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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का आयोजन उड़ीसा में हर साल बड़े धूमधाम के साथ किया जाता है। देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी लोग उड़ीसा के पुरी जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने यहां आते हैं। आषाढ़ माह में एक उत्सव के रूप में भगवान जगन्नाथ की तीन किलोमीटर की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है। किवदंतियों के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण की बहन सुभद्रा का नगर देखने का मन हुआ। उनकी ये इच्छा पूरी करने के लिए भगवान कृष्ण भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ पूरा नगर देखने निकल पड़े। तब से ही यह परंपरा हर साल ऐसे ही निभाई जाती है। जगन्नाथ पुरी मंदिर के निर्माण की कहानी काफी रोचक है तथा इस अनोखे मंदिर में आज भी ऐसी कई घटनाएं होती हैं, जो रहस्यमयी बनी हुई हैं। ऐसी मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने अपनी देह का त्याग इसी मंदिर में किया था और उनके हृदय को छोड़कर उनकी पूरी देह पंचतत्व में विलीन हो गई थी। माना जाता है कि मंदिर में रखे श्रीकृष्ण के लकड़ी के देह में आज भी वह हृदय धड़क रहा है। इस मंदिर में जाने वाले भक्तों का कहना है कि मंदिर के सिंहद्वार में जाने पर जबतक अंदर कदम नहीं जाते तबतक समुद्र की लहरों की आवाज आती है। जगन्नाथ मंदिर के शीर्ष पर जो झंडा लगा है कहते हैं कि वह झंडा हवा की विपरीत दिशा में उड़ता है। मंदिर का झंडा रोजाना बदला जाता है और अगर किसी दिन झंडा नहीं बदला गया तो मंदिर को 18 सालों के लिए बंद कर दिया जाएगा। यहां बनने वाला प्रसाद सात मिट्टी के बर्तनों में बनाया जाता है और सातों बर्तनों को एक के ऊपर एक रखा जाता है। हैरानी की बात यह है कि सबसे ऊपर रखे बर्तन का प्रसाद सबसे पहले तैयार होता है और सबसे नीचे रखे बर्तन का प्रसाद सबसे बाद में तैयार होता है। मंदिर की मूर्तियों को हर 12 साल में बदला जाता है, तथा ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्तियों में स्थापित किया जाता है। इस दौरान पूरे क्षेत्र में बिजली काट दी जाती है, तथा ब्रह्म पदार्थ को नई मूर्तियों में स्थापित करने वाले पुजारियों की आंखों में भी पट्टी बांध दी जाती है। तो आइए रथ यात्रा के दिन, जगन्नाथ पुरी मंदिर के पीछे की कहानी और इसके मुख्य प्रवेश द्वार के रोचक और महत्वपूर्ण इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त करें। इसके अतिरिक्त उन अनोखी घटनाओं के बारे में भी जानें जो दुनिया में कहीं और नहीं देखी जाती हैं।
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