यह कोई हैरानी की बात नहीं होगी कि मेरठ के कुछ लोग, तंजावुर गुड़िया (Thanjavur doll) रखते होंगे या या कम से कम उनके बारे में सुना हो। तंजावुर गुड़िया, एक पारंपरिक भारतीय खिलौना है, जो मिट्टी (टेराकोटा) से बनाया जाता है। इस गुड़िया का सारा वज़न और गुरुत्वाकर्षण का केंद्र इसके सबसे निचले हिस्से में होता है, जिससे यह धीरे-धीरे झूलते हुए नृत्य जैसी गति करती है। ये खिलौने हाथ से बनाए जाते हैं और उन पर बारीकी से पेंट किया जाता है। इन्हें 2008-09 में भौगोलिक संकेत (Geographical Indication) के रूप में मान्यता मिली थी।
तो चलिए, आज तंजावुर गुड़िया और उनकी ख़ासियतों के बारे में विस्तार से जानते हैं। साथ ही हम यह भी देखेंगे कि ये खिलौने कैसे बनाए जाते हैं और इनमें भौतिकी के कौन से सिद्धांतों का उपयोग होता है, जो इन्हें गिरने से रोकते हैं। इसके अलावा, हम तंजावुर गुड़िया की सांस्कृतिक महत्ता पर भी प्रकाश डालेंगे। अंत में, हम यह भी जानेंगे कि तंजावुर गुड़िया बनाने की कला, धीरे-धीरे कैसे ख़त्म हो रही है और इस काम में कौन सी समस्याएँ आ रही हैं।
तंजावुर गुड़िया का परिचय, एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में
तंजावुर, तमिल नाडु की ये खूबसूरत हस्तशिल्प गुड़िया, न केवल अपनी कला और सुंदरता के लिए जानी जाती हैं, बल्कि इनका ऐतिहासिक महत्व भी है। इन गुड़ियों का संबंध इस क्षेत्र के इतिहास से जुड़ा हुआ है और इनकी उत्पत्ति, 19वीं सदी के प्रारंभ में राजा सर्फोजी (Raja Serfoji) के शासनकाल में मानी जाती है। यह गुड़िया थंजावुर की पारंपरिक कला का हिस्सा हैं और केवल तंजावुर ज़िले में ही पाई जाती हैं। अपनी नृत्य जैसी कोमल और आकर्षक हरकतों के कारण यह गुड़िया प्रसिद्ध हैं और इन्हें इस तरह बनाया जाता है कि यह धीरे-धीरे हिलती रहती हैं।
तंजावुर गुड़िया को स्थानीय भाषा में "थलैयाट्टी बोम्मई" कहा जाता है, जिसमें "थलैयाट्टी" का मतलब होता है "सिर हिलाने वाली" और "बोम्मई" का मतलब "गुड़िया"। ये पारंपरिक हस्तशिल्प गुड़िया, उपहार और सजावट के लिए उपयोग की जाती हैं और कोंडापल्ली कला और शिल्प का भी अहम हिस्सा हैं।
तंजावुर बोम्मई में भौतिकी का योगदान कैसे है?
यह जानना बहुत दिलचस्प है कि तंजावुर बॉम्मई गुड़िया का केंद्र बिंदु कैसे काम करता है। गुड़िया का पूरा वज़न, हमेशा सबसे निचले हिस्से पर होता है, जिससे यह हमेशा स्थिर रहती है। इस गुड़िया का गोल तल इसे बैठने, खड़े होने और घूमने में मदद करता है।
गुड़िया का डिज़ाइन, इसे आगे-पीछे झूलने की अनुमति देता है, लेकिन यह गिरती नहीं है। यह एक भौतिकी का सिद्धांत है जो संतुलन और स्थिरता से जुड़ा है। तंजावुर बॉम्मई की गति और संतुलन यह दिखाते हैं कि कलाकारों को भौतिकी की अच्छी समझ है।
कुछ कलाकार, गुड़ियों को मज़ेदार और अनोखे रूप में बनाते हैं। इससे गुड़ियों की खासियत और बढ़ जाती है। जैसे, कुछ गुड़ियों की आँखें बड़ी या हंसमुख होती हैं, जो देखने में बहुत आकर्षक लगती हैं।
तंजावुर बॉम्मई की सुंदर कारीगरी और इसके भौतिक गुण इसे कला प्रेमियों और भौतिकी के छात्रों के लिए एक दिलचस्प विषय बनाते हैं। इन गुड़ियों के काम करने का तरीका समझने से हमें पारंपरिक शिल्प और विज्ञान के सिद्धांतों को जानने का मौका मिलता है।
तंजावुर गुड़ियों का निर्माण कैसे होता है?
सभी गुड़ियों का हल्का शरीर, टापिओका (साबूदाना या कसावा) आटे, पेपर-मेशे और प्लास्टर ऑफ़ पेरिस से बनाया जाता है, जिसे ‘रोटी’ के आटे की तरह गूंथा जाता है। इन सामग्रियों का सही मिश्रण गुड़ियों को हल्का और मज़बूत बनाता है, जिससे वे सालों तक टिकी रहती हैं।
हर गुड़िया को दो भागों में बनाया जाता है। ‘गुड़िया के आटे’ को सीमेंट के साँचे में दबाकर बनाया जाता है, और चाक के पाउडर से अच्छे से छिड़का जाता है ताकि वो चिपके नहीं। इस तकनीक से गुड़ियों का आकार और डिज़ाइन बनाया जाता है।
गुड़ियों को साँचे से लेकर तैयार करने तक, कम से कम, सात चरणों से गुज़रना होता है। हर चरण, जैसे चेहरे के रंग और कपड़ों की सजावट, एक कुशल कारीगर की देखरेख में होता है। कारीगर अक्सर चमकीले रंगों और जटिल डिजाइनों का उपयोग करते हैं, जिससे हर गुड़िया अनोखी बनती है।
नाचने वाली गुड़िया में चार भाग होते हैं (जिसमें बाहें भी शामिल होती हैं, जिन्हें धड़ पर चिपकाया जाता है)। ये सभी भाग एक-दूसरे पर संतुलित रहते हैं, और अंदर के धातु के लूप हुक के हलके झूलने का मूवमेंट बनाते हैं। यह डिज़ाइन, गुड़िया की खूबसूरती को बढ़ाता है और बच्चों और कलेक्टर्स में इसे लोकप्रिय बनाता है।
अंत में, गुड़ियों को पारंपरिक कपड़ों से सजाया जाता है, जो हाथ से तैयार किए जाते हैं। कारीगर, हर छोटे से छोटे विवरण पर ध्यान देते हैं, ताकि हर गुड़िया तंजावुर की सांस्कृतिक धरोहर को दर्शाए।
एक बार तैयार होने के बाद, गुड़ियों की गुणवत्ता और फ़िनिशिंग की पूरी जांच की जाती है। यह सावधानीपूर्वक प्रक्रिया सुनिश्चित करती है कि हर तंजावुर गुड़िया उच्चतम मानकों पर खरी उतरे और कलेक्टर्स में इसकी मांग बनी रहे।
तंजावुर गुड़िया का सांस्कृतिक महत्वता और उसकी परंपरा
तंजावुर गुड़ियां, तमिल नाडु की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानी जाती हैं। ये गुड़ियां, खासकर उन लोगों के बीच लोकप्रिय हैं जो भारतीय कला और परंपरा से जुड़ी चीजें संग्रह करना पसंद करते हैं। इन गुड़ियों को शादियों और अन्य खास अवसरों पर उपहार के रूप में भी दिया जाता है। इनके रंग-बिरंगे और खूबसूरत डिज़ाइन की वजह से इन्हें लोग, अपने घरों और मंदिरों में सजावट के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
तंजावुर गुड़ियों के कई प्रकार होते हैं, जो भारतीय संस्कृति के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाते हैं:
हिंदू देवी-देवताओं की गुड़ियां, जैसे गणेश, लक्ष्मी और सरस्वती।
राजघरानों के पात्र: जो पुराने समय के शासकों की शान-शौकत को दिखाते हैं।
भारतीय साहित्य और पौराणिक कथाओं के पात्र: जो रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों के किरदारों को जीवंत करते हैं।
दक्षिण भारत में नवरात्रि के समय, तंजावुर गुड़ियों की मांग बहुत बढ़ जाती है। इन गुड़ियों का इस्तेमाल नवरात्रि में "गोलू" सजावट के लिए किया जाता है, जहां सीढ़ियों पर गुड़ियों को सजाया जाता है, जो देवी-देवताओं और सांस्कृतिक कथाओं को दर्शाती हैं। इनकी विदेशों में भी बहुत मांग है, जहां इन्हें, अपने अनोखे लुक और हिलने वाले सिर की वजह से खूब पसंद किया जाता है।
तंजावुर गुड़ियों का निर्माण एक पारंपरिक व्यवसाय है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी चला आ रहा है। ये कला, हाथ से बनाने और रंगने की पुरानी तकनीक पर आधारित है। आधुनिकता और सस्ते मशीन से बने खिलौनों से मुकाबले के बावजूद, ये परंपरा अब भी तमिल नाडु की सांस्कृतिक पहचान और शिल्प कौशल को जीवित रखे हुए है।
तंजावुर गुड़ियों की कला क्यों खत्म हो रही है? अथवा इस उद्योग को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
स. बूथी, जो तंजावुर की पारंपरिक थलायाट्टी बोम्मई (हिलने वाली गुड़ियाँ) बनाने वाले तीसरी पीढ़ी के कारीगर हैं, बताते हैं कि पहले उनके गांव, पुन्नैनल्लूर मारियम्मनकोइल में लगभग 100 परिवार, ये गुड़ियाँ बनाते थे। अब, पूरे ज़िले में केवल 3-4 परिवार ही इस कला को बनाए रखे हुए हैं।
गुड़िया बनाने की प्रक्रिया कठिन है और अधिक समय है लेती | इसके कारण, कारीगरों को आर्थिक रूप से बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। बूथी के अनुसार, वे औसतन हर महीने 400 गुड़ियाँ बनाते हैं, और पर्यटन के मौसम में यह संख्या 500-600 तक पहुँच जाती है।
कई परिवार, इस परंपरा को बचाने के लिए आर्थिक सहायता और व्यापार सलाह की मांग कर रहे हैं। उन्होंने प्रमुख पर्यटन स्थलों पर स्थायी दुकानों की स्थापना की भी अपील की है ताकि वे अपनी आजीविका को बनाए रख सकें।
तंजावुर की नेट्टी (पिथ) कला नाज़ुक होती है, इसलिए इन्हें कांच के बॉक्स में रखा जाता है। हाल के समय में, कुछ कारीगर, थर्मोकोल से नकली मॉडल बनाने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन ये जल्दी नष्ट हो जाते हैं, खासकर चीटियों के कारण।
इसके अलावा, कारीगरों का कहना है कि सरकार से मिलने वाले समर्थन में कमी आई है। यदि स्थिति ऐसी ही रही, तो यह समृद्ध कला समाप्त हो सकती है। कारीगर, अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं और उम्मीद कर रहे हैं कि कोई मदद आएगी ताकि वे अपनी इस पुरानी परंपरा को जीवित रख सकें।
इस स्थिति से निपटने के लिए ठोस नीतियों और स्थानीय कलाकारों के प्रति, सरकार के समर्थन की आवश्यकता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3huemh6h
https://tinyurl.com/5n6pdze7
https://tinyurl.com/mr2sezhj
https://tinyurl.com/2kenau43
चित्र संदर्भ
1. तंजावुर, तमिल नाडु में बनी गुड़ियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. सुंदर तंजावुर गुड़िया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. सिर हिलाती थलायट्टी बोम्मई जोड़ी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. एक तंजावुर गुड़िया को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. तंजावुर गुड़ियों के जोड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)