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राजमा या किडनी बीन (kidney bean), बीन की एक सामान्य किस्म है, जिसका वैज्ञानिक नाम फेज़ियोलस वल्गरिस (Phaseolus vulgaris) है। गुर्दे के आकार और रंग में दृश्य समानता के कारण, इसका अंग्रेज़ी नाम 'किडनी' पड़ा है। राजमा के असाधारण स्वास्थ्य लाभ हैं। हमारे मेरठ में भी, समग्र कृषि परिदृश्य में, फ्रेंच बीन्स और मूंग, यहां उगाई जाने वाली सबसे आम फलियाँ हैं। तो आइए आज, फलियों, विशेषकर राजमा या किडनी बीन के स्वास्थ्य लाभों और पोषण मूल्य पर नज़र डालते हैं और इसके साथ ही, राजमा से बनने वाले शीर्ष उत्पादकों के बारे में समझते हैं। अंत में, हम राजमा और उनकी विभिन्न किस्मों का अवलोकन भी करेंगे।
राजमा या किडनी बीन फलियाँ, लाल-भूरे रंग की होती हैं और उबालने के बाद , इनका स्वाद हल्का हो जाता है, लेकिन इन्हें, जिन भी मसालों में पकाया जाता है, वे इनका स्वाद आसानी से सोख लेती हैं। इनमें अन्य आवश्यक पोषक तत्वों के अलावा फ़ॉलिक एसिड (Folic Acid, कैल्शियम कार्बोहाइड्रेट (Calcium Carbohydrate), फ़ाइबर (Fibre) और प्रोटीन (Protein) उच्च मात्रा में होते हैं, जो शरीर के समुचित कार्य के लिए महत्वपूर्ण हैं। राजमा मुख्य रूप से कार्बोहाइड्रेट और फ़ाइबर से बना होता है। 100 ग्राम उबले हुए, राजमा में 127 कैलोरी होती है, जिसमें 67% पानी होता है। इसमें 8.7 ग्राम प्रोटीन, 22.8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 0.3 ग्राम चीनी, 6.4 ग्राम फ़ाइबर और सिर्फ़ 0.5 ग्राम वसा होती है। यह प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत होता है। 100 ग्राम उबले हुए, राजमा के पोषण संबंधी तथ्यों को इस प्रकार समझा जा सकता है:
कैलोरी: 127
पानी: 67%
प्रोटीन: 8.7 ग्राम
कार्बोहाइड्रेट: 22.8 ग्राम
चीनी: 0.3 ग्राम
फ़ाइबर: 6.4 ग्राम
वसा: 0.5 ग्राम
प्रोटीन: राजमा प्रोटीन से भरपूर होता है। केवल 100 ग्राम उबले हुए राजमा में लगभग 9 ग्राम प्रोटीन होता है, जो कुल कैलोरी सामग्री का 27% है। वास्तव में, राजमा प्रोटीन के सबसे समृद्ध पौधे-आधारित स्रोतों में से एक है, जिन्हें कभी-कभी "गरीब आदमी का मांस" भी कहा जाता है। राजमा में सबसे व्यापक रूप से पाया जाने वाला प्रोटीन फेज़ोलिन (Phaseolin) है। इसके अलावा, राजमा में अन्य प्रोटीन, जैसे लेक्टिन और प्रोटीज़ इनहिबिटर (Protease Inhibitors) भी होते हैं।
कार्बोहाइड्रेट: राजमा मुख्य रूप से स्टार्चयुक्त कार्बोहाइड्रेट से बना होता है, जो कुल कैलोरी सामग्री का लगभग 72% होता है। स्टार्च मुख्य रूप से एमाइलोज़ (Amylose) और एमाइलोपेक्टिन (Amylopectin) के रूप में ग्लूकोज की लंबी श्रृंखलाओं से बना होता है। इसके पाचन में अधिक समय लगता है, और यह अन्य स्टार्च की तुलना में रक्त शर्करा में कम और अधिक क्रमिक वृद्धि का कारण बनता है, जिससे राजमा टाइप-2 मधुमेह वाले लोगों के लिए, विशेष रूप से फायदेमंद हो जाता है।
फ़ाइबर: राजमा में फ़ाइबर की मात्रा अधिक होती है। इनमें पर्याप्त मात्रा में प्रतिरोधी स्टार्च होता है, जो वज़न प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। राजमा अल्फ़ा-गैलेक्टोसाइड्स (Alpha-Galactosides) नामक अघुलनशील फ़ाइबर भी प्रदान करता है। प्रतिरोधी स्टार्च और अल्फ़ा -गैलेक्टोसाइड्स दोनों प्रीबायोटिक्स के रूप में कार्य करते हैं। प्रीबायोटिक्स, आपके पाचन तंत्र से होकर तब तक गुजरते हैं, जब तक वे आपके बृहदान्त्र तक नहीं पहुंच जाते, जहां वे लाभकारी बैक्टीरिया द्वारा किण्वित होते हैं। इन स्वस्थ फ़ाइबर के किण्वन के परिणामस्वरूप शॉर्ट-चेन फैटी एसिड (Short-Chain Fatty Acids) का निर्माण होता है, जैसे ब्यूटायरेट (Butyrate), एसीटेट (Acetate) और प्रोपियोनेट (Propionate), जो कोलन स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं और कोलन कैंसर (Colon Cancer) के खतरे को कम कर सकते हैं।
विटामिन और ख़निज: राजमा विभिन्न विटामिन और ख़निजों, जैसे मोलिब्डेनम (Molybdenum), फ़ॉलेट (Folate), आयरन (Iron) , कॉपर (Copper), मैंगनीज (Manganese), पोटेशियम (Potassium), से भरपूर होता है।
अन्य पादप यौगिक: राजमा में कई बायोएक्टिव पादप यौगिक जैसे आइसोफ्लेवोन्स (Isoflavones), एंथोसायनिन (Anthocyanins), फाइटोहेमाग्लगुटिनिन (Phytohaemagglutinin), फाइटिक एसिड (Phytic aAcid), स्टार्च ब्लॉकर्स (Starch blockers) भी होते हैं।
राजमा के स्वास्थ्य लाभ:
1. राजमा में जटिल कार्बोहाइड्रेट और आहार फ़ाइबर की उच्च मात्रा होती है, जो रक्त में कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है। घुलनशील आहारm फ़ाइबर की उपस्थिति पेट में एक जेल जैसा पदार्थ बनाती है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल के पुनर्अवशोषण को रोकती है।
2. राजमा, अपने कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स के कारण, मधुमेह रोगियों के लिए, एक स्वस्थ विकल्प है, जो शरीर की शर्करा सामग्री को संतुलित रखता है। यह मधुमेह के विकास के जोखिम को भी कम करता है।
3. राजमा विटामिन बी1 से भरपूर होता है, जो संज्ञानात्मक कार्यों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। विटामिन बी1 का पर्याप्त स्तर एसिटाइलकोलाइन (acetylcholine)( जो एक महत्वपूर्ण न्यूरोट्रांसमीटर है)को संश्लेषित करने में मदद करता है। यह मस्तिष्क के उचित कामकाज़ को सुनिश्चित करता है और एकाग्रता और याददाश्त को बढ़ाता है।
4. राजमा में मौजूद मैंगनीज (Manganese) चयापचय के संचालन में बहुत महत्वपूर्ण है। मैंगनीज मूल रूप से शरीर के लिए ऊर्जा पैदा करने के लिए पोषक तत्वों को तोड़ता है।
5. राजमा में मौजूद मैंगनीज शरीर की एंटीऑक्सीडेंट सुरक्षा में भी मदद करता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके, कि शरीर में हानिकारक मुक्त कण ठीक से और कुशलता से नष्ट हो जाएं।
6. राजमा में प्रोटीन की मात्रा, इतनी अधिक होती है, कि यह शाकाहारियों के लिए, मांस के बेहतरीन विकल्प के रूप में काम कर सकता है।
7. राजमा में मौजूद मोलिब्डेनम शरीर से सल्फ़ाइट (sulphites) को डिटॉक्स (detox) करने में मदद करता है। राजमा के नियमित सेवन से एलर्जी के लक्षण भी तेज़ी से कम होते हैं।
8. राजमा पोटेशियम, मैग्नीशियम, घुलनशील फ़ाइबर और प्रोटीन का अच्छा स्रोत होने के कारण उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। ये तत्व मिलकर रक्तचाप को सामान्य बनाए रखने में मदद करते हैं। पोटेशियम और मैग्नीशियम धमनियों और वाहिकाओं का विस्तार करते हैं और सुचारू रक्त प्रवाह सुनिश्चित करते हैं।
9. राजमा में बड़ी मात्रा में आहारीय फ़ाइबर होने से व्यक्ति का पेट लंबे समय तक भरा रहता है। इसके अलावा, कम वसा सामग्री के कारण, यह एक कम कैलोरी वाला पौष्टिक भोजन का विकल्प बन जाता है।
10. अघुलनशील फ़ाइबर आहार, कब्ज़ से राहत दिलाने में मदद करता है।
11. राजमा में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट, हमारे शरीर की कोशिकाओं की रक्षा करके प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करते हैं।
12. राजमा में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट झुर्रियाँ कम करने, मुँहासों को ठीक करने और बालों और नाखूनों को पोषण देने में भी मदद करते हैं।
13. जब राजमा का सेवन सही मात्रा में किया जाता है तो वे पाचन तंत्र को साफ़ करने, शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालने और कोलन कैंसर के खतरे को कम करने में भी मदद कर सकते हैं।
14. राजमा में मैग्नीशियम की उच्च मात्रा, कोलेस्ट्रॉल पर कार्य करती है और शरीर को हृदय से जुड़ी बीमारियों जैसे स्ट्रोक, संवहनी रोग, धमनियों का जमना, दिल का दौरा आदि से लड़ने में मदद करती है और दिल को मज़बूत बनाए रखती है।
15. राजमा में मौजूद मैंगनीज और कैल्शियम हड्डियों को मज़बूत बनाते हैं और ऑस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis) को रोकने में मदद करते हैं। राजमा में मौजूद फ़ॉलेट, हड्डियों और जोड़ों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करता है, जिससे हड्डियों की बीमारियों और फ़्रैक्चर का ख़तरा कम हो जाता है।
16. राजमा में मौज़ूद मैग्नीशियम माइग्रेन सिरदर्द को रोकने में मदद करता है और रक्तचाप को भी स्थिर करता है।
17. राजमा में मौज़ूद विटामिन बी6 ऊतक के विकास और त्वचा और बालों की मरम्मत में मदद करता है। यह आंख की किसी भी प्रकार की विकृति को रोकने में भी मदद करता है। यहां तक कि, यह बालों के झड़नें से रोकने में भी मदद करता है।
18. राजमा में विटामिन बी3 की उच्च मात्रा, मोतियाबिंद को कम करने में मदद करती है।
राजमा की फ़सल से संबंधित कुछ प्रमुख तथ्य:
• माना जाता है कि राजमा की उत्पत्ति, भारतीय उपमहाद्वीप में हुई थी, जिसे खाद्य उत्पादन और चारे और कवर फ़सल के रूप में उगाया जाता है।
• यह फ़सल मुख्य रूप से भारत में उगाई जाती है, हालाँकि इसकी खेती संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राज़ील, चीन, म्यांमार, तंजानिया और मैक्सिको में भी की जाती है।
• भारत में जम्मू और कश्मीर, उत्तराखंड, पंजाब, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और कर्नाटक राजमा के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
• यह प्रोटीन का एक उत्कृष्ट स्रोत है और इसलिए इसे मांस का शाकाहारी विकल्प भी माना जाता है।
• यह फ़सल उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण क्षेत्रों में अच्छी तरह से बढ़ती है, जहां वार्षिक वर्षा 60-150 मिलीमीटर तक होती है, इसके लिए इष्टतम विकास तापमान 15-25 डिग्री सेल्सियस और कटाई का तापमान 28-30 डिग्री सेल्सियस है।
• जल जमाव से बचने के लिए बार-बार जुताई (2-3 बार) और समतलीकरण की आवश्यकता होती है, क्योंकि यह फ़सल जल जमाव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है।
• इस फ़सल की खेती रबी (फरवरी-मार्च) और ख़रीफ़ (मई-जून) दोनों मौसमों में की जाती है।
• इसके बीजों को पहले थीरम (4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज) से उपचारित किया जाता है, उसके बाद छाया में सुखाया जाता है और तुरंत बोया जाता है।
• इसकी इष्टतम उपज के लिए, बुआई के 25, 50, 75 और 100 दिनों पर चार सिंचाई की आवश्यकता होती है, आमतौर पर फ़ूल खिलने से पहले, फ़ूल आने के दौरान और फली बनने की अवस्था में।
• बरसात के मौसम में बार-बार सिंचाई नहीं करनी चाहिए और भारी जल जमाव से बचना चाहिए।
• जब फली, पीले से भूरे रंग की हो जाए, तो फ़सल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। पत्तियों का रंग हरे से पीला होना भी फ़सल के तैयार होने का संकेत है।
• इसकी फ़सल की कुल अवधि 120-130 दिनों तक होती है और सही समय पर कटाई करना बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि देरी से फ़सल खराब हो सकती है और उपज का नुकसान हो सकता है।
• कटाई के बाद, फ़सल को तीन से चार दिनों तक धूप में सुखाया जाता है, जिसके बाद उसकी गहाई की जाती है।
वहीं फ्रेंच बीन्स के बारे में माना जाता है, कि यह फ़सल संभवतः दक्षिण और मध्य अमेरिका की मूल निवासी है। जब ब्रिटिश लोग अमेरिका पहुंचे, तो उन्होंने रेड इंडियन को मक्के के साथ बीन्स की खेती करते हुए देखा। वहां से यह फ़सल स्पेनिश खोजकर्ताओं के साथ यूरोप आई। यूरोप से यह अफ़्रीका, ईस्ट इंडीज, भारत और दुनिया के अन्य हिस्सों तक फ़ैल गई। यह लेग्युमिनोसे (Leguminosae), जीनस फेज़ियोलस (genus Phaseolus) और स्पेसिज़्म वल्गारिस (speciesm Vulgaris) परिवार से संबंधित हैं ।
संदर्भ
https://tinyurl.com/yvsyvmpx
https://tinyurl.com/2p9su54j
https://tinyurl.com/2dd9dpbv
चित्र संदर्भ
1. राजमा चावल को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. एक कटोरे में रखे और आसपास बिखरे राजमा को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
3. राजमा के दानों को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
4. राजमा के पौधे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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