तेन्दुआ (पैन्थेरा पार्डस-Panthera pardus) पैन्थरा (Panthera) जीनस (Genes) की एक विशाल बिल्ली प्रजाति है, जो पश्चिमी और मध्य एशिया (Asia) के छोटे हिस्से में, यूरोपीय रूस (European Russia) में, भारतीय उपमहाद्वीप में, और उप-सहारा अफ्रीका में (sub-Saharan Africa) एक विस्तृत श्रृंखला में पाया जाता है। यह अन्य जंगली बिल्लियों जैसे शेर, बाघ और जैगुअर (Jaguar) की तुलना में अपेक्षाकृत छोटा होता है। लेकिन तेंदुए बहुत शक्तिशाली और चतुर जीव है और इनकी एकाग्रता तो लाज़वाब होती है। शिकार को पकड़ने की तकनीक और हमला करने की शैली इन्हें एक अव्वल दर्जे का शिकारी बनाती है। आमतौर पर ये निशाचरी होते हैं। तेंदुए 58 किमी प्रति घण्टे की रफ़्तार से दौड़ सकते हैं।
तेन्दुए अधिकांशतः पीली चमकदार त्वचा के होते हैं जिसपर गहरे काले रंग के धब्बे होते हैं। लेकिन तेन्दुओं की विभिन्न उपप्रजातियों के बीच बहुत अन्तर भी हो सकता है। कुछ तेन्दुए पूर्ण रूप से काले भी होते हैं। तेन्दुए विभिन्न पर्यावरणों में रहते हैं जैसे: वर्षावन, वन, पर्वत और सवाना। आमतौर पर अन्य बड़ी बिल्लियों की अपेक्षा तेंदुओं में मध्यम टाँगे, लम्बा शरीर और बड़ी खोपड़ी पायी जाती है। नर मादा से बड़े और भारी होते हैं। नर समान्यत: कंधे से 60-70 सेमी लम्बे और 37-90 किलोग्राम वजनी होते है, जबकि मादा कंधे से 57-64 सेमी लम्बी और 28-60 किलोग्राम वजनी होती है। तेन्दुए सुंदरता, साहस और आत्मविश्वास का प्रतीक भी है।
तेंदुए अपने शिकार को घूरने में उत्कृष्ट है, जो चुपचाप और असंगत रूप से आगे बढ़ते है और अचानक बाहर निकल कर शिकार करते है| यह व्यवहार हमें जीवन में कुछ विषम स्थितियों से निपटने में मदद कर सकता है, जैसे कि कैसे तेन्दुए स्पष्टता के साथ विभिन्न स्थितियों का निरीक्षण करते है और विश्वास के साथ सही दिशा में आगे बढ़ते है। इस प्रकार हम भी तेंदुए से ये सीख सकते है कि किस प्रकार विषम स्थितियों में हमे पहले स्थितियों का निरीक्षण करना चाहिये और सही दिशा में आगे बढ़ना चाहिये।
वर्तमान में आइ.यू.सी.एन. (IUCN) ने तेंदुओं को रेडलिस्ट (Red List) में सूचीबद्ध किया गया है क्योंकि तेंदुए की आबादी पर विलुप्ती का खतरा है। तेन्दुओं की बहुत सी उपप्रजातियाँ, विशेषकर एशिया में, विलुप्ती के कगार पर हैं। हांगकांग (Hong Kong), सिंगापुर (Singapore), दक्षिणकोरिया (South Korea), जॉर्डन (Jordan), मोरक्को (Morocco), टोगो (Togo), संयुक्त अरब अमीरात (United Arab Emirates), उजबेकिस्तान (Uzbekistan), लेबनान (Lebanon), मॉरिटानिया (Mauritania), कुवैत (Kuwait), सीरिया (Syria), लीबिया (Libya), ट्यूनीशिया (Tunisia), उत्तरकोरिया (North Korea), लाओस (Laos), लेसोथो (Lesotho), ताजिकिस्तान (Tajikistan), वियतनाम (Vietnam) में इनकी कई उपप्रजातियां लुप्त हो चुकी है, जो बहुत चिंताजनक है। भारत में इनके संरक्षण के लिये कई प्रयास किये गये हैं, जिनके परिणामस्वरूप देश में तेंदुओं की आबादी में 60% वृद्धि हुई है। भारत सरकार ने नई दिल्ली में "स्टेटस ऑफ़ लेपर्डस रिपोर्ट 2018" (Status of leopard report)को जारी करते हुए कहा कि भारत में तेंदुओं की संख्या 12,852 तक पहुंच गई है।
जबकि इसके पहले 2014 में हुई गणना के अनुसार देश में 7,910 तेंदुए थे। इस अवधि में तेंदुओं की संख्यामें 60 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि गणना के अनुसार मध्य प्रदेश में 3,421 तेंदुए, कर्नाटक में 1,783 तेंदुए और महाराष्ट्र में 1,690 तेंदुए, दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे ज्यादा पाएगए हैं। भारत में पिछले कुछ वर्षों में बाघ, शेर, तेंदुए की संख्या में हुई बढ़ोतरी इस बात का प्रमाण है कि देश में वन्यजीवों के संरक्षण के प्रयास अच्छे परिणाम दे रहे हैं और वन्यजीवों की संख्या और जैवविविधता में सुधार हो रहा है।
उत्तर प्रदेश में भी तेंदुओं की ज्ञात अनुमानित आबादी लगभग 194 हैं। तेंदुए उन मांसाहारियों में से हैं जो सबसे अधिक अनुकूलन योग्य हैं और मानव आवास के बहुत करीब रहने के लिए जाने जाते हैं। तेंदुए ने विभिन्न वासस्थलों में निवास करने और मनुष्य के साथ रहने के लिए अपने आप को ढाल लिया है। वह बहुत ही चालाक, रहस्यमयी, मौक़ापरस्त और फुर्तीला रात्रिचर परभक्षी है जो छोटे वन्य जीवों और पालतू पशुओं का शिकार करता है। यह गाँवों और कस्बों के इर्द-गिर्द मंडराता रहता है और अपने शिकार को मुँह में दबाए आसानी से पेड़ पर चढ़ सकता है। उसकी दृष्टि और सुनने की शक्ति बहुत ही अच्छी होती है। कई बार तेंदुए ने मानवों पर हमला किया है, वे आदम खोर बन जाते हैं। जौनपुर के सराय ख्वाजा थाना क्षेत्र के रामपुर गांव में एक दोपहर को खतरनाक तेंदुआ एक रिहायसी इलाके घुस गया, तेंदुए ने रास्ते में वृद्धसमेत तीन लोगों पर हमला कर दिया। ग्रामीणों का शोर सुनकर तेंदुआ एक घर में घुस गया, जहां परिवार के काफी लोग मौजूद थे। मौके पर पहुंची पुलिस फ़ोर्स ने किसी तरह घर में बंद लोगों को छत की सीढ़ी के रास्ते बहार निकाला और गेट में ताला बंद करवा दिया। इसके बाद घायलों को उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया।
इससे पहले भी यह तेंदुआ कई लोगों पर हमला कर चुका था। शुक्रवार की दोपहर 2 बजे के करीब खेत के पास तेंदुआ ने सबसे पहले अनिल मौर्या पर हमला कर जख्मी कर दिया। उन्होंने अपनी चीख निकाली तो तेंदुआ भागा और दोसौ मीटर दूर जाकर छोटे लाल मौर्या पर हमला कर दिया I तभी गांव के काफी लोग इकटठा हो गए और शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे वह भाग गया। बौखलाये तेंदुए ने छोटे लाल के बेटे गणेश पर हमला कर गंभीर रूप से जख्मी कर दिया I फिर से गांव के सैकड़ों लोगों ने जुटकर शोर मचाना शुरू कर दिया जिससे तेंदुआ बस्ती के दिलीप मौर्या के घर में घुस गया। डरकर घर में मौजूद सदस्यों ने खुद को एक कमरें में बंद कर लिया और तेंदुआ दुसरे कमरे में चला गया। खबर मिलने पर पुलिस पहुंच गई और घर में बंद लोगों को छत की सीढ़ी के रास्ते बहार निकाला, और चेनल गेट बंद कर ताला लगा दिया। सुरक्षा के लिए तैनात पुलिस के साथ ग्रामीण 24 घंटे संघर्ष करते रहे। इसके बाद लखनऊ और कानपुर के वन्यजीव विशेषज्ञों से संपर्क किया गया। कानपुर से पहुंची एक टीम ने घर में बंद करके रखे गये तेंदुआ को ट्रैक्विलाइजर (Tranquilizer) की मदद से इंजेक्शन दिया और बेहोश करने के बाद पिंजरे में डाल दिया। इसके बाद टीम तेंदुआ को कानपुर लेकर चली गई।
हालांकि अधिकांश तेंदुए लोगों से बचते हैं, लेकिन कभी-कभी इन्हें मानव का शिकार करते हुये भी देखा गया है। अधिकांश स्वस्थ तेंदुए जंगली शिकार पसंद करते हैं, लेकिन घायल, बीमार या नियमित जंगली शिकार की कमी वालों क्षेत्रों के तेंदुए भोजन के लिये मनुष्यों का सहारा लेते है, क्योंकि मनुष्य उनका आसान शिकार होता है। भारत में दो मामले ऐसे हुए है जहां तेंदुए आदमखोर बनगये और तबाही मचा दी। पहला मामला रुद्रप्रयाग का है जहां तेंदुए ने 125 से अधिक लोगों को मार दिया और दूसरा पनार रोड का है जहां 400 से अधिक लोग मारे गए थे। बाद में इन दोनों को प्रसिद्ध शिकारी और संरक्षणवादी जिम कॉर्बेट (Jim Corbett) ने मार डाला था। जिम कॉर्बेट ने बताया कि बाघों के विपरीत, जो आमतौर पर दुर्बलता के कारण आदमखोर बनजाते हैं, तेंदुए आमतौर पर मानव लाशों को खाकर आदम खोर हुये है। दरअसल आमतौर पर मृत लोगों का पूरी तरह से अंतिम संस्कार किया जाता है, लेकिन जब कोई महामारी फैल जाती है, तो मृत्युदर में वृद्धि के कारण श्मशान में लकड़ी की आपूर्ति समाप्त हो जाती है और लोग शरीर को थोड़ा जलाकर घाट के किनारे फेंक देते हैं। इन्हीं लाशों को खाकर तेंदुए आदमखोर बनते जा रहे हैं। आदमखोर तेंदुए आमतौर पर रात में हमला करते हैं और उनके लिये मानव शिकार अन्य जानवर की तुलना में आसान भी होता है।
आमतौर पर यही माना जाता है कि आदमखोर हो चुके तेंदुए को फौरन उस इलाके से हटा देना चाहिए। लेकिन यह समस्या का स्थाई समाधान नहीं है। क्योंकि कुछ महीनों बाद, कोई दूसरा तेंदुआ फिर से शिकार करने लगता है। पड़ोसी राज्य हिमाचल प्रदेश और उत्तरा खंड में आदमखोरों का इतिहास तो यही बताता है। इंसानों और जानवरों के एक-दूसरे पर होने वाले हमलों का यह चक्र तभी रुक पाएगा जब इनके लिए उत्तरदायी कारणों को समझने की कोशिश की जाएगी। तेंदुए माहौल के हिसाब से समायोजन करने वाले सबसे कुशल और अनुकूल शिकारी होते हैं। अगर उनसे जंगल छीन लिया जाए तो वे खेतों में रहने लगेंगे, अगर जंगली शिकार खत्म हो जाएं तो वे पालतू जानवरों का शिकार करने लगेंगे। इसकेअलावा तेंदुए इंसानों की पहली झलक पाते ही जल्दी से छिप जाने वाले जीव हैं। फिर ऐसा छिपकर रहने वाला शिकारी बहुतायात में मौजूद पालतू जानवरों, आवारा कुत्तों की अनदेखी क्यों करते हैं और आदमखोर कैसे बन जाते हैं? वनविभाग और संरक्षण वादियों के बीच एक सोच प्रचलित है कि तेंदुए जैसे जंगली जानवरों का स्थान जंगलों में ही है। अगर वे खेतों में रहने लगे तो कुछ ही समय में वे इंसानों पर हमले शुरू कर देंगे। परन्तु तेंदुओं और किसानों के शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए जरूरी है कि किसानों के पालतू जानवरों को सुरक्षित रखने में उनकी मदद की जाए। उन्हें जानकारी दी जाए कि किस तरह तेंदुओं से बचाव किया जा सकता है। लेकिन सरकारी विभाग का ध्यान तेंदुओं पर केंद्रित रहता है। क्योंकि वन्यजीव कानून के अनुसार इंसानों के लिए खतरा बन चुके संरक्षित प्राणियों को नई जगह बसाया जाना चाहिए। शोध बातते है कि हमें इस समस्या के दीर्घकालीन उपाय खोजने के लिए पारंपरिक सोच को छोड़ना होगा। किसी खास जगह पर हो रहे तेंदुओं के हमलों और उनकी वजहों को नए दृष्टि कोण से देखना होगा वरना ऐसी दुखद घटनाएं जारी रहेंगी।
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