यात्रा पर ज्यादा समय खर्च करना आर्थिक और शारीरिक दोनों प्रकार से क्षय का कारण है। मेरठ से रोजाना एक बड़ी आबादी दिल्ली, नॉएडा व गुरुग्राम का सफ़र करती है। मेरठ के एक नागरिक को बस या ट्रेन द्वारा नॉएडा पहुँचने में 2 घंटे लगते हैं, और वहीं गुड़गाँव जाने में 3 घंटे लगते हैं। ऐसे हर दिन सफ़र करने से लोग दिन के 2 घंटे बर्बाद कर देते हैं, सवाल यह उठता है कि क्या काम करने के लिए लोगों का यात्रा में समय गंवाना ठीक है? लोगों में काम करने को लेकर लम्बी दूरी तय करना आज एक परेशानी का मुद्दा बन गया है। ऐसा केवल भारत में नहीं है बल्कि विश्व भर के लोग इससे प्रभावित हैं। लन्दन आदि जैसे स्थानों पर भी लोग 4 घंटे का सफ़र करते हैं जो एक चिंता का विषय है। अमेरिका में भी एक बड़ी आबादी यात्रा में अपना काफी समय गंवाती है, औसतन कामकाजी अमेरिकी व्यक्ति रोजाना 26 मिनट यात्रा में गुजारता है, हम अपने जीवन के कितने दिन काम पर जाने को लेकर यात्रा में गंवाते हैं:-
* अगर 15 मिनट में कार्यकर्ता काम पर पहुँच जाए तो वह साल में 5.2 दिन गंवाता है।
* अगर 26 मिनट लगे तो वह साल में 9 दिन गंवाता है।
* अगर 45 मिनट लगे तो वह साल में 16 दिन गंवाता है।
* अगर 60 मिनट लगे तो वह साल में 21 दिन गंवाता है।
* अगर 90 मिनट लगे तो वह साल में 32 दिन गवाता है।
इसी कारण बहुत से लोग काम करने के लिए यात्रा करना पसंद नहीं करते, वे मानते हैं कि इससे उनका अहम् समय बर्बाद होता है। काम पर जाने को लेकर लम्बी दूरी तय करने से रोग भी हो सकते हैं जैसे पीठ और गले का दर्द, उच्च रक्त चाप और यहाँ तक कि मौत भी हो सकती है।
यूनाइटेड किंगडम में एक औसत कार्यकर्ता को काम पर पहुँचने के लिए डेढ़ घंटे का समय लगता है और इससे हर महीने 160 यूरो का खर्च होता है। लम्बी दूरी तय करने से काफ़ी परेशानियाँ आती हैं लेकिन वहीं अगर काम कम दूरी पर हो तो इसके काफ़ी फ़ायदे हैं।
* इससे परिवार के साथ समय गुज़ारने का काफ़ी वक़्त मिलता है।
* यात्रा पर खर्च काफ़ी कम होता है।
* इससे स्वास्थ्य ठीक रहता है।
* लोग काम पर अच्छी प्रतिक्रिया दिखाते हैं।
भारत में भी कई लाख लोग रोजाना काम पर जाने के लिए घंटो का सफ़र तय करते हैं। भारतीय शहरों में से राजकोट एक ऐसा शहर है जहाँ पर कार्यकर्ताओं की फ़ीसदी काफ़ी जयादा है। वसई विरार के आधे से ज्यादा लोग 20 किलोमीटर का फ़ासला तय करते हैं, इनमें आगरा की 71 प्रतिशत महिलाएँ काम पर जाने के लिए सफ़र नहीं करती। भारतीय जनगणना के मुताबिक यह पता चला है कि जो लोग खेतीबाड़ी और औद्योगिक काम में नहीं हैं वे लोग काम पर जाने के लिए सफ़र करते हैं।
20 प्रतिशत से कम लोग सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल करते हैं (भारत के 53 शहरों में से 33 शहरों में)। केरल और मुंबई में लोग सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। एक औसत भारतीय को कार्य पर पाहुंचने के लिए 45 मिनट का समय लगता है लेकिन कुछ को 30 मिनट लगता है, इससे काफ़ी खर्च भी होता है और इससे दिमाग पर भी काफ़ी असर होता है। इस प्रकार से हम देख सकते हैं कि मेरठ का एक आम कामकाजी यात्री अपने वर्ष के कितने दिन मात्र यात्रा में गुज़ार देता है।
1.https://www.theguardian.com/commentisfree/2016/nov/22/commute-over-two-hours-super-commuters-priced-out-of-inner-cities
2.https://www.weforum.org/agenda/2016/03/this-is-how-much-time-americans-spend-commuting-to-work
3.https://www.project-resource.co.uk/blog/2017/02/how-long-is-too-long-for-a-commute-to-work
4.https://www.livemint.com/Politics/fGoGvxB8bWUaXV5iN3AdVI/How-people-in-Indias-top-53-cities-commute-to-work.html
5.https://timesofindia.indiatimes.com/life-style/health-fitness/de-stress/kill-the-commute/articleshow/61875318.cms
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