प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की कहानी बताते हैं काली पल्टन मंदिर और शहीद स्मारक संग्रहालय

मेरठ

 20-09-2024 09:25 AM
उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
हमारे मेरठ के शिव औघड़नाथ मंदिर को 'काली पलटन मंदिर' के नाम से भी जाना जाता है, जो मेरठ में सेना बैरक के करीब स्थित है। इसकी स्थापना 1844 में, ज़मीन के नीचे एक शिवलिंग की खोज के बाद की गई थी। हालांकि, क्या आप जानते हैं, कि इस मंदिर में एक पानी का कुआं भी है, जिसका कभी आज़ादी की लड़ाई में भारतीय सिपाहियों द्वारा एक रणनीतिक स्थान के रूप में इस्तेमाल किया गया था। तो आइए, इस लेख में काली पलटन मंदिर और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में विस्तार से जानते हैं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसके योगदान के बारे में चर्चा करते हैं। इसके साथ ही, मेरठ में स्थित 'शहीद स्मारक संग्रहालय' के बारे में जानते हैं, जिसमें 1857 के सिपाही विद्रोह के शहीदों के विषय में जानकारी संग्रहित है। अंत में, हम 1929 में, मेरठ षड्यंत्र मामले पर भी कुछ प्रकाश डालेंगे और और जानेंगे कि इस मामले के आरोपियों को क्यों ब्रिटिश भारत की संप्रभुता से सम्राट को वंचित करने के लिए आरोपी माना गया था।
मेरठ में काली पलटन मंदिर: ऐतिहासिक महत्व:
मेरठ में स्थित काली पलटन मंदिर, 1857 के भारतीय सिपाही विद्रोह से जुड़े होने के कारण महत्वपूर्ण ऐतिहासिक महत्व रखता है, जिसे अक्सर ब्रिटिश शासन के ख़िलाफ़, भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध माना जाता है। यह मंदिर, 19वीं शताब्दी के मध्य में मेरठ में तैनात भारतीय सैनिकों के लिए एक लोकप्रिय सभा स्थल था। इस मंदिर के नाम, "काली पलटन" का शाब्दिक अनुवाद "काली की बटालियन" है, जो सैन्य रेजिमेंटों के साथ इसके मज़बूत संबंध को दर्शाता है। इस मंदिर में, प्रारंभ में, मुख्य रूप से हिंदू सिपाही प्रार्थना करने और मेलजोल बढ़ाने के लिए आते थे। और इस प्रकार यह मंदिर, सिपाहियों के लिए एक आध्यात्मिक मिलन स्थल था।
सिपाही विद्रोह में भूमिका:
9 मई, 1857 को विद्रोह की पूर्व संध्या पर, असंतुष्ट सैनिक, मंदिर में एकत्र हुए और यह मंदिर सिपाहियों के लिए एक केंद्र बिंदु बन गया था। सिपाहियों के बीच, मुख्य रूप से, नई एनफ़ील्ड राइफ़ल के कारण असंतोष था, जिसके कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी लगी होने की अफ़वाह थी, जिससे हिंदू और मुस्लिम दोनों सैनिक नाराज़ थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा लागू की गई मनमानी नीतियों के संबंध में शिकायतों के अलावा, इस मुद्दे ने व्यापक जन आक्रोश को जन्म दिया था।
काली पलटन मंदिर ने विद्रोह के लॉन्चपैड के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यहीं पर कई सिपाही अपने विद्रोह की योजना बनाने के लिए एकत्र हुए थे। इस मंदिर में हुई रणनीतिक चर्चाएं, 10 मई, 1857 को विद्रोह के रूप में सामने आईं, जब सिपाहियों ने अपने ब्रिटिश अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह के परिणाम स्वरूप, घटनाओं की एक श्रंखला की शुरुआत हुई, जो तेज़ी से भारत के विभिन्न हिस्सों में फैल गई।
सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत:
आज, काली पलटन मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में खड़ा है, बल्कि यह उन सिपाहियों की बहादुरी और बलिदान की याद दिलाने वाला एक स्मारक भी है, जिन्होंने औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़, प्रतिरोध की पहली चिंगारी जलाई थी। यह न केवल अपने धार्मिक महत्व के लिए, बल्कि अपनी ऐतिहासिक विरासत के लिए भी आगंतुकों को आकर्षित करता है, और स्वतंत्रता के लिए भारतीय सिपाहियों के संघर्ष की याद दिलाता है।
इसी स्थान पर, 9 मई 1857 को, 85 भारतीय सैनिकों पर मुकदमा चलाया गया, क्योंकि वे अपनी बात पर अड़े रहे और उन्होंने एनफ़ील्ड कारतूसों का उपयोग करने से इनकार कर दिया था। इस मुक़दमें के तहत, ब्रिटिश सरकार की अवज्ञा के कार्यों में भाग लेने के परिणाम स्वरूप इन सैनिकों पर कार्रवाई की गई थी, जिसमें उनके कंधे की पट्टियाँ छीन ली गईं, उनकी वर्दियां फाड़ दी गईं , उन्हें बेड़ियाँ पहना दी गईं और फिर जेल भेज दिया गया था। इस घटना के एक दिन बाद, 10 मई 1857 को, भारतीय सैनिकों ने अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ विद्रोह कर दिया, जिससे सिपाही विद्रोह और उसके बाद प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की शुरुआत हुई थी। मंदिर के अंदर कई देवताओं के बीच सिपाहियों की याद में एक स्मारक भी है। इस प्रकार, यह मंदिर राष्ट्रवादी उद्देश्य के लिए समर्पित लोगों की तीर्थयात्रा और श्रद्धांजलि के प्रतीक के रूप में आज भी खड़ा है।
शहीद स्मारक संग्रहालय:
मेरठ में स्थित, 'शहीद स्मारक और सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय', 1857 के विद्रोह और स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष को एक मार्मिक श्रद्धांजलि के रूप में खड़ा है। इस ऐतिहासिक घटना की याद में स्थापित यह स्मारक, कंपनी गार्डन के पास स्थित एक संरक्षित स्थल है। इस स्मारक के मैदान के भीतर स्थित 'सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय' में 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित ऐतिहासिक कलाकृतियों और दस्तावेज़ों का ख़ज़ाना संग्रहित है। इस संग्रहालय को 1997 में स्थापित किया गया था। यह संग्रहालय उस युग की तस्वीरों, चित्रों और यादगार वस्तुओं का एक आकर्षक संग्रह प्रदर्शित करता है, जो औपनिवेशिक शासन के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारतीय नायकों के बहादुर प्रयासों पर प्रकाश डालता है। यह प्रमुख घटनाओं के चित्रण से लेकर स्वतंत्रता सेनानियों के वीरतापूर्ण संघर्षों तक, भारत के समृद्ध अतीत की व्यापक जानकारी भी प्रदान करता है।
इस संग्रहालय में प्रदर्शनियों से भरी दो दीर्घाएं हैं, जो स्वतंत्रता संग्राम की कहानियों को स्पष्ट रूप से चित्रित करती हैं। महत्वपूर्ण घटनाओं को दर्शाने वाली चित्रावली से लेकर प्रभावशाली नेताओं के चित्रों तक, यह संग्रहालय देश की स्वतंत्रता की लड़ाई का एक सम्मोहक आख्यान प्रदान करता है। उस युग के डाक टिकटों, चित्रों और स्मारक सिक्कों के संग्रहके रूप में, इस संग्रहालय में सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित और प्रसारित करने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, जो आने वाले सभी लोगों के लिए एक अद्वितीय शैक्षिक अनुभव प्रदान करते हैं। वास्तव में, जो लोग भारत के इतिहास को गहराई से जानने में रुचि रखते हैं, उन्हें शहीद स्मारक और सरकारी स्वतंत्रता संग्राम संग्रहालय का दौरा अवश्य करना चाहिए।
1929 का मेरठ षडयंत्र केस और ब्रिटिश साम्राज्य पर इसका प्रभाव:
हमारे मेरठ से एक ऐसी घटना जुड़ी है, जिसे 'मेरठ षड़यंत्र केस' (Meerut Conspiracy Case) के नाम से जाना जाता है, और जो 1929 और 1933 की शुरुआत के बीच ब्रिटिश भारत में चली एक विवादास्पद कानूनी गाथा थी। इसकी शुरुआत तीन अंग्रेज़ों सहित उनतीस ट्रेड यूनियनवादियों की गिरफ़्तारी और उसके बाद मुक़दमें से हुई थी। यह आरोप लगाया गया था कि उन्होंने "ब्रिटिश भारत की संप्रभुता से सम्राट को वंचित करने" का प्रयास किया था। उन पर भारतीय दंड संहिता की धारा 121ए के तहत आरोप लगाए गए थे।
वास्तव में, 'मेरठ षड़यंत्र केस', ब्रिटिश सरकार के साम्यवादी और समाजवादी विचारों के प्रसार के बढ़ते डर का प्रतीक था। ब्रिटिश सरकार के बीच एक व्यापक धारणा थी कि ट्रेड यूनियनवादियों और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (Communist Party of India (CPI)) द्वारा श्रमिकों के बीच प्रचारित मार्क्सवादी विचारधारा ब्रिटिश शासन को कमज़ोर कर देगी। और इसी के चलते, सत्ताईस ट्रेड यूनियन नेताओं को दोषी ठहराया गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार को यहां भी मुंह की खानी पड़ी, क्योंकि साम्यवादी सक्रियता और विचारों को हतोत्साहित करने के स्थान पर, इस मुकदमे ने प्रतिवादियों को एक सार्वजनिक मंच का उपहार दे दिया। इस प्रकार, अदालती मामले ने भारत के मतदाताओं के बीच भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थिति को मज़बूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

संदर्भ

https://tinyurl.com/3h529232
https://tinyurl.com/47nz68zn
https://tinyurl.com/5efbrvfv
https://tinyurl.com/vcujteue

चित्र संदर्भ
1. मेरठ के काली पलटन मंदिर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. काली पलटन मंदिर के आंतरिक भाग को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. काली पलटन मंदिर में एक शहीद स्मारक पट्टिका (memorial plaque) को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. मेरठ के कम्बोब गेट के एक दुर्लभ चित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)

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