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चलिए, चलते हैं, चन्नापटना के रंग-बिरंगे खिलौनों के अद्भुत सफ़र पर

लखनऊ

 21-10-2024 09:24 AM
हथियार व खिलौने
हमारे रामपुर शहर का प्रसिद्ध पैचवर्क, अब अपना भौगोलिक संकेत (जी आई) टैग प्राप्त कर चुका है। आज हम एक और पारंपरिक भारतीय हस्तकला के बारे में जानेंगे, जिसे जी आई टैग मिला है: चन्नापटना के खिलौने। ये खिलौने और लकड़ी की गुड़ियाँ, अपने सुंदर डिज़ाइन, चमकीले रंगों और मज़बूती के लिए मशहूर हैं। ये कर्नाटक के रामनगर ज़िले ज़िले के चन्नापटना शहर में बनते हैं। यह पारंपरिक कला, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के तहत कर्नाटक सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत (जी आई) के रूप में संरक्षित है।
इस लेख में, हम चन्नापटना के खिलौने बनाने की कला के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। इसके बाद, हम इन खिलौनों के उत्पादन की प्रक्रिया के बारे में बताएंगे। फिर, हम बात करेंगे बावस मियां के योगदान की, जिन्हें चन्नापटना के खिलौनों के प्रमुख कारीगर के रूप में जाना जाता है। इसके बाद, हम यह जानेंगे कि लेथ क्रांति ने इन खिलौनों के उत्पादन को कैसे बढ़ाया। अंत में, हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि चन्नापटना के खिलौनों की कला को स्थानीय कारीगरों और अन्य ज़िम्मेदार प्राधिकरणों के सहयोग से कैसे जीवित रखा जा रहा है।
चन्नापटना के रंग-बिरंगे खिलौनों का परिचय
चन्नापटना के खिलौने, नरम हाथी दांत के लकड़ी या "हले मरा" (Hale mara) से बनाए जाते हैं, हालांकि कई प्रकार की लकड़ियाँ जैसे आइवरी लकड़ी, बीच, नीम, सागवान, रबड़ आदि का भी उपयोग किया जा सकता है। लेकिन लगभग 90% चन्नापटना खिलौने नरम हाथी दांत के लकड़ी (Ivory wood) से बनते हैं, क्योंकि यह लकड़ी मज़बूत, विषाक्तता रहित और तराशने के लिए आदर्श है।
लकड़ी चुनने के बाद, इसे पौधों से बने रंगीन लेप से कोट किया जाता है। ये रंगीन द्रव्यों का उपयोग खिलौनों और गुड़ियों के रंगाई प्रक्रिया में किया जाता है ताकि ये सुरक्षित और बच्चों के लिए उपयोग में सुरक्षित रहें। चन्नापटना की असली खासियत यह है कि यह कला बड़े उद्योगों और फ़ैक्ट्रियों में नहीं की जाती, बल्कि छोटे घरों और कार्यशालाओं में होती है, जो आसपास के गांवों में फैली होती हैं।
हर खिलौना हाथ से बनाया जाता है, जिसमें कारीगर की मदद के लिए सिर्फ कुछ उपकरण या लेथ का उपयोग किया जाता है। कुछ कारीगर अभी भी हाथ से चलने वाली लेथ का उपयोग करते हैं, लेकिन बेहतर बिजली सेवाओं के आने के बाद, अधिकांश ने यांत्रिक लेथ का उपयोग करना शुरू कर दिया है। इसके बाद, वे हाथ से लेप लगाते हैं और अन्य फ़िनिशिंग प्रक्रियाएँ करते हैं!
चन्नापटना खिलौनों का निर्माण कैसे होता है? आइए, इसे विस्तार से जानने का प्रयास करें।
⦁ ● खिलौना बनाने की प्रक्रिया कच्चे माल से शुरू होती है, जो स्थानीय लकड़ी के आपूर्तिकर्ताओं से खरीदी जाती है। फिर इस लकड़ी को उसके आकार के अनुसार, 1-3 महीने तक सुखाया जाता है। हालांकि सरकारी आपूर्तिकर्ता सूखी लकड़ी देते हैं, लेकिन लागत बचाने के लिए, कारीगर स्थानीय लकड़ी खरीदकर इसे अपने घर में ही सुखाते हैं।
⦁ ● सूखी हुई लकड़ी को ज़रूरत के अनुसार अलग-अलग आकारों में काटा जाता है। इन छोटे टुकड़ों को लेथ मशीन पर लगाया जाता है और अलग-अलग प्रकार के छेनी का उपयोग करके लकड़ी को गोल, अंडाकार या अन्य आकारों में ढाला जाता है।
⦁ ● लकड़ी को आकार देने के बाद, उसकी सतह को चिकना करने के लिए रेत कागज़ (सैंड पेपर) से रगड़ा जाता है।
⦁ ● लकड़ी के मनचाहे आकार में ढलने के बाद, उस पर लेप चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू होती है। कारीगर, लकड़ी के टुकड़े पर लेथ मशीन के चलते समय लेप की छड़ी को दबाते हैं। घर्षण से उत्पन्न गर्मी के कारण, लेप लकड़ी पर लग जाता है।
⦁ ● लगाए गए लेप को सूखे ताड़ के पत्ते से समान रूप से फैलाया जाता है। इससे खिलौने की सतह चमकदार और सुंदर दिखती है।
⦁ ● आकार की सटीकता बनाए रखने के लिए, कारीगर, बार-बार वरनियर कैलिपर और डिवाइडर का उपयोग करते हैं।
⦁ ● जब खिलौना बन जाता है, तो उसे लेथ से हटाकर खिलौने के बाकी हिस्सों को (अगर खिलौना 2 या अधिक हिस्सों का बना हो) जोड़ा जाता है। साथ ही, खिलौने की सतह पर सजावटी काम भी इस चरण में किया जाता है।
चन्नापटना के खिलौनों का इतिहास और बावस मियां की भूमिका: हालांकि चन्नापटना के खिलौनों को सबसे पहले बढ़ावा देने का श्रेय टीपू सुल्तान को जाता है, लेकिन इन खिलौनों को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाने और पूरे देश में लोकप्रिय बनाने में सैयद बावा साहब मियां, जिन्हें प्यार से बावस मियां कहा जाता है, की भूमिका भी बेहद खास रही।
बावस मियां ने ब्रिटिश शासन के दौरान अपना एफ़ ए (FA) (जो उस समय आठवीं या नौवीं कक्षा के बराबर था) पूरा किया था और चन्नापटना के एक लेक्चरवेयर प्रशिक्षण केंद्र में काम कर रहे थे। इसी दौरान, 1904 और 1909 में, वे दो बार जापान गए। वहाँ उन्होंने लकड़ी के खिलौनों के लिए नए डिज़ाइन और रंगाई की तकनीकें सीखीं। जब वे चन्नापटना लौटे, तो उनके मन में एक बड़ा सपना था—अपने शहर के युवाओं को इस कला में निपुण करना। इसके लिए उन्होंने एक स्कूल खोला, जहां युवाओं को हस्तशिल्प की बारीकियाँ सिखाई जाने लगीं। बावस मियां की इस मेहनत और समर्पण के कारण उन्हें सम्मानपूर्वक "मास्टर" बावस मियां कहा जाने लगा, और उनके द्वारा सिखाई गई कला ने, चन्नापटना के खिलौनों को एक नई पहचान दिलाई।
लेथ क्रांति — हस्तशिल्प का नया युग: बावस मियां के निधन के बाद, 1914 में उनके दामाद सैयद यद्दुल्लाह ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया। पेशे से मैकेनिक सैयद यद्दुल्लाह, चन्नापटना के खिलौनों की दुनिया में एक क्रांतिकारी बदलाव लाए उन्होंने खिलौने बनाने के लिए, लेथ मशीनों का इस्तेमाल शुरू किया। इस नई तकनीक ने न सिर्फ़ उत्पादन में ज़बरदस्त बढ़ोतरी की, बल्कि चन्नापटना के पारंपरिक हस्तशिल्प को एक फलते-फूलते उद्योग में बदल दिया। देखते ही देखते, चन्नापटना, खिलौनों का प्रमुख केंद्र बन गया, और यहां के खिलौने पूरे देश में मशहूर हो गए।
चन्नापटना खिलौनों की परंपरा को बनाए रखने के लिए किये गए प्रयास
चन्नापटना के खिलौने सिर्फ़ खूबसूरत और रंग-बिरंगे नहीं होते, बल्कि ये एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के प्रतीक भी हैं। इस कला को जीवित रखने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए जा रहे हैं, जो इसे और भी खास बनाते हैं। आइए जानते हैं कि यह अनोखी कला कैसे आज भी जीवित है:
सरकार द्वारा उठाए गए कदम:
पिछले कुछ वर्षों में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे थे। विशेष रूप से, सस्ते चीनी खिलौनों ने बाज़ार में अपनी पैठ बना ली थी, जिससे स्थानीय उत्पादों की बिक्री में गिरावट आई। इस स्थिति को देखते हुए, कर्नाट सरकार के हस्तक्षेप के तहत, चन्नापटना खिलौनों के व्यापार को बढ़ावा देने के लिए, एक विस्तृत योजना तैयार की जिसके अंतर्गत, न केवल स्थानीय कारीगरों को उनके उत्पादों की मार्केटिंग में मदद मिली, बल्कि उन्हें वैश्विक स्तर पर भी पहचान मिली। इस प्रक्रिया में सरकार ने वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा के लिए, आवश्यक संसाधनों और तकनीकी सहायता प्रदान की।
कारीगरों का समर्थन: कर्नाटका सरकार ने डच सरकार के साथ मिलकर "विस्वा" योजना शुरू की। यह योजना, कारीगरों को आर्थिक मदद देती है, जिससे वे अपनी कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शित कर सकें। इस योजना के कारण, कारीगर अब अपने उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ा रहे हैं और अपने परिवारों का भरण-पोषण बेहतर तरीके से कर पा रहे हैं।
माया ऑर्गेनिक की भूमिका: "माया ऑर्गेनिक" (Maya Organic), एक बेंगलुरु आधारित गैर-सरकारी संगठन (NGO) है, जो चन्नापटना की कला को बढ़ावा देने के लिए काम करता है। यह संगठन, कारीगरों को प्रशिक्षण, संसाधन और बाजार संबंधी जानकारी देता है। इससे कारीगर नई डिज़ाइन बनाने और अपने उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार कर पा रहे हैं, जिससे वे वैश्विक बाज़ार में प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
बेंगलुरु में चन्नापटना के खिलौनों की पहचान: बेंगलुरु में चन्नापटना के खिलौनों को और पहचान मिली है। जैसे, बेंगलुरु एयरपोर्ट फ़ूड फ़ेस्टिवल के दौरान, जिन यात्रियों का बिल, 300 रुपये से अधिक था, उन्हें मुफ़्त में चन्नापटना की गुड़िया दी गईं। 2015 में बेंगलुरु गणतंत्र दिवस परेड का थीम भी "चन्नापटना खिलौने" था, जिसने इन खिलौनों को और लोकप्रिय बनाया।

संदर्भ
https://tinyurl.com/bdecrtmk
https://tinyurl.com/2739nnry
https://tinyurl.com/ykns563w
https://tinyurl.com/u2w3cn4j

चित्र संदर्भ
1. गाड़ियों के रूप वाले चन्नापटना खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. ढेरों चन्नापटना खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. गोल चन्नापटना खिलौनों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. चन्नापटना खिलौने बनाते कारीगर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. चन्नापटना खिलौनों के कारखाने को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)


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