मन को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा विकल्प ध्यान है। विभिन्न धर्मों हिन्दू, बौद्ध, जैन, इस्लाम, ईसाई, यहूदी इत्यादि में ध्यान को विशेष महत्व दिया गया है। ध्यान का सर्वप्रथम उल्लेख ऋग्वेद (5000 ईसा पूर्व) में मिलता है, जिसे छठवीं से पांचवी शताब्दी ईसा पूर्व बौद्ध और जैन धर्म द्वारा विकसित किया गया बाद में इस्लामिक सूफी संतो ने इसका अनुसरण किया। ध्यान को विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति के लिये लगाया जाता है जैसे मन को शान्त करने, मानसिक क्षमता को बढाने, मन में सकारात्मक विचार उत्पन्न करने, विभिन्न रोगों को नष्ट करने इत्यादि के लिए किया जाता है यदि बात की जाये आध्यात्म की तो इसमें कोई परमब्रहम को ढूंढने के लिए तो कोई इसमें विलीन होने के लिए ध्यान लगाता है।
ध्यान लगाने की भिन्न-भिन्न प्रक्रियाएं हैं जिसके लिए निरंतर अभ्यास अत्यंत आवश्यक है। हिंदू शास्त्र में ध्यान लगाने के लिए कुछ मुद्राओं को निर्धारित किया गया है, इन मुद्राओं को योग कहा जाता है। इस योग में विभन्न नियमों का पालन किया जाता है। योग और ध्यान का स्पष्ट उल्लेख प्राचीन भारतीय धर्मग्रंथों जैसे वेद, उपनिषद, गीता और महाभारत में भी मिलते हैं। बृहदारण्यक उपनिषद में बताया गया है कि ध्यान के माध्यम से "शांत और एकाग्रचित्त होकर, व्यक्ति अपने अंतर्मन को समझता है।" ध्यान व्यक्ति को नैतिकता, अनुशासन, नियम, आसन, श्वास नियंत्रण, मन की एकाग्रता, समाधी और अंत में मोक्ष की ओर ले जाता है। उचित ज्ञान और प्रशिक्षण के बिना शायद ही कोई व्यक्ति ध्यान के इन चरणों के माध्यम से मोक्ष प्राप्त कर सकता है। कहा जाता है कि गौतम बुद्ध और श्री रामकृष्ण मोक्ष के अंतिम चरण को प्राप्त करने में सफल रहे थे।
इतिहासकारों का मानना है बौद्ध धर्म में ध्यान को हिन्दू धर्म से ही स्वीकारा गया है, क्योंकि इसके संस्थापक गौतम बुद्ध स्वयं मोक्ष से पूर्व हिन्दू थे। बौद्ध के विचारों और ध्यान की मुद्राओं को प्राचीन बौद्ध ग्रंथों में संरक्षित किया गया है। बौद्ध धर्म में ध्यान को निर्वाण की ओर जाने वाला एक मार्ग माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि गौतम बुद्ध ने ध्यान के अभ्यास से उत्पन्न होने वाले दो महत्वपूर्ण मानसिक गुणों का पता लगाया था। ये हैं; शांति और धीरज जो मन और अंतर्दृष्टि को शांत करते हैं और इन्हें केंद्रित करते है। इसके माध्यम से व्यक्ति के भीतर पंच संवेदना, अनुभव, धारणा, मानसिक गठन और चेतना का निर्माण होता हैं।
वैज्ञानिकों द्वारा हिंदू और बौद्ध धर्म की ध्यान प्रक्रिया पर शोध किया गया। बौद्ध धर्म की ध्यान प्रक्रिया को हिंदू धर्म से ही लिया गया है किंतु इन दोनों के लक्ष्यों में अंतर है।
विचारधारा में अंतर
हिंदू धर्म में ध्यान लगाने के उद्देश्य विभिन्न हैं, जैसे शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक वृद्धि, और मन का नियंत्रण करने के लिए ध्यान लगाया जाता है। कई बार ईश्वर से मिलने के लिए भी ध्यान लगाया जाता है। हिन्दू धर्म में ध्यान के माध्यम से मस्तिष्क के तीनों समूहों को सक्रिय किया जाता है। पहले मस्तिष्क समूह के पांच भाग (बांया हिप्पोकैम्पस, बाएं ऊर्ध्व टेम्पोरल जाइरस, दाएं मध्य सिंगुलेट जाइरस, बाएं केंद्रपश्य जाइरस और बाएं ऊर्ध्व पार्श्विका लोब्यूल) होते हैं, जो स्मृतियों, विशेष रूप से स्थानिक, आत्मकथात्मक, दीर्घकालिक और स्मृति समेकन से संबंधित है। बायां ऊर्ध्व टेम्पोरल जाइरस सामाजिक और भाषा प्रसंस्करण को नियंत्रित करता है। हिन्दू ध्यान के माध्यम से सक्रिय दूसरे समूह में मस्तिष्क का वह भाग शामिल होता है जो संघर्षों की निगरानी और समाधान में भूमिका निभाता है। इसमें सचेत योजना, शरीर को उचित रूप से क्रियाशील बनाना, क्रियात्मक गतिविधि, दर्द नियंत्रण सम्मिलित होता है। यह समूह संभवतः व्यक्ति के अपने शरीर के प्रति जागरूकता के कारण सक्रिय हुआ है। हिंदू ध्यान द्वारा बाएं केंद्रपश्य जाइरस और पार्श्विका लोब सहित तीसरा समूह सक्रिय किया गया। पूर्व भाग स्पर्श अभिवेदन से संबंधित है, जबकि उत्तरार्ध स्वयं की और स्थानिक अभिविन्यास की भावना से संबंधित है।
दूसरी ओर बौद्ध भगवान में विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन ध्यान को अपने धर्म का एक अभिन्न अंग मानते हैं। बौद्ध धर्म में ध्यान का मुख्य उद्देश्य आत्मानुभूति या निर्वाण है। बौद्ध ध्यान में भी तीन मस्तिष्क समूहों को सक्रिय किया जाता है। पहले समूह में आत्म-प्रतिबिंब और ध्यान के नियंत्रण की प्रक्रिया शामिल थी। दूसरे समूह में एक पूर्ण संचालन क्षेत्र शामिल है। यह तभी हो सकता है जब एक बौद्ध व्यक्ति अपने शरीर पर ध्यान केंद्रित करता हैं। अंतिम समूह समय और आत्म-प्रतिनिधित्व की भावना से संबंधित है, बौद्ध अभ्यास के दौरान एक क्षेत्र को निष्क्रिय कर दिया गया था।
तकनीक में अंतर
हिंदू ग्रंथों में वर्णित ध्यान की प्रक्रिया बहुत कठिन है और इसमें कुछ सामान्य प्रक्रिया को सीखने के लिए भी वर्षों लग जाते हैं। प्राचीन भारतीय और चीनी ग्रंथों में हिंदू भिक्षुओं को उड़ने और वस्तुओं को देखकर तोड़ने जैसी रहस्यमयी शक्तियां प्राप्त होने का जिक्र किया गया है। दूसरी ओर, बौद्ध धर्म में ध्यान लगाने की तकनीकी बहुत सरल है, हालाँकि प्राचीन बौद्ध भिक्षुओं के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने लड़ने की तकनीकों में सुधार के लिए ध्यान लगाना आरंभ किया था। बौद्ध धर्म में क्रियात्मक गतिविधियों पर नियंत्रण करने वाले मस्तिष्क के अग्रभाग पर ध्यान की वृद्धि की जाती है। जबकि हिन्दू धर्म में ध्यान के माध्यम से मस्तिष्क के पार्श्विका-अस्थायी भाग के साथ, चेतना की एक अवैचारिक स्थिति को विकसित किया जाता है।
क्षेत्र में अंतर
हिंदू धर्म में ध्यान करने की निर्धारित तकनीकों की सीमा वास्तव में निर्धारित तकनीकों की तुलना में बहुत व्यापक है। मानवता के तीनों पहलुओं अर्थात् शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक को ध्यान की अवधारणा द्वारा संबोधित किया जाता है। जबकि बौद्ध धर्म में ध्यान लगाना उनकी धार्मिक प्रथाओं का एक हिस्सा है।
संदर्भ-
1. https://bit.ly/2Ehpg06
2. https://bit.ly/2ScpedA
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