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‘लो अर्थ ऑर्बिट’,पृथ्वी की निचली अंतरिक्ष कक्षा में है भारत की महत्वपूर्ण उपस्थिति

रामपुर

 12-04-2023 09:25 AM
संचार एवं संचार यन्त्र

प्रत्येक वर्ष 12 अप्रैल को अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन(Yuri Gagarin) द्वारा की गई सबसे पहली मानव अंतरिक्ष उड़ान की वर्षगांठ के उत्सव के रूप में ‘अंतर्राष्ट्रीय मानव अंतरिक्ष उड़ान दिवस’ (International Day of Human Space Flight Day) आयोजित किया जाता है। इस दिवस को सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा राष्ट्रों और लोगों के कल्याण में वृद्धि करने हेतु मानव जाति के लिए अंतरिक्ष युग की शुरुआत के रूप में और अंतरिक्ष विज्ञान और प्रौद्योगिकी के महत्वपूर्ण योगदान की पुष्टि करने के लिए मनाया जाता है। साथ ही शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए हमारे अंतरिक्ष को कायम रखने की हमारी महत्वाकांक्षा को सुनिश्चित करने के लिए भी यह दिवस महत्वपूर्ण है।
‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (Low Earth Orbit–LEO) या पृथ्वी की निचली कक्षा, पृथ्वी की सतह से ऊपर 200 से 2,000 किलोमीटर के बीच एक अंतरिक्ष पट्टी या क्षेत्र है। परंतु अब यह क्षेत्र अगले कुछ वर्षों में इस क्षेत्र में नवाचार के चलते कुछ देशों के बीच अपना वर्चस्व सिद्ध करने के लिए सबसे बड़ा युद्ध का मैदान भी बन रहा है । ऐसा अनुमान है कि आने वाले 10 वर्षों में लगभग 50,000 से भी अधिक सक्रिय सैटेलाइटस् (Satellites) के समूह एलईओ में परिक्रमा करते हुए दिखाई देंगे। ऐसा होने पर अरबों लोग तेज इंटरनेट सेवा का लाभ उठा पाएंगे। इससे तकनीकी विकास को तेजी मिलेगी और इसी कारण विश्व के प्रमुख निवेशक भी इसमें निवेश कर सकते हैं। कई ऐसे कारक हैं जो इस नई अंतरिक्ष दौड़ को बढ़ावा दे रहे हैं। उदाहरण के लिए यह दुनिया की इंटरनेट से वंचित शेष 40% आबादी को जोड़ने के लिए एक विशाल बाजार अवसर हैं। यह उम्मीद है कि इस वर्ष के अंत तक लगभग 30 बिलियन विभिन्न उपकरण इंटरनेट से कनेक्ट हो जाएंगे। साथ ही जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए पृथ्वी को बेहतर ढंग से समझने की तत्काल आवश्यकता है, जिसे एलईओ से सैटेलाइटस् और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (Artificial Intelligence (AI) द्वारा संचालित अवलोकन उपकरणों द्वारा कैद की गई बेहतर तस्वीरों के माध्यम से सुगम बनाया जा सकता है।
सैटेलाइट संचार बाजार के 2040 तक कुल 400 बिलियन डॉलर मूल्य का होने की संभावना है। एलईओ मौजूदा इंटरनेट प्रदान करने वाले सैटेलाइटस् की कक्षा की तुलना में 50 गुना अधिक करीब है, जिसके कारण सैटेलाइटस् काफी तेज गति से डेटा पृथ्वी पर वापस भेजने में सक्षम हो सकते हैं। तकनीकी और वाणिज्यिक सफलताओं के कारण विकासशील देश, निजी कंपनियां और यहां तक ​​कि कुछ व्यक्ति भी अब इस क्षेत्र में निवेश करने के लिए सक्रिय हैं। इन निवेशकों ने अरबों डॉलर का निवेश किया है। 3डी-प्रिंटिंग का उपयोग करते हुए छोटे सैटेलाइटस् के निर्माण से एक तरफ जहां लागत में कमी आ रही है वहीं दूसरी तरफ पुनः प्रयोज्य लॉन्चिंग व्हिकल्स के निर्माण से भी एलईओ को बढ़ावा मिल रहा है । अगले तीन से चार वर्षों में एलईओ में परिचालित सैटेलाइटस् होने की उम्मीद है। स्टारलिंक (Starlink), एलोन मस्क (Elon Musk) के स्पेसएक्स (SpaceX) द्वारा शुरू किया गया एक सैटेलाइट उद्यम, इसी उद्देश्य के लिए 12,000 से 42,000 सैटेलाइटस् तक को एलईओ में लॉन्च करने का लक्ष्य रखता है। चीन के राष्ट्रीय अंतरिक्ष संस्था ‘चीन राष्ट्रीय अंतरिक्ष प्रशासन’ (China National Space Administration (CNSA) द्वारा भी 2030 तक लगभग 12,992 सैटेलाइटस् को इस पट्टी में लॉन्च करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। हमारा देश भारत भी एलईओ में हजारों सैटेलाइटस् को लॉन्च करने के उद्देश्य के साथ आगे बढ़ रहा है। एलईओ का तेजी से व्यावसायीकरण हो रहा है। इसमें बड़ी संख्या में निजी सैटेलाइटस् लॉन्च किए जा रहे हैं । हालाँकि, विभिन्न देशों द्वारा इस क्षेत्र को एक राष्ट्रीय सुरक्षा क्षेत्र के रूप में भी देखा जा रहा है, और इसी कारण संयुक्त राज्य अमेरिका (United States of America), रूस (Russia) और चीन (China) जैसे देशों के बीच तनाव बढ़ रहा है। किंतु लो अर्थ ऑर्बिट को अब तक केवल सैन्य अभियानों, गोपनीय जानकारी एकत्र करने और राष्ट्रीय सुरक्षा के उद्देश्यों के लिए नाजुक विषय के रूप में देखा जाता था। जबकि आज यह, दूरसंचार, सैटेलाइट इंटरनेट, मौसम पूर्वानुमान और नेविगेशन तथा ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (Global Positioning System (GPS) का समर्थन करने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है। आज विभिन्न देशों में विशेष रूप से अमेरिका, चीन और भारत में सरकारों द्वारा निजी कंपनियों को उनकी वाणिज्यिक अंतरिक्ष क्षमता के निर्माण में सहायता की जा रही है, जिससे एलईओ के व्यावसायीकरण में तेजी से वृद्धि हुई है। नासा(NASA) द्वारा अमेरिका में, निजी अंतरिक्ष क्षेत्र का निर्माण करने के लिए अपनी क्षमता, विशेषज्ञता और ऐतिहासिक विरासत का उपयोग किया जा रहा है । हाल ही में, नासा ने वाणिज्यिक अंतरिक्ष स्टेशन बनाने के लिए कुछ अमेरिकी कंपनियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर भी किए है।
एलईओ मौसम उपग्रह सेवा, नेविगेशन और सैटेलाइट इंटरनेट आदि जैसे निवेश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण क्षेत्र बनता जा रहा है। एलईओ सैटेलाइट सेवा मौसम पर डेटा की पेशकश करके कृषि और मत्स्य पालन में भी सहायक है। यह पृथ्वी पर आज हम जो जीवन जी रहे हैं, उससे काफी हद तक जुड़ा हुआ है; यह ई-कॉमर्स(E–commerce) और टेली-एजुकेशन (Tele–education) जैसी सेवाओं से भी जुड़ा है। और शायद इसलिए ही पृथ्वी की निचली कक्षा का यह क्षेत्र वैश्विक राजनीति के लिए इतना महत्वपूर्ण होता जा रहा है। हालांकि इसको लेकर विभिन्न देशों के बीच तनाव एक चिंता का विषय है। यह तनाव विभिन्न राष्ट्रों की अपनी अपनी वैचारिक प्रतिबद्धताओं के साथ-साथ इस तथ्य पर भी आधारित है कि, एलईओ को विनियमित नहीं किया जाता है। एलईओ कक्षा में, विभिन्न खंड विभिन्न राष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों के लाइसेंस है। इसे इस उदाहरण से समझें कि यदि आप एक अमेरिकी कंपनी हैं, तो आप संघीय संचार आयोग में आवेदन करते हैं, और वे आपको मूल रूप से अपना उपग्रह लॉन्च करने का लाइसेंस देंगे। क्योंकि जैसा कि ये लाइसेंस पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर दिए जाते हैं, इन कक्षीय स्लॉट के कारण राजनीतिक तनाव उत्पन्न हो सकता है। जबकि, अब तक पूरे एलईओ को नियंत्रित करने हेतु कोई भी अंतरराष्ट्रीय निकाय बना ही नहीं हैं, ऐसे में क्या पता कि आप गलती से दूसरे के सैटेलाइटस् से टकरा जाएं…
एक तरफ, अपनी पहली ऐतिहासिक व्यावसायिक उड़ान में ही, भारत सरकार के एक रॉकेट ने अक्टूबर 2022 में यूनाइटेड किंगडम (United Kingdom) स्थित वनवेब (OneWeb) के 36 सैटेलाइट्स को सफलतापूर्वक इस कक्षा में स्थापित किया हैं। इस सफलता के साथ, भारत ने अब कुल 381 विदेशी उपग्रहों को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया है। वनवेब, भारत भारती ग्लोबल (India Bharti Global) और यूके सरकार के बीच एक संयुक्त उद्यम है। भारत अब दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उपग्रह संचार (SATCOM) बाजार है। भारत के अंतरिक्ष और संचार प्रौद्योगिकी कार्यक्रमों ने हाल के वर्षों में तेजी से प्रगति की है और विकासात्मक दृष्टिकोण से, भारत में अंतरिक्ष उद्योग अगली तकनीक-आधारित आर्थिक क्रांति को प्रेरित कर सकता है। एकीकृत अंतरिक्ष और उपग्रह संचार एक शक्तिशाली विकास चालक है जो ग्रामीण संपर्क, शिक्षा और कौशल विकास, स्वास्थ्य देखभाल और टेलीमेडिसिन (Telemedicine), भंडारण, सार्वजनिक वितरण प्रणाली और कई अन्य अनुप्रयोगों को सक्षम करके भारतीय अर्थव्यवस्था को संभावित रूप से आधुनिक बना सकता है। ‘ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स’ (Global Innovation Index) के 2022 संस्करण में भारत को पहली बार शीर्ष 40 देशों में स्थान मिला है। इस दिशा में भारत की निरंतर वृद्धि, आंशिक रूप से अंतरिक्ष, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी में इसके सुधारों के कारण ही है।
लागत प्रभावी तकनीकों, उभरते स्टार्टअप, बहुतायत में युवाओं की आबादी, तकनीकी ज्ञान और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन जैसे देशीय संस्थानों द्वारा उचित रूप में कार्य करने पर, भारत में वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में एक विश्व नेता बनने की क्षमता है। हालांकि, अभी हमें आर्थिक विकास को बढ़ावा देने हेतु अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लिए एक एकीकृत रणनीति का मसौदा तैयार करते समय कई नीतिगत मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है। अंतरिक्ष एजेंसियों को अन्य मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करना चाहिए ताकि सभी को और हर क्षेत्र में अधिकतम लाभ मिल सके। अंत में, भारत की महत्वपूर्ण विकासात्मक बुनियादी ढाँचे की ज़रूरतों को देखते हुए, अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को समाज में लाभों का अधिक समान वितरण लाने के प्रयासों के पीछे एक मौलिक चालक बनने की आवश्यकता होगी।

संदर्भ
https://bit.ly/3UaurV5
https://bit.ly/40HhvIx
https://bit.ly/3m6ct9v

चित्र संदर्भ
1. पृथ्वी की निचली अंतरिक्ष कक्षा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. ‘लो अर्थ ऑर्बिट’ (Low Earth Orbit–LEO) या पृथ्वी की निचली कक्षा, पृथ्वी की सतह से ऊपर 200 से 2,000 किलोमीटर के बीच एक अंतरिक्ष पट्टी या क्षेत्र को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम को दर्शाता एक चित्रण (Pixabay)
4. SATCOM को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. इसरो सेटेलाइट को दर्शाता चित्रण (Picryl)



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