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रामपुर की ग्राम पंचायत पटवई में जब भारत का पहला 'अमृत सरोवर' बनकर तैयार हुआ, तब शायद किसी ने यह कल्पना भी नहीं की होगी कि यह योजना आगे-चलकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों के लिए एक वरदान साबित हो जाएगी। हालांकि यह योजना अनोखी तो जरूर थी, लेकिन भारत में पारंपरिक रूप से पानी को संचित करने की ऐसी कई शानदार और प्रभावी प्रणालियाँ प्राचीन काल से ही अपनाई जा रही हैं।
स्वच्छ जल हम सभी के जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साफ़ पीने योग्य पानी तक सबकी पहुंच होना, सही दिशा में प्रगतिशील देश की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। हालांकि हमारी यह विडंबना है कि अकेले हमारे देश में पूरी दुनिया के 18% लोग और 15% जानवर रहते हैं, लेकिन इसके बावजूद हमारे पास दुनियां की केवल 2% भूमि और 4% ताज़ा पानी है।
1951 में प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में सालाना 5,177 घन मीटर पानी आता था। 2011 तक यह गिरकर 1,545 घन मीटर रह गया। यदि यही रुझान जारी रहा तो 2025 में यह घटकर 1,293 क्यूबिक मीटर और संभवतः 2050 तक घटकर मात्र 1,140 क्यूबिक मीटर रह सकता है।
2019 की सतत विकास लक्ष्य रिपोर्ट (Sustainable Development Goals Report) दर्शाती है कि भारत में:
4 में से 1 स्वास्थ्य सेवा केंद्रों में बुनियादी जल सेवाओं का अभाव है।
10 में से 3 लोगों के पास सुरक्षित रूप से प्रबंधित पेयजल नहीं है।
10 में से 6 लोगों में सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वच्छता का अभाव है।
आज 21 वीं सदी में भी लगभग 892 मिलियन लोग खुले में शौच करते हैं।
पानी की सुविधा से वंचित 80% घरों में महिलाओं को दूर से पानी लाना पड़ता हैं।
भारत द्वारा जल संसाधनों के अत्यधिक तथा अनियंत्रित दोहन के कारण, पानी की कमी और बढ़ सकती है। ऊपर से शहरीकरण और बढ़ती जनसंख्या के कारण पानी की माँग दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। वहीँ प्रदूषण, अकुशल खेती, खराब प्रशासन, भूजल की कमी और अपर्याप्त बुनियादी ढांचे ने पहले से खराब स्थिति को और खराब कर दिया है।
हालांकि हम आधुनिक सभ्यता होने का दावा जरूर करते हैं, लेकिन मज़े की बात ये है, कि जल संरक्षण और उपलब्धता के संदर्भ में हमें अपने पूर्वजों से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है। भारतीय लोग प्राचीन काल से ही बड़े ही रचनात्मक और प्रभावी ढंग से पानी का संग्रहण और प्रबंधन करते आ रहे हैं। इस सन्दर्भ में हमारे पूर्वज वाकई में हमसे बहुत अच्छे हुआ करते थे। उन्होंने वर्षा जल को इकट्ठा करने और उसका बुद्धिमानी से उपयोग करने के लिए विभिन्न प्रणालियाँ बनाईं।
इनमें से कुछ को नीचे सूची में दिया गया है:
१. छतों और खुली भूमि से वर्षा जल एकत्र करना: हमारे पूर्वज भी अपनी छतों से बारिश की बूंदों को इकट्ठा करते थे और पानी को अपने आँगन में बड़े टैंकों में जमा करते थे। इसके अलावा वे खुले क्षेत्रों में भी वर्षा जल एकत्र करते थे और उसे कृत्रिम कुओं में इकठा करते थे।
२. मानसून के दौरान वर्षा जल एकत्र करना: मानसून के दौरान जब भारी बारिश होती थी, तो हमारे पूर्वज उफनती हुई नदियों से वर्षा का पानी इकट्ठा करके इसे विभिन्न प्रकार के जल निकायों में जमा कर देते थे।
३.पार प्रणाली: पश्चिमी राजस्थान में, "पार" नामक एक अनोखी जल संरक्षण प्रणाली अपनाई जाती है। यहां बारिश का पानी ऊंचे इलाकों से बहकर रेतीली जमीन में समा जाता है। सूखे के मौसम में यहां के लोग इस पानी को पाने के लिए गहरे कुएँ खोदते हैं जिन्हें "कुइस" या "बेरीस" कहा जाता है। ये कुएं उन्हें जमीन द्वारा सोखे गए पानी तक पहुंचने में मदद करते हैं।
४.तालाब/बंधियाँ (जलाशय): हमारे पूर्वजों ने कई जल भंडारण स्थान बनाए जिन्हें "तालाब" या "बंधियाँ" कहा जाता था। इनमें से कुछ प्राकृतिक तालाब थे, जबकि कुछ कृत्रिम रूप से लोगों द्वारा बनाये गये थे। इससे उन्हें खेती और पीने के लिए पानी जमा करने में मदद मिली। जब बरसात के मौसम के बाद पानी सूख जाता था, तो वे लोग खाली तालाबों का उपयोग चावल की खेती के लिए भी किया करते थे।
५.जोहड़ (मिट्टी के छोटे बांध): इन्ही बुद्धिमान पूर्वजों ने छोटे-छोटे बाँध भी बनाए, जिन्हें "जोहड़" कहा जाता था, जिनमें वर्षा का पानी जमा होता था। इससे पानी को जमीन के अंदर जाने और भूजल को रिचार्ज (Recharge) करने में मदद मिलती थी। हाल के वर्षों में, इनमें से कई जोहड़ों को फिर से जीवित कर दिया गया है, जिससे जल स्तर भी बढ़ा है और क्षेत्र के जंगलों तथा नदियों में भी सुधार देखा जा रहा है।
६. पैट प्रणाली: मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में लोगों ने पानी बचाने की एक विशेष प्रणाली बनाई जिसे "पैट" प्रणाली कहा जाता है। उन्होंने सिंचाई के लिए तेज़ बहने वाली जलधाराओं के पानी को नहरों में मोड़ दिया। उन्होंने पत्थरों का उपयोग करके दीवारें बनाईं और उन्हें पत्तियों तथा मिट्टी से ढक दिया। इन चैनलों को छोटी-छोटी नदियों और चट्टानों के ऊपर से गुजरना पड़ता था। ग्रामीण लोग बारी-बारी से अपने खेतों में पानी डालते थे और नहरों की देखभाल भी खुद ही करते थे।
इन सभी के साथ-साथ पीने का पानी प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल से कुओं का भी प्रयोग किया जा रहा है। इन कुओं में पानी भूमिगत स्रोतों से आता है, जिन्हें जलभृत कहा जाता है। ये जलभृत जमीन के नीचे छिपे हुए जलाशयों की तरह होते हैं, जिनमें पानी रहता है। जब हम किसी कुएं से पानी का उपयोग करते हैं, तो हम वास्तव में इन जलभृतों से पानी खींच रहे होते हैं।
हालांकि ऐसा नहीं है कि ये सभी तरकीबें अब भुला दी गई हैं, या ये अब कारगर नहीं रही हैं, बल्कि हमारे रामपुर जिले की तहसील शाहबाद की ग्राम पंचायत पटवाई में बने देश के पहले अमृत सरोवर की सफलता ने यह साबित कर दिया है कि पानी बचाने की ये प्राचीन तरकीबें आज भी उतनी ही सार्थक हैं, जितनी की तब थी। दरअसल पिछले साल देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर देश के प्रत्येक ज़िले में 75 अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य रखा था। जिसकी शुरुआत हमारे रामपुर से हुई थी। इस तालाब का उद्घाटन केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और प्रदेश के जल शक्ति मंत्री स्वतंत्र देव सिंह द्वारा किया गया था। रामपुर का अमृत सरोवर उन 789 सरोवरों में से एक है जिन्हें उत्तर प्रदेश सरकार विकसित करने की योजना बना रही है। इस वाटर बॉडी (Water Body) को बनाने में करीब 60 लाख रुपए का खर्च आया था। स्वतंत्र देव सिंह के मुताबिक इससे न सिर्फ भूजल को बचाने में मदद मिलेगी, बल्कि राज्य में पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा। इसके अलावा सरकार तालाब क्षेत्र के आसपास पेड़-पौधे लगाने के लिए वन और बागवानी विभाग जल शक्ति मंत्रालय के साथ मिलकर काम कर रही है।
यूपी सरकार ने भी रामपुर में पहला अमृत सरोवर खोलकर पानी बचाने की दिशा में बड़ा और अहम कदम उठाया है। योजना के सफल होने पर "भविष्य में, न केवल रामपुर बल्कि पूरे राज्य में पानी की कमी नहीं होगी।“ एक और अच्छी खबर यह भी है कि पानी की उपलब्धता बनाए रखने के लिए सरकार केवल इन सरोवरों तक ही सीमित नहीं है। वर्ष 2023-24 के बजट में सरकार ने विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी की उपलब्धता और स्वच्छता पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। इस बजट में जल जीवन मिशन (जिसका उद्देश्य ग्रामीण घरों में नल का पानी कनेक्शन प्रदान करना है) को प्राथमिकता दी गई है। इस योजना के लिए उल्लेखित राशि में 15% की वृद्धि हुई है। इस योजना के तहत 2024 तक देश के 83% ग्रामीण घरों में नल का पानी उपलब्ध करने का लक्ष्य रखा गया है। इस योजना के तहत अब तक,11 करोड़ से अधिक घरों में नल के पानी का कनेक्शन पहुंच चुका है। इस बजट में मिशन अमृत सारिका द्वारा निर्धारित कार्यक्रम के माध्यम से जल संरक्षण पर भी ज़ोर दिया गया है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4u9mcem7
https://tinyurl.com/4cub6nk9
https://tinyurl.com/3hnsk88v
https://tinyurl.com/27hhtwfm
https://tinyurl.com/4tvtsdmw
https://tinyurl.com/4tvtsdmw
https://tinyurl.com/5n89v7ek
चित्र संदर्भ
1. रामपुर के अमृत सरोवर को दर्शाता चित्रण (youtube)
2. पीने का पानी भरती बालिकाओं को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
3. नाली से बहते पानी को दर्शाता चित्रण (Wikimedia)
4. पानी पीते बच्चों को दर्शाता चित्रण (Wallpaper Flare)
5. पुराने जलाशयों को दर्शाता चित्रण (Hippopx)
6. रामपुर के अमृत सरोवर को दर्शाता चित्रण (youtube)
7. अमृत सरोवर, दुधाला को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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