Post Viewership from Post Date to 07-Nov-2024 (5th) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
3034 85 3119

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

मेरठ वासियों की पसंदीदा जूतियां, अपने इतिहास व विशेषताओं के कारण हैं, काफ़ी लोकप्रिय

मेरठ

 02-11-2024 09:16 AM
स्पर्शः रचना व कपड़े
निस्संदेह ही, पारंपरिक भारतीय जूतियां, मेरठ के नागरिकों, विशेषकर महिलाओं के बीच काफ़ी लोकप्रिय हैं। जूती, एक प्रकार की पदत्राण है, जो उत्तर भारत, पाकिस्तान और पड़ोसी क्षेत्रों में आम है। पारंपरिक रूप से, वे चमड़े से बनी होती हैं, और व्यापक कढ़ाई के साथ, असली सोने और चांदी के धागों से भी बनी हो सकती हैं। इनमें सोने व चांदी का उपयोग, 400 साल पहले उपमहाद्वीप में, ब्रिटिश रॉयल्टी से प्रेरित है। इनके तल्ले/तलवे आमतौर पर, सपाट होते हैं, और महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए, डिज़ाइन में समान होते हैं। पुरुषों की जूतियों को छोड़कर, अन्य जूतियों में एक तेज़ विस्तारित नोक होती है। यह नोक ऊपर की ओर मुड़ी होती है, और ऐसी जूतियों को‘खुस्सा’ भी कहा जाता है। जबकि, कुछ महिलाओं की जूतियां, आधार रहित होती हैं। तो आइए, आज जूतियों और इनकी विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानें। फिर हम, इस बात पर ध्यान देंगे कि, जूतियां कैसे बनाई जाती हैं। आगे, हम भारत में जूतियों के इतिहास और विकास को समझने की कोशिश करेंगे। इसके अलावा, हम भारत में उपलब्ध, विभिन्न प्रकार की जूतियों पर कुछ प्रकाश डालेंगे। अंततः, हम देखेंगे कि भारत और विदेशों में जूतियां, इतनी लोकप्रिय क्यों हैं?
जूतियों की विशिष्ट विशेषताएं:
•ये पूरी तरह से, दस्तकारी से बनी और बहुमुखी होती हैं।
•इनमें बाएं या दाएं जोड़ का कोई अंतर नहीं है। निरंतर उपयोग के साथ, ये जूतियां, विशेष पैर का आकार ले लेती हैं।
•उनका तल्ला/तलवा आमतौर पर सपाट होता है, और महिलाओं और पुरुषों के लिए, डिज़ाइन समान होता है।
•जूतियों का वज़न, फ़्लिप फ़्लॉप से अधिक नहीं होता है।
भारत में, जूतियां कैसे बनाई जाती हैं?
1. सबसे पहले, कच्चे चमड़े को वनस्पति टैनिंग(Vegetable tanning) विधि का उपयोग करके संसाधित किया जाता है। किक्कर के पेड़ से प्राप्त टैनिन का इस उद्देश्य के लिए उपयोग किया जाता है।
2. उपचारित चमड़े को फ़िर कई भागों में काटा जाता है, जिसे बाद में, जूते के हिस्से के रूप में उपयोग किया जाता है।
3. जूते का ऊपरी हिस्सा, जो सिला हुआ है, और पीतल की कीलों से सजाया गया है, या तो चमड़े या कपड़े से बना होता है। सीपियां, दर्पण, घंटियां और चीनी मिट्टी के मोती, जूतियों के अन्य सजावट वस्तुओं में से हैं।
4. फ़िर जूते को एक साथ रखा जाता है, और एक शिल्पकार द्वारा इसकी फिनिशिंग की जाती है। पंजाब का शहर – पटियाला, भारत के सबसे बड़े जूती बाज़ार के लिए, जाना जाता है।
प्राचीन समय में, “चमार” समुदाय, कच्चे चमड़े के प्रसंस्करण का प्रभारी था, जबकि, “रंगार” समूह इन्हें सुखाने और रंगने का प्रभारी था। “मोची” समुदाय की महिलाएं कढ़ाई, सजावट और ये टुकड़े एक साथ लगाने के नाज़ुक कार्य की प्रभारी थीं।
भारत में जूतियों का इतिहास और विकास:
जूतियों की उत्पत्ति, 12वीं शताब्दी में हुई, जब इसकी लंबाई को, इसे पहनने वाले व्यक्ति की समृद्धि के अनुसार माना जाता था। 16वीं सदी की शुरुआत में, सलीम शाह द्वारा लोकप्रिय बनाए जाने के कारण, इसे ‘सलीम शाहिस’ भी कहा जाता था। 17वीं शताब्दी के बाद से, सम्राट जहांगीर के शासनकाल के दौरान, उल्टे पैर की जूतियों वाली मोजिरिस लोकप्रिय थीं। जबकि, यथोचित जूती की उत्पत्ति, लगभग 500 साल पहले, उत्तर भारत में हुई थी।
भारत में मुगलों के आगमन से पहले, चमड़े और प्राकृतिक रेशों का उपयोग, आम लोगों के लिए जूते बनाने में किया जाता था। जबकि, लकड़ी के जूते तपस्वियों के बीच ‘खरौन’ या ‘पादुका’ के नाम से लोकप्रिय थे। जूती, एक बंद ऊपरी हिस्से वाले जूते, या तलवे से जुड़े ‘उपरला’ के लिए, एक उर्दू शब्द है। इसे पहली बार, मुगलों द्वारा पेश किया गया था, और यह राजपरिवार के बीच बेहद लोकप्रिय था।
हम इन्हें अब हम, जूतियां, कहकर जानते हैं। इन्हें उन राजाओं और रानियों द्वारा संरक्षित और लोकप्रिय बनाया गया था, जो भारत के सबसे अमीर युग का हिस्सा थे। जूते की उत्पत्ति, राजस्थान के केंद्र से हुई है। उस समय की शैली, अलंकरण, बनावट और डिज़ाइन के मामले में अधिक विस्तृत और जटिल थी। तब, जूतियां, मोतियों और रत्नों से सजी हुई थीं। सबसे पहली जूती, कसूर क्षेत्र में बनाई गई थी, जो अब पाकिस्तान में है। यह मुगल काल के दौरान प्रसिद्ध थीं, क्योंकि, उस समय हर कोई चमड़े से बने जूते पहनता था और राजपरिवार कुछ अलग और अधिक असाधारण चाहता था। इसलिए, इन जूतियों को भारी सोने की कढ़ाई, कीमती रत्नों से सजाया गया था और महंगे चमड़े का उपयोग करके बनाया गया था।
भारत में, विभिन्न प्रकार की जूतियां:
1.) सलीम शाही जूती: इस प्रकार की जूती की विशेषता, एक नुकीली और कभी-कभी कुदाल के आकार के तलवे के साथ, मुड़ी हुई नोक होती है। इस शैली का नाम, प्रसिद्ध मुगल राजकुमार – सलीम (जहांगीर) के नाम पर रखा गया है।
2.) टिल्ला जूती: इस प्रकार की जूती, एक विशेष प्रकार के सुनहरे धागे के काम के साथ आती है, जिसे ज़री कार्य कहा जाता है। यह काम, लाखी, मिलान और खोसा जूतियों पर भी पाया जा सकता है, जो संरचनात्मक डिज़ाइन के साथ, अलग-अलग टिल्ला जूतियों की श्रेणियों में आते हैं।
3.) खुस्सा जूती: इस प्रकार की जूती के सामने की ओर, एक घुमावदार सिरा होता है, जो कुंडी मूंछ के समान होने के कारण, मर्दानगी का प्रतिनिधित्व करता है।
4.) लकी जूती: पंजाबी में, “लक” शब्द का मतलब ‘कमर’ होता है, और इस प्रकार की जूती का मध्य भाग, लड़की की कमर की तरह संकीर्ण होता है।
5.) कसूरी जूती: कसूरी जूती में, एक विशेष पैर का डिज़ाइन होता है। पुराने समय में, इसे सीधे पाकिस्तान के कसूर ज़िले से आयात किया जाता था, लेकिन, अब इसे पंजाब में भी बनाया जाता है।
6.) जलसा जूती: यह पुरुषों के लिए, एक प्रकार की सरल, लेकिन, आकर्षक दिखने वाली जूती है। इसे शादियों, धार्मिक अवसरों और यहां तक कि, पार्टियों और समारोहों में भी पहना जा सकता है।
भारतीय जूतियां, भारत और विदेशों में, इतनी लोकप्रिय क्यों हैं?
1.) डिज़ाइन और कलात्मकता:

पारंपरिक भारतीय जूतियां, अपने उत्कृष्ट डिज़ाइन तत्वों और विवरणों पर ध्यान देने के लिए प्रसिद्ध हैं। कुशल भारतीय कारीगर, चमड़े, रेशम, मखमल और कढ़ाई वाले कपड़ों सहित, विभिन्न सामग्रियों का उपयोग करके, बड़ी मेहनत से इन जूतों को बनाते हैं।
इनके डिज़ाइन, अक्सर प्रकृति, पौराणिक कथाओं और स्थानीय परंपराओं से प्रेरित होते हैं, जिससे, प्रत्येक जोड़ी, कला का एक अनूठा काम बन जाती है। जटिल हाथ की कढ़ाई, अलंकरण और जीवंत रंग, इन पदत्राण कृतियों की सुंदरता को और बढ़ाते हैं।
2.) क्षेत्रीय विविधताएं:
विविध संस्कृतियों का देश होने के कारण, भारत के प्रत्येक क्षेत्र की जूतियों की, अपनी विशिष्ट शैली है। पंजाबी जूतियां, अपने जीवंत रंगों, जटिल कढ़ाई और लोक परंपराओं से प्रेरित पैटर्न के लिए जानी जाती हैं। राजस्थान में, दर्पण के काम, मनके और रंगीन धागों से सजी जूतियां हैं। साथ ही, उत्तर प्रदेश, गुजरात और हरियाणा जैसे अन्य राज्य भी, अपने अद्वितीय डिज़ाइन सौंदर्यशास्त्र में योगदान देते हैं, जिससे, प्रत्येक क्षेत्र की जूतियां उसकी सांस्कृतिक पहचान का प्रतिबिंब बन जाती हैं।
3.) आराम और स्थायित्व:
पारंपरिक भारतीय जूतियां, अपने आराम और स्थायित्व के लिए भी पसंद की जाती हैं। मुलायम चमड़े और लचीले तल्लों/तलवों से तैयार, वे एक आरामदायक फ़िट प्रदान करती हैं, जिससे वे लंबे समय तक पहनने के लिए उपयुक्त हो जाती हैं। कुशल कारीगर, यह सुनिश्चित करते हैं कि जूते पूर्णता के साथ तैयार किए गए हैं, जिससे आराम और इनकी दीर्घायु दोनों सुनिश्चित होते हैं।
4.) आधुनिक रुझान और वैश्विक अपील:
हाल के वर्षों में, पारंपरिक भारतीय जूतियों ने सांस्कृतिक सीमाओं को पार करते हुए, दुनिया भर में लोकप्रियता हासिल की है। विरासत, शिल्प कौशल और आराम के उनके अनूठे मिश्रण ने, उन्हें एक लोकप्रिय फ़ैशन एक्सेसरी बना दिया है। प्रसिद्ध फैशन डिज़ाइनरों और मशहूर हस्तियों ने, जूतियों को अपना लिया है। आज, आप समकालीन जूतियों की एक विस्तृत श्रृंखला पा सकते हैं, जो पारंपरिक डिज़ाइनों को आधुनिक सौंदर्यशास्त्र के साथ मिश्रित करती हैं। यह वैश्विक दर्शकों की प्राथमिकताओं को पूरा करती हैं।
5.) विरासत को संरक्षित करना:
जैसे-जैसे दुनिया आधुनिकता को अपना रही है, पारंपरिक भारतीय जूतियों की विरासत को संरक्षित करना महत्वपूर्ण है। कारीगर और संगठन, इस कला रूप को बढ़ावा देने और बनाए रखने के लिए, अथक प्रयास कर रहे हैं। नैतिक और टिकाऊ प्रथाओं का समर्थन करके, हम इस पोषित परंपरा की निरंतरता सुनिश्चित कर सकते हैं और कुशल कारीगरों के लिए, आजीविका प्रदान कर सकते हैं। प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं और ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म्स जैसी पहलों के माध्यम से, पारंपरिक भारतीय जूतियां, दुनिया भर के लोगों को लुभा रही हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/yc6vjppe
https://tinyurl.com/maj7su8b
https://tinyurl.com/44dkwjha
https://tinyurl.com/4h8hrk4t

चित्र संदर्भ
1. सुंदर जूतियों को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
2. जूती पहने महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
3. कतार में रखी गई जूतियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
4. जूतियों की दुकान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • आइए देखें, अपने अस्तित्व को बचाए रखने की अनूठी कहानी, 'लाइफ़ ऑफ़ पाई' को
    द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य

     24-11-2024 09:17 AM


  • आर्थिक व ऐतिहासिक तौर पर, खास है, पुणे की खड़की छावनी
    उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक

     23-11-2024 09:26 AM


  • आइए जानें, देवउठनी एकादशी के अवसर पर, दिल्ली में 50000 शादियां क्यों हुईं
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     22-11-2024 09:23 AM


  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id