अंतर देखा जा रहा है। परन्तु पर्यावास विखंडन का सबसे बड़ा कारण सड़कों का बढ़ता फ़ैलाव है। जो की जमीन को समुद्री द्वीपों की भांति विभाजित कर रहा है। परन्तु सड़कें कई मायनो में मनुष्य के विकास के लिए ख़ास महत्तव रखती हैं। अमेज़न के जंगलों में कुछ दो सौ और पचास मील चौड़े वनों की कटाई की गयी है। जो एक छोर से दूसरी छोर को जोड़ती है। जिस कारण धरती का यह भु-भाग पूरी दुनिया के प्रकर्तिक क्षेत्र से अलग-थलग पड़ जाता है। इस महीने दिल्ली- मेरठ एक्सप्रेस वे यातायात के लिए खोल दिया गया। यह ढाई घंटे से अधिक के बजाय मेरठ और दिल्ली के बीच यात्रा के समय को घटाकर 45 मिनट कर देगा। सड़कों का विकास कई मायनों में इंसानो के समय की बचत करता है। इसलिए यह भी आवश्यक है कि विकास और प्रकर्ति को साथ में लेकर चला जाये।

सन्दर्भ:
● https://bit.ly/3uDAJyd
● https://bit.ly/3dQxEEl
● https://bit.ly/2OCApAx
चित्र सन्दर्भ:
1. हैबिटेट विखंडन का उदाहरण
2. भारत में निवास स्थान विखंडन का उदाहरण

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