मौत की प्रकृति और महत्व का विषय काफी समय से विभिन्न प्रकार के लोगों के साथ-साथ कई दार्शनिकों के लिए भी जिज्ञासा, चर्चा या विचार का विषय है। हमें सभी जीवित चीजों की मृत्यु को कैसे समझना चाहिए? तथा कैसे अपनी खुद की मृत्यु के बारे में सोचना या विचार करना चाहिए?, क्या व्यक्तियों के लिए जैविक मृत्यु से बचना संभव है?, ये वो प्रश्न हैं, जो बीसवीं शताब्दी में विश्लेषणात्मक और महाद्वीपीय दर्शन में मौजूद हैं। मृत्यु के बाद किसी प्राणी का क्या होगा?, इस बारे में पूरी दुनिया में मौजूद विचारों को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले विचार के अनुसार, मानव केवल एक ही जीवन व्यतीत करता है, तथा दूसरे के अनुसार, मानव कई जीवन जीता है। जो लोग यह मानते हैं, कि जीवन केवल एक ही बार मिलता है, उन्हें पुनः तीन विचारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। पहले विचार के अनुसार, जीवन के अंत के बाद जीव का कुछ नहीं होता, दूसरे के अनुसार, शरीर के अंत के बाद जीव मृत्यु लोक में चला जाता है, तथा तीसरे के अनुसार मरने के बाद व्यक्ति या तो स्वर्ग जाता है, या फिर नरक। जो लोग यह मानते हैं कि, मानव कई जीवन व्यतीत करता है, वे पुनर्जन्म पर विश्वास करते हैं। पुनर्जन्म, वह दार्शनिक या धार्मिक मान्यता है, जो यह मानती है कि, जैविक मृत्यु के बाद जीवित प्राणी का गैर-भौतिक तत्व या आत्मा एक अलग भौतिक रूप या शरीर में प्रवेश कर नया जीवन शुरू करती है। पुनर्जन्म पर विश्वास करने वाले लोग यह मानते हैं, कि जब तक व्यक्ति को जीवन का सबक प्राप्त नहीं हो जाता तब तक वह धरती पर जन्म लेता रहता है, तथा मृत्यु के बाद तथा फिर से जन्म लेने के बीच के समय में उसे अपने कर्म के आधार पर स्वर्ग या नरक की प्राप्ति भी होती है। प्राचीन मिस्र (Egypt) के लोगों ने पिरामिड (Pyramid) का निर्माण किया, क्यों कि वे अनंत जीवन काल में विश्वास करते थे। इसके अलावा कुछ धर्मों में मृतोत्थान का विचार भी दिया गया है, जिसके अनुसार आत्मा उसी शरीर में वापस प्रवेश करती है, जिसे उसने त्यागा था। पुनर्जन्म से जुड़ी अधिकांश मान्यताओं में, आत्मा को अमर तत्व माना जाता है, जबकि शरीर को नाशवान माना जाता है। मृत्यु के बाद, आत्मा फिर एक नये शरीर में प्रवेश करती है, फिर चाहे वह शरीर शिशु का हो या जानवर का। पुनर्जन्म का विचार कई प्राचीन संस्कृतियों में पाया जाता है, तथा ऐतिहासिक यूनानी (Greek) हस्तियों, जैसे पाइथागोरस (Pythagoras), सुकरात (Socrates) और प्लेटो (Plato) ने भी इस पर विश्वास किया है। यह विभिन्न प्राचीन और आधुनिक धर्मों जैसे कि, आत्मावाद (Spiritism), थियोसोफी (Theosophy) आदि की भी सामान्य धारणा है। यह विश्वास दुनिया भर के कई आदिवासी समाजों में भी मौजूद हैं, जिनमें ऑस्ट्रेलिया (Australia), पूर्वी एशिया (Asia), साइबेरिया (Siberia) और दक्षिण अमेरिका (America) शामिल हैं। प्राचीन पश्चिमी दर्शन में, प्लेटो ने आत्मा के जन्म से पूर्व अस्तित्व में होने तथा शरीर की मृत्यु के बाद भी निरंतर बने रहने को स्वीकारा है। पुनर्जन्म की धारणा की उत्पत्ति अस्पष्ट है, किंतु इस विषय की चर्चा भारत की दार्शनिक परंपराओं में दिखाई देती है। पुनर्जन्म का विचार (समसरा - saṃsāra), प्रारंभिक वैदिक धर्मों में नहीं था। इसका अस्तित्व भगवान बुद्ध और महावीर से भी पहले वैदिक काल के उपनिषदों में दिखायी देता है। जन्म और मृत्यु के चक्र, आंशिक मृत्यु आदि का विचार तपस्वी परंपराओं से उत्पन्न हुआ जो, भारत में पहली सहस्राब्दी ईसा पूर्व के मध्य में उत्पन्न हुई थीं। प्रारंभिक वेदों में कर्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत का उल्लेख नहीं है, लेकिन वे जीवन के बाद के जीवन में विश्वास करते हैं। इस बारे में विस्तृत विवरण विभिन्न परंपराओं जैसे बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू दर्शन के विभिन्न विचारों में भी मिलते हैं। ‘जीवन के बाद के जीवन’ पर प्रमुख विचार धर्म, तत्वमीमांसा आदि से उत्पन्न हुए हैं।
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद के जीवन को लेकर पुनर्जन्म, स्वर्ग-लोक, नरक-लोक आदि धारणाएं या विश्वास मौजूद हैं। यह अमरता की अवधारणा पर भी विश्वास करता है। हिंदू धर्म में यह माना जाता है कि, मरने के बाद व्यक्ति या तो दूसरा रूप लेकर धरती पर फिर से जन्म लेगा या फिर दूसरी दुनिया में चला जायेगा। उपनिषदों के अनुसार आत्मा के शरीर से निकलने के बाद यह एक विशेष चेतना से युक्त होकर एक ऐसे शरीर में प्रवेश करती है, जो उस चेतना से संबंधित होता है। वह व्यक्ति जो शुद्ध जीवन जीता हुआ ब्रह्म का ज्ञान प्राप्त कर लेता है, वह देवलोक में चला जाता है। वे लोग जो पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर पाते, वे ब्रह्मलोक में भेजे जाते हैं, जहां से वे मुक्ति को प्राप्त करते हैं। जो लोग परोपकारी व दान पुण्य करते हैं, वे पितृ लोक को प्राप्त करते हैं, तथा वहां सुख भोगकर वापस पृथ्वी पर आ जाते हैं। कर्म के आधार पर अशुद्ध तथा निषिद्ध कार्यों में संलग्न लोगों को मरने के बाद नरक की प्राप्ति होती है तथा अपने बुरे कार्यों का दंड भोगने के बाद, वे फिर से मानव शरीर में पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार जो लोग जीवन रहते ही आत्म-ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, वे अंततः ब्रह्म में लीन होकर मूल तत्व में मिल जाते हैं। इस्लाम धर्म की बात करें, तो यह मृत्यु के बाद के जीवन, पुनर्जन्म आदि को अस्वीकार करता है। यह जीवन की एक रैखिक अवधारणा से सम्बंधित है, जिसके अनुसार मनुष्य का केवल एक ही जीवन होता है। मृत्यु के बाद उसके कर्म के आधार पर उसे ईश्वर द्वारा जन्नत के रूप में या तो पुरस्कृत किया जाता है या फिर दंड के रूप में जहन्नुम भेज दिया जाता है। इनका मानना है, कि जो मनुष्य ईश्वर पर पूरी श्रद्धा और विश्वास करता है, तथा धार्मिक या अच्छे काम करता है, उसे जन्नत की प्राप्ति होती है, किंतु जो इस्लाम धर्म या कुरान के विपरीत चलता है, वह मृत्यु के बाद जहन्नुम में चला जाता है। इनके अनुसार मृत्यु के बाद जीवन शाश्वत और चिरस्थायी हो जाता है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3qfMI3b
https://bit.ly/3pdywqh
https://bit.ly/3qfMSHP
https://stanford.io/3tSjauU
https://bit.ly/3pcM59x
चित्र संदर्भ:
मुख्य तस्वीर जीवनकाल के बाद दिखाती है। (पिक्साबे)
दूसरी तस्वीर में पुनर्जन्म का पहिया दिखाया गया है, जो पुनर्जन्म के बौद्ध चक्र को रेखांकित करता है। (विकिमीडिया)
तीसरी तस्वीर में आत्मा और मोक्ष पर हिंदुओं के विश्वास को दिखाया गया है। (विकिमीडिया)