सिंधु लिपि विश्व की कई प्राचीनतम लिपियों में से एक है। सिंधु सभ्यता के दौरान विकसित होने के कारण इसे हड़प्पाई लिपि से भी सम्बोधित किया जाता है। यह भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञात लेखन का सबसे प्रारंभिक रूप है जिसकी उत्पत्ति तथा विकास की प्रक्रिया अस्पष्ट है क्योंकि लिपियों को अब तक पढ़ा या समझा नहीं जा सका है। यह कोई द्विभाषी लेख नहीं दर्शाती जिस कारण भारतीय लेखन प्रणाली के साथ भी इसका सम्बंध अस्पष्ट है। हड़प्पा के शुरुआती चरणों के दौरान उपयोग की गयी सिंधु लिपि के संकेतों के उदाहरण खुदाई के दौरान ‘रावी और कोट दीजी’ मिट्टी के बर्तनों में प्राप्त हुए। मिट्टी के बर्तनों की सतह पर केवल एक चिह्न ही प्रदर्शित होता है। इसका पूरा विकास 2600-1900 ईसा पूर्व के दौरान हुआ था। इस दौर के कई शिलालेख दर्ज किए गए हैं। सिंधु लेखन के उदाहरण मुहरों और सील (Seal) छापों, मिट्टी के बर्तनों, कांस्य उपकरण, पत्थर की चूड़ियों, हड्डियों, सीढ़ी, हाथी दांत, और तांबे से बनी छोटी गोलियों पर पाए गए।
मेरठ शहर के आलमगीरपुर में खुदाई के दौरान सिंधु घाटी की कई कलाकृतियाँ प्राप्त हुईं जिसमें सिंधु लिपि के उदाहरण भी प्राप्त हुए। इस स्थल की खुदाई 1958 और 1959 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा की गई थी। इसके अतिरिक्त वहां ब्रह्मी लिपि के भी कई शिलालेख और अभिलेख प्राप्त हुए। ब्रह्मी लिपि के साक्ष्य सम्राट अशोक के शिलालेखों व अभिलेखों में प्राप्त होते हैं जिन्हें कई भाषाओं और लिपियों में लिखा गया है। भारत में यह अधिकांश ब्रह्मी लिपि का उपयोग करते हुए प्राकृत में लिखे गए हैं। चूंकि सिंधु लिपि को अभी तक समझा नहीं जा सका है इसलिए इसका उपयोग भी निश्चितता के साथ व्यक्त कर पाना मुश्किल है। यह केवल पुरातात्विक साक्ष्य पर आधारित है। माना जाता है कि सिंधु लिपि का उपयोग एक प्रशासनिक उपकरण के रूप में किया जाता था क्योंकि मिट्टी से बने कई टैगों (Tags) को वस्तुओं पर पाया गया था जो शायद उस दौरान व्यापार के लिए प्रयोग किये गये थे। इनमें से कुछ मिट्टी के टैग मेसोपोटामिया क्षेत्र में भी पाए गए जो यह प्रदर्शित करता है कि उस समय व्यापार सिंधु सभ्यता तक ही सीमित नहीं था। सिंधु लिपि का उपयोग काल्पनिक कथाओं के संदर्भ में भी किया गया था क्योंकि उस युग के कई मिथकों या कहानियों से संबंधित ऐसे चित्र प्राप्त हुए जिन पर इस लिपि का उपयोग किया गया था। सिंधु लिपि में लगभग 400 से अधिक मूल संकेतों की पहचान की गई है। इनमें से 31 संकेत 100 से अधिक बार उपयोग किये गये हैं, जबकि बाकी नियमित रूप से उपयोग नहीं किए गए थे। सम्भवतः यह लिपि नाश हो जाने वाली सामग्रियों पर लिखी गई थी (जैसे ताड़ के पत्ते पर) जो समय के विनाश से नहीं बच पाए। ताड़ के पत्ते और बांस की नलियों का व्यापक रूप से उपयोग दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में लेखन सतहों के रूप में किया गया था। सिंधु लिपि के रहस्य को उजागर करना विद्वानों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है क्योंकि इसका कोई भी द्विभाषी शिलालेख मौजूद नहीं है जिससे इसकी अन्य लिपियों के साथ तुलना की जा सके या व्याख्या की जा सके। इसकी व्याख्या के लिए एक और बाधा यह है कि अब तक पाए गए सभी शिलालेख अपेक्षाकृत छोटे हैं जिनमें 30 से कम संकेत लिखे हुए हैं अर्थात लेखन प्रणाली को समझने के लिए अन्य किसी तकनीक की आवश्यकता है। हालांकि लिपि की समझ अभी तक अस्पष्ट है किंतु विद्वानों ने इसके संदर्भ में कुछ बिंदु ज्ञात किए जोकि निम्नलिखित हैं: • सिंधु लिपि आम तौर पर दाएं से बाएं लिखी जाती थी।© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.