 
                                            समय - सीमा 268
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भूगोल 264
जीव-जंतु 306
 
                                             श्रद्धालुओं के बीच यह शिव मंदिर मनोकामना पूरी करने के लिए विश्व विख्यात हैं, जिस कारण देश के अलग-अलग राज्यों से भक्तों का यहां निरंतर आवागमन रहता है। यह मंदिर लखनऊ -वाराणसी मार्ग पर स्थित है, जिस कारण यहाँ आवा-जाही के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं। इस मंदिर की जिला मुख्यालय से दूरी 20 किलोमीटर की है। रोडवेज की बसें तथा अन्य व्यक्तिगत वाहन निरंतर चलते रहते हैं, त्यौहारों तथा पर्वों खासतौर पर शिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती हैं। मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर मांगी जाने वाली प्रत्येक कामना निश्चित ही पूर्ण होती है, जिस कारण यह चिरकाल से आस्था का केंद्र बना हुआ है। कुछ रहस्यमयी घटनाओं ने कई बार लोगों का ध्यान त्रिलोचन मंदिर की ओर आकर्षित किया है। ऐसी ही एक घटना 2019 के सितम्बर माह में भी घटित हुई, जहाँ 27 सितंबर के दिन आकाशीय बिजली गिरने से त्रिलोचन मंदिर को भारी क्षति पहुंची। आकाशीय बिजली गिरने के कारण मंदिर की नक्काशी प्रभावित हुई, त्रिशूल अपने स्थान से गिर गया, मंदिर परिसर में लगी सोलर ऊर्जा स्रोत भी क्षतिग्रस्त हो गए। और साथ ही मंदिर का गुम्बद पूरी तरह चूर-चूर हो गया। आश्चर्य की बात यह थी घटना के कुछ ही समय पूर्व मंदिर के पुजारी समेत आस-पास के कुछ आम नागरिक पूजा समापन के बाद वहां से निकले थे। इस घटना में मंदिर समेत आस-पास के कुछ अन्य मकानों को भी भारी क्षति पहुंची थी।
श्रद्धालुओं के बीच यह शिव मंदिर मनोकामना पूरी करने के लिए विश्व विख्यात हैं, जिस कारण देश के अलग-अलग राज्यों से भक्तों का यहां निरंतर आवागमन रहता है। यह मंदिर लखनऊ -वाराणसी मार्ग पर स्थित है, जिस कारण यहाँ आवा-जाही के पर्याप्त साधन उपलब्ध हैं। इस मंदिर की जिला मुख्यालय से दूरी 20 किलोमीटर की है। रोडवेज की बसें तथा अन्य व्यक्तिगत वाहन निरंतर चलते रहते हैं, त्यौहारों तथा पर्वों खासतौर पर शिवरात्रि के मौके पर हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती हैं। मान्यताओं के अनुसार यहाँ पर मांगी जाने वाली प्रत्येक कामना निश्चित ही पूर्ण होती है, जिस कारण यह चिरकाल से आस्था का केंद्र बना हुआ है। कुछ रहस्यमयी घटनाओं ने कई बार लोगों का ध्यान त्रिलोचन मंदिर की ओर आकर्षित किया है। ऐसी ही एक घटना 2019 के सितम्बर माह में भी घटित हुई, जहाँ 27 सितंबर के दिन आकाशीय बिजली गिरने से त्रिलोचन मंदिर को भारी क्षति पहुंची। आकाशीय बिजली गिरने के कारण मंदिर की नक्काशी प्रभावित हुई, त्रिशूल अपने स्थान से गिर गया, मंदिर परिसर में लगी सोलर ऊर्जा स्रोत भी क्षतिग्रस्त हो गए। और साथ ही मंदिर का गुम्बद पूरी तरह चूर-चूर हो गया। आश्चर्य की बात यह थी घटना के कुछ ही समय पूर्व मंदिर के पुजारी समेत आस-पास के कुछ आम नागरिक पूजा समापन के बाद वहां से निकले थे। इस घटना में मंदिर समेत आस-पास के कुछ अन्य मकानों को भी भारी क्षति पहुंची थी।
 रहस्यों से भरपूर इस मंदिर का व्याख्यान स्कन्द पुराण में मिलता है। यहां के शिवलिंग को स्वयं-भू माना जाता है, अर्थात यह शिवलिंग किसी के द्वारा प्रतिष्ठित नहीं है, अपितु स्वयं शिव-शंकर पाताल लोक का भेदन करने के उपरान्त यहाँ पर अवतरित हुए हैं। मंदिर की पूर्व दिशा में एक जलकुंड भी है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस कुंड में स्नान कर लेता है, उसे त्वचा से सम्बंधित रोग नहीं होते। साथ ही इस कुंड में पूरे वर्ष पानी उपलब्ध रहता है, और यह कभी नहीं सूखता। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। कथाओं के अनुसार एक बार यहाँ के सर्प और मंदिर के घंटे को चोरों द्वारा चुरा लिया, जिसके बाद से वे चोर मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए। और अंत में  सर्प चुराने वाले व्यक्ति के परिवार जनों को उससे अधिक वजनी चांदी का सर्प मंदिर को भेंट करना पड़ा। और घण्टा चुराने वाले चोर उसे उठाकर ट्रेन में नहीं रख पाए, और आखिरकार रेलवे विभाग ने उस घंटे को सही सलामत मंदिर परिसर को वापस लौटाया। चूँकि यह मंदिर साल भर सैलानियों की भीड़ से भरा रहता है, परन्तु महामारी के प्रकोप को देखते हुए यहाँ भी भक्तों के भीड़ में कमी देखी गयी है। लेकिन अपनी चमत्कारी विशेषताओं और भक्तों के अगाध प्रेम के कारण यह मंदिर सदा ही लोकप्रिय रहेगा।
रहस्यों से भरपूर इस मंदिर का व्याख्यान स्कन्द पुराण में मिलता है। यहां के शिवलिंग को स्वयं-भू माना जाता है, अर्थात यह शिवलिंग किसी के द्वारा प्रतिष्ठित नहीं है, अपितु स्वयं शिव-शंकर पाताल लोक का भेदन करने के उपरान्त यहाँ पर अवतरित हुए हैं। मंदिर की पूर्व दिशा में एक जलकुंड भी है। माना जाता है कि जो व्यक्ति इस कुंड में स्नान कर लेता है, उसे त्वचा से सम्बंधित रोग नहीं होते। साथ ही इस कुंड में पूरे वर्ष पानी उपलब्ध रहता है, और यह कभी नहीं सूखता। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर की रक्षा स्वयं भगवान शिव करते हैं। कथाओं के अनुसार एक बार यहाँ के सर्प और मंदिर के घंटे को चोरों द्वारा चुरा लिया, जिसके बाद से वे चोर मानसिक रूप से विक्षिप्त हो गए। और अंत में  सर्प चुराने वाले व्यक्ति के परिवार जनों को उससे अधिक वजनी चांदी का सर्प मंदिर को भेंट करना पड़ा। और घण्टा चुराने वाले चोर उसे उठाकर ट्रेन में नहीं रख पाए, और आखिरकार रेलवे विभाग ने उस घंटे को सही सलामत मंदिर परिसर को वापस लौटाया। चूँकि यह मंदिर साल भर सैलानियों की भीड़ से भरा रहता है, परन्तु महामारी के प्रकोप को देखते हुए यहाँ भी भक्तों के भीड़ में कमी देखी गयी है। लेकिन अपनी चमत्कारी विशेषताओं और भक्तों के अगाध प्रेम के कारण यह मंदिर सदा ही लोकप्रिय रहेगा। 
                                         
                                         
                                         
                                         
                                        