हमारा शहर रामपुर, एक ऐसा शहर है, जहां इतिहास और प्रकृति का अनोखा संगम देखने को मिलता है, हमारा शहर पक्षियों के रहने के लिए एक शांतिपूर्ण वातावरण प्रदान करता है। यहां के हरे-भरे खेत, नदी के किनारे और खुली जगहें कई पक्षी प्रजातियों के लिए एक आदर्श घर हैं। स्थानीय पक्षियों की आवाज़ से लेकर प्रवासी प्रजातियों के आगमन तक, रामपुर प्रकृति से जुड़ने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। जो लोग, वन्य जीवन की सराहना करते हैं, उनके लिए शहर का शांत वातावरण इसे विविध पक्षी जीवन को देखने और आनंद लेने के लिए एक आदर्श स्थान बनाता है। इसके साथ ही, रामपुर एक समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास वाला शहर है और इसका कला से गहरा संबंध है। तो आइए आज, भारतीय चित्रकला में पक्षियों के छिपे अर्थों के बारे में जानते हैं और समझते हैं कि पारंपरिक चित्रों में पक्षियों को अक्सर गहरे संदेश और सांस्कृतिक अर्थ के साथ कैसे दिखाया जाता है। फिर, हम रामपुर में पाई जाने वाली विभिन्न पक्षी प्रजातियों पर एक नज़र डालेंगे। अंत में हम, भारत में कुछ लुप्तप्राय पक्षी प्रजातियों पर चर्चा करेंगे।
भारतीय चित्रकला में पक्षियों चित्रों के प्रतीकात्मक अर्थ-
कला में पक्षियों के चित्रों के उपयोग से रामपुर का जुड़ाव इसके समृद्ध सांस्कृतिक इतिहास में निहित है। रामपुर के पारंपरिक लघु चित्रों में अक्सर पक्षियों को चित्रित किया जाता है, जो मुगल और राजपूत प्रभावों को प्रदर्शित करते हैं। क्षेत्र की जटिल लकड़ी की कारीगरी एवं नक्काशी और फ़र्नीचर जैसी सजावटी कलाओं में भी पक्षी रूपांकन शामिल हैं, जो सुंदरता और स्वतंत्रता का प्रतीक हैं। इसके अतिरिक्त, यहां की स्थानीय लोककथाओं और कविताओं में भी पक्षी प्रतीकात्मक अर्थ रखते हैं, जो रामपुर के कला परिदृश्य को प्रभावित करते हैं।
कला की सभी विधाओं में, भारतीय वन्यजीव कला को दुनिया भर में व्यापक प्रशंसा और सराहना मिलती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि पशु पक्षियों को चित्रित करने या उनकी तस्वीरें खींचने वाले कुछ सबसे प्रसिद्ध कलाकार जंगल में विभिन्न प्रकार के पक्षियों और स्तनधारियों को चित्रित करने की अपनी क्षमता और तकनीक के करण प्रसिद्ध हो गए हैं। पूरे भारतीय कला इतिहास में, विभिन्न प्रकार के पक्षियों को चित्रों में प्रमुखता से चित्रित किया गया है। कुछ शुरुआती ज्ञात चित्रण, जैसे गुफ़ा चित्र और रॉक कला, में भी पशु और पक्षी कला शामिल है। हालांकि, कला में पशु
पक्षियों के इन चित्रों के कुछ अत्यंत गूढ़ और प्रतीकात्मक अर्थ थे, जिनमें से कुछ निम्न प्रकार हैं:
मोर: मोर चित्रकला आमतौर पर वसंत, नए विकास, लंबे जीवन और प्रेम का प्रतिनिधित्व करती है। यह एक अद्भुत संकेत है, जो दर्शाता है कि आपके रिश्ते और काम निरंतर पूरे होंगे।
सफ़ेद मोर: सफ़ेद मोर की तस्वीर परोपकार, शांति, दया, करुणा और सौभाग्य का एक सुंदर प्रतीक है।
गौरैया: आम तौर पर, चित्रों में, एक गौरैया को खिड़की के पास बैठे, एक मेड़ पर बैठी, खिड़की के बाहर उड़ती हुई, या एक पेड़ के किनारे पर बैठी हुई चित्रित किया जाता है, जो सभी आशावाद, प्रजनन क्षमता और पुनर्जन्म का प्रतिनिधित्व करते हैं।
सफ़ेद कबूतर: सफ़ेद कबूतर का चित्र पवित्र शांति और मासूमियत का प्रतिनिधित्व करता है।
कबूतर: कबूतर चित्रकला घर में प्रेम, वैवाहिक सुख और प्रसन्नता का प्रतिनिधित्व करती है; यह पक्षी आने वाले किसी प्रकार के अच्छे भाग्य का प्रतिनिधित्व कर सकता है।
बत्तख: एक सफ़ेद बत्तख आध्यात्मिक पवित्रता और मन की पवित्रता का प्रतिनिधित्व करती है।
अमरपक्षी: अमरपक्षी पुनर्जन्म और शाश्वत जीवन का प्रतीक है।
पूरे भारतीय इतिहास में, अलग-अलग शासकों और सम्राटों द्वारा विभिन्न पशु पक्षियों के चित्रों को प्रतीक के रूप में उपयोग किया गया है। कई भारतीय त्यौहार पशु कल्याण के लिए समर्पित हैं। पौराणिक कथाओं और पारंपरिक साहित्य में भी पशु पक्षियों को पात्रों के रूप में चित्रित एवं वर्णित किया गया है, संभवतः पशु पक्षियों के प्रति प्रेम उत्पन्न करने के लिए।
रामपुर में पाए जाने वाले पक्षी:
हमारा रामपुर शहर विभिन्न स्थानीय एवं प्रवासी पक्षियों के लिए एक उत्तम वातावरण और अनुकूल परिस्थितियों प्रदान करता है। अपने बच्चों को पालने के लिए सर्वोत्तम पारिस्थितिक परिस्थितियाँ और आवास प्राप्त करने के लिए, प्रवासी पक्षी हज़ारो या सैकड़ों किलोमीटर की दूरी तय करके यहां आते हैं। जीआरपीजी कॉलेज रामपुर और रज़ा पी.जी. कॉलेज के रिसर्च स्कॉलर और अनुसंधान पर्यवेक्षक द्वारा रामपुर की कोसी नदी और आर्द्रभूमि की ओर आकर्षित होने वाले प्रवासी पक्षियों का एक अध्ययन किया गया जिसमें दो महीने तक रामपुर जिले की तहसील स्वार और तहसील टांडा के कोसी नदी क्षेत्र और आसपास के आर्द्रभूमि का दौरा किया गया और क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त की गई। कुल 50 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए ऐसे पांच स्थानों की पहचान की गई, जहां प्रवासी पक्षी देखे गए। इन स्थानों पर प्रवासी पक्षी बड़े आनंद से अपने परिवार के साथ निवास कर रहे थे।
1. दढ़ियाल कोसी नदी (जमालगंज): यहां तालाब के किनारे सफ़ेद टिटोरी और किंगफ़िशर को देखा गया।
2. परचाई: यहां बिल्ड स्ट्रोक्स के झुंड देखे गए।
3. मिलक क़ाज़ी: इस स्थान पर हेरोन, रूफ़ बर्ड, कॉमन टील, सैंड पाइपर जैसे पक्षी देखे गए।
4. मधुपुरा: यहां ग्रेट एग्रेट पक्षी देखा गया।
5. रामपुर शहर के पास: शहरी इलाके के आसपास ब्लैक इबिसबर्ड को देखा गया।
इस अध्ययन में यह स्पष्ट था कि पक्षी इन स्थानों पर संतुष्ट रूप से रह रहे थे, ऐसा प्रतीत होता है कि वे अपने प्राकृतिक आवास में घर पर थे।
भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी प्रजातियां:
भारत में देखी जाने वाली 11 पक्षी प्रजातियों को 2015 में 'प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ' (International Union for Consevation of Nature (IUCN)) द्वारा गंभीर रूप से लुप्तप्राय घोषित किया गया है। लुप्तप्राय पक्षियों की सूची में ग्रेट साइबेरियाई क्रेन, भारतीय बस्टर्ड, सफ़ेद पीठ वाले गिद्ध और लाल सिर वाले गिद्ध, शामिल हैं। इन पक्षियों की आबादी में गिरावट के पीछे मुख्य कारणों में निवास स्थान की हानि, संशोधन, विखंडन और गिरावट, पर्यावरण प्रदूषण, अवैध शिकार और भूमि उपयोग में परिवर्तन शामिल हैं। 'बर्ड्स ऑफ़ इंडिया' की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, भारतीय पक्षियों की 182 प्रजातियों को आईयूसीएन की लुप्तप्राय प्रजातियों की लाल सूची में गंभीर रूप से लुप्तप्राय, लुप्तप्राय, कमज़ोर और निकट संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत किया गया है। विशेष रूप से, भारत में पक्षियों का संरक्षण इस तथ्य से प्रभावित होता है कि इनमें से कई प्रजातियाँ भारतीय उपमहाद्वीप की मूल निवासी हैं।
1. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (The Great Indian Bustard): ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, पक्षियों की सबसे लुप्तप्राय प्रजाति है जो केवल भारत और आसपास के क्षेत्रों में पाई जाती है। बस्टर्ड पक्षियों की सबसे बड़ी उड़ने वाली प्रजातियों में से एक है जिसका वजन 15 किलोग्राम तक होता है और ज़मीन से इसकी ऊंचाई लगभग 1 मीटर होती है। राजस्थान के झाड़ियों, लंबी घास, अर्ध-शुष्क घास के मैदानों और अर्ध-रेगिस्तानी क्षेत्रों में इस पक्षी का सबसे बड़ा भूमि पक्षी निवास स्थान है। भारी शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण, यह पक्षी भारत के कई क्षेत्रों से गायब हो रहा है। यह राजस्थान का राज्य पक्षी है।
2. लाल सिर वाला गिद्ध (Red Headed Vulture): लाल सिर वाला गिद्ध, जिसे भारतीय काला गिद्ध या राजा गिद्ध भी कहा जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले पुरानी गिद्धों की प्रजातियों में से एक है। पशु चिकित्सा में, डिक्लोफ़ेनाक (Diclofenac) के उपयोग के कारण, हाल के वर्षों में इस प्रजाति की आबादी में भारी गिरावट आई है। भारतीय गिद्ध, स्लेंडर-बिल्ड गिद्ध और व्हाइट-रम्प्ड गिद्ध भारत में पाई जाने वाली गिद्धों की कुछ और प्रजातियाँ हैं और पक्षियों की गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों की श्रेणी में आती हैं।
3. वन उल्लू (Forest Owlet): वन उल्लू विशिष्ट उल्लू परिवार की एक अत्यधिक लुप्तप्राय प्रजाति है, और मध्य भारत के जंगलों में पाई जाती है। यद्यपि पहले वन उल्लू को विलुप्त माना लिया गया था, लेकिन बाद में इसे फिर से देखा गया और बेहद कम संख्या में आबादी के कारण इस प्रजाति को भारत में गंभीर रूप से लुप्तप्राय का दर्ज़ा दिया गया है। मेलघाट टाइगर रिजर्व, तलोदा वन रेंज और मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के वन क्षेत्र में यह छोटा वन उल्लू देखा जा सकता है। वन उल्लू महाराष्ट्र का राज्य पक्षी है।
4. स्पून बिल्ड सैंडपाइपर (Spoon Billed Sandpiper): स्पून बिल्ड सैंडपाइपर, एक वेडर (shorebirds) पक्षी प्रजाति है और भारत में भी गंभीर रूप से ख़तरे की श्रेणी में आती है। अत्यधिक छोटी आबादी, निवास स्थान और प्रजनन स्थलों की हानि के कारण, स्पून बिल्ड सैंडपाइपर प्रजाति विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है। भारत में यह प्रजाति, मुख्य रूप से सुंदरवन डेल्टा में देखी जाती है।
5. जेर्डन कोर्सर (Jerdon’s Courser): रात्रिचर पक्षी, जेर्डन कोर्सर भारत का सबसे रहस्यमय पक्षी है, यह पक्षी विशेष रूप से दक्षिणी आंध्र प्रदेश का स्थानिक पक्षी है। जेर्डन कोर्सर को गंभीर रूप से लुप्तप्राय पक्षी के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। यह पक्षी, विलुप्त घोषित होने वाला था, लेकिन इसे फिर से देखा गया | अपने निवास स्थान के नुकसान के कारण गंभीर रूप से खतरे में है। यह पक्षी आमतौर पर गोदावरी नदी घाटी, श्रीलंकामल्लेश्वर अभयारण्य और पूर्वी घाट वन क्षेत्र में पाया जाता है।
6. बंगाल फ़्लोरिकन (Bengal Florican): बंगाल फ़्लोरिकन, बस्टर्ड परिवार की एक दुर्लभ प्रजाति है और केवल भारतीय उपमहाद्वीप की मूल निवासी है। बंगाल फ्लोरिकन सबसे अधिक खतरे में मानी जाने वाली प्रजातियों में से एक है और दुनिया के अन्य स्थानों पर लगभग विलुप्त हो चुकी है और अब भारतीय उपमहाद्वीप में भी केवल 1,000 से भी कम युवा बंगाल फ्लोरिकन हैं।
7. ग्रेट - वाइट बेलीड हेरॉन (Great White Bellied Heron): ग्रेट वाइट बेलीड हेरॉन, जिसे इंपीरियल हेरॉन के नाम से भी जाना जाता है, हिमालय की तलहटी से लेकर पूर्वी हिमालय पर्वतमाला तक पाया जाने वाला एक बड़ा बगुला है। गहरे भूरे रंग का यह लंबा बगुला सबसे लंबी गर्दन वाली बड़ी प्रजाति है, इसकी गर्दन पर कोई काली धारियां नहीं होती हैं। आर्द्रभूमि का लुप्त होना, अवैध शिकार और निवास स्थान का विनाश बगुले के लिए प्रमुख चिंता का विषय है।
8. हिमालयन बटेर (Himalayan Quail): अद्भुत और सुंदर हिमालयी बटेर तीतर परिवार से संबंधित है और केवल उत्तराखंड के पश्चिमी हिमालय और भारत के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में पाए जाते हैं। हिमालयन बटेर भारतीय पक्षियों की अत्यंत लुप्तप्राय प्रजातियों में से एक है। आवास के विनाश के कारण यह प्रजाति विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/9bn6bkdc
https://tinyurl.com/tcca7te2
https://tinyurl.com/5n7hhjxh
चित्र संदर्भ
1. भारतीय चितकबरी मैना (Indian pied myna) को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. पेड़ पर बैठे मोर को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. खंबे पर बैठे पक्षियों को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
4. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (Great Indian bustard
) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. वन उल्लू (Forest owlet) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. बंगाल फ़्लोरिकन (Bengal florican) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. हिमालयन स्नोकॉक (Himalayan Snowcock) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)