City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
3034 | 192 | 3226 |
***Scroll down to the bottom of the page for above post viewership metric definitions
क्या आप जानते हैं कि पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में भी ‘जौनपुर’ नाम का एक गांव है! उत्तराखंड में, जौनपुर गांव, टिहरी गढ़वाल जिले की धनौल्टी तहसील में स्थित है। यह उप-जिला मुख्यालय, धनौल्टी (तहसीलदार कार्यालय) से 34 किमी दूर और जिला मुख्यालय, नई टिहरी से 75 किमी दूर स्थित है। जबकि, जौनपुर ब्लॉक भी टिहरीगढ़वाल जिले में ही स्थित है। टिहरीगढ़वाल के जौनपुर सामुदायिक विकास खंड में कुल 259 गांव हैं। और, यहां लगभग 12,066 घर हैं।
गढ़वाल के इस जौनपुर, जौनसार एवं रवाई नामक क्षेत्रों के हजारों ग्रामीण जन, पारंपरिक ‘मौंण त्योहार’ मनाने के लिए,यमुना की सहायक अगलर नदी,में मछली पकड़ने जाते हैं। यह एक पारंपरिक अनुष्ठान है, जिसे बहुत धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है; इस मेले को मनाने के लिए, लोग बड़ी संख्या में एकत्रित होते हैं। अनुमान के मुताबिक, अगलर नदी के पास इस वर्ष करीब 10,000 लोग जमा हुए थे। इसे जौनपुर के साथ-साथ गढ़वाल के मसूरी, विकासनगर और जौनपुर-भाबर (देहरादून) आदि क्षेत्रों में भी मनाया जाता है।
पारंपरिक संगीत वाद्ययंत्रों की धुनों के बीच,मछली पकड़ने वाले छोटे जालों या अपने हाथों से ही, ग्रामीण लोग हज़ारों किलोग्राम मछलियां पकड़ते हैं।इन मछलियों को‘तिमूर’ या ज़ैन्थोक्सिलमआर्मेटम (Zanthoxylum Armatum) पेड़ की छाल से बने पाउडर को नदी में डाल देने से, ‘बेहोश’ कर दिया जाता है।
तिमूर की छाल के पाउडर को ग्रामीण लोग ‘मौंण कहते हैं। इस छाल से सूखा पाउडर तैयार करने की जिम्मेदारी, बारी-बारी से गांव के कुछ समूहों को दी जाती है। यह ज़िम्मेदारी इस वर्ष जौनपुर के ऊपरी लालूर क्लस्टर के गांवों को दी गई थी।
तिमूर या पहाड़ी नीम के पौधे के तने की छाल को सुखाकर ओखली या घीरात में बारीक पीस लिया जाता है। बल्कितिमूर पौधे के तने की छाल के अलावा, पत्तियों और बीज का उपयोग करके भी पाउडर तैयार किया जाता है। ‘मौन’ के रूप में प्रख्यात,यह पाउडर मछलियों को कुछ देर के लिए, बेहोश कर देता है। तिमूर का पौधा एक प्राकृतिक जड़ी बूटी है, जिसका उच्च औषधीय महत्व है और यह जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान नहीं पहुंचाता है। यह पाउडर नदी के पानी में डालने के बाद, लोग अपने जाल, फतियादा, कुंडियादा और हाथों से मछली पकड़ना शुरू करते हैं। और, पकड़ी गई सबसे बड़ी मछली को स्थानीय मंदिर में चढ़ाया जाता है। मछली पकड़ने के लंबे एवं थका देने वाले दिन के बाद, लोग वापस अपने घर लौट जाते हैं और साथ में मछली के विभिन्न व्यंजनों का आनंद लेते हैं।
निवासियों का दावा है कि, यह एक पूरी तरह से पर्यावरण-अनुकूल अभ्यास है, क्योंकि, नदी में बेहोश हुई मछलियां कुछ समय बाद होश में आ जाती हैं।मौंण त्योहार नदी में मछलियों की आबादी को नियंत्रित करने में मदद करता है।इस अभ्यास से, मुख्य रूप से ट्राउट(Trout) मछली की आबादी नियंत्रित की जा सकती है। जबकि, इस अनुष्ठान के एक अन्य सामाजिक फायदे के तौर पर, इससे क्षेत्र के लोगों को एक साथ जश्न मनाने का अवसर मिलता है।
इस मेले की तैयारी लोग एक माह पहले से ही शुरू कर देते हैं। मछली की प्रजातियों पर शोध करने वाले विभिन्न वैज्ञानिक भी इस मेले में भाग लेते हैं। साथ ही, इस मछली मेले में बाहर से भी पर्यटक शामिल होते हैं।
टिहरी साम्राज्य के समय में, टिहरी के राजा स्वयं इस उत्सव में अपनी पत्नी और लाव-लश्कर के साथ भाग लेते थे। कहा जाता है कि,मौंण मेले की शुरूआत टिहरीके राजा नरेन्द्र शाह ने निलहड नदी पर की थी। जबकि, एक अन्य दावा है कि, राजा सुदर्शन शाह, ने हमारे देश के स्वतंत्रता-पूर्व युग के दौरान इस मेले को शुरु किया था। हालांकि, कुछ आपसी मतभेदों के कारण वर्ष 1844 में मौंण मेला बंद कर दिया गया था। जबकि, वर्ष 1949 में इसे पुनः शुरू किया गया।
जैसा कि हमनें ऊपर पढ़ा ही है,मौंण पाउडर मछलियों को निष्क्रिय बना देता है और अतः मछली पकड़ना आसान हो जाता है। लेकिन ग्रामीण लोग इन तथ्यों से अनजान हैं कि, यह पाउडर अन्य जलीय जीवों, जैसे कि, उभयचर और सांप आदि को कैसे प्रभावित करता है? वह नदी के पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को कैसे नष्ट कर देता हैं? इसलिए, कुछ शोधकर्ताओं ने अगलर नदी के जीवों पर मौंण त्योहार के प्रभाव का आकलन एवं अध्ययन भी किया है, जहां यह पारंपरिक त्योहार आयोजित किया जाता है। अध्ययन के दौरान, शोधकर्ताओं ने देखा कि, उत्सव के दिन थोड़े समय में, विविध मछलियों की बड़े पैमाने पर हत्या हो गई थी। इनमें से कुछ प्रजातियों को तो,आईयूसीएन लाल सूची(IUCN Red list) के तहत सूचीबद्ध भी किया गया था। इसके अलावा, इस मछली पकड़ने के त्योहार से बड़ी संख्या में छोटे कीड़े, तितलियां, टिड्डे, मकड़ियां, सांप और उभयचर भी प्रभावित हुए। साथ ही, मेंढक के मृत नन्हे टैडपोलों(Tadpole) की संख्या भयावह थी।
इसलिए, अगलर नदी घाटी की विविधता को बनाए रखने के लिए, समुदाय की भावना को नुकसान पहुंचाए बिना, इस लोक उत्सव को ध्यानपूर्वक आयोजित करने की तत्काल आवश्यकता है। क्योंकि, वर्तमान अध्ययन जैव विविधता संरक्षण के बारे में लोगों के बीच जागरूकता और संवेदीकरण कार्यक्रम आयोजित करने की वकालत करता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2p8a75e
https://tinyurl.com/bdz9urk9
https://tinyurl.com/y492f3n3
https://tinyurl.com/bdmvefs2
https://tinyurl.com/3rrdf5yy
चित्र संदर्भ
1. मौंण मेले के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. मौंण मेले से पहले की तैयारी के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
3. तिमूर को दर्शाता एक चित्रण (Plantnet)
4. तिमूर की छाल के पाउडर को नदी में डालते लोगों को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. मृत मछलियों को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
© - 2017 All content on this website, such as text, graphics, logos, button icons, software, images and its selection, arrangement, presentation & overall design, is the property of Indoeuropeans India Pvt. Ltd. and protected by international copyright laws.