परीक्षितगढ़ किला, मेरठ का एक ऐतिहासिक धरोहर है। इसका इतिहास बहुत पुराना है और प्राचीन काल की किवदंतियों से जुड़ा हुआ है। यह भले ही भारत के बड़े किलों की तरह मशहूर न हो, लेकिन इस क्षेत्र के इतिहास में, इसकी खास अहमियत है। इस किले का नाम महाभारत काल के एक प्रसिद्ध पात्र, 'राजा परीक्षित' के नाम पर रखा गया था। यह किला, कई स्थानीय शासकों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है।
परीक्षितगढ़ किले को आज भी 1857 के विद्रोह के दौरान अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाना जाता है। यह ब्रिटिश और भारतीय सेनाओं के बीच संघर्ष का गवाह बना। आज, यह किला, मेरठ के गौरवशाली अतीत की याद दिलाता है और हमें इतिहास की बदलती घटनाओं की झलक देता है। आज के इस लेख में, हम सबसे पहले इस किले के बारे में विस्तार से बात करेंगे। इसके बाद, हम एक किले और छावनी के बीच का अंतर समझेंगे। अंत में, मेरठ छावनी के संक्षिप्त इतिहास को जानेंगे।
परीक्षितगढ़, उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से में स्थित एक छोटा सा शहर है। यह नई दिल्ली से करीब 102.6 किलोमीटर दूर है। ऐसा माना जाता है कि इस प्राचीन शहर की स्थापना, महाभारत काल के प्रसिद्ध पात्र राजा परीक्षित ने की थी। राजा परीक्षित, पांडव अर्जुन के पोते थे। पांडव भाइयों के अपना राजपाट त्यागने के बाद, राजा परीक्षित ने हस्तिनापुर की गद्दी संभाली थी।
परीक्षितगढ़ का इतिहास बहुत प्राचीन और समृद्ध रहा है। इसकी कहानी में पौराणिक कथाओं और इतिहास का मेल नज़र आता है। कहा जाता है कि परीक्षितगढ़ को राजा परीक्षित ने बसाया। हालाँकि उनकी राजधानी हस्तिनापुर में थी, जो यहाँ से लगभग 25.7 किलोमीटर दूर है। उन्होंने परीक्षितगढ़ में एक पहाड़ी पर किला बनवाया। लेकिन इस जगह का अस्तित्व शायद इससे पहले भी था। पुराने समय के साक्ष्यों में एक गांधारी तालाब का जिक्र मिलता है। कहा जाता है कि रानी गांधारी इसी तालाब में स्नान किया करती थीं।
दुर्भाग्य से एक बार गंगा नदी में आई भयंकर बाढ़ ने इस क्षेत्र को तबाह कर दिया। उस बाढ़ में परीक्षितगढ़ के इतिहास का एक बड़ा हिस्सा भी खो गया। बाढ़ के बाद, राजा परीक्षित के वंशज, पाँचवें राजा निचक्षु, को राजधानी कौशाम्बी स्थानांतरित करनी पड़ी। राजा परीक्षित द्वारा बनाया गया किला, धीरे-धीरे वीरान हो गया। फिर, 18वीं शताब्दी में, मेरठ के शासक गुर्जर राजा नैन सिंह ने इस किले का जीर्णोद्धार कराया। लेकिन 1857 के दौरान, अंग्रेज़ो ने इस किले को तोड़ दिया और इसे एक पुलिस बैरक में बदल दिया।
‘किला” शब्द की जड़ें लैटिन भाषा के “फोर्टिस" शब्द में निहित हैं, जिसका अर्थ ‘ मज़बूत या दृढ़' होता है। भारत में इसे दुर्ग" कहा जाता है, जो संस्कृत के “दुर्गम" से लिया गया है। दुर्गम" का मतलब ‘कठिन” या पहुंच से बाहर' होता है। किले का मुख्य उद्देश्य किसी क्षेत्र को हमलों से बचाना था। शुरुआती किलेबंदी हमेशा एक जैसी नहीं होती थी। कई बार जंगल, नदियाँ, या पहाड़ जैसे प्राकृतिक सुरक्षा उपायों को ही किलेबंदी का हिस्सा बना लिया जाता था। इसके अलावा, शासक किले बनाने के लिए अपने क्षेत्र में मौजूद सामग्रियों का उपयोग करते थे। किले का डिज़ाइन इस बात पर भी निर्भर करता था कि इसके आसपास का भूभाग कैसा है। मसलन, चट्टानी क्षेत्रों में पहाड़ी किले बनाए जाते थे। वहीं, समतल भूमि पर, बस्तियों के चारों ओर मज़बूत दीवारें खड़ी कर दी जाती थीं।
पहले के दौर में, किले केवल पूरे निवासिय क्षेत्र को घेरते थे। लेकिन जैसे-जैसे बस्तियाँ बढ़ने लगीं, खास इलाकों, जैसे नेताओं के घर या धार्मिक स्थलों की सुरक्षा के लिए विशेष किलेबंदी की गई।
किले सिर्फ़ रक्षा के लिए नहीं होते थे। धीरे-धीरे, ये जगहें, घर, मंदिर, और अन्य गैर-सैन्य संरचनाओं का हिस्सा भी बन गईं। यानी किले केवल लड़ाई या सेना के ठिकाने तक सीमित नहीं थे। हालांकि कई बार लोग छावनी को भी किला समझने की भूल कर बैठते हैं! लेकिन वास्तव में, छावनी सैनिकों के स्थायी निवास के लिए बनाया एक विशेष क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र को मुख्य रूप से सेना के लिए तैयार किया जाता है! इसकी स्थापना सरकार करती है। आम तौर पर, छावनी में रहने, प्रशासन और मनोरंजन की सुविधाएँ होती हैं।
छावनी में सैनिकों के लिए हर ज़रूरी सुविधा उपलब्ध होती है। इनमें स्कूल, अस्पताल और सैनिकों व उनके परिवारों के लिए मनोरंजन के क्षेत्र आदि भी शामिल होते हैं। छावनियां, आमतौर पर बड़े शहरों के पास बनाई जाती हैं ताकि ज़रूरी चीज़ो तक आसानी से पहुंचा जा सके। छावनियाँ "छावनी अधिनियम" (Cantonments Act) के तहत चलाई जाती हैं। यह अधिनियम, इनके प्रबंधन से जुड़े नियम-कायदे तय करता है। मेरठ, पुणे, देवलाली और जालंधर में कुछ जानी-मानी छावनियाँ स्थित हैं।
मेरठ छावनी की स्थापना 1803 से 1806 के बीच हुई थी। उस समय मेरठ में कुछ देशी रेज़िमेंट तैनात थीं। सरकार ने यहां जमीन अधिग्रहण की, सड़कों का निर्माण शुरू किया और इमारतें बनाईं। इसके मेरठ में एक ऐसा शानदार सड़क नेटवर्क बना, जो आज भी काफ़ी हद तक वैसा ही है। उस समय की कई इमारतें आज भी ज्यों की त्यों खड़ी हैं।
मेरठ छावनी को एक खास रणनीतिक वजह से स्थापित किया गया था। इसका स्थान बहुत महत्वपूर्ण था! यह दिल्ली के करीब थी, जो उस समय शाही राजधानी थी। इसके अलावा, यह गंगा-यमुना दोआब में स्थित थी। यहाँ पर आसपास का इलाका बहुत उपजाऊ था, जो भरपूर भोजन और राजस्व प्रदान करता था। इन कारणों से यहां बड़ी सैन्य टुकड़ी को तैनात करना आसान था।
1800 के दशक की शुरुआत में, मेरठ छावनी गोरखाओं द्वारा नियंत्रित पहाड़ों और सिखों द्वारा शासित पंजाब के मैदानों का प्रवेश द्वार भी थी। अंग्रेज़ो ने इस छावनी का इस्तेमाल गोरखाओं और बाद में सिखों के खिलाफ़ अभियान चलाने के लिए एक बेस के रूप में भी किया। जल्द ही, यह उत्तरी भारत के सबसे महत्वपूर्ण ब्रिटिश सैन्य स्टेशनों में से एक बन गई। धीरे-धीरे, यह भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे बड़े सैन्य स्टेशनों में से एक बन गई।
इस छावनी को मेरठ के पुराने दीवारों वाले शहर के पास बनाया गया था। हालांकि, आज वह दीवार नहीं बची है। छावनी पुराने शहर से करीब दो से तीन किलोमीटर दूर थी, और उनके बीच खुला मैदान था। छावनी का आकार एक बड़े एल" के जैसा था। इसका उत्तरी हिस्सा पूर्व से पश्चिम की ओर फैला हुआ था, जबकि दक्षिणी हिस्सा उत्तर से दक्षिण की ओर फैला हुआ था।
इन दोनों हिस्सों के बीच लगभग आधा किलोमीटर का खुला मैदान था, जिसमें से अबू नाला बहता था। शुरुआत में, अबू नाला एक मीठे पानी की नहर थी। लेकिन समय के साथ, बढ़ती आबादी की वजह से यह सीवेज ले जाने वाली नहर बन गई।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2caupuna
https://tinyurl.com/yp5hak4x
https://tinyurl.com/26lu59bq
https://tinyurl.com/2bm5r8cn
चित्र संदर्भ
1. परीक्षितगढ़ में भगवान् शिव के मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. परीक्षितगढ़ की दूरी को दर्शाते बोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. परीक्षितगढ़ में एक मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. परीक्षितगढ़ में एक ज़िला विकास योजना के लोकार्पण बोर्ड को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
5. परीक्षितगढ़ में एक विशाल वृक्ष को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)