Post Viewership from Post Date to 31-Oct-2024 (31st) Day
City Subscribers (FB+App) Website (Direct+Google) Email Instagram Total
2329 107 2436

***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions

भारतीय और इस्लामी शैली के मिश्रण को प्रदर्शित करती है, सल्तनत काल की वास्तुकला शैली

मेरठ

 30-09-2024 09:27 AM
मघ्यकाल के पहले : 1000 ईस्वी से 1450 ईस्वी तक
भारतीय वास्तुकला सदियों से विकसित हुई है, जिसे तीन अलग-अलग चरणों में विभाजित किया जा सकता है: 1. प्राचीन वास्तुकला; 2. मध्यकालीन वास्तुकला; 3. आधुनिक वास्तुकला। किसी भी स्थान की वास्तुकला शैली न केवल धर्म और संस्कृति से प्रभावित होती है, बल्कि यह उस स्थान की भौगोलिक स्थिति, जलवायु, जातीय, नस्लीय, ऐतिहासिक और भाषाई मिश्रण से भी प्रभावित होती है। सल्तनत काल के दौरान विकसित हुई इस्लामी वास्तुकला में, रोमन, बीज़ान्टिन, फ़ारसी, मेसोपोटामिया वास्तुकला और भारतीय वास्तुकला जैसी कई वास्तुकला शैलियों के समावेश देखने को मिलते हैं। 1206-1526 ईसवी के बीच दिल्ली सल्तनत, एक प्रमुख इस्लामी साम्राज्य था, जिसने तीन शताब्दियों से अधिक समय तक भारत के बड़े हिस्से पर शासन किया था, जो राजनीतिक, सांस्कृतिक और स्थापत्य परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण काल था। इस दौरान कई महत्वपूर्ण इमारतों का निर्माण हुआ था, जिनमें भारतीय एवं इस्लामी वास्तु कला शैली का मिश्रण देखने को मिलता है। क्या आप जानते हैं, कि मेरठ के पास दिल्ली सल्तनत काल के दौरान बने स्मारकों के उल्लेखनीय उदाहरण आज भी मौजूदहैं। तो आइए, आज वास्तुकला की भारतीय और इस्लामी शैली के बीच अंतर को समझते हैं और भारतीय वास्तुकला में इंडो-इस्लामिक प्रभाव के विषय में जानते हैं। इसके साथ ही, सल्तनत काल के दौरान वास्तुकला की विशेषताओं को समझते हुए, अंत में लोदी गार्डन के बारे में बात करेंगे ।
भारतीय और इस्लामी वास्तुकला शैली के बीच अंतर:
भारतीय वास्तुकला शैली, देश के विभिन्न हिस्सों और क्षेत्रों में विभिन्न युगों के दौरान धीरे-धीरे विकसित हुई। जबकि इस्लामी वास्तुकला शैली, इस्लाम के आगमन के बाद विकसित हुई थी, जो मूलतः रोमन (Roman), बीज़ान्टिन (Byzantine), फ़ारसी (Persian), मेसोपोटामिया Mesopotamian) वास्तुकला से प्रभावित थी।
भारतीय वास्तुकला शैली को लोकप्रिय रूप से 'धरणिक शैली' (trabeate Style) के नाम से जाना जाता है। जबकि इस्लामी वास्तुकला शैली को 'मेहराब शैली' (Mehrab Style) के नाम से जाना जाता है।
भारतीय वास्तुकला शैली में मंदिरों को जीवित प्राणियों की छवियों से सजाया गया था। मंगल कला के अंतर्गत पदम, चक्र, स्वस्तिक एवं कलश आदि का प्रतिनिधित्व किया जाता था। जबकि, इस्लाम में जीवित प्राणियों का प्रतिनिधित्व निषिद्ध है। इसलिए, इंडो-इस्लामिक वास्तुकला सुलेख और ज्यामितीय डिज़ाइनों पर आधारित थीं।
इमारतों पर भारतीय वास्तुकला शैली का पता दुनिया की पहली शहरी सभ्यता, अर्थात सिंधु घाटी सभ्यता से लगाया जा सकता है, जो अपनी नगर नियोजन और इंजीनियरिंग कौशल के लिए जानी जाती है। चट्टानों को काटकर बनाई गईं, गुफ़ाएँ, मंदिर, जलाशय, महल और किला प्रमुख भारतीय वास्तुकला शैली के प्रकार हैं। जबकि, मस्जिद, मकबरा, महल और किला प्रमुख इस्लामिक वास्तुशिल्प प्रकार हैं।
भारतीय मंदिर वास्तुकला की तीन शैलियाँ हैं: नागर शैली; विसरा शैली; द्रविड़ शैली। इस्लामी वास्तुकला की तीन शैलियाँ हैं: ग्रीक-रोमन परंपरा; पूर्वी परंपरा, और भारतीय शैली। वास्तव में, इस्लामी वास्तुकला इस्लामी, फ़ारसी और भारतीय शैलियों का एक अनूठा मिश्रण है।
भारतीय वास्तुकला शैली में विभिन्न भागों में निर्माण की विशिष्ट स्थापत्य शैली भौगोलिक, जलवायु, जातीय, नस्लीय, ऐतिहासिक और भाषाई विविधताओं का परिणाम थी। जबकि, इस्लामी वास्तुकला में पिरामिड आकार की केंद्रीय मीनार और साथ ही मधुमक्खी के छत्ते के आकार के घुमावदार शिखर प्रमुख थे। इस वास्तुकला में, वास्तुशिल्प अभिव्यक्ति आंतरिक सजावट, आंगन और ज्यामितीय डिज़ाइन पर केंद्रित है।
भारतीय वास्तुकला, अपने प्रभावशाली तत्वों और अद्वितीय परिवर्तन करने के लिए जानी जाती है। इसका परिणाम वास्तुशिल्प कृतियों की एक विकसित श्रृंखला है। मध्यकाल भारत में वास्तुकला के क्षेत्र के लिए स्वर्णिम काल साबित हुआ जिसके परिणामस्वरूप महान विकास हुआ। भारत में मुगलों के विस्तार के साथ, इमारतों में कई नई सुविधाएँ, तकनीकें और रचनात्मक विचार शामिल किए गए। इस काल में वास्तुकला की इस्लामी शैली का, जो जन्म हुआ, उसे इंडो-इस्लामिक वास्तुकला कहा जा सकता है। इंडो-इस्लामिक शैली, न तो पूरी तरह से इस्लामी थी और न ही पूरी तरह से हिंदू, बल्कि इसमें दोनों का मिश्रण थी। वास्तव में, यह इस्लामी वास्तुशिल्प तत्वों और भारतीय वास्तुकला का एक संयोजन थी।
कुछ महान इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प इमारतें:
किले: मध्यकाल में विशाल किलों का निर्माण, एक नियमित विशेषता थी, जो अक्सर एक शासक की शक्ति का प्रतीक होता था। इन किलों का निर्माण अधिकांशत ऊंचे स्थानों पर किया जाता था। इन किलों की एक अन्य विशेषता गोलकोंडा में बाहरी दीवारों के संकेंद्रित वृत्त थे, जहां दुश्मन को प्रवेश करने से पहले, सभी बाधाओं को तोड़ना पड़ता था। चित्तौड़ का किला (राजस्थान), ग्वालियर का किला (मध्य प्रदेश), देवगिरि का किला (महाराष्ट्र), और गोलकुंडा का किला (हैदराबाद) किलों के कुछ उल्लेखनीय उदाहरण हैं।
मीनारें: मध्यकाल की एक और अद्भुत रचना मीनार है। मध्यकाल की सबसे लुभावनी मीनारें, वास्तव में, दिल्ली में कुतुब मीनार और दौलताबाद में चाँद मीनार हैं। मीनारों का उपयोग मूल रूप से अज़ान के लिए किया जाता था। हालाँकि, इसकी ऊँचाई को शासक की ताकत और शक्ति का प्रतीक भी माना जाता था।
मकबरे: शासकों और राजघरानों की कब्रों पर स्मारकीय संरचनाएँ, मध्यकालीन भारत की एक लोकप्रिय विशेषता थी। पूरे भारत में प्रसिद्ध सम्राटों की कुछ प्रसिद्ध कब्रों में ग्यासुद्दीन तुगलक, हुमायूँ, अदुर रहीम खान-ए- ख़ानन, अकबर और एतमादुद्दौला की कब्रें हैं।
सराय: सराय मुख्यतः भारतीय और विदेशी यात्रियों, तीर्थयात्रियों, व्यापारियों आदि के लिए अस्थायी आवास प्रदान करने के उद्देश्य के साथ बनाई जाती थीं। उस समय के, ये सार्वजनिक स्थान,सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और अंतर-सांस्कृतिक संपर्क, प्रभाव और समन्वयवादी प्रवृत्तियों के प्रमुख केंद्र थे।
सल्तनत काल के दौरान वास्तुकला की विशेषताएं:
1. भारतीय और ईरानी शैली का मिश्रण:

दिल्ली के सुल्तान, अपनी इमारतों का निर्माण ईरान और मध्य एशिया की तर्ज़ पर कराना चाहते थे। हालाँकि, इन इमारतों के निर्माण के लिए उन्हें भारतीय कारीगरों को नियुक्त करना पड़ा था, जिनके पास निर्माण के स्वरूप और विधि के बारे में अपने विचार थे। इस प्रकार, यद्यपि इमारतों को मुस्लिम वास्तुकारों द्वारा उनके धार्मिक विचारों की आवश्यकताओं के अनुरूप डिज़ाइन किया गया था, फिर भी उनका निर्माण हिंदू कारीगरों द्वारा किया गया था। जिसके परिणाम स्वरूप इमारतों में इंडो-इस्लामिक वास्तुकला का मिश्रण उत्पन्न हुआ था।

2. हिंदू मंदिरों की सामग्री से निर्मित इमारतें:
मध्यकाल के दौरान, मंदिरों में प्रयुक्त सामग्री से कई इमारतों के निर्माण किए गए थे, जिन्हें कुछ मुस्लिम शासकों ने नष्ट कर दिया था। कहा जाता है, कि दिल्ली की कुवत-उल-इस्लाम मस्जिद को कुतुब-उद-दीन ऐबक ने एक हिंदू मंदिर को तोड़कर बनवाया था। इसी तरह अजमेर में ढाई दिन में बनी मस्जिद 'अढाई-दीन-का झोपड़ा', एक हिंदू इमारत के खंडहर पर बनी है।
3. नुकीले मेहराब: इस काल में, इमारतों के निर्माण में मेहराबों का प्रयोग किया गया था। मेहराबों के अलावा, इमारतों के ऊपर गुंबदों और किनारों पर मीनारों का भी इस्तेमाल किया गया था।
4. नक्काशी: मुस्लिम धर्म में, इमारतों पर जीवित वस्तुओं का प्रतिनिधित्व करने की अनुमति नहीं है। इसलिए, सल्तनत काल के दौरान बनी इमारतों में खंभों और दीवारों को सजाने के लिए, फूलों, पत्तियों और ज्यामितीय संरचनाओं का उपयोग किया गया था।
5. कुरानिक आयतों का उपयोग: इमारतों में क़ुरानिक 'आयतों' के उपयोग से दो उद्देश्य पूरे होते थे, अर्थात धार्मिक और साथ ही सजावटी ।
6. पत्थर और चूने का प्रयोग: सल्तनत काल में कई प्रकार के रंगीन पत्थरों, जैसे लाल, हल्के काले, पीले और सफेद संगमरमर का उपयोग किया जाता था। इस काल में, इमारतों को मज़बूत बनाने के लिए, बहुत अच्छी गुणवत्ता के पत्थर का उपयोग किया गया था।
लोदी गार्डन: सल्तनत काल की एक ऐसी ही कृति, नई दिल्ली में 90 एकड़ का उद्यान परिसर है, जो लोदी गार्डन के नाम से प्रसिद्ध है। यह उद्यान पंद्रहवीं शताब्दी के मध्य से सैय्यद, लोदी और मुगल राजवंशों के सदस्यों द्वारा बनाई गई कब्रों, मस्जिदों और अन्य संरचनाओं से युक्त हैं। सिकंदर लोदी (1489-1517) के शासनकाल के दौरान, इस परिसर में सबसे महत्वपूर्ण परिवर्तन, बड़ा गुम्बद और शीश गुम्बद जोड़े गए थे। इसीलिए, इस स्थान का नाम 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद लोदी राजवंश के नाम पर रखा गया था।
लोदी गार्डन में, कई प्रवेश बिंदु और चार आधिकारिक द्वार हैं। इसके दक्षिणी छोर पर सैय्यद वंश के मुहम्मद शाह सैय्यद की कब्र है, जबकि उत्तरी छोर पर लोदी राजवंश के सिकंदर लोदी की कब्र है। इसके केंद्र में कई अन्य संरचनाएँ हैं, जैसे कि बड़ा गुम्बद, इसके निकटवर्ती मस्जिद और मेहमान खाना। मुहम्मद शाह सैय्यद का मकबरा, उनके बेटे और उत्तराधिकारी, अलाउद्दीन आलम शाह (1445-51) द्वारा बनवाया गया था। यह संरचना 25 मीटर चौड़ी है और 40 मीटर ऊंचे टीले पर बनी है, जो सीढ़ियों से होकर गुजरती है। इसमें एक अष्टकोणीय योजना है, जिसमें प्रत्येक तरफ़ तीन तोरणद्वार हैं और एक तोरणद्वार खुली कब्र कक्ष के चारों ओर जाता है।
इसकी गुंबद पर उल्टे कमल की आकृति बनी हुई है। गुंबद के आधार पर मेहराबदार आलों की एक गोलाकार गैलरी है, जिनमें से चार खिड़कियाँ हैं। कब्र के आंतरिक भाग में शासक की कब्र के साथ-साथ अन्य कब्रें भी हैं, जिनके बारे में अनुमान है, कि ये उसके परिवार के सदस्यों की कब्रें हैं।
बड़ा गुंबद एक मकबरे जैसा दिखता है, लेकिन इसके भीतर कोई कब्र नहीं हैं। इसके दो प्रवेश द्वार हैं, एक उत्तर में शीश गुम्बद की ओर और दूसरा पश्चिम की ओर, जो एक खाली क्षेत्र की ओर जाता है। इस संरचना में सजावटी मेहराबों के दो स्तर और एक बड़ा धनुषाकार प्रवेश द्वार है। इसका चबूतरा उत्तर की ओर दो लंबी संरचनाओं से घिरा एक आंगन तक फैला हुआ है। पश्चिमी इमारत, एक मस्जिद है, जो बड़ा गुम्बद से जुड़े होने के कारण, बड़ा गुम्बद मस्जिद के नाम से जानी जाती है। मस्जिद में तीन मेहराबदार प्रवेश द्वार हैं, जो अत्यंत अलंकृत हैं। इसे मजलिस खाना या मेहमान खाना के रूप में जाना जाता है और इसका उपयोग मदरसे के लिए, मठ के रूप में किया जाता था। विद्वानों का मानना है, कि बड़ा गुम्बद को मस्जिद के प्रवेश द्वार के रूप में डिज़ाइन किया गया था। मस्जिद एक छोटी आर्केड जैसी संरचना है, जिसमें आंगन से पांच मेहराबों के माध्यम से प्रवेश किया जाता है, केंद्रीय मेहराब सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा अलंकृत है। अंदर की ओर प्रत्येक गुंबद के आधार पर समान मेहराबें हैं, जो एक गोलाकार गैलरी का अनुकरण करती हैं। सभी मेहराबों के किनारे कटे हुए और चित्रित चूना पत्थर के प्लास्टर से ढके हुए हैं, जो लोदी-युग की मस्जिदों की एक विशिष्ट सजावटी विशेषता बन गई।
बड़ा गुम्बद के पूर्वी हिस्से में, एक चबूतरे पर, एक मलबे की चिनाई वाला बुर्ज़ है, जो किसी भी कब्र से संबंधित नहीं है, ऐसा माना जाता है, कि यह इमारत में, बाद में जोड़ा गया था। विद्वानों का मानना है, कि बुर्ज़ मूल रूप से एक बड़ी संरचना का हिस्सा था., जो अब मौजूद नहीं है। इसकी छत पर एक धारीदार गुंबद और एक तरफ़ उभरी हुई झरोखा खिड़की, इसकी एकमात्र उल्लेखनीय विशेषताएं हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/52zhm8as
https://tinyurl.com/9rymxncv
https://tinyurl.com/mvaw3fjr
https://tinyurl.com/z94mvw47

चित्र संदर्भ
1. ग्वालियर के किले को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. गोल गुम्बज़ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. चित्तौड़ किले के कीर्ति स्तंभ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. अजमेर में ढाई दिन में बनी मस्जिद, 'अढ़ाई दिन का झोंपड़ा', को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. दिल्ली के लोदी गार्डन को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
***Definitions of the post viewership metrics on top of the page:
A. City Subscribers (FB + App) -This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post. Do note that any Prarang subscribers who visited this post from outside (Pin-Code range) the city OR did not login to their Facebook account during this time, are NOT included in this total.
B. Website (Google + Direct) -This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership —This is the Sum of all Subscribers(FB+App), Website(Google+Direct), Email and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion ( Day 31 or 32) of One Month from the day of posting. The numbers displayed are indicative of the cumulative count of each metric at the end of 5 DAYS or a FULL MONTH, from the day of Posting to respective hyper-local Prarang subscribers, in the city.

RECENT POST

  • अपने युग से कहीं आगे थी विंध्य नवपाषाण संस्कृति
    सभ्यताः 10000 ईसापूर्व से 2000 ईसापूर्व

     21-11-2024 09:28 AM


  • चोपता में देखने को मिलती है प्राकृतिक सुंदरता एवं आध्यात्मिकता का अनोखा समावेश
    पर्वत, चोटी व पठार

     20-11-2024 09:29 AM


  • आइए जानें, क़ुतुब मीनार में पाए जाने वाले विभिन्न भाषाओं के शिलालेखों के बारे में
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     19-11-2024 09:22 AM


  • जानें, बेतवा और यमुना नदियों के संगम पर स्थित, हमीरपुर शहर के बारे में
    आधुनिक राज्य: 1947 से अब तक

     18-11-2024 09:31 AM


  • आइए, अंतर्राष्ट्रीय छात्र दिवस के मौके पर दौरा करें, हार्वर्ड विश्वविद्यालय का
    वास्तुकला 1 वाह्य भवन

     17-11-2024 09:30 AM


  • जानिए, कौन से जानवर, अपने बच्चों के लिए, बनते हैं बेहतरीन शिक्षक
    व्यवहारिक

     16-11-2024 09:17 AM


  • आइए जानें, उदासियों के ज़रिए, कैसे फैलाया, गुरु नानक ने प्रेम, करुणा और सच्चाई का संदेश
    विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)

     15-11-2024 09:27 AM


  • जानें कैसे, शहरी व ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के बीच अंतर को पाटने का प्रयास चल रहा है
    विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा

     14-11-2024 09:20 AM


  • जानिए क्यों, मेरठ में गन्ने से निकला बगास, पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए है अहम
    नगरीकरण- शहर व शक्ति

     13-11-2024 09:22 AM


  • हमारे सौर मंडल में, एक बौने ग्रह के रूप में, प्लूटो का क्या है महत्त्व ?
    शुरुआतः 4 अरब ईसापूर्व से 0.2 करोड ईसापूर्व तक

     12-11-2024 09:29 AM






  • © - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.

    login_user_id