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अभ्यंग (मालिश) प्रयोग मानव सभ्यता में बहुत प्राचीन युग से होता आया है। कहा जाता है
कि भारत में मालिश (अभ्यंग) के उपयोग की शुरुआत पहली इंडो-आर्यन बस्तियों के समय
से हुई थी, हालाँकि, यह संभावना है कि सिंधु घाटी संस्कृति के पूर्ववर्ती युग के दौरान
मालिश पहले से ही उपयोग लाये जाने वाली चिकित्सा पद्धति थी। मालिश को अक्सर
सामाजिक, धार्मिक या अनुष्ठानिक रीति-रिवाजों से जोड़ा जाता आ रहा है, यह साक्ष्य है कि
घरेलू मालिश की प्राचीन प्रथा का महत्वपूर्ण सांस्कृतिक इतिहास कितना लंबा रहा होगा।
मालिश को सेहत के लिए फायदेमंद माना जाता है। प्राचीनकाल-संबंधी आयुर्वेद ग्रंथ में भी
मालिश का उल्लेख मिलता हैं और इसे परम आवश्यक उपचार कारक के रूप में बताया गया
हैं। आज तक, भारत में सामान्य स्वास्थ्य और फिटनेस (fitness) को बढ़ावा देने के साथ-
साथ छोटी स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए मालिश का नियमित रूप से उपयोग किया
जाता आ रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सक गंभीर बीमारी के उपचार में व्यवस्थित रूप से लागू
करने के लिए मालिश को एक संपूर्ण चिकित्सा पद्धति के रूप में भी नियोजित करते हैं।
मालिश चिकित्सा और प्राचीन विधियों की उत्पत्ति:
मालिश करने की कला का ज्ञान नया नहीं है। इस बात का पुष्ट प्रमाण मिलता है कि यह
कला अत्यन्त पुरातन है। मालिश के पुरातात्विक साक्ष्य चीन (China) , भारत , जापान
(Japan), कोरिया (Korea), मिस्र (Egypt), रोम (Rome), ग्रीस (Greece) और
मेसोपोटामिया (Mesopotamia) सहित कई प्राचीन सभ्यताओं में पाए गए हैं । मालिश
चिकित्सा का इतिहास भारत में 3000 ईसा पूर्व या उससे भी पहले का है, जहां इसे प्राकृतिक
उपचार की एक मात्र पवित्र प्रणाली माना जाता था। आयुर्वेद चिकित्सा में हिंदुओं द्वारा
उपयोग की जाने वाली मालिश चिकित्सा चोटों को ठीक करने, दर्द से राहत देने और
बीमारियों को दूर करने के लिए पीढ़ियों से चली आ रही एक प्रथा है। आयुर्वेद के संस्थापकों
का मानना है कि अस्वस्थता और बीमारी तब होती है जब लोग पर्यावरण के साथ तालमेल
नहीं बिठाते हैं। माना जाता है कि मालिश शरीर के वास्तविक और शारीरिक संतुलन को
बहाल करती है ताकि यह स्वाभाविक रूप से ठीक हो सके।
जैसे-जैसे संस्कृति विकसित हुई, मालिश के उपचार के तरीकों ने लगभग 2700 ईसा पूर्व
चीन और दक्षिण पूर्व एशिया से अपनी यात्रा शुरू की। चीनी में मालिश विधियों को पारंपरिक
चीनी चिकित्सा, मार्शल आर्ट (martial arts) और बौद्धों और ताओवादियों के आध्यात्मिक
योग प्रशिक्षण के कौशल तथा प्रथाओं के संयोजन के रूप में विकसित किया गया। इनके
तरीके भारतीयों के तरीकों के समान ही थे। प्राचीन चीनी में द येलो एम्परर्स क्लासिक बुक
ऑफ इंटरनल मेडिसिन (The Yellow Emperor’s Classic Book of Internal Medicine)
नामक एक मूलपाठ विकसित किया जिसे आज मालिश चिकित्सा (एक्यूपंक्चर
((acupuncture), एक्यूप्रेशर (acupressure) और हर्बल उपचार) में प्रमुख माना जाता है।
2500 ईसा पूर्व में, मालिश चिकित्सा ने अपने गुणों के कारण मिस्र तक अपना रास्ता बना
लिया था, जहां इसे मकबरे के चित्रों में चित्रित किया गया था। मिस्रवासियों ने अपनी खुद
की बॉडीवर्क तकनीकों (bodywork techniques) को इजात किया और इन्हीं को
रिफ्लेक्सोलॉजी (reflexology) विकसित करने का श्रेय दिया जाता है, जिसमें पैरों और हाथों
पर विशिष्ट बिंदुओं या क्षेत्रों पर दबाव डालना शामिल है। बाद में, चीन में बौद्ध धर्म का
अध्ययन करने वाले भिक्षुओं ने 1000 ईसा पूर्व में जापान में मालिश चिकित्सा का ज्ञान
अपने साथ ले गए, जिसे उन्होंने इसे "अन्मा" (anma) कहा, जिसे बाद में शियात्सू
(Shiatsu) के नाम से जाना गया।
मिस्रवासियों ने यूनानियों और रोमनों को प्रभावित किया जिन्होंने विभिन्न तरीकों से मालिश
चिकित्सा को और भी समृद्ध किया। ग्रीस तथा यूनान देश में आरोग्योपचार के रूप में ही
नहीं, विलासिता के रूप में भी इसका बोलबाला था। ग्रीस में, 800 और 700 ईसा पूर्व के
बीच, खिलाड़िओं ने प्रतियोगिताओं से पहले अपने शरीर को कंडीशन (condition) करने के
लिए मालिश का इस्तेमाल किया, और डॉक्टरों ने अक्सर विभिन्न बीमारियों के इलाज के
लिए मालिश के साथ जड़ी-बूटियों तथा तेलों का इस्तेमाल किया। हिप्पोक्रेट्स
(Hippocrates), जिन्हें "चिकित्सा के पिता," के नाम से भी जाना जाता है, उन्होंने 5वीं
शताब्दी ईसा पूर्व में मालिश की तकनीक के साथ शारीरिक चोटों का इलाज किया, और वे
स्वास्थ्य संतुलन को बनाये रखने के लिए मालिश, उचित आहार, व्यायाम, ताजी हवा और
संगीत के संयोजन को लिखने वाले पहले व्यक्ति थे।
1800 के दशक की शुरुआत में, स्वीडिश (Swedish) डॉक्टर/जिमनास्ट/शिक्षक हेनरिक लिंग
(Henrik Ling) ने एक ऐसी विधि बनाई जिसे पुराने दर्द से राहत दिलाने में इस्तेमाल किया
जाने गया जिसे स्वीडिश मूवमेंट क्योर (Swedish Movement Cure ) के रूप में जाना
जाने लगा, यह मालिश का ही एक रूप था। 1700 के दशक की शुरुआत में मालिश
चिकित्सा अमेरिका द्वारा भी अपनाया गया, उन दिनों "रब्बेर्स" (rubbers) (घर्षण के साथ
आर्थोपेडिक समस्याओं का इलाज करने के लिए सर्जनों द्वारा काम पर रखी गई महिलाएं)
मालिश चिकित्सक हुआ करती थी। 1800 के दशक के अंत तक, ये "मालिश करने वाली"
(masseur) के नाम लोकप्रिय हो गए। इन चिकित्सकों को सॉफ्ट टीसू मैनीपुलेशन आ ला
मेज़गेर (soft tissue manipulation à la Mezger) में प्रशिक्षित किया गया था। इस समय
मालिश के साथ हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy) का उपयोग किया जाता था और इसे आज की
स्पा सेवाओं (spa services) का मूल माना जाता है।
इस प्रकार संसार के समस्त देशों में पुरातन काल से ही इसका ज्ञान लोगों को था। पर
मालिश को वैज्ञानिक रूप 17 वीं शताब्दी से चिकित्सकों ने दिया। शरीर विज्ञान का ज्ञान
ज्यों ज्यों बढ़ता गया त्यों-त्यों मालिश की महत्ता भी बढ़ती गई। रक्त-प्रवाह की व्यवस्था के
विषय में ज्ञात होने पर तो मालिश को चिकित्सा का रूप मिला। आज तो संसार के समस्त
सभ्य और उन्नत देशों में मालिश एक वैज्ञानिक चिकित्सा-प्रणाली के रूप में मान्य है।
1900 की शुरुआत में मालिश करने वालों और मालिश करवाने वालों की मांग बढ़ गई।
1930 के दशक तक, स्वीडिश में मालिश पद्धति इतनी विकसित हो गई थी कि
फिजियोथेरेपिस्ट (physiotherapists) ने इसे नियमित चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल करना
प्रारंभ कर दिया था, इससे मालिश चिकित्सा को दवा का एक वैध और सम्मानजनक रूप
बनने में मदद मिली। बाद में अमेरिकन मसाज थेरेपी एसोसिएशन (American Massage
Therapy Association (AMTA)) की स्थापना की गई तथा नैतिकता और शिक्षा मानकों
को स्थापित करके आज के मालिश चिकित्सकों के लिए नींव रखी गई। 1970 और 2000 के
बीच, मालिश चिकित्सा ने एक परिवर्तन का युग आया, क्योंकि लोगों ने स्वस्थ जीवन शैली
जीने के लिए इसे चुना और साथ ही साथ इसे स्वास्थ्य की देखभाल, दर्द निवारण और
स्वस्थ शरीर को बहाल करने और बनाए रखने के लिए पसंद किया जाने लगा। आज, अनेक
लोग मानते हैं कि “मालिश एक अच्छा चिकित्सा उपचार है।”
भारत में आयुर्वेदिक चिकित्सक भी गंभीर बीमारी के उपचार के लिए मालिश को संपूर्ण
चिकित्सा के रूप में उपयोग करते हैं। यहां तक की मालिश का उपयोग काइरोप्रैक्टिक उपचार
(chiropractic treatment) में भी किया जाता है। काइरोप्रैक्टिक उपचार (chiropractic
treatment) एक प्रकार की शारीरिक थेरेपी है। जिसका इस्तेमाल अक्सर मांसपेशियों
(muscle) और जोड़ों के दर्द (joint pain) जैसे पीठ दर्द (back pain) और खेल में लगी
चोट (sports injury) के इलाज के लिए किया जाता है। इसे एक पूरक एवं वैकल्पिक दवा
(complementary and alternative medicine) (CAM) के रूप में जाना जाता है क्योंकि
यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध तरीकों जैसे कि मानक दवाओं का उपयोग नहीं करता है। इसके
बजाय, काइरोप्रैक्टिक इलाज (chiropractic treatment) में मैनुअल थेरेपी (manual
therapy), स्ट्रेचिंग (stretching), मसाज, आइस पैक (ice packs), इलेक्ट्रिकल मसल
स्टिमुलेशन (electrical muscle stimulation) आदि शामिल होता है जिसमें काइरोप्रैक्टर
(chiropractor) आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों को हिलाने के लिए अपने हाथों का उपयोग
करता है। मालिश आमतौर पर पूरे शरीर या शरीर के अलग-अलग अंगों पर पर्याप्त मात्रा में
विशिष्ट गर्म तेलों की सहायता से की जाती है। इसके अलावा, आयुर्वेद प्रणाली में विशेष
मालिश विधियों की एक विस्तृत श्रृंखला है जिनका उपयोग विशेष बीमारियों के इलाज के
लिए किया जाता है।
मालिश उपचार की सबसे सरल विधि है, मालिश से शरीर का सर्कुलेशन (circulation) बढ़ता
है, मांसपेशियों की कमजोरी दूर होती है, शरीर में ताकत महसूस होती है और हड्डियों
मजूबत होती हैं। मालिश जोड़ो से दर्द, पीठ दर्द, कमर दर्द आदि में लाभकारी है साथ ही
साथ यह फेफड़ों की शक्ति बढ़ती है, उनकी कार्यक्षमता बढ़ती है, मालिश से गुर्दों तथा आँतों
की भी शक्ति और क्रियाशीलता बढ़ती है।
संदर्भ:
https://bit.ly/3nKBXXa
https://bit.ly/3ajGuwQ
https://bit.ly/3nJ3sR3
https://bit.ly/3Ay8VS6
चित्र संदर्भ
1. अभ्यंग या मालिश को दर्शाता एक चित्रण (pxhere)
2. एक कायरोप्रैक्टर को मरीज का इलाज करते हुए, दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
3. मालिश चिकित्सा चोटों को ठीक करने, दर्द से राहत देने और
बीमारियों को दूर करने के लिए पीढ़ियों से चली आ रही एक प्रथा है।, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. प्राचीन मालिश प्रथा को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. बच्चे पर कायरोप्रैक्टिक समायोजन, को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. अभ्यंग या मालिश के पूर्व और बाद के एक्सरे चित्रण को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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