किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा विनिमय दर तथा व्यापार संतुलन का बहुत अधिक महत्व होता है। मुद्रा विनिमय दर की बात करें तो, यह दो अलग-अलग मुद्राओं की सापेक्ष कीमत है, जो यह बताती है कि, आपके देश की मुद्रा का विदेशी मुद्रा में कितना मूल्य है। दूसरे शब्दों में, आपके देश की मुद्रा द्वारा किसी अन्य देश की मुद्रा को जितने मूल्य में खरीदा जाता है, वह विनिमय दर कहलाती है। कुछ देशों के लिए, विनिमय दरें लगातार बदलती रहती हैं, जबकि कुछ निश्चित विनिमय दर का उपयोग करते हैं। विनिमय दर 2 प्रकार की होती है, पहली लचीली और दूसरी स्थिर। लचीली विनिमय दरों में लगातार बदलाव होता रहता है, जबकि निश्चित विनिमय दरों में शायद ही कभी बदलाव होता है। लचीली मुद्रा विनिमय दरें अधिकांशतः विदेशी मुद्रा बाजार द्वारा निर्धारित की जाती हैं, जबकि स्थिर मुद्रा विनिमय दरें केवल सरकार के आदेश पर बदलती हैं। ये दरें आमतौर पर अमेरिकी डॉलर (U.S Dollar) से सम्बंधित होती हैं। विनिमय दरों को कई कारक प्रभावित करते हैं जिनमें, मुख्य रूप से ब्याज दरें, मुद्रा आपूर्ति और वित्तीय स्थिरता शामिल हैं। किसी देश के केंद्रीय बैंक द्वारा दी जाने वाली ब्याज दर विनिमय दरों को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारक है। उच्च ब्याज दर किसी भी देश की मुद्रा को अधिक मूल्यवान बनाती है।
निवेशक अपनी मुद्रा का आदान-प्रदान उस देश को करते हैं, जो अधिक भुगतान करेगा। वे तब उच्च ब्याज दर प्राप्त करने के लिए इसे उस देश के बैंक में रखेंगे। दूसरा कारक मुद्रा आपूर्ति है, जिसे देश के केंद्रीय बैंक द्वारा बनाया जाता है। अगर सरकार बहुत अधिक मुद्रा छापती है, तो कुछ वस्तुओं के लिए भी बहुत अधिक व्यय करना पड़ता है। मुद्रा धारक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि करेंगे, जिससे महंगाई उत्पन्न होगी। विनिमय दर को प्रभावित करने वाला तीसरा मुख्य कारक किसी देश की आर्थिक वृद्धि और वित्तीय स्थिरता है। यदि देश में एक मजबूत, बढ़ती अर्थव्यवस्था है, तो निवेशक इसकी वस्तुओं और सेवाओं को खरीद लेंगे। इसके अलावा मुद्रा विनिमय दरों को प्रभावित करने वाले अन्य कारक परिकल्पनाएं, प्रतिस्पर्धा में बदलाव, अन्य मुद्राओं की सापेक्ष शक्ति, भुगतान संतुलन, सरकारी ऋण, सरकारी हस्तक्षेप आदि भी हैं। इसी प्रकार से व्यापार संतुलन जिसे, वाणिज्यिक संतुलन या शुद्ध निर्यात भी कहा जाता है, एक निश्चित समय अवधि में किसी देश के निर्यात और आयात के मौद्रिक मूल्य के बीच का अंतर है। व्यापार का संतुलन किसी निश्चित समय में निर्यात और आयात के प्रवाह को मापता है। व्यापार संतुलन की धारणा का मतलब यह नहीं है कि, निर्यात और आयात एक दूसरे के साथ "संतुलन में" हैं। यदि कोई देश वस्तुओं का निर्यात, आयात से अधिक करता है, तो उसका व्यापार संतुलन सकारात्मक है, इसके विपरीत यदि कोई देश वस्तुओं का निर्यात, आयात से कम कर रहा है, तो उसका व्यापार संतुलन नकारात्मक है।
व्यापार संतुलन और मुद्रा विनिमय दरें अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण तो हैं ही, साथ ही एक-दूसरे को प्रभावित भी करती हैं। क्यों कि, व्यापार संतुलन का विदेशी मुद्रा की आपूर्ति और मांग पर प्रभाव होता है, इसलिए यह मुद्रा विनिमय दरों को भी प्रभावित करता है। यदि किसी देश का व्यापार संतुलन सकारात्मक है, तो उस देश की मुद्रा के लिए आपूर्ति या मांग अपेक्षाकृत अधिक होती है। इसके विपरीत यदि देश का व्यापार संतुलन नकारात्मक है, तो उसकी मुद्रा की मांग अपेक्षाकृत कम होगी। इस प्रकार मांग या आपूर्ति के रूप में व्यापार संतुलन, मुद्रा विनिमय दरों को प्रभावित करता है, जिससे मुद्रा के मूल्य की मांग या तो बढ़ती है या फिर कम होती है। क्रिसिल (Crisil) के अनुसार, भारत के कुल माल का लगभग 18% हिस्से का आयात चीन से होता है। 2019 के अनुसार भारत में व्यापार न्यूनता (आयात-निर्यात) 159 बिलियन (Billion) डॉलर थी और यह चीन के 56 बिलियन डॉलर का शुद्ध आयातक बना हुआ है। यह कमी इलेक्ट्रॉनिक्स (Electronics), कंज्यूमर ड्यूरेबल्स (Consumer durables), ऑटो कंपोनेंट्स (Components) और फार्मा (Pharma) में स्थापित उद्योगों को प्रभावित करती है। 2018 के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) के अनुसार, 2017-18 में देश का वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि 6.5 प्रतिशत थी। इस समय मुद्रास्फीति जो कि, 3.6 थी, लक्ष्य तक नहीं पहुंच पायी, क्यों कि, भारतीय रिज़र्व बैंक का मुद्रास्फीति लक्ष्य 4 प्रतिशत था। इस आधार पर, भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी ब्याज दर को अपरिवर्तित रखते हुए 6.5 प्रतिशत रखने का निर्णय लिया। भारतीय रिज़र्व बैंक से फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) के अनुरूप ब्याज दरें बढ़ाने की उम्मीद की जा रही थी, किंतु ऐसा नहीं हुआ और नतीजतन डॉलर के मुकाबले रुपया 74.2 के सर्वकालिक निचले स्तर पर आ गया। किंतु ध्यान देने योग्य बात यह है कि, इस स्थिति में बैंक द्वारा विनिमय दर को लक्षित नहीं किया गया था। रुपये की विनिमय दर आधिकारिक तौर पर अमेरिकी डॉलर के मुकाबले कमजोर है तथा बदलती रहती है, तथा भारतीय रिज़र्व बैंक, अपने मुद्रास्फीति लक्ष्य को पूरा करने के लिए ब्याज दरों को निर्धारित करता है। हाल के वर्षों में, भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था का विस्तार करने के लिए कम तेल की कीमतों और भरपूर आपूर्ति पर भरोसा किया है। लेकिन तेल की डॉलर कीमत बढ़ रही है। इसके अतिरिक्त, रुपये की गिरती डॉलर विनिमय दर के कारण, रुपये में तेल की कीमत भी बढ़ रही है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की मुद्रास्फीति में योगदान दे रहा है।
भारतीय रिज़र्व बैंक के सितंबर 2018 के आंकड़ों में सामान्य मूल्य स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि का कोई साक्ष्य नहीं प्राप्त हुआ, इसलिए तेल की बढ़ती कीमत के बावजूद, ब्याज दरों को अपरिवर्तित ही रहने दिया गया। तेल की बढ़ती कीमत भारत के वर्तमान खाता कमी (Account deficit) को भी बढ़ाती है। यदि यह घाटा लगातार बढ़ता गया तो विदेशी निवेशक अचानक अपनी पूंजी को वापस ले सकते हैं।
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